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ना बोले कुछ, ना मांगा कुछ, बस हर दिन साथ चला, धूप मेरे हिस्से ना आए — वो खुद साया बना चला। कभी नींद मेरी बेचैन हुई — तो करवटें वो गिनता था, मैं जब मुस्काता था तो, भीतर ही भीतर वो रोता था। स्कूल की पहली घंटी से, कॉलेज की आख़िरी मंज़िल तक, जो हर कदम पे छाया बन, रहा हमेशा फ़ासले रख। ना ताली बजाई कभी — ना मंच पे आया सामने, पर हर तालियों के पीछे, उसका ही नाम था छुपे। पढ़ाई की फीस, किताबों का बोझ — सब अपनी जेब से तौला, ख़ुद पुराने कपड़े पहने — पर मेरे लिए नया जोड़ा खोला। मैं जीता रहा ख्वाबों में, वो जीता रहा हकीकत में, मैं उड़ने लगा ऊँचाई में, वो झुका रहा ज़मीन पे। बचपन में जब गिर जाता — वो चुपचाप सहारा देता था, कंधों पर नहीं, सीने पर — सपनों को सहेजा करता था। ना 'आई लव यू' कभी कहा — ना बाँहों में लिया मुझको, पर हर 'ना कहे' को भी — प्यार बना दिया उसने खुद को। अब जब दूर हूँ, बड़ा बन गया, दुनिया में मशहूर हुआ, पर दिल के कोने में आज भी — उसका साया भरपूर हुआ। वो अब भी मौन है, पर हर आशीष की जुबां है, मैं जो कुछ भी हूँ — बस 'पापा की परछाईं' हूँ, यही मेरी पहचान है। Father's Day Special Song https://youtu.be/XqZqUhe1t1M #Father 's Day #PitaKiParchhai
"जब पुरुष रोते हैं, तो उन्हें कमजोर कहा जाता है..." हम भले ही 21 वीं सदी में हों, लेकिन समाज का एक तबका आज भी पुरुषों की भावनाओं को नज़रअंदाज़ करता है। घरेलू हिंसा, मानसिक प्रताड़ना, और झूठे आरोप ये सब सिर्फ महिलाओं के लिए नहीं, पुरुषों के लिए भी होते हैं। Baagi Baani के माध्यम से मैंने एक कोशिश की है, एक आवाज़ उठाई है - "मर्द भी इंसान हैं: सुनो उसकी खामोशी" एक socially conscious हिंदी गीत जो पुरुषों की चुप्पी को तोड़ने का प्रयास करता है। [https://youtu.be/HDzhJ56LnCE?si=U2RB6hXUFmIIqV40] अगर आप मानते हैं कि हर इंसान के अधिकार समान हैं, तो इस पहल को समर्थन दें। Because justice is not gender-specific. It's human. What do you think about this Thumbnail, how much u rate it on the scale of 1 to 10? #MensRights #SocialChange #VoiceForMen #BaagiBaani #Gender Equality #MusicForChange #LinkedInForImpact #HindiSong #EmotionalAwareness
🌸 माँ से दूर रहकर… चाय तो बनती है, पर स्वाद माँ की उँगली जैसा नहीं, बिस्तर तो बिछता है, पर सुकून माँ की गोद जैसा नहीं। भीड़ में भी तन्हा लगता है, जब माँ की आवाज़ सुनाई नहीं देती, दुनिया से लड़ जाता हूँ मैं, पर माँ के आँसू से लड़ाई नहीं होती। हर उस बच्चे के लिए ये गीत है, जो माँ से दूर है — पर उसकी ममता अब भी उसकी धड़कनों में बसती है… 💔🎶 📌 “माँ तेरी ममता से दूर हूँ” – सुनिए और माँ को महसूस कीजिए... https://youtu.be/cXAjJDmr8K4?si=l-QEUgH2aIyaVvQ8 और इस छोटे से चैनल Baagi Baani कि आवाज को सपोर्ट कीजिए।
"बचपन की मासूमियत और खुशियों को याद करते हुए एक भावपूर्ण कविता। उम्मीद है आप सभी को ये यादें भी उतनी ही प्यारी लगेंगी जितनी मुझे।"
📘 "Digital Depression: एक नई महामारी" ✍️ लेखक: अभिषेक मिश्रा 🌐 जब दुनिया सबसे ज़्यादा कनेक्ट हुई — हम अंदर से सबसे ज़्यादा टूटे। क्या कभी आपने सोशल मीडिया पर मुस्कराते चेहरे के पीछे छुपे हुए आँसू देखे हैं? यह सिर्फ़ एक नॉवेल नहीं, बल्कि 21वीं सदी की उस सच्चाई की गवाही है जो हम हर दिन जीते हैं... पर बोलते नहीं। 🔹 6 महीने का सफर 🔹 रातों की नींद और अंदर की चुप्पी 🔹 अब बन चुकी है एक किताब — एक चेतावनी, एक कहानी, एक आईना। 📱 डिजिटल ज़माना केवल सहूलियत नहीं, एक चुनौती भी है। 💔 और जब दिमाग़ थकता है, पर स्टेटस "Active Now" दिखाता है — तब जन्म लेता है Digital Depression। 👉 जल्द ही होगा आप सभी के बीच मेरी पहली नॉवेल, Matru Bharti पर उपलब्ध! #DigitalDepression #नईमहामारी #AbhishekMishraWrites #MatruBharti #FirstNovel #MentalHealth #SocialMediaTruth "अगर आप भी कभी डिजिटल अकेलेपन से गुज़रे हैं, तो ये कहानी सिर्फ़ पढ़िए नहीं, महसूस कीजिए।" 📖 अब पढ़ें Matru Bharti ऐप या वेबसाइट पर।
"ज़िंदगी एक कविता है" हर सुबह की किरण में एक गीत छुपा होता है, हर साँझ की चुप्पी में संगीत सजा होता है। जो देख सके वो देखे इन लम्हों की रवानी, ज़िंदगी हर पल में एक कविता बना होता है। कभी बरसातों की बूँदों में नज़्में टपकती हैं, कभी पतझड़ की ख़ामोशी में ग़ज़लें चहकती हैं। हर दर्द, हर मुस्कान, हर धड़कन का रंग, इस काग़ज़ी जीवन में स्याही सी बहकती हैं। चलते रहो तो पंक्तियाँ खुद बनती जाती हैं, रुक जाओ तो अधूरी सी किताबें रह जाती हैं। मंज़िल न सही, मगर सफ़र का ये हुनर, हर मोड़ पे नई कविता सी महक जाती है। तो जब भी टूटो, बिखरो, ग़म से घिर जाओ, इन शब्दों की रौशनी में फिर से खिल जाओ। क्योंकि ये जीवन, अगर दिल से जिया जाए, तो हर आँसू, हर हँसी — एक कविता बन जाए। - अभिषेक मिश्रा बलिया
जब कुछ करना हैं ये ठान लिया, आलस्य को जीवन से त्याग दिया, कर जिद्द अपने मंजिल पाने कि, कम उम्र में घर से निकल पड़ा। हैं नींद चैन को त्याग दिया, जो करना हैं पहचान लिया, अब नींद से नाता तोड़ दिया, मेहनत से नाता जोड़ लिया। अब नींद मुझे उसी दिन आएगी, जब मंजिल खुद मुझे बुलाएगी, अब रातों में बिस्तर त्याग दिया, इन रातों को ही अपना मान लिया। फिर आंधी आए या तूफान चले, रास्ते में भले रुकावटें लाख आए, जब निकल पड़े मंजिल कि तरफ, तो चलता जा जहां तक राह चले। - Abhishek Mishra
सुबह की हवा कुछ कहती है, हर साँस में नयापन लाती है। जो कल छूट गया था हाथों से, वो आज फिर से पास बुलाती है। - Abhishek Mishra
✍️ "ना थाली में दाल थी, ना कागज़ पर रेखा, फिर भी कवि ने वह लिखा, जिसे कोई न देख सका।" इस कविता का उद्देश्य केवल पढ़ना नहीं है — बल्कि सोचना, महसूस करना और जागना है। यह रचना, उन हज़ारों-लाखों कवियों की वाणी है जो भूखे रहे, पर समाज को भावों से भरते रहे। "सम्मान नहीं मांगा, बस समझदारी की नज़र मांगी। कलम की कीमत पूछने वालों से, संवेदना की भीख मांगी।" 🟡 क्या हमने कभी किसी कवि की भूख को समझा? 🟡 क्या कविता केवल मंच की ताली है, या आत्मा की पुकार? 🟡 क्यों शब्दों से समाज बनता है, पर कवियों को भुला दिया जाता है? 🟡 क्या अब समय नहीं कि हम “कवि” को भी उतना ही मान दें — जितना एक वीर को, एक शिक्षक को, एक जनसेवक को? 🟡 क्या सिर्फ व्यावसायिक सफलता से ही व्यक्ति की कदर होनी चाहिए? यह कविता हर उस युवा को प्रेरित करती है, जो दिल में लिखने का जज़्बा रखता है, और उसे कहती है — "रुको मत, डरो मत, लिखते रहो। तुम्हारा कलम तुम्हारा धन है।" पूरी कविता पढ़ने के लिए प्रोफाइल visit करे या नीचे दिए गए link पर क्लिक कर के पढ़ें और प्यार दे https://hindi.matrubharti.com/book/19974891/kavi-kangal-kalam-dhanvan 🔖 #कवि_कंगाल_कलम_धनवान 🔖 #आत्मा_की_कविता 🔖 #शब्दों_का_संघर्ष 🔖 #कवि_का_सम्मान_कब ? 🔖 #AbhishekMishraKavita
कुछ लोग हमें इतनी सहजता से मिल जाते हैं कि हम उन्हें आम समझ बैठते हैं। जो हर बार साथ देता है, हम अक्सर उसी की कद्र करना भूल जाते हैं। जो बिना बोले भी हमारी परवाह करता है, हम उसे 'कमज़ोर' समझ लेते हैं। और जब वो मौन प्रेम छूट जाता है, तो दिल तड़पता है, पर समय लौटकर नहीं आता। ये पंक्तियाँ उस पछतावे की झलक हैं — जो तब सामने आती है, जो कभी सस्ता नहीं था, बस आपने उसे पहचानने में देर कर दी। हर बार मिलने वाला सस्ता नहीं होता, जो चुपचाप साथ खड़ा हो — वही सबसे बड़ा होता है।" – एक भाव, एक पछतावा, एक सत्य – अभिषेक की कलम से....
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