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माया

माया

@maaya22
(14)

जीवन की भागा भागी में
कब सुबह हुई,कब शाम ढली
कब धूप खिली कब शाम ढली
ना पता चला,ना पता चला
जो साथ रहा ना सहा गया
जो छूट गया ना कहा गया
छूटे की ढूंढा ढांढी में,कब धूप खिली कब शाम ढली
ना पता चला,ना पता चला
क्या चाहा था,कुछ याद नही
क्या पाया है,कुछ पता नहीं
पाने और चाहने की हसरत में
कब धूप खिली,कब शाम ढली
ना पता चला, ना पता चला
जीवन की आवाजाही में
कुछ बिखर गया,कुछ संवर गया
क्या संवर गया कुछ पता नहीं
जो बिखर गया उसे याद किया
यादों की आंख मिचौली में
कब धूप खिली,कब शाम ढली
ना पता चला , ना पता चला
ये सांझ है मेरे जीवन की
अब वक्त मिला, पलटू देखूं
एक लंबा जीवन जी कर के
ये अनुभव मेने पाया है
मंजिल पाने की चाहत ही
जीवन को सफल बनाती है
अब पता चला ,अब पता चला

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