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R.KapOOr

R.KapOOr Matrubharti Verified

@kapoorr236outlook.com170312
(22)

परिंदा हूं मैं, हवाओं में गुनगुनाता हूं
खुली फ़िज़ाओं में उड़ता हूं गीत प्रेम के गाता हूं

-R.KapOOr

वो मुझे देख कर मुस्कुराने लगे हैं
लगता है अपने भी अच्छे दिन आने लगे हैं

-R.KapOOr

रात थी
ख़्वाब पलकों पे ठहरे हुए
चुभन कांच सी देते हैं
आंखोंं को मूंदे हुए
हम फ़िर भी सोये रहते हैं

-R.KapOOr

https://youtu.be/T3usuUsXK_4



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तू ठहर जा ज़रा
वक़्त नू गुज़र जाण दे
वक़्त दा कुसूर है
तू तां बेकसूर हैं
तू जो चली गई
वक़्त फ़ेर ठहर जायेगा
एस कर के ही कह रया हां
तू ठहर जा ज़रा
वक़्त नू गुज़र जाण दे

-R.KapOOr

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तेरे दरस के दीवाने हैं तेरे दर पर
यूँ लुकाछुपी खेल के और ना सितम कर

-R.KapOOr

मैं धरा की धूल, तुम नाथ मेरे
मैं मुसाफ़िर एक भटका, तुम साथ मेरे

-R.KapOOr

माना मैंने कि वो मेरी सनम नहीं
पर उसका पलट कर देखना भी तो कम नहीं

-R.KapOOr

जानता हूं याद तो तू भी मुझे करती है बहुत
कमबख्त हिचकियां हैं कि रुकती ही नहीं

-R.KapOOr