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वैष्णव जन तो तेने कहिये जे ', गुजरात के संत कवि नरसी मेहता द्वारा रचित यह भजन है जो महात्मा गाँधी को बहुत प्रिय था। इस भजन का एक-एक बोल गाँधीजी के जीवन पर खरा उतरता है, अगर कोई सांमने वाला आपको बार-बार नुकसान पहुँचा रहा है तो आप क्या करोगे ? गाँधीजी की सोच पर चलोगे? उससे प्यार से पेश आहोगें ? आज का जमाना है, जैसा वो है, वैसा मैं हु लवर का जमाना है, प्रेम वो है, वैसा मैं इश्क हु शायद यही कारण रहा होगा, गोड़से ने सोच समझकर ही सही कदम उठाया होगा !!
शीर्षक :- मैं मौन रहू या उन्हें कह दु भाव :- प्रेम मैं मौन रहू या अब उन्हें कह दु ! क्या करु ? यकीन करो, जब उनके करीब कोई ओर आता है मेरे अंतर्मन में द्वेष उत्पन्न होने लगता है !! काव की कौ-कौ बड़े चाव से सुनने लगा हु ! इसमे मेरा क्या दोष ? शुरुवात तो उन्होंने की थी, मैं कहा वाफिक था, गुस्ताखी में दिल हार जाएगा ढाई अक्षर का हर्फ़ जहन में धूल-मिल जाएगा !! सूझबूझ खोए बैठा हु, उनके निच्छल प्रेम में ! मैं तो बिन नीर डूब रहा हु, उनके कपोल खड्डों में, क़दाशित, प्रेम में मित्रता का बलिदान हुआ तो मेरा अंतर्मन झकोर रहा है, मैं मौन रहू या अब उन्हें कह दु !! उनकी भीगी लटो की हिमाकत तो देखो, बार-बार माथे पर चुम्बन कर रही है ! वो कुदरत का सातवाँ करिश्मा है, लबों की तो बात ही निराली है उनके पहरे से ताकते नयन, मानो क्षितिज का सूरज खिल रहा हो !! मैं मौन रहू या कह दु ! बन्द लफ्जो में लिफ़ाफा छोड़ दु, या तार कर दु, क्या करु ? दिल ही उधेड़ हु, ताना-बाना वो गूथ लेगे बैचैनी अब बर्दास्त नही होती, किट-पतंग का जलना तो अब तय है !! मैंने पहली दफा देखी है, यौवन की बारिस को भीगना तो तय है, पर दिल की जमी को या अक्षु से रीझना तो तय है तड़प है, बैचेनी है, जुनून है, पर मुझमे पागलपन तो नही है !! #kavyotsav
शब्दो का मायाजाल ur poem is superb.. https://www.matrubharti.com/book/19857650/
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एक आखिरी खत Selfish के नाम.. http://mangi4444.blogspot.com/2018/02/selfish.html
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