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Geetanjali Chatterjee

Geetanjali Chatterjee Matrubharti Verified

@geetanjalichatterjee1528
(74)

क्यों उछाले नाग काले
होश खोती बस्तियों में
ये हवाएँ सर्पदंशी लग रही हैं
ज़हर मोहरा पास में रखिए।
गाँव लेते हैं उबासी, शहर सोते
चार ओझा घूमते हैं ज़हर बोते
व्यर्थ सब सम्वेदना है
वर्जनाएँ लोकध्वंशी लग रही है
ज़हर मोहरा पास में रखिए।
तोड़ते बच्चे खिलौने, साँप बुनते
ये न बुलबुल, कोकिलों के गीत सुनते
कहर ढाया बस्तियों में
नीतियाँ नित नागवंशी लग रही हैं
ज़हर मोहरा पास में रखिए।
लोक विषपायी स्वयं में खो गए हैं
सब पड़ोसी नीलकंठी हो गए हैं
राख होती बस्तियाँ हैं
आँख में मणिकर्णिका सुलग रही है
ज़हर मोहरा पास में रखिए।

रिंकू चटर्जी #गीतांजलि
(कलम से क्राँति तक) संकलन

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कौन से दांत पर रक्त है वक्त का...
झांक आए सभी शेर की दाढ़ तक...
राम जाने ये गली कहाँ तक जाएगी...
बाजरे का सफ़र, खेत से भाड़ तक..
गोलियां जब घुसी वक्त की जांघ में,
एक पैदा हुआ आदमी में मरद...
भेड़िया एक फिर हो गया बेअदब,
आ गया है शहर भूल के अपनी हद...
साँस लीजे रात में कुछ सोचकर,
बदचलन हो गई सुबह से कुछ, हवा,
क्या पता कब फटेगा ये ज्वालामुखी,
इस जलन की दिखती नहीं कोई दवा...
दफ़न जिनको किया रात में, वे सुबह,
कब्र को तोड़ गर्दन उठाने लगे....
भेडिये बस्तियों में समाने लगे...
लोग गाँवों को छोड़ जाने लगे....

रिंकु चटर्जी(गीतांजलि)
कलम से क्रांति तक

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मैं इस प्रतीक्षा में कि तुम पूछोगे कहाँ गई थी क्यों गई
तुम इस मान में कि जाती हो तो जाओ
मेरी प्रतीक्षा बनी रही तुम्हारा मान नहीं टूटा
टूट गया एक पूरा का पूरा रिश्ता
रास्ते से भटकता रहा रास्ता
(गीतांजलि चटर्जी) संकलित कविताएँ

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