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ᴀʙнιsнᴇκ κᴀsнʏᴀᴘ

ᴀʙнιsнᴇκ κᴀsнʏᴀᴘ Matrubharti Verified

@abhishekkashyap233241
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ᴀʙнιsнᴇκ κᴀsнʏᴀᴘ लिखित कहानी "हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद" मातृभारती पर फ़्री में पढ़ें
https://www.matrubharti.com/book/19943203/hockey-wizard-major-dhyanchand

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भ्रमण एवं भाषणों से थके हुए स्वामी विवेकानंद अपने निवास स्थान पर लौटे। उन दिनों वे अमेरिका में एक महिला के यहां ठहरे हुए थे। वे अपने हाथों से भोजन बनाते थे। एक दिन वे भोजन की तैयारी कर रहे थे कि कुछ बच्चे पास आकर खड़े हो गए।


उनके पास सामान्यतया बच्चों का आना-जाना लगा ही रहता था। बच्चे भूखे थे। स्वामीजी ने अपनी सारी रोटियां एक-एक कर बच्चों में बांट दी। महिला वहीं बैठी सब देख रही थी। उसे बड़ा आश्चर्य हुआ। आखिर उससे रहा नहीं गया और उसने स्वामीजी से पूछ ही लिया- 'आपने सारी रोटियां उन बच्चों को दे डाली, अब आप क्या खाएंगे?'

स्वामीजी के अधरों पर मुस्कान दौड़ गई। उन्होंने प्रसन्न होकर कहा— 'मां, रोटी तो पेट की ज्वाला शांत करने वाली वस्तु है। इस पेट में न सही, उस पेट में ही सही।' देने का आनंद पाने के आनंद से बड़ा होता है।

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#Motivational

अपनी बहन इलाइजा के साथ एक किशोर बालक घूमने निकला। रास्ते में एक किसान की लड़की मिली। वह सिर पर अमरूदों का टोकरा रखे हुए उन्हें बेचने बाज़ार जा रही थी। इलाइजा ने भूल से टक्कर मार दी, जिससे सब अमरूद वहीं गिरकर गन्दे हो गये। कुछ फूट गये, कुछ में कीचड़ लग गई।

गरीब लड़की रो पड़ी। “अब मैं अपने माता पिता को क्या खिलाऊंगी जाकर, उन्हें कई दिन तक भूखा रहना पड़ेगा।” इस तरह अपनी दीनता व्यक्त करती हुई वह अमरूद वाली लड़की खड़ी रो रही थी। इलाइजा ने कहा- “भैया चलो भाग चलें, कोई आयेगा तो मार पड़ेगी और दण्ड भी देना पड़ेगा। अभी तो यहाँ कोई देखता भी नहीं।”

“बहन देख ऐसा मत कह, जब लोग ऐसा मान लेते हैं कि यहाँ कोई नहीं देख रहा, तभी तो पाप होते हैं। जहाँ मनुष्य स्वयं उपस्थित है वहाँ एकान्त कैसा? उसके अन्दर बैठी हुई आत्मा ही गिर गई तो फिर ईश्वर भले ही दण्ड न दे वह आप ही मर जाता है। गिरी हुई आत्मायें ही संसार में कष्ट भोगती हैं, इसे तू नहीं जानती, मैं जानता हूँ।”

इतना कहकर उस बालक ने अपनी जेब में रखे सभी तीन आने पैसे उस ग्रामीण कन्या को दिये और उससे कहा “बहन तू मेरे साथ चल। हमने गलती की है तो उसका दण्ड भी हमें सहर्ष स्वीकार करना चाहिये, तुम्हारे फलों का मूल्य घर चल कर चुका दूँगा।”

तीनों घर पहुँचे, बालक ने सारी बात माँ को सुनाई। माँ ने एक तमाचा इलाइजा को जड़ा दूसरा उस लड़के को और गुस्से से बोली- “तुम लोग नाहक घूमने क्यों गये? घर खर्च के लिये पैसे नहीं, अब यह दण्ड कौन भुगते?”

बच्चे ने कहा- “मा! देख मेरे जेब खर्च के पैसे तू इस लड़की को दे दे। मेरा दोपहर का विद्यालय का नाश्ता बन्द रहेगा, मुझे उसमें रत्ती भर भी आपत्ति नहीं है। अपनी गलती के लिये प्रायश्चित भी तो मुझे ही करना चाहिये।”

माँ ने उसके डेढ़ महीने के जेब खर्च के पैसे उस लड़की को दे दिये। लड़की प्रसन्न होकर घर चली गई। डेढ़ महीने तक विद्यालय में उस लड़के को कुछ भी नाश्ता नहीं मिला, इसमें उसने जरा भी अप्रसन्नता प्रकट नहीं की। अपनी मानसिक त्रुटियों पर इतनी गम्भीरता से विजय पाने वाला यही बालक आगे चलकर महान विजेताओ की श्रेनी में शामिल नैपोलियन बोनापार्ट के नाम से विश्व विख्यात हुआ।

हमें भी समय समय पर अपनी कमियों का निरिक्षण करना चाहिए और उन कमियों को दूर करने का प्रयास करना चाहिए। ठीक इसी तरह हमें अपनी ताकतों को भी पहचान कर उसे और सुदृढ़ करने का प्रयास करते रहना चाहिए तभी हम अपने आप को संतुलित व सफल बनाये रखने में कामियाब होते रहेंगे।

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कुरूपता को अच्छे कामों की सुन्दरता ही दूर कर सकती है..

सुकरात बहुत कुरूप थे। फिर भी वे सदा दर्पण पास रखते थे और बार-बार मुँह देखते रहते थे।

एक मित्र ने इस पर आश्चर्य व्यक्त किया और कारण पूछा तो उन्होंने कहा “सोचता यह रहता हूँ कि इस कुरूपता का प्रतिकार मुझे अधिक अच्छे कामों की सुन्दरता बढ़ाकर करना चाहिए। इस तथ्य को याद रखने में दर्पण देखने से सहायता मिलती है।”

इस संदर्भ में एक दूसरी बात, सुकरात ने कही “जो सुन्दर हैं, उन्हें भी इसी प्रकार बार-बार दर्पण देखना चाहिए और सोचना चाहिए कि इस ईश्वर प्रदत्त सौंदर्य में कहीं दुष्कृतों के कारण दाग धब्बा न लग जाय।”

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जुबां पर भारत मां का नाम और दिल में हैं हिंदुस्तान, सरहद पर तैनात हर एक फौजी को मेरा सलाम..

स्वतंत्रता दिवस की सभी दोस्तो को बहुत बहुत शुभकामनाऐ
🇮🇳
-ᴀʙнιsнᴇκ κᴀsнʏᴀᴘ

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समय अच्छा हो तो आपकी गलती भी मज़ाक लगती है, और अगर समय खराब हो तो आपका मज़ाक भी गलती बन जाता है, झुको उतना ही जितना सही हो, बेवजह झुकना, अक्सर दूसरों के घमंड को बढ़ाता है.

-ᴀʙнιsнᴇκ κᴀsнʏᴀᴘ

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विचार चाहे कितने भी उत्तम क्यों ना हों वह सार्थक तभी माने जाते हैं जब उनकी झलक व्यवहार में
दिखती है

-ᴀʙнιsнᴇκ

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अपनी मृत्यु और अपनों की मृत्यु डरावनी लगती है। बाकी तो मौत को enjoy ही करता है आदमी ...

“मौत के स्वाद का चटखारे लेता मनुष्य ...”

मौत से प्यार नहीं , मौत तो हमारा स्वाद है.....
बकरे का, गाय का, भेंस का, ऊँट का, सुअर, हिरण का, तीतर का, मुर्गे का, हलाल का, बिना हलाल का, ताजा बकरे का, भुना हुआ, छोटी मछली, बड़ी मछली, हल्की आंच पर सिका हुआ। न जाने कितने बल्कि अनगिनत स्वाद हैं मौत के।
क्योंकि मौत किसी और की, और स्वाद हमारा....

स्वाद से कारोबार बन गई मौत।
मुर्गी पालन, मछली पालन, बकरी पालन, पोल्ट्री फार्म्स।
नाम “पालन” और मक़सद “हत्या”!
स्लाटर हाउस तक खोल दिये। वो भी ऑफिशियल। गली गली में खुले नान वेज रेस्टॉरेंट, मौत का कारोबार नहीं तो और क्या हैं ? मौत से प्यार और उसका कारोबार इसलिए क्योंकि मौत हमारी नही है।

जो हमारी तरह बोल नही सकते, अभिव्यक्त नही कर सकते, अपनी सुरक्षा स्वयं करने में समर्थ नहीं हैं...

उनकी असहायता को हमने अपना बल कैसे मान लिया ?

कैसे मान लिया कि उनमें भावनाएं नहीं होतीं ? या उनकी आहें नहीं निकलतीं ?

डाइनिंग टेबल पर हड्डियां नोचते बाप बच्चों को सीख देते है, बेटा कभी किसी का दिल नही दुखाना ! किसी की आहें मत लेना ! किसी की आंख में तुम्हारी वजह से आंसू नहीं आना चाहिए !

बच्चों में झुठे संस्कार डालते बाप को, अपने हाथ मे वो हडडी दिखाई नही देती, जो इससे पहले एक शरीर थी, जिसके अंदर इससे पहले एक आत्मा थी, उसकी भी एक मां थी ...??
जिसे काटा गया होगा ?
जो कराहा होगा ? जो तड़पा होगा ?
जिसकी आहें निकली होंगी ?
जिसने बद्दुआ भी दी होगी ?

कैसे मान लिया कि जब जब धरती पर अत्याचार बढ़ेंगे तो भगवान सिर्फ तुम इंसानों की रक्षा के लिए अवतार लेंगे ..❓

क्या मूक जानवर उस परमपिता परमेश्वर की संतान नहीं हैं .❓

क्या उस ईश्वर को उनकी रक्षा की चिंता नहीं है ..❓

धर्म की आड़ में उस परमपिता के नाम पर अपने स्वाद के लिए कभी ईद पर बकरे काटते हो, कभी दुर्गा मां या भैरव बाबा के सामने बकरे की बली चढ़ाते हो। कहीं तुम अपने स्वाद के लिए मछली का भोग लगाते हो ।

कभी सोचा ...!!!
क्या ईश्वर का स्वाद होता है ? ....क्या है उनका भोजन ?

किसे ठग रहे हो ?
भगवान को ?
अल्लाह को ?
जीसस को?
या खुद को ?

मंगलवार को नानवेज नही खाता ...!!!
आज शनिवार है इसलिए नहीं ...!!!
अभी रोज़े चल रहे हैं ....!!!
नवरात्रि में तो सवाल ही नही उठता ....!!!

झूठ पर झूठ....
...झूठ पर झूठ।।
#animallovers

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महान बनने का कोई विद्यालय नहीं होता

आपके कर्म, वाणी, व्यवहार और आचरण आपको महान बनाते हैं

-ᴀʙнιsнᴇκ κᴀsнʏᴀᴘ