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Gustakh Yaar

Gustakh Yaar

@gustakhyaae


जिसे हर दम अपने समीप महसूस करता हूं मै
मेरा वो अहसास हो तुम
एक पल भी नै दिखो तो मर जाऊं मै
मेरे लिए इतनी खास हो तुम

-Gustakh Yaar

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के वो घर गली मौहल्ला यारे प्यारे मै सबसे रिश्ता तोड़ आया
जरा सी ख्वाहिशों के लिए मै अपना जन्नत जैसा गांव छोड़ आया

न जाने मेरे आने के बाद मेरी मां कितना रोई होगी
पहली बार अकेला इतनी दूर गया है मेरा बेटा
न जाने किस हाल मे होगा
ये सोचकर वो रात भर न सोई होगी
उसकी नीरस सी जिंदगी मे
मै एक वियोग का दुख भी जोड़ आया
जरा सी ख्वाहिशों के लिए मै अपना गांव छोड़ आया - 2

वहां अमावश की काली रात भी शुकून देती थी
जब डर लगने लगता तो मां आंचल मे भर लेती थी
पिता का हाथ पकड़के तो मै अंधेरे को भी चुनौती दे देता
दोस्तों के साथ खेलकूद मे लगी चोट हंसकर सह लेता
अब बची वो ताकत कहां
अब बची वो ताकत कहां
जिस भाई के दम पर सबसे भिड़ जाता था ,मै उससे ही मुह मौड़ आया
जरा सी ख्वाहिशों के लिए मै अपना गांव छोड़ आया -2

के वो गुरू वो स्कूल वे सहपाठी याद आते हैं
गुरू का ज्ञान और उनसे खाए डंडे लाठी याद आते हैं
वो क्लासरूम भी बडा़ प्यारा था
वो क्लासरूम भी बडा़ प्यारा था जिसके आखरी तीन बैंचों पर कब्जा हमारा था
सब दोस्त एक दूसरे को सगे भाई की तरह चाहते थे
हर रोज एक मां के हाथ की रोटी आठ बेटे दावत की तरह खाते थे
जब जिससे मन किया उससे भीड़ जाते थे
लाख कोशिशों के बाद भी कोई हमारी दोस्ती न तोड़ पाया
जरा सी ख्वाहिशों के लिए मै अपना गांव छोड़ आया -2

हमारे पास सुविधा कम लेकिन सुख बहोत था
एक को लगती चोट तो दर्द सबको होता
दुख दर्द मे मेरा सारा गांव शामिल होता यहां तो पड़ोसी भी पडो़सी की लेता खौज नी
लाख सुविधा हो तेरे शहर मै पर मेरे गांव बरगी मौज नी
मेरे गांव बरगी मौज नी
मन ना लागता याडै बस दिना नै धक्के देरे हैं
थारे experta के ज्ञान तै ज्यादा तो मेरे गांव के बुजुर्ग तजुरबा लेरे हैं
एक पल मै सारी निकल गयी उनके स्यामी
अपने किताबी ज्ञान की करकै मै जो मरोड़ आया
जरा सी ख्वाहिशों के लिए मै अपना गांव छोड़ आया -2

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