निश्छल प्रेम
ये रात के सन्नाटें जिनमे हैं अपनी ही बाँतें
तेरे निश्छल प्रेम ने मेरे सुख दुःख हैं बांटे
जब भी सोचने बैठूं तुझको जाने क्यों बह जाती है ये आँखें
किन जन्मो का हिसाब है ये किन धागों से है गए हम बाँधें
नीदों में भी हमने तुमसे जीवन क़े हैं हर रफ़्तार बांटें
तुम पर प्यार लुटा दूँ तुमसे ही चाहूँ प्यार की अनमोल सौगातें
मासूम वक़्त में साथ चलने के कुछ वादे और वो कोमल इरादें
चांदनी की इस मद्धिम प्रकाश में पायीं हैं हमने ऋतुओं की बरसातें
शाम ढले आँगन क़े नीम छावं में चिड़ियों की चूँ चूँ करती आवाजें
एक पल दिल को छूती दूजे पल दूर कंही उड़ जाती लेकर अपनी बाँतें
बाट जोहती लौटने की दरवाज़े पर टक टक करती ये सूखी आँखें
जब तुम आते अल्हड बलखाती नदिया सी मै भी तुमसे मिलने आती
बेखबर हो शब्-ओ-सुबह तेरी याद में तेरी बात में दिन रैन बिताती
बरसो-बरस तेरे आने पर निश्छल मन से तुम पर सारा प्यार लुटाती
ए साहिब
हम तो ज़ख्म है साहिब, हमसे बच के रहना
गर कुछ हो जाय तुम्हे, तो इलज़ाम हमें न देना
ये तो गुलशन है कांटों का, मुहब्बत इसका नाम है देना
उड़ना है दूर तक थक जाओ ग़र तो, भीगे पंखों की दुहाई न देना
ए साहिब रुत है बहार की, पतझड़ न चुनना
चली बयार है तेज़, आंधियों का नाम न देना
सूर्ख़ है ज़र्दी दोपहर की, सूरज को इलज़ाम न देना
समंदर के आंचल में, बुझ के लाल रंग को है हर दिन खोना
भीगी पलकों की तसल्ली हूँ साहिब, ख़ुश्क नाम न देना
ढलती शाम में याद बन आते हो, सुबह संग फिर न चलना
इल्तज़ा है बस तुमसे इतनी, हिचकी बन तुम न ठहरना
बहती दरिया सी हैं यादें तेरी, पाकीजगी में तुम ही तुम बहना
ये प्यार है प्यार साहिब, सूरज़ सा दीया तुम बनना
जुगनू सा हम चराग है, राह में हम जैसे बहुतों से मिलना
रूह में हम ही हम होंगे, यकीं न हो तो हिज्र में अपने दिल से मिलना
बुत न हो जाय सारा ज़हां, हरकतों में शरारत से रखना मिलना-जुलना
ये साहिब हम प्यार है ..... ज़ख़्मी संसार हैं .....एक गुल-ए-गुलज़ार सपना
मरहम भी कहलाने के हक़दार हैं .......ग़र कोई गुस्ताखी हो तो मुआफ़ करना
चंद लम्हों की सौगात हैं .......रोती हंसती ज़ज्बातों की दुनिया की बरसात सहना
ग़र कल बिछड़ भी जाएं साहिब .........अपने ज़ेहन से मेरी यादों की मुलाक़ात कहना
ए चाँद
ए चांद शब् भर तुझे ही सराहती रही
सुबह तलक़ चांदनी को हथेलियों में बंद करती रही
तेरी तरह इंतज़ार की घड़ियों में अरमानो को घटाती बढाती रही
तेरी रौशनी में नहाई जहां को चश्म नम नज़रो से निहारती रही
छलकते पैमाने में टूटती मोतियों में तेरे अक्स को ही निहारती रही
कभी नर्म दूब पर तेरे क़दमों के पड़े निशान को बारहा निहारती रही
कुछ अधूरे अलफ़ाज़ जो लिख गये थे तुम उसे मुकम्मल करने को हार्फ़ तलाशती रही
मेरे हिस्से की चांदनी तुझको मिले और तेरी अमावास मेरी हो ख़ुदा से फ़रियाद करती रही
अमृत रस की चाह न हुई कभी, तेरी मुहब्बत का जाम मैं ख़ुशी से पीती रही
अब ज़हर क्या देगा मुझे ये ज़ालिम ज़माना, चमन में हर हाल मुस्कुराती रही
खामोशी की चादर ओढ़ शर्म-ह्या के आँचल में दिल के ज़ज्बात छुपाती रही
वफ़ा-ए-पहलु की परख में अश्कों के झरने में रोज इक नये बहाने से दिल बहलाती रही
मेरे अलफ़ाज़
जब भी मिलती हूँ तुझसे ए कोरे कागज़ मेरे अलफ़ाज़ छलक ही जाते हैं
दिल के कोने में जो छुपे रहतें हैं जज़्बात तुझ पर बिखर ही जाते हैं
मेरी शोखियाँ मेरी ही शरारत रुत -ए-बहार बन रुखसार पर झलक ही आते हैं
गाहे-गाहे तहे मन के मौजे बहार बन अरसा -ए -आलम (whole word) पर छा ही जाते हैं
जब भी हुआ जिस्म मेरा खास्तापा (tired) कोई न कोई मुकाम राह आ ही जाते हैं
जब भी किया किसी से कतरे भर क़ि उम्मीद वो तहलील ख्यालात थमा जाते हैं
नज़र करती हूँ खुद को ही अपने ही ऐब और आसार (impression) दिल -ए -जूनून पर मुस्कुरा जाते हैं
दिल क़ि ख्वाइश शब् भर तुझसे तकल्लुम (conversation) के ख़ुशी में अश्क आमेज़ हो ही जाते हैं
चिनार के पत्तों से झरोखे तक छन के आती धूप ये नीम क़ि ठंडी छावं
देश परदेश जाए कहीं भी फिजा पर यादों के बादल उमड़ ही आते हैं
महफ़िल ही नही हिज्र के मौसम में भी हर हार्फ़ अपनी गोयाई दिखा ही जाते हैं
कुर्बान जाऊं हर हार्फ़ हर ज़ज्बात पर जो हर हाल में जीने क़ि अदा सीखा ही जाते हैं
दिल -ए -गुलिस्तान में तमन्ना मचलती है आरमां भी पिघल ही जाते हैं
ओस क़ी बूंद पत्तों पर ठहरा देख कुछ लम्हात तबियत मरगूब (Like) कर ही जाते हैं
रुत पीले पत्तों क़ी शाम पुरवाई कार-ए -मोहब्बत से सरापा भर ही जाते हैं
फलक क़ी सुहानी जार शब् तक पिघल रंगत -ए -चांदनी ले आसूदा -ए -बिनाई (satisfaction of sight) में बदल जाते हैं
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गीली सी नूर
गीली सी नूर की बूंदें भी धुंधला अक्स तेरा ही निहारा करती हैं
शब्-ए-तसव्वुर में और शाम-ए-बज़्म में तेरी ही बातें हुआ करती हैं
तिनकों के इस घरोंदें में कच्ची-पक्की कुछ यादें सजी रहती हैं
वक़्त के इस घनेरे जंगल में तेरे ही ख्वाबों के जुगनू चमका करते हैं
ये मखमली अँधेरे अज़ीज़ हुए हैं हमे चांदनी तुझको नज़र करते हैं
गरीब की झोली में दुआवों के सिवा क्या हवाओं के हाथ तेरे नाम किया करते हैं
वक़्त का ये खंज़र दिल पर यूँ नश्तर चलाता है मुस्कुराते लबों पर खमोशी बसेरा करते हैं
हाथों में हाथ लिए जब राहों पर हम साथ होते है दरमियान हमारे आप ही आप आ बसते हैं
पौ फूटती है जब किरणों की एक नई उम्मीद से लबरेज़ नादान दिल सौ अरमान सजोते हैं
शब् भर जलती शमा के बुझते लव के साथ हर उम्मीद की किरण भी दम अपना तोड़ जाती है
गए दिनों को खबर कंहा मेरी ना-उम्मीद थे जिनसे ही पहलु में उनकी ही राह मेरे अब जाते हैं
कुछ लम्हात हम भी गुम रहेंगे किसी जहां में तलाश में न जाने क्यों वो बीते जुगनू चले आते हैं
तुम भी गुम अपनी दुनिया में हमने भी चुन ली है राह जो उजड़े चमन की ओर जाते हैं
बरसों से नाता नहीं रहा जिससे कदम मजबूर ही सही थम-थम के उसी ओर आगे बढते जाते हैं
खुशबू यंही कंही रह जाएगी मेरी हम तो मुरझाये गुलो से दरो दीवार उनका सजाने को अब चलते जाते हैं
या रब ! क्या लिखा है तूने तकदीर में मेरी खमोशी और ये जलते अंगारे शौक़ से अब हम भी राही उसी राह के हुए जाते हैं
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गुनहगार सी
क्यों दो पल भी बहार ठहरी नहीं घड़ी आ गई तेरे जाने की
ख़ता मेरी कुछ भी नहीं फिर भी मिली सज़ा दस्तूर निभाने की
आदत कैसी अपनी मासूम सी हर कहानी तुझे सुनाने की
लौट रही हूँ अब मैं भी दे के दुआ तुझे ताउम्र सलामत रहे अदा तेरी मुस्कुराने की
न चाह तुझसे मिलने की ना चाह तुझ से कुछ भी पाने की
तड़प रह गई है बस अब तेरे होठों पर मुस्कराहट बिछाने की
गम दिए है हमने तुझको बहुत अरमान हैं बस उसे समेट लाने की
कतरा भी अश्क का जो तेरी आँखों में आया तो इधर समंदर बहाने की
गुनाहगार सी लगती है जिंदगी अपनी चाह नहीं अब कुछ भी तुझसे जताने की
अरमान जलें या बर्फ की ठंडी आँहों तले रहें भूल गई मैं हर अदा सताने की
तुम बिन दिन कैसे ढला कैसे बीती रात नहीं बची अब बात कुछ तुझसे कह जाने की
ज़ख्मो को सीने में ही दफ़न कर दिया अब नहीं बाकी कोई दस्तूर-ए-रस्म निभाने की
जलता दिया हूँ मैं अपने ही मज़ार की करूँ क्या रोशन अब कोई और दयार जहां की
समेट लिया है हमने अपने दामन को भी नहीं रही चाह भी अब किसी और दुआ-बद्दुआ की
तकदीर का फ़साना है जन्मो तक निभाना है फिर दरमियाँ जगह कंहा किसी नशात की
'तुम' लौट आओ अब तेरे काँधे पर सर रख पहले सी मुझे चाह हो रही है बस रोते जाने की
कैसे
जिन्दगी इतनी हसीं है तो इसे दिल के सफे पे सजाएं कैसे
जब दिल रोये तो होठों पर मुस्कराहट बिछाएं कैसे
हज़ार तूफ़ान हो दिल में तो सुकून से नाता निभाए कैसे
शबनम की बूंद ठहरती है कंहा उसे फूलों के बीच छुपायें कैसे
हाल-ए-दिल भी अजीब है इसे छुपायें कैसे बताएं कैसे
खैरियत तो उसकी मिल जाती है सपनों में भी पर इस दिल को समझाएं कैसे
बदला बदला सा है वो भी कुछ समझ ये हम उसे समझाएं कैसे
ज़ख़्म गहरे हैं उसके अनजान नहीं हम इस मर्म का उसे एहसास दिलाएं कैसे
रब देता रहा सलामती उसकी किस्तों में रात तड़पती रही उसे सुलाएं कैसे
दुनिया की भीड़ में वो मुझे क्यों मिला ये सवाल अब सुलझाएं कैसे
काफिला दिल का था सुकून से गुजरने को वो राह में ऐसे मिला क़ि अमन की बस्ती बसायें कैसे
हज़ार सवालो से घिरा दिल बस ये एक सवाल करने का अब हौसला लायें कैसे
चुपके से जाना उसका और दबे पावँ आना उसका निशाँ इस दिल पे उसे दीखाएं कैसे
वो ज़ख्मो की तीमारदारी में हम लाचार मरहम लिए इस दिल पर फिर ज़ख़्म खाए कैसे
निशाँ जो पड़े हैं राह में सजदे करती हूँ या रब! उससे अब रुखसती की रस्म निभाए कैसे
जार-जार हुआ है दिल का तार भी अब इन टूटे अल्फाजों से नगमो को सजाए और साज़-ए-जिंदगी बजाएं कैसे
रेत सा
यूँ लम्हा दर लम्हा दिन गुज़र रहा है
वक़्त का क्या है रेत सा मुठ्ठी से सरक रहा है
कंहा खोये हो तुम मेरी हर याद में तुमसा ही कोई महक रहा है
जाने क्यों ऐसा लगता है तुम्हारे ज़ेहन से मेरी यादों का काफिला गुज़र रहा है
एक वो पल ठहर सा गया है या मेरी यादों की सिलवटों में कुछ उलझ रहा है
जब भी सुलझाऊँ उलझनों को मेरी ख्यालों के दयार में तू ही तू आ के बस रहा है
शब् -ए -स्याह क्या है सेहर -ए - नूर क्या अब इल्म नहीं जाने किस खार में अब दिल उलझ रहा है
आँखों की कोरों में ठहरी है नमी उसकी ही वो सावन की फुहारों सा ताजगी दे रहा है
हलक में ठहरा है जाना उसका दूर होकर भी वो मेरी मोहब्बत को उम्र दे रहा है
ले गया है साथ वो अपने मेरा सब्र -ओ -करार भी लफ्ज़ नहीं कहूँ क्या दिन कैसे गुज़र रहा है
तन्हाई के इस सफ़र में ख्वाबो -ख्यालों की महफ़िल में आकर वो न जाने कैसा नूर भर रहा है
ज़ेहन आबाद हो रहा है बीते लम्हों से वो पलकों की मोती बन हथेलिओं पर गिर के बिखर रहा है
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ए ख़ुदा
ए खुदा छलकती आँखों को पत्थर कर दे
सुलगते हुए दिल के हर जज़्बात को सुपुर्द -ए -खाक कर दे
जो भी किया है दरकार तुझसे या रब उसे मेरी नज़र कर दे
जलते हुए अरमानो को दफ़न कर दे या उसे उसकी हवा कर दे
जिंदगी यूँ ही जलती रही है उसके ख्यालों की थोड़ी सी बरसात कर दे
मेरे अजीजों के तोहफा-ए-ज़ख़्म को उसकी मासूम ज़ज्बातों का मरहम कर दे
ग़र चाहे तू ए खुदा मेरी जान ले उसकी जान ताउम्र महफूज़ कर दे
ख़ता क्या मेरी ख़बर नहीं सज़ा दी है तूने इतनी दो चार की सौगात और कर दे
आँखों की झिलमिलाहट में धुधला अक्स है उसका उसे मेरा दरकार कर दे
गुज़रे लम्हों के इक-इक पल को मेरे यादों के दयार में महफूज़ कर दे
महरूम हुआ है जो एक-एक पल हर एक पल को मेरे दामन का फ़ूल कर दे
फ़ीकी फ़ीकी फ़िज़ा उजड़ा उजड़ा दिल का चमन या खुदा भेज के उसको महफ़िल रंगीन कर दे
इल्म है मुझको भी तलकी-ए-होश का उसका एक झूठा वादा ही मेरा पयाम कर दे
इक पल को खिल जाउंगी एक पल को सवर जाउंगी
जीस्त अपनी ही है इसे अपनी ही नज़र कर दे
उसका हर हार्फ़ अब दिल के सफे पर लिखा मिलता है
उसे मिटा दे या उसका रंग शोख कर दे
बांधा है जिन कच्चे धागों में उसे तोड़ दे या उसे भेज के ये रिश्ता मज़बूत कर दे
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भूली हुई साज़
ए भूली हुए साज़ क्यूँ दे दिया तुमने आवाज़
जल उठे जुगनू ऐसे स्याह रात में जैसे तारों की बारात
दिल की गिरती उठती लहरों को फिर मिल गयी परवाज़
एक सदी से बैठी थी जिस दहलीज़ पर
न दस्तक थी जहाँ और खामोश हो चुकी थी आवाज़
साहिल पर थे कब से पर लहरों की नही होती रही आगाज़
वो छोटे छोटे खिलौने वो तेरी गोद की याद
वो हिज्र की रात और बेसबब तेरी हर बात
रात के पिछले पहर हुयी बेचैन सोयी हुयी साज़
वो पल दो पल की प्यार भरी फुहारें
वो बिन सावन मेरे नैनों की बरसात होरी
जब भी लिखना चाहूं सफ़े पर कम पड़ते मेरे अलफ़ाज़