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एक लफ्ज ही तो है मां उससे ज्यादा करती ही क्या है मां, एक लफ्ज ही तो है मां उससे ज्यादा करती ही क्या है मां , मेरे दिल की एक-एक धड़कन की दाता है मेरे बचपन की रचयिता है मेरी मां, कभी दुर्गा बन जाती है, तो कभी चंडी बन जाती है,जब बात अपनी औलाद पर आती है, तो पूरी दुनिया से लड जाती है मां, उससे ज्यादा करती ही क्या है मां एक लफ्ज ही तो है मां, मेरे गम मे खुद भी रोती है मेरी खुशी में हंस देती है , गमों की परछाई भी मुझसे दूर हमेशा के लिए कर देती है , उससे ज्यादा करती ही क्या है मां ,एक लफ्ज ही तो है मां, उंगली पकड कर चलाती है, मैं गिरू तो मुझे उठाती है, सीने से लगाकर मेरा रोना चुप कराती है, पल भर मे मेरे आंसू गायब कर देती है मां, उससे ज्यादा करती ही क्या है मां, एक लफ्ज ही तो है मां अच्छे संस्कार देती है मुश्किलों से लड़ना सिखाती है मां , दुनिया के अंधकार में खो जाऊं तो उजाला बनकर मेरी जिंदगी में सवेरा करती हैं मां, उससे ज्यादा करती ही क्या है मां, एक लफ्ज ही तो है मां, मेरी खुशियों में इस कदर खो जाती है कि अपना बड़े से बड़ा गम भी भूल जाती है लफ्जों में बयां नहीं किया जा सकता ईश्वर भी जिसकी आगे झुकता वह है तेरी ममता, एक लफ्ज ही तो है मां , उससे ज्यादा करती ही क्या है मां, पन्नो मे तेरी शख्सियत को उतारा नहीं जा सकता, तेरे त्याग और तपस्या को झुठलाया नही जा सकता, विराम दे रहा हूं अपने शब्दो को, क्योकि लफ्जो मे तेरी ममता को समझाया नही जा सकता।
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