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बचपन के वो दिन आज भी बहुत याद आते हैं, जब याद आते हैं तब होठों पर मुस्कान और आंखों मे नमी चोर जाते हैं, सच कहूं तो वो दिन, सिर्फ दिन नहीं, ख़ुशयिओं का एक ज़रिया है, जब हों मैं दुखी तो ये दिन मुझे मेरी शैतानियां याद कारा हँसते हैं, जब हों मैं अकेली तब मुझे मेरे वो यार याद कारा अकेलेपन से बचाते हैं, जब होने लगे मुझे खुद पर अभिमान तब मेरी गलतियाँ याद कारा मुझे अभिमान मे डूबने से बचाते हैं, जब चलने लगूँ गलत राह पर तब मुझे मेरे संस्कार याद करा सही राह पर ले आते हैं, सच मे बचपन के वो दिन आज भी बहुत याद आते हैं। दुख होता है मुझे आज के बच्चों का बचपना देख, जो शुरू होने से ही पहले खत्म हो गया, माँ-बाप नही स्मार्ट फ़ोन इनका पहला दोस्त हो गया, मीठी बातें नही बल्कि अप-शब्द इनकी बातों के प्रमूख अंश हो गए, संस्कारो की राह पर चलने से ही पहले ये रुक गए, सच बोलने से पहले इन्होंने झूठ बोलना सीख लिया है, इनके अनुसार ऐसा कर इन्होंने कोई पुरुस्कार जीत लिया है। ख़ुशनसीब हूँ मैं की मैंने ऐसा बचपन जिया है, जहाँ पापा की डांट मे छुपे पाठ को भी पढ़ा है। - Kanika Anand Instagram id- @the_ballad_writer
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