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अनकहे अफ़सानों की निर्मल धारा ये शहर तुम्हारे स्वप्नों का, मधुर गीतों का आलम है, जहाँ ख्वाब बिखरे धूल बनकर, छुपा हर कोना मधुरम है। हर गली में बसी कहानी, हर मोड़ पे बस एक तराना, चाँदनी रातों में खुली पलकें, बुनतीं फिर नया फ़साना। नींदों में भी अनकहे अफसाने, जागतीं आस की परछाईं, हर भोर में आशाएँ नईं, साँझ ढले नई अंगड़ाई। भावों की ये निर्मल धारा, बहती नित अंतर के द्वारे, संभाल इन्हें तू प्रेम से, बिखरें न कहीं संसार में। मत उलझ इन झूठी रौशनी में, ना खो अपने सपनों को, सत्य का दीप जला अंतर में, साध ले अपने मन को। यहाँ जो दीखे स्वर्णिम आभा, भीतर से वो धुंधली होती, नाम बड़े, पर आत्मा सूनी, ये मायावी छाया ढोती। हर मुस्कान के पीछे गाथा, हर दृष्टि में छिपा है मौन, कंचन जैसी बाहरी चमक, भीतर करती अंतर शून्य। रूप का ये छद्म श्रृंगार, दबावों से रचा चित्रकार, पर तू रहे सदा निर्भीक, सत्य को कर आलंकार। अपनी दृष्टि में प्रसन्न रहो, न दिखावे के जाल में फँसो, किरदार को रखो उज्जवल, आशाओं को पलकों पे भरो। हृदय में बसा लो स्वप्न को, सिंचित कर लो प्रेम-सुधा से, जब झंझाएँ उठें भीषण, तब भी थामो दृढ़ता से। खुलकर हँसना नभ के नीचे, मत डरना अंधेरों से, संघर्षों में गूँज उठना, मधुर राग अपने स्वर से। ग़मों से ना बंधन रखना, राहों को न आश्रय देना, सपनों के इस पावन नगर में, नव ज्योति सदा भर देना। बनो वो दीपक हवाओं में, जो न कभी मद्धम होता, अंधकार में भी अपनी आभा, विश्वास का संदेशा देता। हर पथ में रोप दो आशा, हर पग में बिखेरो प्रकाश, अपना रचा ये स्वप्निल संसार, बने सृजन का मधुमास। तो चलो, सजाएँ इस नगर को, भाव-रस से संजोकर, जहाँ न होगा छल का कोई, बस प्रेम-सुधा बहकर। जहाँ सत्य और स्वप्न मिलन करें, सौंदर्य का सृजन रचे, उस स्वप्निल शहर की ओर चलो, नव उमंगों से मन सजे।
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