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जरुर देखें : https://youtu.be/6j25nQ_fNXE लाईक • शेयर • कमेंट
Must watch : https://youtu.be/6j25nQ_fNXE
सुबह हो जाती है महफ़िल से निकलते निकलते तुम्हारे लिए लिखी गज़ल काफी मशहूर हो गई है...❣️
खामोशियों में मदद की पुकार है जिम्मेदारीयों में उलझनें हज़ार हैं कौन समझा है जिंदगी को आज तक जो समझा है वो औरों के लिये बिमार है
कागज़ की कश्ती में सफर कर रहा हूँ ना डूब रहा हूँ ना उभर रहा हूँ ये कैसा नशा है तेरे इश्क़ का ना बेहोश हो रहा हूँ ना संवर रहा हूँ
एक जमाना था जब मैं तुम पर शायरी करता था और लोग तालियां बजाते थें अब बस मैं मुस्कुरा देता हूं और लोग समझ जाते हैं तुम पर शायरी होने वाली है
ख़ामोश होते है आजकल हम जब जिक्र उनका होता है के अब लफ़्ज़ कम पड़ रहे हैं उनकी तारीफ़ करने के लिए
माना के ये पल मुश्किल का है मगर ये पल मतलब जिंदगी नहीं याद करो वो लम्हें जो हमने साथ हैं बिताए उन हसीन यादों की भी यहां कोई कमी नहीं
आकर कहने लगी शाम हम से अपनी मेहबूबा को ज़रा छुपा के रखना चांद आने का इंतज़ार कर रहा है और सुरज जाने से इन्कार कर रहा है
सुरज से पूछ लेना इतना क्यूं चमकता है सोने से पूछ लेना इतना क्यूं दमकता है हम से ना सही अपनी आंखों से पूछ लेना के प्यार इनमें इतना क्यूं झलकता है
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