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मुझे मातृभारती पर फॉलो करें : https://www.matrubharti.com भारतीय भाषाओँ में अनगिनत रचनाएं पढ़ें, लिखें और दोस्तों से साझा करें, पूर्णत: नि:शुल्क
सितारों की बारात आज बादलो मे छुपी क्यू है? चंदा भी तो शर्मा के.. बार बार चले जाते है बादलो के पार., आज की रात इतनी..रुकी रुकी सी क्यू है? आसमाँ के नीले रंग मे आज, जैसे शरारत थोड़ी सी कम लगरही है.. चांदनी आज शायद चाँद से रूठी हुई है.. ✍️✍️✍️ऐक एहेसास आप के साथ alp@meht@
मौसमो को कहदो,, जरा ओर ठहेर जाये,, पहले हम उनका दीदार करले,, न आती है खुश्बू फूलो से न छा ती है हवा पतों से गुजर के,, बहारे तो तब ही आयेगी.. जब वो हमें अपनी नज़रो से छुले..
जलजला रोक सको तो रोकलो.. फरियाद तो होगी अब देखलो.. न.. बैठेंगे चुप.. अन्याय के.. सामने होंगी हिमाकत अब ये भी सुनलो.. भ्रष्टाचार.. ने क़हर मचाया..तो बनके जलजला. आग बरसायेंगे.. अब हो गया खेल राजनीती का बहुत.. अब आम आदमी का वजूद दिखलायेंगे.. करलो सारा जतन,, अब होगा सब का पतन.. खेल खेले जितने भी कुर्सी के,, जमीर को बेचके.. उसूलो को निचोड़ के.. अब न पाउ तले जमीन रहेगी.. न रहेगी सर पे पघड़ी,, ठेकेदार हो जो तुम ख़ुर्शी के.. हम.. वो ही खिसकलेंगे... न बचेगी ख़ुर्शी.. ओर न बचेगी ठेकेदारी अब तुम ये भी समजलो... ✍️✍️✍️ ऐक अहेसास आप के साथ alp@meht@
Live & let live others.... जियो और जिनेदो... बात तो बिलकुल साफ है, समझ ने के लिये.. पर समझना चाहते है की नहीं है, वो हम पे निर्भर है, ये हमें सोचना होगा की हमें जीना है.. ओर औरो को भी जीने देना है,, जिंदगी हमें सिर्फ ऐक ही मिलती है,और हमें इसे बहेतरीन बनाना है, और दुसरो की जिंदगी मे दखल करके हम अपनी जिंदगी कभी बहेतरीन नहीं बना सकते.. अपनी सोच, विचार हम दूसरे लोगो के ऊपर थोप नहीं सकते,, हा :, राय जरूर दे सकते है, पर किसीकी जिंदगी मे छोटे छोटे वदलाव पर हम दखल अंदाजी करके उनकी जिंदगी को नर्क नहीं बना सकते.. सामने वाला हमें रेस्पेक्ट देता हो, हमें चाहता हो, तो हमें उस के यही व्यवहार को समझना चाहिए,, ओर उनके निर्णय को पूरी सहमति देनी चाहिए,, ये हमारा फर्ज़ हो जाता है,, ओर यही फर्ज़ आपको अपनों की नज़रो मे ऊँचा स्थान देता है,, उसके लिये हमें उनके ओर हमारे नजरिये के बिच ऐक ब्रिज का निर्माण करना होगा.. कभी उनको हमारे नजरिये से दुनियादारी सिखाओ. और कभी हमें उनके नजरिये से दुनियादारी सीखनी होंगी.. तभी तो.. आजकी जनरेशन ओर पिछली जनरेशन के बिच ताल मेल रहेगना.. | हम कभी कभी नये जनरेशन की आलोचना करते है.. पर आजका जनरेशन बिलकुल पारदर्शक है.. उसके मन मे पूर्वग्रह, किसीके प्रति.. आशंका, कुशंका, राग , द्वेष बिल्कुकल नहीं होता.. ये सब बीज बोने वाले हम ही होते है.. जो सलाह के रूप मे उन पर थोपते है,, आजकी पीढ़ी सिर्फ यही चाहती है, पँख लगाके उड़ना चाहती है.. आसमां को छूना चाहती है,, so lets them fly..... for ever... वो अपने दिल मे सदा हमें बिठाके रखेंगे.. चाहे कही भी रहे... Alp@meht@(ऐक अहेसास )
कर्म की गति न्यारी है,, | सारे जग पे भारी है,,| यहाँ नहीं चलती लांच, रिष्वत, ना चलती भ्रस्टाचारी है,,| न कोइ अहंकारी, न कोई व्यापारी चलती है,, दगाबाजी की क्या औकात यहाँ.. राजनीती भी कहाँ चलती है,,! लिखवाके तकदीर हम,,जग मे आते है,पर कोरा कागज ओर कलम साथ लिये आते है | लिखनी है, हम को खुदकी करनी,, न साथ देता यहाँ कोई,, "दोस्तों," ये अकेले की सुनवाई होती है,, महेफ़िक मे भले ही खुद को हजारों मे पाओ, यहाँ सिर्फ सवारी अकेले की होती है, | न राजा, रंक न कोई भिखारी यहाँ,, न कोई बादशाही चलती है,, कर्म की गति न्यारी है,, सारे जग पे भारी है,, |
डाकिया डाक लाता | डाकिया डाक लाता | हर इंसान के लिये नया पैगाम लाता | इंतजार मे उनके घंटो निकल जाता | किसीके चहेरे पे ख़ुशी तो किसीके लिये गम लाता | देखकर ख़ुशी किसीकी वो जी भर के मुस्कुराता | ओर देखके किसीको वो गमगीन हो जाता | फलसफा देखकर जिंदगी का वो पल मे मुस्कुराता और पल मे रोदे ता | मिट गया सारा खेल पुराना | अब औरो की ख़ुशी सिर्फ,, औरो की बनके रहे गयी,, आँशु ओ की कीमत अब शुन्य रहे गयी,, लतीफा देने आता था,, वो गम बाटके जाता था,, खुशियों की क्या बात करें,, चौगनी करके जाता था,, अब ना रहा डाक,,, ना रहा डाकिया,, |
रखकर जेब मे तहेजीब लोग घुम रहे है | " आजकल " हस ने की भी वजह लोग ढूंढ़ रहे है | "आजकल " रोना चाहे तो रो भी नहीं पाते . | "आजकल " आँशु ओ मे भी मिलावट हो रही है | "आजकल " रिश्तों की क्या बात करें अब | " आजकल " पल दो पल मे बदल जा रहे है | "आजकल " कागज की नैया बनती रही खिलोनो सी अबतक अब रिश्ते कागज के बन रहे है | "आजकल "
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