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जीती हूँ अक्सर तुम्हें सपनों में सब कहते है कि तुम अब नहीं हों माँ अल्पना -Alpana harsh
ठहरी सी है लिखती नहीं मन की बात उकेरती है मन के भीतर कई ख्याल बिन स्याही आकार नहीं लेते ख्याल सूखाग्रस्त मौन पसर रहा है शब्द विहिन। ख्याल बिना बाते बनें ही डर कर छिप जाते है बैरंग हो सराबोर है माहौल भले ही रंगों से पर मन भीतर ही भीतर रंगहीन हो गया है भीड़ का शोर भी सुनाई नहीं देता चारों ओर चर्चा है होली है । अल्पना -Alpana harsh
फूल खिलने लगे है आंगन में रौनकें यूं भी आती है घर में । -Alpana harsh
कभी कभी शाम गवाही नहीं देती उदासियों की स्याह अन्धेरों में आंसू दिखते नहीं अक्सर -Alpana harsh
अधूरे ख्वाबों की ख्वाहिश है तू मेरे ख्यालों की तस्वीर हैं तू मिला है मुझे तेरा हाथ जब से मेरी तकदीर की मुक्कमल आरजू हुई । -Alpana harsh
तेरे शहर की हलचल भी वीरानियाँ लगती है अक्सर तेरे बिना ये दर गवारा नही मुझे -Alpana harsh
आज दिल भर आया तो खामी नजर आती है कभी हमारी तारिफों में कसीदे पढे़ जाते थे । copied -Alpana harsh
रौनके हमारे दम से थी महफील में वे खुद को बादशाह समझ रहे थे -Alpana harsh
टूटे दिल पर मरहम लगायें बेठे है मेरे नसीब ने अजब लिबास पहना है अल्पना -Alpana harsh
बदल जाती है चेहरे के भावों सी क्षण में जिन्दगी की हकीकत जब कोई अपना छोड़ जाता है -Alpana harsh
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