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हीरा हाथ लगने के पहले, कोयला से हाथ काला हो हीं जाता है। - Anant Dhish Aman
शंखनाद कर दो बदलाव के बयार का तैयार रहो इतिहास को समेटने को उमंग रखो भविष्य को मुट्ठी में करने को यही संघर्ष की गाथा है जिसका हिस्सा सर्वदा आधा-आधा है। - Anant Dhish Aman
सबकुछ कह भी दूँ, तो भी बहुत कुछ छूट हीं जाता है अपना हो या कोई पराया वो बिछुङ हीं जाता है। - Anant Dhish Aman
"दिव्य काशी भव्य काशी" (1) काशी आ रहा हूँ मैं तेरे घाटों पे सजने तेरे राखों में रमने तेरे लहरों में उफनने तेरी लाली रंग में रंगने आ हीं रहा हूँ मैं ।। और हाँ मैं थोड़ा संदेशा भी ले का आ रहा हूँ विष्णु चरण की धूल माँ मंगला की फूल फल्गू की पावन रेत बुद्ध का ज्ञान पितरों का स्वाभिमान ।। हाँ काशी मैं आ रहा हूँ विश्व के नाथ विश्वनाथ से मिलने आ हीं रहा हूँ ।। (2) भव्य काशी दिव्य काशी कण-कण काशी मन-मन काशी सुबह की किरणें काशी संध्या की वंदना काशी। धरा काशी आकाश काशी सात सूर की वसुंधरा काशी ज्ञान काशी ध्यान काशी अध्यात्म की अविरल धारा काशी। ओघङ काशी शमशान काशी जीवन मरण की सत्यता काशी आदिकाल से सजती संवरती अपनी काशी सत्यम शिवम सुन्दरम् की अनुपम भेंट काशी। (3) रात में घाट सुबह का सूर्योदय बनारस तू ह्रदय में हुआ उदय, कबीर का तू वाणी पावन मन का तू बहता पानी हाँ बनारस तू फकीरा ह्रदय का कहानी ।। रोम रोम संत हो गया ह्रदय में बसा काशी साक्षात हो गया कण कण को अभिनंदन मन मन को वंदन माटी हीं तेरा चंदन ।। सत्य है, जलता माया शिव है, पाना काया सुन्दर है, जानना छाया हाँ बनारस तू सत्यम शिवम सुंदरम का अविरल अचल धारा ।। अंत तेरा शाम देखता अनंत तेरा सवेरा देखता हाँ बनारस तुझको "गया" देखता है ।। (4) काशी काशी सब करे काशी का कोई हो न पाए काशी मन जब हो जाए अहंकार क्लेश मिट जाए । काशी पर कोतवाल खङा है कालभैरव रुप लिए अङा है । "कालकाल मंबुजा क्षमक्ष शूलमक्षरं काशिका पुराधिनाथ कालभैरवं भजे" भय-मोह नाशकारी है भैरव स्वंय त्रिपुरारी है काम-क्रोध नाशकारी है भैरव स्वंय प्रलयंकारी है लोभ-क्षोभ नाशकारी है भैरव स्वंय विषधारी है पाप-ताप नाशकारी है भैरव स्वंय भस्मधारी है ।। मृत्युदर्पनाशनं कराळदंष्ट्रमोक्षणं काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे। काशी काशी सब करे काशी का कोई हो न पाए । काशी मन जब हो जाए अनाथों के नाथ बाबा विश्वनाथ से मिल जाए ।। #अनंत Music of Durgesh काशी की यात्रा सनातान पद्धति के अनुसार बेहद हीं महत्वपूर्ण है और आप आध्यात्मिक अनुसंधान हेतु यात्रा करते है तो आपकी यात्रा की महत्ता और भी बढ जाती है और एक नए दृष्टिकोण के साथ आप वापस आते है और ज्यादातर संभावना यह बनती है की आप लौटे हीं न क्योंकि आप काशी के हीं हो के रह जाएंगें और वापस आ भी गाए तो आपका मन काशी में हीं सदैव भ्रमण करता रहेगा पुरातन काशी नवीनता को सदैव अंगीकार करता रहेगा शिव सा यह भी सत्य है और सुंदर है।
मेरे श्रद्धेय पूर्वजों आपके हीं पुण्य प्रताप से मेरे अंदर सेवा का भाव जन्मा है इसी श्रद्धा और सेवा से मैं सदैव आप सबों का तर्पण करता रहूँ यहीं स्नेह और आशीर्वाद देना मुझे। - Anant Dhish Aman
भव सागर के, किनारे पर पहुंचने का आस हो या न हो मगर डूबने पर भी मन उदास न हो संघर्ष में हीं अगर जीवन व्यतीत हो लक्ष्य तक गर पहुंचना हीं नामुमकिन हो राग द्वेष और क्लेश से मन व्यथित हो सिंचित पुण्य भी गर कम पङ जाए। तब भी है प्रभु, अपनी कृपा का नहीं मेरे कर्म का फल देना मुझे। - Anant Dhish Aman
"गाँव छूट गया था" शहरों से रिश्ता बनाने में, आज पता लगा फूस की झोपड़ीयों से भी कमजोर है इंट कंकर की इमारते। -Anant Dhish Aman
कभी-कभी जिंदगी के सबक ऐसे होते है, जैसे सबकुछ तहस-नहस होते है। -Anant Dhish Aman
जीत हीं जीत की ख्वाहिश न होती, गर तेरे साथ का एक हार हीं हो जाता। -Anant Dhish Aman
आजाद रह सके इसके लिए सदैव संघर्ष करना पङता है सीमा सुरक्षित रह सके इसके लिए सदैव जवानों का डटा रहना पङता है। जिसे हम कहते है "आजादी" उसके लिए बलिदान होना पङता है। -Anant Dhish Aman
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