Mere Khayal Meri Parchhaiyan Hain in Hindi Poems by sandhya rathore books and stories PDF | Mere Khayal Meri Parchhaiyan Hain

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Mere Khayal Meri Parchhaiyan Hain

मेरे ख्याल—

मेरी परछाईयाँ है!

संध्या राठौर


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मैं, संध्या राठौर,

गुजरात के खूबसूरत हीरों और सिल्क के लिए प्रख्यात सूरत शहर से !

पेशे से इंजीनियर, दिल से कवियित्री !

गाने की शौकीन भी !

उसके अलावा एक माँ, बहन बेटी और दोस्त !

लिखने का शौक बचपन से ही था य एक खुमार था,

जोश था — सच के लिए लना !

अन्याय के खिलाफ आवाज उठाना !

कलम की ताकात में यकीन था — हमेशा से !!

और मेरी सोच — यही कि प्यार और कलम —

दोनों से दुनिया बदली जा सकती है।

न जाने क्यूँ

ये सागर की लहरें

ये साहिल की बाहें

ये क्या रही हैं

ये पागल हवाएँ

कि हम हैं जमीं तो

नीला आकाश तुम हो

इतने दूर रहकर भी

मेरे पास हो तुम

मेरे हमसफरए मेरे रहनुमा तुम

यही कह रही है

अपनी मंजिल की राहें

कि हसीँ सी यादो की

सुनहरी धूप हो तुम

मैं खो जाऊ जिसमें

वो नर्म अहसास हो तुम

मेरे राजदाँ तुम ए मेरे मेहरबां तुम

मेरी हर सांस हो तुम

यही कह रही है

मेरी दिल की वफाएँ।

फिर आई न जाने कैसी लहर ये

बह गया पानियों में

सपनो का घर ये

रह गया जिंदा लाशों का

वीराँ शहर यह

रेत पर ह गए उस

मकां की दीवारें

यही ढूंढती है मेरी खामोश निगाहें

कि चुप है समुन्दर

अश्को से भीगा है साहिल

मेरे साथ रोई है

ये पागल हवाएँ।

सदियों से तेरी राह तकु मैं

सदियों से ये आस लिए मैं

कब से तेरी राह तकु मैं

दिवा ने कितना कोप दिखाया

रातों ने भी खूब रुलाया

युग बीतें और सदियाँ बीती

नयनो में दर्शन की प्यास लिए मैं

सदियों से ये आस लिए मैं

कब से तेरी राह तकु मैं।

चातक नयन कब तक तरसेंगे

कभी तो स्वाति घन झर झर बरसेंगे

इंतजार के गरल को घूंट घूंट कर पीती

मन में तेरा आभास लिए मैं

सदियों से ये आस लिए मैं

कब से तेरी राह तकु मैं

दिवास्वप्न में खुद को बिसराएँ

ज्यूँ मृगतृष्णा में मृग प्राण गवाएं

फटे हुए जीवन के चीथएों को सीती

टूटी सी एक आस लिए मैं

सदियों से ये आस लिए मैं

कब से तेरी राह तकु मैं।

क्षितिज ने भी कितना समझाया

क्या धरा ने कभी गगन पाया

फिर भी इसी झूठ में अपने आप को जीती

हर पल तेरा अहसास लिए मैं

सदियों से ये आस लिए मैं

कब से तेरी राह तकु मैं

एक हो जाए

नीले ए

नीले आसमानों के

कानों में ए

कालेए काले बादल नेए

कहा है पर ए

न जाने क्याए

देखो कुछ बुदबुदाकर के !

भीगेए

भीगे बदन के यूँ ए

देखो !

अंगए अंग में क्यूँ ए

गीली गीली लहरों ने ए

कहा है क्या ए

बदन को यूँ भिगाकर के !

कालीए

काली रातों केए

गर्म सायो में

तेरे बंद खुलते होठ

जाने क्या ये

कह गए

खामोशी में थरथराकर के !

आओं ए

एक हो जाएण्

हम दोनों ए

एक दूसरे में खो जाएण्

कह रही हैए

कब से येए

मेरी गर्म साँसे भी

कसमसाए कसमसाकर के।

गुम हुआ जाने किधर राही मेरी रहगुजर का

खो गया जाने किधर रहनुमा इक इस शहर का

गुम हुआ जाने किधर राही मेरी रहगुजर का।

ख्यालों के दर पे हौले हौले दस्तक देता रहा वो

ख्वाबों में चुपके चुपके आता रहा वो

बेसबब चाहत का मारा हुआ सा

गुम हुआ जाने किधर राही मेरी रहगुजर का।

हसरतों के चराणों को जलाता रहा वो

जिन्दगी के समुंदर में सैलाब उठाता रहा वो

रेत पर कदमों के निशां बनाता हुआ सा

गुम हुआ जाने किधर राही मेरी रहगुजर का।

रफ्‌ता रफ्‌ता दिल में मेरे बस गया वो

पास आकर भीड में क्यूँ खो गया वो

यादों की इक धूल उडाता हुआ सा

गुम हुआ जाने किधर राही मेरी रहगुजर का।

आ रही हूँ मैं

निकल पडी हूँ मैं

आपका हाथ पकडकर

जिन्दगी के आसमां पे

लम्बे से सफर परए

गिरने लगू जो कभी

बादलों से फिसलकर

थाम लेना मुझे बाहों में जकडकर।

आ रही हूँ मैं

एक सुनहरा ख्वाब बनकर

गिरने लगु जो कभी

आपकी पलकों से फिसलकर

भर लेना मुझे निगाहों में

अपनी आँखों के पटल बंद कर।

समा रही हूँ मैं

एक हसीं अहसास बनकर

घुलने लगु जब तुममें

एक गर्म सांस बनकर

जी लेना उस पल को

एक सदी का अहसास बनकर।

नदिया

पीहर से चली थी

सागर से मिलने को

बडी उतावली थी

मैंने रोक था उसको

अरी बावरी

मुझको ये तो बता जा

सागर से तेरा ये कैसा है नाता घ्

उससे मिलने को तू

निकल तो चली है

क्या तुझको ये खबर है

कितना मुश्किल ये सफर है

राहों में कितने है पत्थर

है पग पग पर ठोकर

तू थक जाएगी आगे

तू बट जायेगी आगे

जाने कब तक मिलन हो

क्या धरा से कभी भी

मिला ये गगन हैघ्

तब बोली थी नदिया

सुनो बात मेरी

ये रिश्ता है पुराना

जाने सारा जमाना

ना मैं चाँद हूँ

न मैं चकोरी

न धरा न गगन हूँ

न माली को रोता

उजडा सा चमन हूँ

मेरे दिल में लगन है

प्यार की एक अगन है

ना जानू मैं कोई

राहो के पत्थर

रूकती नहीं मैं

खाकर के ठोकर

है जाना मुझको

लम्बी सी डगर पर

बैठती नहीं मैं

कही पर भी थककर

सागर को मेरा इंतजार होगा

तकता बैठा मेरी राह होगा

जानोगे तडप को तभी तुम मुसाफिर

जिस रोज एक हसीना से तुम्हे प्यार होगा

मेरी वफा मेरे इंतजार का खूबसूरत ये सिला

मेरी वफा मेरे इंतजार का खूबसूरत ये सिला

आपसे मिलने मिलाने का चल पडा ये सिलसिला

वख्त आप मेरे साथ है. देख मुस्कुरा वो पल आगे बढ गया

छोड कर पीछे खूबसूरत यादों का एक काफिला

जबसे आपसे मिलने मिलाने का चल पडा है सिलसिला

जिन्दगी उस रोज आई थी फुर्सत से मिलने के लिए

भर लिया बाहों में मुझको और कितने सजदे किये

भर शरारत आँखों में बोली. बता ये तुझको कौन मिला

और कबसे ये मिलने मिलाने का चल पडा है सिलसिला

रात देर तक सिराहने बैठ थपकियाँ दे सुलाती रही

नींद की अठखेलिया आँखों को पेहरो जागती रही

खीज कर बोले थे सपने. अरी बावरी हुआ ये तुझको क्या भला

किससे ये मिलने मिलाने का चल पडा है सिलसिला।

मैंने कहा.

मेरी वफा ए मेरे इंतजार का मिल गया मुझको सिला

प्रवीण तबसे ही मिलने मिलाने का चल पडा एक सिलसिला।

एक अधूरा सा अहसास

थोडा जीना थोडा मरना

लेकर एक टूटी सी साँस

क्यों उनींदी आँखों के सपनो को

अनजान चेहरों की तलाश

ज्यूँ धरा को को गगन के

गर्म स्पर्श की हो आस।

पतझड के मौसम में अचानक

खिलने लगे जैसे पलाश

टकटकी लगाये ज्यूँ चातक

तक रहा सावन का मास।

बुझाई जितनी

एक अनक ही अनबुझी सी प्यास

ज्यूँ तेरे न होने पे भी हो

तेरे होने का आभास।

हुआ है मेरा दिल आशियाना!

प्यासी नजरों से देखू

हर पल ये सोचूँ कैसे मैं

तेरी ए बस तेरी ही हो लूँ कोई तो बताये

मुझे समझाए हुआ है मुझे क्या

मुझे बतलाना

तुझे गजल मैं बना लू

होठों पे अपने सजा लू

बहकीाजल सी

तुझे गुनगुना लू

कैसे ये कहूँ मैं

किससे कहूँ मैं

हुआ है मेरा दिल

सूफियाना।

तुमकोा्‌ मैं छू लूँ अपनी बाँहों में भर लूँ

आज इस पल मेंए जैसे सदियों को जी लूँ तुमसे कहूँ मैं।

सब से कहूँ मैं ा्‌ हुआ है मेरा दिल आशियाना सुन ले

ये सारा जमाना हुआ है मेरा दिल आशियाना।

मुझे कुछ कहना है

आज सुबह मैंने

टीवी और अखबार एजो खोला

हर पन्ना हर इश्तिहार ये बोला

भ्ंचचल प्दजमतदंजपवदंस ॅवउमदश्े क्ंल !!

मैं सोचू

ये कौन बला है

आखिर ये क्या

बात भला है

फिर आई मेरी

बात समझ में।

365 दिनो में से ए

हमको ए एक दिन

आज का मिला है !

आज अचानक उन्हें

याद है आया कि

मैं ही उनकी

आदि शक्ति हूँ !

मैं दुर्गा हूँ ए

मैं लक्ष्मी हूँ।

मैं ही माँ हूँ

मैं जननी हूँ

मैं ही इस सृष्टि की

उषा और मैं रजनी हूँ।

मेरे मन में उठे सवालो के घेरे।

सोच में पड गई मैं साँझ सवेरे तो

क्या बस आज अभी तक यह है

मेरे खो जायेंगे कल होते सवेरे

फिर ये कल मुझको गाली देंगे

पल पल मेरा भोग ये लेंगे

मौत का कंगन पहनाएंगे!

बपक मुझ पर फिक वाएंगे!

धु धु कर के जलवाएंगे !

दहेज न ल पाने के कारण

मुझको बेघर कर जाऐंगे !

कन्या को जिमाने वाले !

धो धो कर चरण पी जाने वाले !

एक पल में उसी कन्या का

चीर हरण भी कर जायेंगे।

नहीं चाहिए मुझे धन और दौलत!

सुन जो आज है तू वो है मेरी बदौलत !

मैं तो बस हूँए सम्मान की भूखी

मांगू इज्‌जत की दो रोटी सुखी।

यदि नहीं दे सके मैंने जो तुमसे माँगा !

होगा नहीं कोई तुझसा अभागा !

मुझको मत तुम अबला समझो !

इसको मत सिर्फ एक जुमला समझो !

वरना मैं बन जाउंगी रणचंडी!

तबाह करुँगी फिर सारी सृष्टि !

ऐका पुरुष !

तू फिर मत रोना !

जब होगी तुझपर आफत की वृष्टि।