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Dikshita Pusam

Dikshita Pusam

@dikshita12


ये ठहरीं हुई खामोश सी गलियां
टाकते हुई बेरंग सी गलियां,

कभी गुजरना उससे तो मालूम होंगा
बाते सुनती है ये बेजुबान सी गलिंया,

हर बार हम तहलते है इससे
फिर भी राह भटकाती ये नाजूक सी गलिंया,

आँखे बंद कर ना चलना ए दोस्त,
ठोकरोसे युही गीरा देती ये नासमजसी गलिंया,

हम खोज रहे थे रास्ता-ए-जिंदगी,
हमको ही गुम कर रही थी ये काफिर सी गलिंया,

हम यादें बुन रहे थे उन गलियों संग ,
हमे ही भुला दे रही थी ये बेजान सी गलिंया...

- दिkshita

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