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Maine khud se hi kiya hai daga, बेवजह… Jo shakhs ban sakta tha kuch, Maine usse hi ख़त्म कर दिया। Tum puchte ho — “Bharosa kyon nahin karte mujh par?” Mera kya… Main to khud ko hi धोखा Diya...
उम्र भर ग़ालिब यही भूल करता रहा, ख़ुद को ही मोहब्बत में ज़लील करता रहा। वो कभी मेरी थी — बस यही वो कहता रहा, मरते हुए भी वो बस तेरा नाम लेता रहा।
हम थके हुए इंसान हैं, अब थोड़ा ठहरने दो... बड़ी दूर से आए हैं, ज़िंदा तो रहने दो। इतने सवाल क्यूँ पूछते हो, जब पता है तुम्हें — मेरे पास कोई जवाब नहीं। मैं आया हूँ बस एक मुलाक़ात की खातिर, उस मुलाक़ात की... जिसमें तुमने मुझे कभी देखा ही नहीं। तुमने कैसा जवाब दिया था मुझे? जिसे मैं आज तक समझ पाया नहीं... मैं तो भूलना चाहता था तुम्हें, पर क्या करूँ — तुम्हारे अलावा किसी और से मोहब्बत कर पाया नहीं।
ऐसा क्या हुआ जो तुम अब बात नहीं करते, हम बुरे लगने लगे क्या, जो मुलाक़ात नहीं करते? कभी हर लम्हा हमसे बाँटा करते थे तुम, अब हमारी ख़बर भी, यूँ बरसों बाद नहीं करते। लगता है कोई और बस गया है दिल के पास, अब तो तुम हमसे वो बेपनाह प्यार भी नहीं करते। हमसे जो आँखें मिलती थीं हर रोज़ कभी, अब निगाहें भी जानबूझकर मुलाक़ात नहीं करते। तुम अब बदल गए हो, ये दिल मान चुका है, शायद इसलिए तुम अब हमसे बात नहीं करते।
हम जो पहले हँसते थे बेपरवाह सी बातों पर, अब हर लम्हा तेरा ज़िक्र करने लगे हैं आजकल। तेरी खामोशी भी अब सवाल लगती है हमें, हर जवाब में तुझे ढूँढने लगे हैं आजकल। तू पास नहीं फिर भी हर जगह महसूस होती है, तू जो गयी तो साँसें भी बेवजह चलने लगी हैं आजकल।
मुझे तबीयत का अंदाज़ा था, इसलिए शायद हर रोज़ हँसता रहा। दिल में जो तूफ़ान थे, उन्हें चुपके से सांसों में दबाता रहा। ज़िंदगी में एक छोटा-सा मलाल रहा, कि तमाम कोशिशों के बावजूद कभी भी वो मुक़ाम न मिला। हर रोज़ कुछ बना, कुछ टूटा, मगर जो सपना था, वो कभी पूरा न हुआ। आज जब मौत सामने खड़ी है, तो मलाल किस बात का करूँ? जो जीया, जितना भी जीया, उसे अब गिनने का हिसाब क्या करूँ?
Ham jo raatein akele bitaane lage hain aajkal, Dil ke saaye se baatein karne lage hain aajkal... Hamen aisa kyun lagta hai ke aapko chahne lage hain aajkal, Har pal aapki yaadon mein jeene lage hain aajkal... Jo humse baatein karte the khwabon ke silsile, Wo lamhe bhi humein satane lage hain aajkal... Yu jo humein aawara samajh ke kinara karne lage, Dil ko lagta hai ke aapko koi aur pasand aane laga hai aajkal...
तुम्हारे लिए एक किताब लिखी है, तुम पढ़ोगी क्या? उसमें अपने दिल के एहसास लिखे हैं, तुम महसूस करोगी क्या? मैं तुमसे इज़हार करना चाहता हूँ, जैसा आज तक किसी ने न किया हो। वैसा प्यार करना चाहता हूँ, बस डरता हूँ तुम्हारे इनकार से... जो आज तक मुझे न मिल सका, शायद उस प्यार से... मोहब्बत में ग़ज़लें लिखी जाती हैं, और अमीरों में अशर्फ़ियाँ दी जाती हैं। पर मेरे पास तो कुछ भी नहीं... मुझे ऐसा क्यों लगता है, कि मैं प्यार के क़ाबिल ही नहीं? शायद मैं किसी का दिल नहीं... या फिर... मैं तेरे क़ाबिल नहीं।
"एक आख़िरी बार" एक वादे की ख़ातिर, पूरी उम्र इंतज़ार, तुझे देखते ही हो जाता है तुझसे प्यार। मैं करता रहूं तेरा सदियों तक इंतेज़ार, मगर क्या तू भी मिलेगा मुझसे एक आख़िरी बार? तेरे आते ही रौनकें लौट आती हैं, तेरे आने से क़लियाँ भी मुस्काती हैं। फिर क्यों नहीं तू मेरी ज़िंदगी में आता? ऐसा क्या हुआ, जो अब तू कुछ भी नहीं बताता? जा रहा हूँ मैं ये शहर अब छोड़कर, पर क्या तू देखेगा मुझे, एक आख़िरी बार मुँह मोड़ कर? दिल में दबी बातें अब अल्फ़ाज़ बन गईं हैं, तेरे बिना ये साँसें भी कुछ कम सी लगने लगीं हैं। अगर मिल सके तो बस इतना बता दे— क्या तुझे भी कभी मेरी कमी महसूस हुई है?
मैं बेगैरत सा इंसान, तुम कहाँ... शहज़ादी, जानती हो न मेरा सच, क्या फिर भी मोहब्बत मुझसे कर पाती? इसलिए तो कहता हूँ मैं — प्यार से भागता रहा हूँ मैं, क्योंकि डर है कि कहीं तुझसे मोहब्बत न हो जाए, मुझसे ख़्वाबों में भी ये क़यामत न हो पाए। तू चाँद सी पाक, और मैं साया — धूप में भी काला, रातों में भी तन्हा। तू सुबह है, तो मैं शाम, तू आसमां — मैं एक बदनाम नाम, इस जन्म में तो हमारा मेल नहीं, ये मोहब्बत है... कोई खेल नहीं। कोई खेल नहीं... कोई खेल नहीं।
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