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क़िस़्स़े बनेंगे अब के बरस भी कमाल के पिछला बरस तो गया है कलेजा निकाल के तुमको नया ये साल मुबारक हो दोस्तों मैं जख़्म गिन रहा हूँ अभी पिछले साल के फिरते थे जिनकी गर्दनों में हाथ डाल के वो दोस्त सभी हो गए हैं अब साठ साल के माना कि जिंदगी से बहुत प्यार है मगर कब तक रखोगे काँच का बर्तन संभाल के ऐ मीर-ए-कारवां मुझे मुड़ कर ना देख तू मैं आ रहा हूँ पाँव के काँटे निकाल के अपनी त़रफ़ से सबकी दलीलों को टाल के मनवा ले अपनी बात को सिक्का उछाल के ये ख़त़ किसीको ख़ून के आँसू रुलाएगा काग़ज़ पे रख दिया है कलेजा निकाल के बरसों से हम ने आज तक बदला नहीं ख़ुदा हम लोग भी हैं कितने पूराने ख़्याल के આશુ
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