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टूट कर फिर जुड़ तो जाते ही हैं,पर जहाँ से जुड़ते हैं वहाँ के घाव हरे ही रह जाते हैं । - Anjana Vyas
वो सोचते हैं कि हमें तोड़ रहे हैं , पर हम टूट टूटकर रोज़ जुड़ रहे हैं पत्थर बन रहे , चट्टानों की तरह दिल में आग को दबाये ख़ामोश हो रहे हैं ।।😔😔
क्यों उन लोगों की बातों से परेशान होना जिन्हें हमारी परेशानी से कोई मतलब ही नहीं।
चापलूसी मात्र चापलूसी नहीं है। एक चापलूस व्यक्ति सिर्फ़ चापलूसी नहीं जानता उसे राजनीतिक दाँवपेच आते हैं ,वो कूटनीतिक चालें चलना जानता है , चौकन्ना रहता है ,वो इस बात की पुख़्ता खबर रखता है कि वो जिसकी चापलूसी में लगा है वो किसे पसंद या नापसंद करता है। एक चापलूस व्यक्ति उस व्यक्ति को बराबर अपमानित या उपेक्षित करता रहता है , जिसे वो पसंद नहीं करता जिसके वो तलवे सहलाता है।चापलूसी एक कला है ,साधना है जो सब नहीं कर सकते क्योंकि इसकी सबसे पहली शर्त है कि आत्मसम्मान और आत्मनिर्भरता का त्याग । आप जिसकी चापलूसी में लगे हैं वो कभी आपको पुचकारेगा तो कभी दुत्कारेगा।अगर आपमें सहनशीलता है तो आप उनकी दुत्कार सह पाएँगे। और ऐसे ही आप लाभान्वित भी होते रहेंगे और जीवन भी खुशहाल हो जाएगा । समय के साथ लोग आपकी चापलूसी में लग जाएँगे और इस तरह चापलूसों का कारवाँ बन जाता है। यक़ीन मानिए ऐसे कई चापलूसों की ज़िंदगी खुशहाल होते हुए देखी है जिन्हें अपनी योग्यता से अधिक सब मिला थोड़े परिश्रम से जबकि आत्मसम्मान की डींगें हाँकते लोगों को फाका मारते ही देखा है वे अपनी थोथी अकड़ में रहते हैं और जीवन भर अपने काम के लिए प्रशस्ति शब्दों की अपेक्षा कराटे हैं। उनकी धरातल स्तर पर की गई मेहनत कोई नहीं देखता या लोग देखकर भी नज़रअंदाज़ कर देते हैं। जबकि चापलूस के लिए कुछ भी पाना असंभव नहीं है। हमारे देश की राजनीति हो या कोई भी विभाग सब जगह चापलूस पाये भी जाते हैंऔर भाये भी हैं । ये वो लोग हैं जो हर वक्त अपने कंधे ,कमर ,सिर तैयार रखते हैं अपने रहनुमा का बोझ उठाने को ।🙏🏻🙏🏻
वो तो इतने अपरिचित हो गये जैसे कि कभी परिचय हुआ ही नहीं था ।
अगर वो पूछले हमसे कि किस बात का ग़म है, तो किस बात का ग़म है😌
मैं तो कब से इस उम्मीद से रूठकर बैठी हूँ कि वो मनायेंगे ।कई बार ख़ुद ही मान गई फिर से रूठ जाने को फिर से रूठ गई मनाने की चाह में। रूठी ही रह गई आज तक उसने तो मनाया ही नहीं।😞😒
बच्चों की कल्पनाशीलताऔर उनकी संवेदनशीलता को बाहर निकालने एवं उभारने का एक तरीक़ा है कि उन्हें एक सिचुएशन एक प्रसंग दिया जाए और फिर उनसे कहा जाए कि देखिए हमारे अनुसार या शास्त्रों के अनुसार तो ये अंत है ये निर्णय है या समाधान है पर आप इस स्थिति को क्या मोड़ देना चाहेंगे?बच्चों से कहिए पात्रों को जिंदा रखते हुए कहानी के अंत को ऐसा मोड़ दो कि कहानी प्रेरणादायी बन जाए। जैसे बच्चों को कोई कहानी दें जैसे कक्षा चौथी पाँचवीं के बच्चों को हम बता सकते हैं कि लोमड़ी और बगुले की कहानी जिसमें लोमड़ी बगुले को खाने पर बुलाकर थाली में तरल पदार्थ परोसती है और बगुला खाने में असमर्थ होता है पर लोमड़ी जीभ से पूरा भोजन चाटकर ख़त्म कर देती है। अब बगुला अगले दिन अपने यहाँ उसे भोजन पर बुलाता है,और अब यहाँ आकर कहानी को रोक दें और बच्चों से कहे कि इसका अंत बताओ। बच्चों को कहानी को सुखद मोड़ देने के लिए कहें । इससे बच्चे विभिन्न प्रतिक्रियाएँ देंगे । हो सकता है कि चौथी कक्षा का छात्र कहानी को पाँचवीं छठी के बच्चों से ज़्यादा अच्छा रूप दे ।और इस प्रकार बच्चों की कल्पनाशीलता ,उनकी तार्किकता और उनकी संवेदनशीलता का परिमापन हो पाएगा । ऐसी कई कहानियाँ हैं जिनके अंत या शिक्षा सही नहीं है । जैसे इस कहानी से शिक्षा मिलती है “जैसे को तैसा “।पर हम कहानी के अंत को बदलकर बगुले के माध्यम से एक सुंदर संदेश दे सकते हैं कि बगुला दो पात्रों में भोजन परोसता है। स्वयं के लिये सुराही में और लोमड़ी के लिए थाली में । अर्थात् हम बच्चों को इस कहानी के माध्यम से ये शिक्षा दें कि जो आपके साथ ग़लत करे तो आप भी उसके साथ ग़लत मत करो बल्कि कुछ ऐसा करो कि उसे अपनी गलती का एहसास हो और आपसी रिश्ते टूटने से बचें । अगर बच्चों को एक सत्र के दौरान इस प्रकार दो तीन कहानियों या प्रसंगों पर परियोजना कार्य दिया जाये तो निश्चित रूप से उनकी कल्पनाशीलता , रचनात्मकता,और विश्लेषणात्मक क्षमता का विकास होगा और भाषा शिक्षण में इस गतिविधि को निश्चित रूप से शामिल किया जाना चाहिए। 🙏🏻🙏🏻
अब तो तुम इतने पास हो पर कितने दूर चले गए कौन कहता है कि तुमने मुझे कुछ दिया नहीं वो बेचैनी वो तड़प वो अकेलापन वो उदासी तुम्हीं से तो मिली है। तुमसे प्यार किया था , तुमने भी प्यार किया था उसी प्यार के साथ तुमने नफ़रतों को भी पाला था ।
अहर्निशम सेवामहे
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