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कुलदीप दहिया मरजाणा दीप

कुलदीप दहिया मरजाणा दीप

@ddeep935gmail.com6761


  समर्पण का गहना
ममत्व से भरा सँसार,
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क़ायनात की खूबसूरत रचना
आँचल में प्यार ही प्यार,
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झील सी कोमल, शांत, गहरी
आँगन में तुम्हीं से बहार,
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निर्मल,परम् पावन गंगा सी
वैभव है तेरा संसार,
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"दीप" जलाती ख़ुशियों के
अदभूत,अजब अवतार
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-कुलदीप दहिया मरजाणा दीप

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मन प्रफुल्लित, लब पुलकित
ज्यों उजली-उजली सी भोर,
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बिखरी झुल्फ़ें लहराएँ
हो सावन की घटा ज्यों घनघोर,
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महताब सा मुखड़ा मनभावन
कजरारे नैनों में काज़ल डोर।

-कुलदीप दहिया मरजाणा दीप

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ये हस्ती,ये बस्ती कुछ पल की कहानी
ढलेगी शाम सी ये हुस्न-ओ-जवानी,
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रब्ब के कर्म से साँसों में रवानी
भूलकर भी भूल से ना कर नादानी,
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गुमाँ के नशे में यूँ ही ख़ाक होगा
बचेगी ना कोई भी तेरी निशानी ।
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-कुलदीप दहिया मरजाणा दीप

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खामोशियों की भी जुबाँ होती है
रूह में सोह्ब्बत बेइम्तिहां होती है,
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लंबी है ये महोब्बत-ए-डगर बहुत
इसमें सरहदें कहाँ होती हैं ।।
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ग़ुलाबों की महक, चॉक्लेट सी मिठास रहे
पंखुड़ियों से पुलकित लब पे प्यारी सी हँसी का वास रहे,
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रूह में हों तेरे ख़्वाब सुनहरे
हर पल चितवन में प्रेम का अहसास रहे।

-कुलदीप दहिया मरजाणा दीप

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पता नहीं टूट के किधर जाएगा
कोई हाथों में देगा,कोई बालों में लगाएगा,
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ना कर गुमाँ इतना कि
तुझसे महकता जहाँ है,
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बस इतना सा है सफ़र तेरा
होकर फ़ना तू एक रोज़ बिखर जाएगा।

-कुलदीप दहिया मरजाणा दीप

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सुरमयी शाम यादों की बर्फ़ जमी है
लौट आओ बस तुम्हारी।कमी है

-कुलदीप दहिया मरजाणा दीप

अहसास के अल्फाज़ों से इबारत कमाल लिखते हैं
दिल में झाँक के देख हम चाहत बेमिसाल रखतें हैं,
फ़रेब के बाहुपाश गवारा नहीं हमें
शौक से छोड़ देना ना हम कभी मलाल रखते हैं !!

-कुलदीप दहिया मरजाणा दीप

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जो जुल्म करया था गौरयां नै माँ
उनको मै धूल चटा चाल्या,

मै नहीँ रहया तो ग़म ना करिये
मेरे हिन्द नै आज़ाद करा चाल्या,

सदियों तक पुरखें याद करेंगीं
मै कौम का फ़र्ज निभा चाल्या,

भगतसिंह सा कोख़ मै जामै
ऐसा कर्म धर्म का कर चाल्या,

इंकलाब बोल फांसी चढ़ गया माँ
तेरा पहन बसंती चोला चाल्या.....!

कुलदीप दहिया "मरजाणा दीप"

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कुछ अल्फ़ाज अहसास के.......


भोर के अलसाये पहर में
सुनहरा कोई ख़्वाब सा,

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ओस की बूँदों में ज्यों
भीगा कोई ग़ुलाब सा,
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सिमटा हो ज्यों सारी क़ायनात का यौवन
कलि पे यूँ सैलाब सा,
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हुस्न भी शरमा जाए
उजला-उजला लाजवाब सा,
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अहसास के मोती लपेटे चहुँ ओर
आसना से सराबोर बेहिसाब सा,
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सज़दे में झुक जाए हर सै
वो मुखड़ा है महताब सा....!!
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