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अपनी गलतियों को छुपाकर, दूसरों पर जो लगाते आरोप। धीरे धीरे कुछ ही समय में, एक दूसरे के प्रति बढ़ता रोष।। मिश्री - kiranvinod Jha
जिसको जिसका होना है, शौक से उसका हो जाओ। बाहों में बाहें डालकर, प्रेम से प्रेम के गीत गाओ।। मिश्री - kiranvinod Jha
चित्त चुराएं गोपियों का, गोकुल का नंदकिशोर। लीलाएं ऐसी वो दिखाए, छलिया कहे,कोई बोले चोर।। बांसुरी की मधुर ध्वनि से, खींचे सबको अपनी ओर। सुनकर उस बंसी की धुन, नृत्य करे,मुग्ध होकर मोर।। मिश्री - kiranvinod Jha
ऋतुएं चाहें जितनी बदल जाएं, पर नहीं बदले कभी साथ तुम्हारा। खट्टे मीठे अनुभवों के साथ में, अंतिम सफर तक रहे साथ हमारा।। मिश्री - kiranvinod Jha
स्वार्थहित की इस दुनियां में, अपनों के प्रेम में भी है मिलावट। लाभ जिससे नहीं मिलता जब, स्नेह में आती है तुरंत गिरावट।। सुप्रभात मिश्री - kiranvinod Jha
क्षणिक साथ का भाव दिखाकर, रहते है जो सबके साथ व्यस्त। ज्यादा किसी के पीछे पड़ने पर, लगता है सब उन्हें करते त्रस्त।। मिश्री - kiranvinod Jha
बीत गए वो दिन और बीत गई वो बातें। जब ताजी ताजी थी,दोनों की मुलाकातें।। मिश्री - kiranvinod Jha
भाग गए रणछोड़ सभी, देख अभी तक खड़ा हूँ मैं क्या हुआ विजय न चूम सका, क्षमता भर अपनी लड़ा हूँ मैं। ग्लानि जो खुद से हार गए, वैसा बेचारा नही हूँ मैं जाके कह दो विषम लक्ष्य से, हारा नही हूँ मैं। प्रत्यंचा टूट गई तो क्या फिर से पिनाक मैं बाँधूंगा अड़चन आएंगी आने दो अंतिम साँसों तक साधूंगा कब तक चूकेंगे साध्य मेरे भाग्य का सहारा नहीं हूँ मैं जाके कह दो विषम लक्ष्य से हारा नहीं हूँ मैं। जितना संघर्ष कठिन होगा उतनी ही प्यारी विजय होगी फिर तूफानों में भी लड़ने में काया वो निर्भय होगी मजधारों का ही राही हूँ देख किनारा नही हूँ मैं जाके कह दो विषम लक्ष्य से हारा नही हूँ मैं जीवन तो है बस इतना ही हम जीते हैं या मरते हैं बेकार बैठने से अच्छा जो कुछ शुरूआत तो करते हैं कम से कम अपनी आकांक्षाओं, का हत्यारा तो नही हूँ मैं जाके कह दो विषम लक्ष्य से, हारा नही हूँ मैं। जब मेहनत सफल नही होती, हिम्मतें दांव दे जाती है विश्राम नही दूंगा खुद को, ये हार बहुत सिखलाती है गिरकर उठने का आदी हूँ, ठोकर का मारा नहीं हूँ मैं जाके कह दो विषम लक्ष्य से, हारा नहीं हूँ मैं ..... वंदे मातरम् जय श्री राम हर हर महादेव 🚩❤️🙏👍🇮🇳🌹 Skm ✍️ - kiranvinod Jha
जीने की चाह खत्म हुई, पर ईश्वर भरोसे है जिंदा। सांसें जब तक चलती रही, साथ में मिलती रही निंदा।। मिश्री - kiranvinod Jha
मुंह से चाहें कुछ भी बोल दो, सही क्या है,ये जानती आत्मा। स्वयं का बखान करने से, छुपता नहीं , कुछ परमात्मा।। सुप्रभात मिश्री - kiranvinod Jha
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