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Rahul Upadhyay

Rahul Upadhyay

@dr.upadhyay9510


क्रियात्मक भाव-शून्यता रुपी कृपणता मनुष्य को सांत्वना रुपी दानशीलता की ओर ले जाती है |
- राहुल

मुझे लगा था अभी कहोगी
कथा बहुत से सपनों की
किसे ख़बर थी रोक न पायेगी
ममता भी अपनों की
तुम चल दोगी छोड़ अकेला
संबंधों को रिक्त किए
सूनी आँखें,बेबस मंज़र
खामोश खड़े हैं दर्द लिए.

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ओस से भीगी हुयी 
कंपती कली गुलाब की 
जिंदगी कुछ इस तरह है 
प्यार की और ख्वाब की 
@राहुल उपाध्याय

दोस्ती निभती नही

सच कहा -
मुझसे दोस्ती निभती नही
निभे भी कैसे ?
तुम्हारे सतत आघात को
मैं सह नही पाता
अपनी पीड़ा को हँसकर 
छुपा नही पाता 
आत्मीयता के विस्तार में 
सीमा रेखाएं ख्नीच नही पाता 
दोस्ती के फासले जान नही पाता 
अपनी परम अभिव्यक्ति रोक नही पाता 
दोस्ती निभे भी कैसे 
जब मेरी विनम्रता 
तुम्हारे अहम् की पोषक बन जाए 
तुम्हारी हँसी 
मेरे हृदय पर कटाक्ष कर जाए 
मेरा प्यार 
तुम्हारे गर्व का हास बन जाए
दोस्ती निभे भी कैसे 
जब मैं झूठ तुमसे कह नही पाता 
तुम्हारा पतन सह नही पाता 
वह जाल जिसमें आदमी फंसते हैं 
बुन नही पाता .

@राहुल उपाध्याय

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हर क्षण सुख है

मैंने कहा -
क्या मेरे दुःख का अंत है ?
उसने पूछा -
क्या सुख का अंत चाहते हो ?
मैंने कहा -
नही
सुख पाना चाहता हूँ
उसने कहा -
तो दुःख के लिए तैयार रहो
तुम्हारा चाहना ही दुःख है
बाकी हर क्षण सुख है .

@राहुल उपाध्याय

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शांति

किसी का होना न होना
निर्भर नहीं करता
हमारे होने से
न समय ही रुकता है
हमारे सोने से
सुख का अज्ञान
दुःख के ज्ञान से
पराजित होता है
कभी-कभी शांति के लिए
बहुत सारी चीजों का खोना
जरूरी होता है ........

@ राहुल उपाध्याय

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