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GANESH TEWARI 'NESH' (NASH)

GANESH TEWARI 'NESH' (NASH)

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मृत्यु सामने है खड़ी. मगर नहीं आभास। अब तो जग को छोड़िए.
कब होगा विश्वास।।
(नैश के दोहे से उद्धृत)
---गणेश तिवारी 'नैश'

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तृष्णा के सम दुख नहीं.सुख नहिं त्याग समान। तृष्णा को नर त्याग कर. बनता सदा महान।। दोहा-१०३
(नैश के दोहे से उद्धृत)
-------गणेश तिवारी 'नैश:

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संत माधवदास-- भिक्षाटन के लिए आप एक महिला के यहाँ ज़रूर जाते थे.वह आपको नित्य गालियाँ देती थी। एक दिन वह चूल्हे में पोता लगा रही थी। जैसे ही आपने आवाज़ लगायी.उसने उसी पोते को फेककर आपको मारा। आपने उसे बदले में पोता होने का आशीर्वाद दिया। ईश्वर की कृपा हुयी उसके पोता(पौत्र) हुआ। यह थी संत पर भगवान की कृपा। कृपा आप पर भी हो सकती है। कल दस अप्रैल को नैशपीठ के पावन भण्डारा में आप प्रसाद पाने हेतु अवश्य आएँ। निवेदक. गणेश तिवारी पीठाधीश्वर नैशपीठ नरायनपुर जयसिंह चरसड़ी गोण्डा़।

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संत गरीबदास जी--आपको दीक्षा देने संत कबीर जी सतलोक से आए ओर
आपके सूक्ष्म शरीर को सतलोक का दर्शन भी कराया। यहाँ आपको मृत समझकर घरवालों ने आपकी चिता में आग लगा दी। ईश्वर की कृपा हुयी तो आप जलती चिता से निकलकर बाहर आ गए। कृपा आप पर भी हो सकती है। नैशपीठ में चार मार्च से चल रहे रामाधुन में आप आइए और अपने बच्चों को भी भेजिए। आपका शुभेक्षु
गणेश तिवारी पीठाधीश्वर नैशपीठ।

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वैरी छिपता मनुज से, निश्चित आता पास। बिल में ज्यों मेढक छिपे, बने सर्प का ग्रास।।
(नैश के दोहे से उद्धृत)
गणेश तिवारी 'नैश' ,,

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हंस उपनिषद के प्रमुख सुक्तियाँ-

(१) सर्वेषु देहेषु व्याप्तो वर्तते।
हंस उपनिषद--५
भाव--समस्त शरीरों में जीव‌ व्यापत
रहता है।
(२) अहोरात्रयोरेकविंशति सहस्राणि
षटशतान्यधिकानि भवन्ति।
हंसोपनिषद--११
भाव--एक अहोरात्र(२४ घण्टे) में इक्कीस हज़ार छः सौ श्वास लिए जाते हैं।
(३) अस्यैव जपकोट्यां नादमनुभवति एवं
सर्वं हंसवशान्नादो दशविधौ जायते‌।
हंस उपनिषद--१६
भाव--सोऽहं मन्त्र का दस कोटि का जाप कर लेने पर साधक को‌ नाद का अनुभव होता है।
(४) चिणीति प्रथम।
हंस उपननिषद--१६
भाव-पहले शरीर में चुनचुनाहट‌ होती है।
(५) चिञ्चिणीति द्वितीयः।
हंस उपनिषद--१६
भाव--दूसरे में बढ़ी हुयी चुनचनाहट होती है।
(६) घण्टानादस्तृतीयः।
हंस उपनिषद--१६
भाव--तीसरे में घण्टा बजने की आवाज़ आती है।
(७) शंखनादश्चतुर्थम्।
हंस उपनिषद--१६
भाव--चौथे मे शंख बजने की आवाज़ आती है।
(८) पञ्चमस्तन्वीनादः।
हंस उपनिषद--१६
भाव-- पाँचवे में तन्त्री बजने की आवाज़ आती है।
(९) षष्ठस्ताल नादः।
हंस उपनंषद--१६
भाव--छठे में ताल बजने की आवाज़ आती है।
(१०) सप्तमो वेणुनादः।
हंस उपनिषद--१६
भाव--सातवें में बाँसुरी की आवाज़ आती है।
(११) अष्टमो मृदंगनादः।
हंस उपनिषद--१६
भाव--आठवें में मृदंग बजने की आवाज़ आती है।
(१२)) नवमो भेरीनादः।
हंस उपनिषद--१६
भाव-- नवें में भेरी बजने की आवाज़ आती है।
(१३) दशमो मेघनादः।
हंसोपनिषद--१६
भाव-दसवें‌ मे मेघ गर्जना होती है
(१४) नवमं परित्यज्य दसमेवाभ्यसेत्।
हंसोपनिषद--१७
भाव-- नवें को छोड़कर दसवें का आभ्यास करना चाहिए।
इसमें से नवम् का परित्याग करके दसवें नाद का अभ्यास करना चाहिए।
(१५) प्रथमे चिञ्चिणी गात्रं
हंस उपनिषद--१९
भाव--पहले शरीर में चिनचिनी होती है।
(१६) द्वितीये गात्र भञ्जनम्।
हंस उपवनिषद--१९
भाव--दूसरे शरीर अकड़न होती है।में
(१७)तृतीये खेदनं याति।
हंस उपनिषद--१९
भाव--तीसरा शरीर में पसीना होता है।
(१८) चतुर्थे कम्पते शिरः।
हंस उपनिषद--१९
भाव--चौथे सिर में कम्पन होती है।
(१९) पञ्चमे स्त्रवते तालु।
हंस‌ उपनिषद--१९
भाव--पाँचवे तालू में सन्नाव उत्पन्न होता है।
(२०) षष्ठेऽमृतनिषेवणम्।
हंस उपनिषद--१९
भाव--छठे से अमृतवर्षा हेती है।
(२१) सप्तमे गूढ़विज्ञानं।
हंस उरनिषद--१९
भाव--सातवें से गूढ ज्ञान-विज्ञान का लाभ होता है।
(२२) परावाचा तथाऽष्टमे।।
हंसोपनिषद--१९
भाव--आठवें से परावाणी प्राप्त होती है। (२३) अदृश्यं नवमे देहं दिव्यं चक्षुस्तथाऽमलम्।
हंस उपनिषद--
भाव--नौवें से शरीर दिव्य‌‌ होता है। इससे शरीर‌ को अदृश्य करने(अन्तर्धान होने) की
तथा निर्मल दिव्यदृष्टि‌ की विद्या प्राप्त‌ होती है।
२४) दशमं परमं ब्रह्म भवेद्ब्रह्मात्मसंनिधौ।
हंसोपनिषद--२०
भाव-दसवें में साधक पारब्रह्म का ज्ञान प्राप्त करके ब्रह्म का साक्षात्कार करता है।

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संत यूनुसअ०--संत यूनुस ईश्वर के दूत थे। एक बार आपने नाव पर बैठे लोगों को बचाने के लिए नदी में छलांग लगा दी। एक मछली आपको निगल गयी।
आप अपने सांसों के साथ ईश्वर का नाम‌ लेते रहे। चालीस दिन बाद मछली ने आपको नदी के किनारे ज़िंदा उगल‌ दिया। यह थी ईश्वर की
संत यूनुस अ० पर कृपा। कृपा आप पर भी हो सकती है। चार मार्च से नैशपीठ में हो रहे रामाधुन में
आप आइए और अपने बच्चों को भेजिए। आपका शुभेच्छु, गणेश तिवारी पीठाधीश्वर नैशपीठ।

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संत बक्सा राम खाती--आप बढ़ई जाति के थे और राम भक्त थे। एक बार मेड़ता के राजा जयमल के रथ की पहिया टूट गयी। राजा ने खाती को बुलवाया। खाती के घर कुछ संत आए थे। आप उन्हीं के सत्संग में मस्त थे। भगवान स्वयं खाती का रूप रखकर राजा के पहिए की मरम्मत कर दी। जब संत चले गए तब खाती राजा के यहाँ पहुँचे और विलम्ब से आने के लिए क्षमा माँगने लगे।‌‌ यदि तुम नहीं आए तो वह कौन था? राजा ने झूठ बोलने पर खाती को मृत्युदण्ड दे दिया। प्रभु राम प्रकट होकर खाती को बचाए। यह थी संत खाती पर भगवान की कृपा। कृपा आप पर भी हो सकती है। नैशपीठ में 4 अप्रैल से चल रहे रामाधुन में आप आइए और अपने बच्चों‌ को भेजिए।आपका शुभेच्छु, गणेश तिवारी पीठाधीश्वर नैशपीठ।

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संत हरिदास जी--आप कृष्ण
भक्त थे। एक बार आप बादशाह अकबर से कुछ धन की इच्छा से दरबार में पहुँचे और खुद को गायक बताया। अकबर ने तानसेन से परीक्षा करवायी और गायकी सिद्ध न होने पर मृत्युदण्ड देने की बात कही।
तानसेन जब गाना गाने लगे तो आपने उन्हें रोककर खुद सही तरीके से गाकर बताया। तानसेन आपके शिष्य बन गए। यह धी भगवान की संत हरिदास पर कृपा। कृपा आप पर भी हो सकती है। नैशपीठ में चार मार्च से चल रहे रामाधुन में आप आइए और अपने बच्चों को भेजिए। आपका शुभेच्छु, गणेश तिवारी पीठाधीश्वर नैशपीठ।

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संत दादू दयाल जी--आप नरायणा जयपुर के रहने वाले थे और जाति के धुनिया थे। आप राजस्थान के कबीर कहे जाते हैं। एक बार आप एक कोठरी में बैठकर ध्यान में बैठे हुए थे, बाहर के दरवाजे पर आपके विरोधियों ने दीवाल चुनवा दी। भगवान ने आपको दर्शन देकर आपके प्राण बचाए। यह थी भगवान की आप पर कृपा। कृपा आप पर भी हो सकती है। नैश पीठ में चल रहे रामाधुन में आप आइए और अपने बच्चों को भी भेजिए। आपका शुभेच्छु, गणेश तिवारी पीठाधीश्वर नैशपीठ।

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