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न किसी आँखों का नूर हूँ न कोई दिल का ग़ुरूर हूँ, किसी काम नहीं आ सके जो मुट्ठीभर धूल हूँ..। जो बिगड़ा वो नसीब हूँ इक उजड़ा रक़ीब हूँ, एक उनका हबीब हूँ मैं खुद ही से क़रीब हूँ..। न लाग हूँ, न मैं लगाव हूँ न पतझड में छाव हूँ, जो बिगड़ा वो बनाव हूँ, एक ठहरा सा घाव हूँ..। बरसात का राग हूँ मैं बारिश में आग हूँ, मेरे वक़्त से बिछड़ा मैं ख़िज़ॉंओ का बाग़ हूँ..
तेरा ग़ुरूर भी है लाज़मी जॉंनॉं, है मुझें भी ज़िद इसे तार तार करना है..|
लम्हा-दर-लम्हा ज़िन्दगी बेज़ार हो रही है, वज्ह एक ही पे दरियां सी ख़ार हो रही है | बहते समंदर में जैसे तूफ़ान हो रही है, तपती रेत में जैसे मिराज़ हो रही है | देख अब तो क़ज़ा का डर नहीं मुझकों बाकी, जर्रा जर्रा ज़िंन्दगी मज़ार हो रही है | तुझकों न देखूं मैं नज़रों से अब हसरत ये भी, रेज़ा रेज़ा ये हसरत भी कमाल हो रही है | बालिश्त तमाम कोशिशें नाक़ाम उसे मनाने की, ज़िंन्दगी गलत-फ़हमियों की कोई दिवार हो रही है |
शराफ़तो की यहाँ कोई अहमियत ही नहीं, ज़रा सा क़तरा भी समंदर के लहज़े में बात करता है..
एक ख्वाब है ताउम्र उसके साथ रहूँ है डर भी ख्वाब टूटते बहोत है
निगाह-ए-नाज़ में रखते है सिर उठाकर, और नज़र रोक उनकी अहल-ए-इश्क़ लेते है
वो चाहता है की उसे चाहा भी जाए और उससे कोई उम्मीद भी ना लगाइ जाए
हसीं तो और है लेकिन कोई कहाँ तुझ सा वो सादगी न करे कुछ भी तो अदा लगे..
एक ऐसा भी वक़्त आएगा, तुम सुनोगे फ़क़त कहूँगा मैं.. देखना तेरी रहबरी के बगैर, अपनी मंज़िल तलाश लूंगा मैं...
क़ल्ब-ए-सुकून को अब लफ़्ज़ काफ़ी है तू मिले ना मिले बस दिखे तो काफ़ी है
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