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कुछ लोगो की आबादी में गया था, सबकी ख़ुशी थी लेकिन, मैं अपनी बरबादी में गया था। और बद से बदतर हाल हुआ मेरा उस दिन, जब मैं उसकी शादी में गया था। उसने खुद से, मुझसे शादी में खाने को मना किया था, मेरे लाख पूछने पर भी, मेरे आने को मना किया था। और हम तो चल ही देते, पैर से पैर मिलाकर, चाहे जैसा रास्ता हो, तुम खुद मुकर गए थे जाना, हमने कौन-सा निभाने को मना किया था। तुम चाहते तो तुम्हें मैं घर ले आता, अगर मगर करता, पर ले आता। तुम्हारे पैर थक जाते पैदल चलकर जो, तुमको बिठाकर फिर मैं अपने सर ले आता। लोग जलते देखकर, आखिर हर कोई जलता है, मेहनत करने वाले लड्डू ले जाते हैं, बेरोज़गार दोनों हाथ मलता है। पैर दबाता, पूजा लेता है, लोग ग़ुलाम कहते फिर, मुस्कुराकर कहता , P.C.,आखिर इतना हक तो बनता है।
जो दिल से मैंने चाहा था, किस्मत में, वह नहीं पाया मैं तुमसे कुछ कहना चाहता था, लेकिन मैं keh नहीं paya सोचा था तेरे जाने के, बाद ,सही से रह लूँगा लेकिन सच तो ये है ,मैं सालों तक , सही से रह नहीं पाया
ज्यादा संभलने पर या उसकी चिंता करने पर, बहुत कुछ हाथ से निकल जाता है फिर वो कोई महंगी चीज हो, या फिर रिश्ते
कुछ लिखना चाहता था, पर मैं लिख नहीं पाया तू ही याद रहा मुझे , मैं कुछ और सीख नहीं पाया और जब तक साथ रहा तू मेरे, मैं सबको अच्छा लगा तेरे जाने के बाद किसी को मैं, फिर ठीक नहीं पाया
मैं खुद में एक बादाम हूँ, पर लोगों की नज़र में गिरी नहीं रहता लोग मुझे सीधा प्रवेश नाम से बुलाते हैं, मेरे नाम के आगे श्री नहीं रहता मैंने छोड़ दिए पुराने रिश्ते ,और नए दोस्त बनाना मैं अब फ्री भी रहता हूं मगर ,फ्री नहीं रहता
मेरा मन नहीं मानता अब, कहीं जाने को अड जाता है किसी को मैं समझ नहीं आऊं तो, बेमतलब मुझसे लड़ जाता है और ऐसा नहीं है कि कोई हिसा मेरा ,घर रह जाए रूठकर मुझसे जहा मेरे हाथ Paon jate hain , वहा मेरा धड़ जाता है रिस्तेदार मेरी माँ को समझाने की कोशिश करते, ऐसे मत भेजा करो हर कोई बिगड जाता है मेरी माँ बस इतना बोले वो कोई जंगल नहीं राजाओं के गढ़ जाता है मेरी मां जब बोलती बंद कर दे कुछ लोगों की मेरा हौसला अंदर ही अंदर और बड़ जाता है
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