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लहज़ा क़ातिलों वाला अदाए दिलकश रखे है, एक शायरा मशहूर यहाँ अपनी उर्दू में मशरूफ रखे है..
शेर कह कर अदाओं पर ना हमकों आजमाने बैठिए, ये दिलजलों कि महफ़िल है यहाँ ना दिल लगाने बैठिए..!
ज़िन्दगी इक अश्क़ो का जाम, कुछ दर्द कुछ तुझ सा आराम.. पी गए कुछ और कुछ छलका गए, हम ख़ामोशियों कि वजह बता गए.. बेवजह अब तुझसे कोई बात नहीं, हां मगर मुलाकात में कोई इनकार नहीं.. बे ठिकानों को कहीं ठिकाने मिले, तेरे दीदार से कही नज़राने मिले..
अज़ाब देकर तू क्या अजब बात कर गया, कहाँ आ के रुकने थे रास्ते कहाँ मोड़ था भूल गया.. किसी आँख में नहीं अश्क़-ए-ग़म, तू जानता था तेरे बअ'द कुछ नहीं थे हम , गुनेहगार फ़िर भी तू क़रीब इतने आ के सब भूल गया.. पानी चुभा जो लबों पर समंदर से फ़रियाद कैसी, इश्क़ तीखा चराग़ हवाओं से फ़रियाद कर गया.. इश्क़ की फ़िर वही ज़ंज़ीरे लिए चला है मेरी तरफ, तुझें ज़िन्दगी में कब का मुस्कुरा के भूल गया.. था जो कभी बे-इंतेहा फ़िदा तुम पर, वो था एक दरिया विसाल जो कब का उतर गया.. हां मैं तुझ को मुस्कुरा के भूल गया..
तलब जिस्मानी हो तो इश्क़-ए-इज़हार मत करना, खेल लेना अंगारों से शायर से प्यार मत करना ...
चाक-ए-दिल कोई तबीब ग़र कर भी दे रफ़ू, इधर देखूँ, उधर देखूँ, हर तरफ है तू, फ़िर किधर देखूँ मैं किधर देखूँ..
हम इश्क़ को सीने में जला कर के आ गए, दरिया की बढ़ी प्यास बुझा कर के आ गए..
हम तो समझे थे कि इक ज़ख़्म है भर जाएगा क्या ख़बर थी कि रग-ए-जाँ में उतर जाएगा
बे-ख़ुदी बढ़ती चली है कुछ राज़ की बातें करो, सुब्ह होने तक इसी अंदाज़ की बातें करो..
हर मोड़ छल, हर राह पे तबाही है, इश्क़ मेला ज़ख्मों का, हर राह तन्हाई है.. वो छोड़ मुझकों गैरों का हो रहा, मैं ने इस सफ़र बरबादी कमाई है...
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