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Astha S D

Astha S D Matrubharti Verified

@astha3203
(57)

शर्मिंदा ए खौफ है उन आजाद परिन्दों से
जो मेरे मुंडेर में बैठे हैं
मैं नजरे झुकाति हूँ  कि थोड़ी छुपती छुपाती हूँ  कि अब आगाज़ नही करना

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ज़रा मायूस हैं हम फिर भी बेचारे नहीं है
समंदर आंख के पी कर भी तो खारे नहीं हैं
अभी ठहरो ज़रा कुछ और चलने दो हमे भी
अभी शामिल सफ़र में हैं कि हम हारे नहीं हैं
आशीष प्रकाश

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वो जो शब्दों से हो बयाँ
वो आस्था नहीं

ज़िन्दगी तुझसे हर कदम पर समझौता क्यों करूँ,
शौक जीने का है मगर इतना भी नहीं.
(अज्ञात)

मेरे गाँव के पहाड़ खेत खलियान आज भी मुझे अपनी ओर बुलाते हैं

छोटे से मन में छोटी सी आशा

घुट गया अँधेरे का आज दम अकेले में,
हर नजर टहलती है रौशनी के मेले में.
(अज्ञात)

मुझे ख़स्ता हाल देख कर तेरे फूल से होंठ खिल उठे,
मुझे अपने हाल का ग़म नहीं तेरी मुस्कराहट का शुक्रिया….