एक अधूरा सच… सिया।
क्या था सिया का ये अधूरा सच?
सिया घर से तो निकली थी, लेकिन क्या वो वापस अपने घर लौट पाएगी?
क्या वो अपनी माँ से किया हुआ वादा निभा सकेगी?
आइए जानते हैं सिया का अधूरा सच।
सिया के जाने के बाद भी अंजलि काफी देर तक उसके बारे में सोचती रही।
फिर वो उठकर बिस्तर पर जाकर लेट गई और थोड़ी ही देर में गहरी नींद में सो गई।
सुबह जब अंजलि की आँख खुली तो घड़ी पर नज़र पड़ते ही वो घबरा गई।
घड़ी में 12 बज रहे थे।
फिर उसे याद आया कि आज संडे है और ऑफिस की छुट्टी है।
ये सोचकर वो आराम महसूस करने लगी।
अंजलि ने सोचा कि आज वो पूरा दिन घूमेगी और खूब सारी शॉपिंग करेगी।
कल सिया से बात करने के बाद उसके मन में जो डर और वहम था, वो अब खत्म हो चुका था।
उसे ऐसा लग रहा था जैसे सिर से कोई बोझ उतर गया हो।
वो खुद को बहुत हल्का और ताज़ा महसूस कर रही थी।
नहाने के बाद उसने नाश्ता किया, तैयार हुई और शॉपिंग के लिए निकल गई।
जैसा उसने सोचा था, उसने पूरा दिन वैसे ही बिताया।
अंजलि ने ढेर सारी शॉपिंग की और घर का ज़रूरी सामान भी ले लिया।
शाम को जब वो थककर घर पहुँची तो सात बज चुके थे।
उसने सोचा कि पहले एक कप कॉफी बना ले, फिर थोड़ा आराम करके खाना बनाएगी।
ये सोचकर वो किचन में चली गई।
तभी उसे सिया का ख्याल आया।
उसने चारों तरफ देखा, लेकिन उसे कहीं भी सिया की मौजूदगी महसूस नहीं हुई।
सिया उसे कहीं नज़र नहीं आई।
अंजलि कॉफी का मग लेकर अपने बेडरूम में आ गई।
वो बहुत थकी हुई थी।
पिछली रात सिया के साथ जागने की वजह से उसे नींद भी आ रही थी।
कॉफी पीने के बाद वो आराम करने के लिए बिस्तर पर लेट गई।
उसे पता ही नहीं चला कि कब उसकी आँख लग गई।
अचानक उसे महसूस हुआ कि कोई उसे नींद में पुकार रहा है—
“अंजलि… अंजलि… उठो अंजलि…”
अंजलि घबराकर उठ बैठी।
“क-कौन”
नींद में ही उसने आधी खुली आँखों से देखने की कोशिश की।
तभी उसे सिया का ख्याल आया और वो तुरंत उठ बैठी।
जैसा उसने सोचा था, उसे अपने पैरों के पास वही धुएँ जैसा रूप दिखाई दिया।
सिया वहाँ मौजूद थी—अपने उसी धुएँ जैसे अस्तित्व के साथ।
उसकी कोई साफ़ शक्ल नहीं थी, बस हल्का सा धुआँ और वही लाल आँखें।
लेकिन अब अंजलि को उससे डर नहीं लग रहा था।
तभी सिया की आवाज़ कमरे में गूँजी—
“अंजलि, अगर मैंने तुम्हें परेशान किया हो तो मुझे माफ़ कर देना।”
अंजलि उसकी बात सुनकर मुस्कुरा दी।
“ऐसा मत कहो सिया। मुझे खुशी होगी अगर मैं तुम्हारे किसी काम आ सकूँ।
तुमने अपनी तकलीफ़ मुझसे साझा की, मुझे अच्छा लगा।
मैं हर तरह से तुम्हारे साथ हूँ।”
अंजलि की बातों और उसकी आँखों में सिया को सच्ची मोहब्बत दिखाई दी।
उस मोहब्बत को देखकर सिया की आँखों में शुक्रिया का भाव उतर आया।
फिर उसने आगे कहना शुरू किया—
“अंजलि, उस दिन मैं मम्मी से इजाज़त लेकर अमित से मिलने चली गई थी।
लेकिन बाद में मुझे एहसास हुआ कि वो मेरी ज़िंदगी की सबसे बड़ी गलती थी।
जो मैसेज आया था, वो अमित ने नहीं भेजा था।
वो उन तीनों की साज़िश थी।
जब मैं अमित के फ्लैट पहुँची तो अमित ने दरवाज़ा खोला।
वो बहुत बुरी तरह ज़ख़्मी हालत में था।
उसे देखकर मैं चिल्ला उठी—
‘क्या हुआ अमित? तुम ठीक तो हो?’
अमित ने कहा—
‘सिया, जल्दी वापस जाओ। तुम्हें यहाँ नहीं आना चाहिए था।
तुम क्यों आई हो? जल्दी से यहाँ से चली जाओ।’
ये कहते-कहते वो लड़खड़ा कर गिर पड़ा।
वो बार-बार मुझसे यही कह रहा था कि मैं वहाँ से भाग जाऊँ।
मैं अंदर आई और अमित को अपने हाथों से उठाने की कोशिश करने लगी।
तभी पीछे से मुझे किसी के हँसने की आवाज़ आई।
वो तीनों दरवाज़े के पीछे ही खड़े थे।
मेरे अंदर आते ही राहुल ने दरवाज़ा बंद कर दिया।
विक्की ने हँसते हुए कहा—
‘देखा रॉनी, मैंने कहा था ना, ये बुलाएगा तो ये भागी-भागी चली आएगी।’
तीनों ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगे।
उसी पल मुझे उनकी गंदी साज़िश समझ में आ गई।
उन्होंने अमित को बहाना बनाकर मुझे जाल में फँसाया था।
अमित चिल्ला रहा था—
‘सिया, मैंने तुम्हें नहीं बुलाया।
मुझे पता है आज तुम्हारी बारात आने वाली है।
मैं ऐसा कैसे कर सकता हूँ?
मुझे माफ़ कर दो।
तुम जल्दी से यहाँ से भाग जाओ।’
वो तीनों तीन महीने की सज़ा काटकर आए थे।
इसी वजह से उनका गुस्सा हम दोनों पर और बढ़ गया था।
पता नहीं कब वो अमित के घर में घुसे और ज़बरदस्ती उसके फोन से मुझे मैसेज भेज दिया।
मैं बस अमित को देखे जा रही थी।
मुझे समझ नहीं आ रहा था कि आगे क्या होगा।
अमित की हालत देखकर मुझमें हिम्मत नहीं थी कि उसे फिर से अकेला छोड़कर चली जाऊँ।
उसका क्या कसूर था?
बस इतना ही कि उसने मुझसे प्यार किया था।
वो भी तीन दिन जेल में रहा था।
पापा ने उसके ख़िलाफ़ कार्रवाई की थी,
लेकिन लोगों की गवाही और मेरी वजह से उसे बाहर निकाल लिया गया था।
उसे चेतावनी दी गई थी कि वो मुझसे दोबारा कभी नहीं मिलेगा।
मैं खुद बहुत शर्मिंदा थी कि मेरी वजह से उसके साथ ये सब हुआ।
मैं उससे माफ़ी भी नहीं माँग पाई थी।
मैंने गुस्से में कहा—
‘रुको तुम लोग!
अपने आप को क्या समझते हो?
मैं अभी पुलिस को फोन करती हूँ।
इस बार तीन महीने नहीं, तीन साल जेल जाओगे।
शर्म नहीं आती शरीफ़ लोगों को परेशान करते हुए?’
मैंने बैग से फोन निकाला ही था कि
तभी रॉनी ने झपटकर मेरे बाल ज़ोर से पकड़ लिए।
वो बोला—
‘हाँ हाँ, तेरी वजह से हम ज़िंदगी भर जेल में ही रहेंगे।
यही तो तू चाहती है।
और फिर तू अपने इस आशिक़ के साथ मज़े करेगी,
घर बसाएगी, शादी करेगी।’
इतना कहते ही विक्की ने आगे बढ़कर मुझे ज़ोर से थप्पड़ मारा।
मैं तीनों के सामने ज़मीन पर गिर पड़ी।
वो हँसते हुए कह रहे थे—
‘सुना तुम लोगों ने?
आज इसकी बारात है, आज इसकी शादी है।
कितने बेशर्म हैं इसके माँ-बाप,
फिर भी इसे यहाँ भेज दिया।’
वो तीनों बकवास करते जा रहे थे
और मैं अमित को संभालने की कोशिश कर रही थी…
“सिया, तुम्हें यहाँ नहीं आना चाहिए था…”
अमित लगातार यही बोले जा रहा था।
“ये लोग तुम्हें छोड़ेंगे नहीं। जल्दी जाओ, यहाँ से चली जाओ…”
लेकिन उस समय मेरा दिमाग़ जैसे काम करना बंद कर चुका था।
मेरी आँखों के सामने मम्मी-पापा का चेहरा घूमने लगा।
अगर मैं आज घर नहीं पहुँची तो क्या होगा?
आज मेरी शादी थी।
अगर किसी को पता चल गया कि मैं घर पर नहीं हूँ,
तो मेरे मम्मी-पापा की इज़्ज़त का क्या होगा?
और अमित को मैं इन दरिंदों से कैसे बचाऊँ?
तभी राहुल बोला—
“बहुत आवाज़ निकाल रहा है ये अब तक।
देख ज़रा इसे…”
विक्की ने अमित की तरफ इशारा किया।
रॉनी ने पास पड़े गुलदान से फिर से अमित के सिर पर वार कर दिया।
अमित वहीं गिर पड़ा।
मैं ज़ोर से चीख पड़ी—
“इसे छोड़ दो, प्लीज़…
मुझे जाने दो…”
उन्होंने हँसते हुए कहा—
“जाने देंगे…
लेकिन पहले पुराना हिसाब तो चुकता कर लें।”
ये कहकर वो तीनों देर तक भयानक हँसी हँसते रहे।
ये कहकर वो तीनों देर तक वहशी हँसी हँसते रहे और फिर उसके बाद शुरू हुआ उनका हैवानियत भरा, दरिंदगी से भरा गंदा खेल…
अमित के सामने ही उन्होंने मेरे साथ वो सब किया जो मुझे बर्बाद करने के लिए काफ़ी था…
वो लोग उस दिन मुझे ज़िंदा छोड़ देते तो भी मैं घर नहीं जा पाती।
उन्होंने अपनी दरिंदगी दिखाने के बाद अमित को और मुझे क़त्ल कर दिया और उस फ्लैट को आग लगाकर वहाँ से चले गए…
सिया एक बार फिर से सिसक उठी…
अंजलि की रूह काँप गई सिया की कहानी सुनकर। उसकी आँखों से भी न जाने कब आँसू बह निकले थे। वो भी काफ़ी देर सिया के दुख में रोती रही…
फिर उसने सिया से कहा…
सिया मुझे बताओ… कौन थे वो लोग और कहाँ मिलेंगे। मैं पुलिस के पास जाऊँगी और तुम्हें इंसाफ़ दिलाऊँगी… उन्होंने जो किया तुम्हारे साथ उसके लिए उन्हें कड़ी सज़ा मिलनी चाहिए… प्लीज़ बताओ मुझे…
नहीं… मुझे इंसाफ़ नहीं चाहिए…
सिया की आवाज़ गुर्राहट में बदल गई…
उन तीनों में से दो को तो मैं सज़ा दे चुकी हूँ… मौत के घाट उतार चुकी हूँ…
बस एक ही शैतान बाकी है… और जल्दी ही उसे भी मैं ऐसी सज़ा दूँगी कि वो मुझसे मौत माँगेगा, तड़पेगा, जब तक अपनी आख़िरी साँस लेगा…
सिया तुम शांत हो जाओ…
अंजलि ने उसका रूप देखकर कहा…
अंजलि, मुझे शांति तब मिलेगी जब तुम मेरे साथ मेरे घर चलकर मेरे मम्मी-पापा को ये बताओगी कि मैं घर से भागी नहीं थी…
हाँ, वो आज तक यही समझते हैं कि मैं उस दिन मम्मी से परमिशन लेकर जब घर से गई थी तो अमित के साथ भाग गई थी… इसलिए मैं वापस नहीं आई थी…
लेकिन वो नहीं जानते मेरे साथ जो कुछ भी हुआ।
उन्हें नहीं पता कि मैं मर चुकी हूँ।
वो नहीं जानते मुझ पर क्या गुज़री…
उनकी बेटी कभी उनकी बेइज़्ज़ती नहीं करा सकती थी…
उनकी बेटी उनके लिए जान तो दे सकती थी पर उनका सिर नहीं झुका सकती थी…
मैंने उनकी बेइज़्ज़ती कराई…
सिया की आवाज़ में वो दर्द था जो एक बेटी के दिल में होता है अपने माँ-बाप के लिए…
ये तकलीफ़ उसे इस संसार से मरने के बाद भी मुक्त नहीं कर रही थी…
उसकी आत्मा तड़प रही थी क्योंकि उसके माँ-बाप उससे नफ़रत करते हैं…
मैंने कई बार कोशिश की कि मैं माँ को सब कुछ बता दूँ, पर वो मुझसे इतनी नफ़रत करते हैं। वो मुझे सुन नहीं सकती, न देख सकती। उनके दिल में सिर्फ़ नफ़रत है मेरे लिए…
मुझसे जुड़ी हर एक चीज़ को अपने घर से बाहर निकालकर फेंक चुके हैं वो…
जला चुके हैं, आग लगा चुके हैं…
भूल चुके हैं कि उनकी एक और बेटी भी थी… एक और बेटी भी थी…
मुझे शांति तभी मिलेगी जब मम्मी-पापा मुझे माफ़ कर देंगे…
बोलो अंजलि, तुम करोगी ना मेरी मदद…..
अंजलि, तुम बताओगी ना मेरे मम्मी-पापा को कि उनकी बेटी ने उनकी बेइज़्ज़ती नहीं कराई थी…
मुझे, मेरी आत्मा को सुकून तभी मिलेगा और मैं इस संसार से तभी मुक्त हो पाऊँगी,
वरना ऐसे ही मेरी आत्मा भटकती रहेगी, तड़पती रहेगी,
जब तक मेरे पेरेंट्स मुझे माफ़ नहीं कर देंगे।
मेरी आत्मा को शांति दिलाओगी ना तुम…..
सिया, मैं करूँगी तुम्हारे लिए सब कुछ…
अंजलि ने सिया को विश्वास दिलाया कि वो उसे इंसाफ़ दिला के रहेगी…
उसे खुद नहीं पता था कि वो क्या करेगी और कैसे करेगी…
पर उसने पक्का इरादा कर लिया था सिया का साथ देने का…
दरिंदगी की सारी हदें पार कर दी थीं उन लोगों ने।
अंजलि बहुत शॉक्ड थी और बहुत गुस्से में थी…
क्या आज के ज़माने में भी एक लड़की को अपनी ज़िंदगी जीने का अधिकार नहीं था….
कैसा था ये समाज…
एक तरफ़ दावा करता था औरत को देवी बनाकर पूजने का
और दूसरी तरफ़ मौका मिलने पर उसी औरत की इज़्ज़त को तार-तार करने से वे पीछे नहीं हटते थे।
अंजलि बहुत दुखी थी। सिया की तकलीफ़ और उसके आँसू उसे सोने नहीं दे रहे थे।
सिया को इंसाफ़ दिलाना था और उसके माता-पिता के दिल से उसके बारे में बनी गलतफ़हमी, जिसकी वजह से वे उससे नफ़रत करने लगे थे, दूर करनी थी।
लेकिन कैसे?
अंजलि अभी कुछ नहीं जानती थी। उसने बस एक इरादा कर लिया था, तो रास्ता भी मिल ही जाना था।
सब सोचते-सोचते उसके सिर में दर्द होने लगा।
फिर उसने तय कर लिया कि आख़िर करना क्या है।
फ़िलहाल उसे सिया के घर जाने के लिए ऑफिस से छुट्टी चाहिए थी।
उसने सबसे पहले लैपटॉप ऑन किया और छुट्टी के लिए आवेदन की मेल भेज दी।
अच्छी बात यह थी कि उसकी छुट्टी जल्दी ही मंज़ूर हो गई।
अंजलि एक ज़िम्मेदार कर्मचारी थी।
वह बहुत मेहनती थी और अपने काम से काम रखने वाली लड़की थी।
उसका बॉस उसके काम से बहुत खुश था, इसलिए उसकी छुट्टी भी मंज़ूर कर दी गई।
अंजलि को लगा जैसे पहली मंज़िल आसान हो गई हो, आगे का सफ़र भी वह ऐसे ही तय कर लेगी।
सुबह उठकर उसने अपना बैग तैयार किया और ज़रूरत का सामान रखकर खुद भी तैयार हो गई।
अब बस सिया का इंतज़ार था, क्योंकि उसे इतना ही पता चला था कि सिया का परिवार दिल्ली में रहता है, लेकिन पूरा पता सिर्फ़ सिया ही बता सकती थी।
उसे ज़्यादा इंतज़ार नहीं करना पड़ा।
अंजलि तैयार होकर बैठी थी कि उसे सिया की परछाईं महसूस हुई।
“मैं तैयार हूँ सिया। हम आज ही दिल्ली के लिए निकलेंगे।
तुम मुझे उस रोमी का पता बता दो। पहले उससे निपटेंगे, उसके बाद आगे क्या करना है, सोचेंगे।”
“हाँ अंजलि, मैं तुम्हें उसके पास ले चलूँगी… लेकिन…”
सिया हिचकिचाते हुए बोली।
अंजलि ने चौंककर पूछा, “क्या बात है सिया?”
“अंजलि, कहीं तुम मेरी वजह से किसी मुसीबत में न पड़ जाओ।
मेरा दिल घबरा रहा है। तुम बहुत अच्छी लड़की हो।
अगर मेरी वजह से तुम्हें कुछ हो गया तो मैं खुद को कभी माफ़ नहीं कर पाऊँगी।”
सिया की बात पर अंजलि उदासी से मुस्कुरा दी।
“सिया, तुम्हें पता है, चार साल पहले मेरे पापा की कार एक्सीडेंट में मौत हो गई थी।
उस समय मैं हॉस्टल में थी और मेरे एग्ज़ाम चल रहे थे।
मैं उनकी आख़िरी झलक भी नहीं देख पाई थी।
परीक्षा तो मैं दे आई, लेकिन जो मैं खो चुकी थी, वह मेरी ज़िंदगी का बहुत बड़ा नुकसान था।
न मैं पापा को आख़िरी बार देख पाई और न ही उनसे जी भरकर बात कर पाई।”
अंजलि भावुक हो गई।
वह बिस्तर के कोने पर टिककर बोलने लगी।
उसकी आँखें जैसे कहीं दूर थमी हुई थीं, मानो कोई दृश्य उसकी आँखों के सामने चल रहा हो।
“पापा ने मुझसे वादा लिया था कि मुझे एग्ज़ाम में टॉप करना है।
मैंने उनकी इच्छा पूरी कर दी, लेकिन वे हमेशा के लिए मुझसे दूर चले गए।”
सिया को उसका दुख जानकर अपना दर्द कुछ कम लगने लगा।
वह सहानुभूति से अंजलि को देख रही थी।
“अगर मैं तुम्हें तुम्हारे माता-पिता से मिला पाई, तो शायद मुझे भी सुकून मिलेगा।
अब ये सब मत सोचो सिया।
ऊपर वाले ने हम दोनों को मिलाया है और तुम्हारी मदद के लिए मुझे चुना है, तो ज़रूर कोई वजह होगी।
तुम्हारी मदद करके मुझे बहुत खुशी होगी।
अब कुछ बुरा नहीं होगा, जो होगा अच्छा ही होगा।”
सिया ने अंजलि की बात पर हाँ में सिर हिला दिया।
“सिया, उस रोमी का पता दो,” अंजलि ने कहा।
उसी समय उसके फ़ोन पर एक बीप हुई।
“ये रोमी का पता है।
अंजलि, वह वहाँ अकेला रहता है।
उसके माता-पिता अमेरिका में रहते हैं,” सिया ने नफ़रत से कहा।
“मैं उसे मार नहीं पाई, क्योंकि अपने दोनों दोस्तों की मौत के बाद उसने अपने लिए किसी तांत्रिक से सुरक्षा कवच बनवा लिया था।
उसने एक रुद्राक्ष की माला बनवाई थी, जिसे वह हमेशा गले में पहने रहता है।
उसकी वजह से वह मुझसे बचता रहा।”
“कोई बात नहीं,” अंजलि ने कहा,
“अब वह नहीं बचेगा।
चलो, हमें देर नहीं करनी चाहिए।”
और वे दोनों दिल्ली के लिए निकल पड़े।
सिया धुएँ के बादल की तरह अंजलि के साथ चल रही थी,
लेकिन न कोई उसे देख सकता था और न सुन सकता था।
अंजलि एयरपोर्ट पर चेक-इन करते हुए सिया से धीमी आवाज़ में बात कर रही थी।
“सिया, तुमने उन दोनों को कैसे मारा था?”
अंजलि धीमी आवाज़ में पूछती रहीथी
“सबसे पहले मैंने राहुल को मारा।
वह अपने फ़ार्महाउस में अपनी गर्लफ्रेंड्स के साथ मौज-मस्ती कर रहा था।
मैंने वहीं उसके स्विमिंग पूल में उसे तब तक डुबोए रखा, जब तक उसकी साँसें रुक नहीं गईं।
वह बहुत तड़पा, लेकिन मुझे देखकर डर के मारे उसकी आँखें बाहर निकल आई थीं।
और मैंने अपने लंबे नाखूनों से उसकी आँखें फोड़ दीं।”
सिया की बात सुनकर अंजलि को अपने शरीर में ठंडक सी महसूस हुई।
“उसके बाद विक्की की बारी आई।
उसके बाद विक्की की बारी आई। उसे मैंने उसी के घर की रसोई में मिट्टी का तेल डालकर ज़िंदा जला दिया। वह बहुत तड़पा, जैसे मेरा अमित तड़पा था। यह कहते हुए सिया की आवाज़ दर्द से भर गई।
उस दिन रोमी भी वहीं था और उसने मुझे देख लिया था,
लेकिन वह उस दिन बच निकला।”
“ये काले और सुनहरे रंग के गेट वाली कोठी उसी की है, अंजलि।”
कई घंटों का सफ़र तय करके वे दिल्ली पहुँच चुके थे।
एक घर के पास ऑटो से उतरते ही सिया ने बताया,
“मैं देख सकती हूँ, वह अभी भी घर के अंदर ही है।”
अंजलि ने थोड़ी देर चारों तरफ़ देखा और फिर गेट के अंदर चली गई।
“अरे-अरे, आप कौन हैं मैडम?
ऐसे कैसे अंदर आ रही हैं?”
**अंजलि कुछ ही दूर आगे बढ़ी थी कि तभी न जाने कहाँ से एक सिक्योरिटी गार्ड दौड़ता हुआ अंजलि की तरफ आया।
“अरे… बहादुर… तुमने मुझे नहीं पहचाना?”
अंजलि ने बड़ी चालाकी से उसकी वर्दी पर लिखा नाम पढ़कर कहा।
यह सुनकर वह थोड़ा घबरा गया और उलझन में पड़ गया।
बहादुर भूल गया था कि उसकी यूनिफ़ॉर्म पर उसके नाम का बैज भी लगा होता है।
वह हड़बड़ाते हुए बोला, “न… नहीं तो मैम साहब, आप कौन हैं? ऐसे बिना इजाज़त अंदर नहीं जा सकते…”**
**“अरे बहादुर… मैं तुम्हारे साहब की इसी बात से दुखी हूँ।
तुम्हें उन्होंने नहीं बताया कि आज मेरी मीटिंग उनके साथ है?
उन्होंने मुझे तीन बजे का समय दिया था।
और वो सब छोड़ो, तुम ये बताओ कि तुम गेट छोड़कर कहाँ घूम रहे थे?
बोलो, तुम्हारे साहब को अभी तुम्हारी छुट्टी कराती हूँ।”**
बहादुर हक्का-बक्का सा उसकी बातें सुन रहा था।
अंजलि उसकी सोई हुई आँखें देखकर पहचान गई।
अक्सर उसकी कंपनी का गार्ड भी कई बार ऐसा ही करता था।
“सॉरी मैडम… साहब ने मुझे इसके बारे में नहीं बताया।
मैं अभी गया था… वो क्या है, मैम साहब, बहुत गर्मी है,
तो मैं बस अंदर थोड़ी हवा खाने गया था।”
यह कहते हुए वह बेवकूफी से हँस पड़ा।
“आप साहब से मत कहना…”
अंजलि ने पर्स से पाँच सौ का नोट निकालकर उसे दिया।
“सुनो बहादुर… मेरी तुम्हारे साहब के साथ एक बहुत ज़रूरी मीटिंग है,”
अंजलि ने बहुत राज़दारी से कहा।
बहादुर कुछ समझ गया और मक्कारी से मुस्कुराया।
“तो तुम बस इतना करना, जब तक मैं अंदर हूँ,
तुम किसी को भी अंदर आने मत देना।
और चाहे कुछ भी हो जाए, तुम भी अंदर मत आना,
जब तक तुम्हें बुलाया न जाए,”
अंजलि अजीब सी मुस्कान के साथ बोली।
बहादुर ने नोट उसके हाथ से लेते हुए, उसी तरह गंदी सी हँसी हँसकर कहा,
“हाँ-हाँ, मैं बिल्कुल समझ गया।
अंदर कोई भी नहीं आएगा।
ठीक है मैम साहब, आप चिंता मत करो।”
अंजलि ने नफ़रत से उसे देखा।
आख़िरकार वह एक कमीने आदमी का नौकर था,
तो उससे भी कमीना होना ही था।
अंजलि ने अंदर की तरफ़ क़दम बढ़ा दिए
और सिया उसके पीछे थी।
अंजलि ने अंदर जाकर धड़कते दिल को थोड़ा काबू में किया।
वह अंदर से बहुत घबराई हुई थी,
लेकिन ऊपर से खुद को सामान्य दिखाने की पूरी कोशिश कर रही थी।
उसने दरवाज़ा बजाने के लिए हाथ उठाया और सिया की तरफ़ देखा।
सिया ने ओके का इशारा किया।
और अंजलि ने दरवाज़ा खटखटाया।
एक मिनट बाद दरवाजा खुल गया।
दरवाजा खोलने वाला इंसान रॉनी के अलावा कोई और नहीं था।
यह बात सिया के इशारे से अंजलि को समझ आ गई।
“अरे, तुम कौन हो और बिना परमिशन के अंदर कैसे चली आई हो?”
रोमी ने बड़ी तमीज़ से उसे घूरा।
इसी के साथ वह आगे बढ़कर गार्ड को आवाज देने लगा।
“बहादुर! ओ बहादुर, कहाँ मर गया?”
अंजलि घबरा कर उसका हाथ पकड़कर उसे अंदर खींच लिया।
“ओह सर, मेरी बात तो सुनिए। मैं बहुत दूर से सिर्फ़ आपसे मिलने आई हूँ।
और आप हाँ कि बहादुर को बुला रहे हैं।”
अंजलि की इस हरकत पर रोमी ने गंदी सी एक नजर सर से पैर तक अंजलि पर डाली।
और पल भर में उसका मूड बदल गया।
अंजलि ने घबरा कर उसका हाथ छोड़ दिया।
रोमी अंदर आकर दरवाजा बंद कर लिया।
“सर, मेरा मतलब है मैं आपके पास बहुत ज़रूरी काम से आई हूँ।
और मुझे भरोसा है कि आप मेरी मदद जरूर करेंगे।”
अंजलि बेहद घबरी हुई थी, फिर भी वह रॉनी के सामने इस तरह दिखा रही थी कि उसे लगे वह बहुत बोल्ड लड़की है।
रॉनी ने मुस्कुरा कर उसे बैठने का इशारा किया।
“हाँ-हाँ, बिल्कुल, मैं क्या कर सकता हूँ तुम्हारे लिए? बताओ… क्या मदद चाहिए?”
रोमी उसे लेकर ड्राइंग रूम में पहुँच चुका था।
उसके पास ही बैठते हुए बोला,
“नज़रों से गंदगी टपक रही है।”
अंजलि ने उसके गले में पड़ी रुद्राक्ष की माला देख ली थी।
रॉनी की शर्ट के बटन खुले होने के कारण माला साफ़ दिख रही थी।
“इसकी माला उतरवाऊँ… मैं आज इस कमीने को नहीं छोड़ूँगी।”
सिया की नफ़रत भरी पुकार अंजलि के कानों के पास उभर आई।
“मैं दरअसल दूसरे शहर से आई हूँ।
नौकरी की तलाश में मेरी एक दोस्त है, जो शायद आपको बहुत अच्छे से जानती है—लैला।
उसी ने मुझे आपका पता दिया है और कहाँ था आपकी बहुत जानकारी दी।
आप मेरी मदद जरूर करेंगे। मुझे नौकरी की बहुत ज़रूरत है।
आप करेंगे न मेरी मदद?”
अंजलि के मुँह से लैला का नाम सुनकर रोमी चौंक गया।
वह उसकी एक्स-गर्लफ्रेंड थी, जो सिया की भी दोस्त थी।
और यही सब वहीं काम करते थे।
सिया के हादसे के बाद से लैला उसे छोड़कर चली गई थी, और कहाँ गई थी, यह किसी को नहीं पता था।
ये सारी बातें सिया ने अंजलि को रास्ते में बताई थीं।
“हाँ… हाँ, क्यों नहीं… सर, आप जो कहेंगे मैं सब करूँगी।
बस मेरी मदद करेंगे न आप?”
अंजलि ने बड़ी मासूमियत से, थोड़ी और रोमी के पास होते हुए पूछा।
तो वह उसके और भी करीब हो गया।
अंजलि इसी मौके की तलाश में थी।
उसने हाथ बढ़ाकर पल भर में उसके गले में पड़ी माला झपट कर खींच ली।
और बस… उसके सारे दाने टूट कर यहाँ-वहाँ बिखर गए।
शायद माला ज़्यादा मजबूत नहीं थी।
रोमी हक्का-बक्का सा अचानक उठ खड़ा हुआ।
उसने गुस्से में अंजलि के बाल पकड़ लिए।
“ये… ये क्या किया तूने? कौन है तू?”
अंजलि दर्द से चिल्ला पड़ी।
और इसी लम्हे के इंतजार में सिया…
तुरंत रोमी के सामने आ खड़ी हुई।
अंजलि ने पहली बार सिया का असली रूप देखा।
सिर से पैर तक बुरी तरह जली हुई, भयंकर आकृति।
चेहरे का मांस जलकर जगह-जगह से उड़ गया था।
आँखें जैसे दो गहरे गड्ढे जिनमें लाल अंगारे रख दिए हों।
अंजलि एक बार डर से चीख ही पड़ी।
सिया का यह भयानक रूप देखकर…
रोमी अभी संभला भी नहीं था कि सिया का भयानक रूप देखकर उसके हाथों से अंजलि के बाल खुद-ब-खुद छूट गए।
कुछ याद आया…
सिया की गुर्राहट उभरी।
भय से रोमी की आँखें बाहर उबल पड़ीं।
“सि… सि… सिया…”
उसके मुँह से घुटी-घुटी चीख निकल गई।
“हाँ, कमीने… मुझे माफ़ कर दो सिया…”
सिया को जैसे उसका गिड़गिड़ाना सुनाई ही नहीं दिया।
उसने रोमी को उठाया और पूरी ताक़त से सामने पड़ी मेज़ पर दे मारा।
मेज़ टूटकर चकनाचूर हो गई और सारा काँच इधर‑उधर बिखर गया।
रोमी को बहुत दर्द हुआ और वह कराहने लगा।
“सिया, प्लीज़ मुझे छोड़ दो… माफ़ कर दो…”
वह अपनी मौत सामने देखकर सिया के पैरों में गिरकर गिड़गिड़ाने लगा।
अंजलि एक तरफ़ कोने में बैठी डर के मारे सिया का यह भयानक रूप देख रही थी।
“माफ़ कर दूँ तुझे?
तेरे जैसे दरिंदे को माफ़ कर दूँ?”
सिया गरजी।
“मैंने और अमित ने भी तुम लोगों के सामने ऐसे ही अपनी ज़िंदगी की भीख माँगी थी।
क्या तुम्हें तब तरस आया था?
बोल!”
“तेरी वजह से मेरे मम्मी‑पापा मुझसे नफ़रत करते हैं।
मरने के बाद भी मैं इस दुनिया में उनकी नफ़रत की आग में जल रही हूँ,
और तू कहता है कि मैं तुझे माफ़ कर दूँ…
अंजलि ने नहीं देखा था…
पर रोमी का हाल देखकर उसे अंदाज़ा हो गया था कि राहुल और विक्की को सिया ने कितनी भयानक मौत दी होगी।
उनके किए की सज़ा होनी भी ऐसी ही चाहिए थी…
सिया ने एक बार फिर से उठाकर रोमी को ज़ोर से ज़मीन पर पटक दिया…
छोड़ दो सिया मुझे…
रोमी बोल रहा था…
तेरे जैसे शैतानों को ज़िंदा रहने का हक़ नहीं है…
सिया ने उसकी गर्दन अपने पंजे में जकड़ ली…
कोई हक़ नहीं तुझे ज़िंदा रहने का…
सिया पूरी तरह से भूल चुकी थी कि अंजलि भी वहाँ है…
और सिया के इस भयानक रूप के आगे
अंजलि बस ख़ामोश खड़ी काँप रही थी…
रोमी सिया के पंजे में छटपटा रहा था,
उसकी आँखें बाहर को उबल पड़ी थीं…
सिया की गिरफ़्त हर लम्हा मज़बूत होती जा रही थी…
बस कुछ पल और,
बस कुछ पल बाद उसका खेल भी ख़त्म था।
और ये आख़िरी शैतान भी ख़त्म हो जाता
और सिया का बदला पूरा हो जाता…
रोमी के छटपटाते हाथ रुक गए
और नीचे की तरफ़ झूल गए…
तभी जैसे ये सब देखती अंजलि को होश आया…
वह लपक कर सिया के पास आई…
नहीं सिया… इसे छोड़ो…
इसे हमें मारना नहीं है…
इसे ज़िंदा रखना है… छोड़ो इसे…
सिया के हाथ रुक गए…
उसने सवालिया नज़रों से अंजलि को देखा…
नहीं अंजलि, क्या तुम भूल रही हो इसने मेरे साथ क्या किया…
सिया दर्द से तड़पकर बोली…
सिया, ये आख़िरी सबूत है
तुम्हारे बेगुनाह होने का…
अगर ये मर गया तो कैसे साबित करोगी
कि तुम अमित के साथ भागी नहीं थी…
ये कोर्ट में गवाही देगा…
सिया, ये अपने सारे गुनाह क़बूल करेगा पुलिस के सामने, सब बताएगा।
तुम्हारे मम्मी‑पापा भी तभी जान सकेंगे कि तुम्हारे साथ क्या हुआ था,
उन्हें आज तक नहीं पता… और किसी को भी नहीं पता सिया।
इसकी मौत से ज़्यादा तुम्हारे नाम पर लगा कलंक धुलना ज़्यादा ज़रूरी है…
ये बताएगा सबको कि तुम्हारे साथ साज़िश इसी ने और इसके दोस्तों ने की थी,
और फिर अमित को भी तो इंसाफ़ दिलाना है न…
सिया जैसे समझ गई…
अंजलि की बातों में सच्चाई थी…
उसके नाम पर लगा कलंक भी तो धोना था,
इसलिए इसका ज़िंदा रहना ज़रूरी था…
मम्मी‑पापा की याद आते ही सिया ने रोमी को छोड़ दिया।
सिया ने नफ़रत से उसे दूर फेंक दिया…
अंजलि ने पुलिस को कॉल कर दिया…
तब तक उसने रोमी को तैयार कर दिया
कि वह पुलिस के सामने बयान देगा
जो भी उसने सिया और अमित के साथ किया था……
सिया ने अंजलि से कहा
…
अंजलि ने सिया की आत्मा के बारे में
पुलिस को कुछ नहीं बताया था…
बताती भी तो कौन विश्वास करता…
पुलिस के आने पर रोमी ने अपना 3 साल पहले अपने दोस्तों के साथ किया गया जुर्म पूरी तरह से क़बूल किया
और उसने बताया किस तरह उसने और उसके दोनों दोस्त रोकी और राहुल ने मिलकर सिया को बेअबरू किया था
और अमित और सिया को क़तल करके उसी के फ्लैट में जला दिया था…
रोमी के बयान पर और अंजलि की FIR पर
पुलिस रोमी को लेकर अमित के एड्रेस पर पहुंची…
रोमी के ऊपर रेप, मर्डर, और साज़िश करने के साथ-साथ
जो भी ज़रूरी दफ़ा लागू होती थी
पुलिस ने सब चार्ज करके केस फ़ाइल कर दिया
और रोमी को जेल में डाल दिया…
मैडम, आपको केस की तारीख पर कोर्ट में आना रहेगा।
जब तक इसे इसके किए की अदालत से सज़ा नहीं हो जाती,
शायद हमें आपकी ज़रूरत पड़े…
सभी इंस्पेक्टर, जिन्होंने अंजलि के साथ पूरा टोन किया था
और रोमी को पकड़ने में लगे थे,
सारी फ़ाइल रेडी करने के बाद उन्होंने अंजलि को इन्फ़ॉर्म किया…
अंजलि ने कहा, ज़रूर, मैं ज़रूर आउँगी…
मेरी सारी डिटेल आपकी फ़ाइल में है,
जब भी ज़रूरत होगी मैं हाज़िर हो जाऊँगी…
अंजलि ने मुस्कुरा कर कहा, एक बात और पूछूँ आपसे…
इंस्पेक्टर ने अंजलि से कहा,
तो उसने सवालिया नज़रों से उसे देखा…
अंजलि जी, इस केस को 3 साल हो गए…
किसी ने इस केस से जुड़े इन दोनों पीड़ितों को लेकर कभी न तो कोई रिपोर्ट लिखवाई और न ही इन्हें तलाशने की कोशिश की गई। फिर आपको कैसे पता चला? तीन बरस के बाद ऐसा क्या हुआ कि आपने आकर रिपोर्ट फाइल की?
इंस्पेक्टर विकास उसकी आँखों में देखते हुए बोला।
तो अंजली ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया—
आप जानते हैं विकास, इंसान जब हैवानियत की सारी हदें पार कर देता है और अपने गुनाह को दुनिया से छुपाने में कामयाब हो जाता है, तो अक्सर वह कुदरत के नियम भूल जाता है। वह भूल जाता है कि अगर कुदरत के खिलाफ जाकर जुर्म कर सकता है, तो कुदरत भी इंसान को सजा देकर ही रहती है। कुछ फैसले और काम इंसानों के नहीं, कुदरत के होते हैं। यहाँ भी ऐसा ही है।
अंजली विकास को हैरान सा छोड़कर वापस जाने के लिए मुड़ गई। अभी एक और काम बाकी रह गया था, उसे सिया के घर जाना था। ।
अंजली भरपूर सुकून में थी, पर सिया अभी भी बेचैन थी और यह बात अंजली को अच्छी तरह पता थी कि सिया क्यों बेचैन है।
क्योंकि अभी अंजली को एक और आखिरी काम करना था, जो अब तक बाकी था।
"बस अब हम तुम्हारे घर जाएंगे," सिया बोली।
सिया जैसे उसकी शुक्रगुजार हो गई, उसने नम भरी आँखों से उसे देखा। फिर वे दोनों सिया के घर की तरफ चल पड़ीं।
पंद्रह मिनट बाद वे दोनों सिया के घर के बाहर थीं। सिया जैसे बस देखते ही जा रही थी इस घर को—जहाँ उसका बचपन था, जवानी थी। हर एक अच्छी-बुरी याद, हर चीज़ और इस घर के रहने वाले उसके अपने थे यहाँ।
अंजली ने डोरबेल बजाई।
सिया के मुँह से निकला—मम्मी…
क्योंकि दरवाज़ा खोलने वाली सिया की मम्मी थीं, लेकिन वह सिया की आवाज़ नहीं सुन सकीं।
अंजली को देखकर उन्होंने पूछा—
कौन हो बेटा? क्या काम है?
अंटी, क्या आप मुझे अंदर आने देंगी? मुझे आपसे बहुत ज़रूरी बातें करनी हैं, जो आपकी फैमिली से जुड़ी हैं।
अंजली की बात सुनकर सिया की मम्मी हैरान हुईं, पर उसे अंदर आने की इजाज़त देते हुए अपने साथ ही ड्राइंग रूम में ले आईं।
सिया अतृप्त नज़रों से बस कभी अपने घर की दर-दीवार को देख रही थी, कभी अपनी माँ के आसपास घूमकर उनसे बात करने की कोशिश कर रही थी, पर सब बेकार था। अंजली यह सब देख रही थी, फिर उसने सिया को इशारे से शांत रहने को कहा।
अंदर सोफे पर सिया के पापा अपनी छोटी बेटी के साथ बैठे थे।
आओ, बैठो—
सिया की मम्मी अंजली के सामने बैठते हुए बोलीं।
तो अंजली ने कहना शुरू किया—
अंटी, जो बात मैं आपसे कहने जा रही हूँ, वह आपकी बेटी के बारे में है।
रिया के बारे में तुम्हें क्या बात करनी है?
सिया के पापा ने चौंककर अंजली को देखा और बोले—तुम कौन हो? रिया को कैसे जानती हो?
नहीं अंकल, मैं रिया की बात नहीं कर रही। मैं आपकी बड़ी बेटी के बारे में बात करना चाहती हूँ, आपकी बड़ी बेटी, इस घर की पहली औलाद… सिया के बारे में बात कर रही हूँ।
अंजली ने ज़रा तेज़ी से कहा।
मेरी सिर्फ एक बेटी है और उसका नाम रिया है, यह जो आपके सामने बैठी है। और मेरी कोई और औलाद नहीं थी, न है। आप जा सकती हैं। हमें आपसे कोई बात नहीं करनी और न ही किसी फ़िज़ूल बात पर बहस करनी है।
सिया अपने पापा को इतने साल बाद भी उसी गुस्से में देख रही थी। क्यों आख़िर कभी जानने की कोशिश नहीं की उन्होंने अपनी बेटी के बारे में, और आज भी सुनना नहीं चाहते थे।
सिया की आँखों में नमी थी।
अंजली ने अपने बैग से एफआईआर की कॉपी निकालकर ज़ोर से सामने टेबल पर रखते हुए ज़रा नाराज़गी से कहा—
इसे पढ़ लीजिए अंकल। आपको नहीं पता सिया के साथ क्या हुआ, किस दर्दनाक हादसे से वह गुज़री है। क्योंकि आपने तो जानने की कोशिश भी नहीं की, न इतने सालों में। माफ़ कीजिएगा, कैसी मोहब्बत थी आपकी, जो आपने इतने साल में एक बार भी अपनी जवान बेटी के लिए दिल में हमदर्दी महसूस नहीं की। इसे पढ़िए, आप जान जाएँगे कि आपकी बेटी कभी आपका सिर झुकाने वालों में से नहीं थी।
अंजली की बात पर उन्होंने सामने पड़ी फ़ाइल उठाई और काँपते हाथों से पढ़ना शुरू किया। जैसे-जैसे वह पढ़ते जा रहे थे, एक शर्मिंदगी और दर्द उनकी आँखों से आँसुओं की सूरत बहने लगा। वह वहीं सोफे पर गिर पड़े।
मेरी बेटी सिया… उफ़ मेरी बच्ची…
वह रोने लगे।
सिया की माँ ने उन्हें देखकर वह काग़ज़ उठा लिए। पूरी वारदात उसमें रोमी के बयान के साथ दर्ज थी।
काश थोड़ा तो भरोसा किया होता आपने अपनी बेटी पर। आपकी इज़्ज़त की ख़ातिर उसने अपना प्यार कुर्बान किया था। कैसे आपने समझ लिया कि वह आपको धोखा दे सकती है? क्यों कभी उसके बारे में जानने की कोशिश नहीं की?
अंजली खुद भी बोलते हुए जैसे रो पड़ी। सब शर्मिंदा थे, उनके पास शब्द नहीं थे।
पर तुम कैसे जानती हो इतना सब कुछ? अंजली के बारे में कैसे जानती हो? और यह केस तुमने फाइल किया है?
न जाने कितने सवाल उसके पिता के मन में उठ रहे थे, जो वह पूछ रहे थे।
सिया की माँ बस बैठी रोए जा रही थी।
मैंने कहा था, मेरी सिया ऐसा नहीं कर सकती। मैंने अपने भरोसे पर उसे भेजा था। वह कभी अपनी माँ की परवरिश पर दाग़ नहीं लगाएगी, मुझे यकीन था।
अंजली बस उन्हें देखे जा रही थी। फिर उसने सिया की तरफ देखा। वह अपने पापा के पैरों के पास ऐसे बैठी थी, जैसे बस वह उसे उठा कर अभी गले से लगा लेंगे।
यह सब मुझे कैसे पता? शायद आप लोगों की नफ़रत अगर उसके लिए इतनी ज़्यादा न होती, तो आप भी यह सब जान जाते। मुझे बताने वाला कोई और नहीं, अपने लिए खुद इंसाफ़ माँगती भटकती रही आपकी बेटी, आपकी सिया।
उसकी अतृप्त आत्मा है, जो मरकर भी इस संसार से मुक्ति नहीं पा रही, क्योंकि उसके जन्मदाता उससे नाराज़ हैं। बस इसी बात की वजह से उसकी अशांत आत्मा मुझ तक पहुँच गई और उसे मुझसे मदद लेनी पड़ी। वह… अभी भी, इस वक्त भी, यहाँ मेरे साथ ही है, आप लोगों के बीच।
क्या कह रही हो तुम? ये… ये कैसे मुमकिन है?
अंजली की बात पर सिया के माता-पिता एक साथ ही चिल्ला पड़े, जैसे एक अनजानी हैरानी से बार-बार दो-चार हो रहे हों।
हाँ, मैं सच कह रही हूँ अंकल। सिया अभी यहीं है, आपके बिल्कुल पास बैठी है। आप उससे इतनी नफ़रत कर रहे थे कि उसने बार-बार कोशिश की आप तक पहुँचने की, पर वह आपके दिल को, आपके एहसास को छू ही नहीं पाई। अपने वजूद का एहसास करा ही नहीं सकी आप दोनों को, और न ही अपने दर्द का।
वे तीनों बस हैरानी के समंदर में डूबे थे। कुदरत जब अपने आप को साबित करती है, तो इंसान ऐसे ही हैरान हो जाता है। वे भी हैरान थे, और उससे भी कहीं ज़्यादा दुख के रेतीले समंदर में, जलती गरम रेत पर चलते जा रहे थे। जिस बेटी को तीन साल से उन्होंने देखा नहीं था, उन्हें पता ही नहीं था कि उसके साथ क्या हुआ है, न उन्होंने जानने की कोशिश की थी।
जीते-जी उन्होंने उसे मार दिया था और वह सच में मर चुकी थी, पर ऐसा कैसे मुमकिन था कि मरने के बाद वह उनके बीच थी। यह कुदरत के खिलाफ था। जो एक बार चला जाता है, वह फिर लौटकर नहीं आता।
मैं सच कह रही हूँ आंटी, वह आपके प्यार को तरस गई है। आपकी नफ़रत की वजह से आप उसे महसूस नहीं कर पाए। आप लोग दिल से उसे पुकारेंगे, तो देख पाएँगे उसे। उसकी आत्मा को आज तक शांति नहीं मिल पाई है। प्लीज़, उसे मुक्ति दे दीजिए।
सिया की मम्मी ने काँपती हुई आवाज़ में उसे पुकारा—
सिया… मेरी बेटी… कहाँ हो तुम?
सिया को लगा जैसे किसी ने उसके जलते जिस्म पर ठंडे पानी का छिड़काव कर दिया हो।
हम तेरे गुनहगार हैं बेटा, हमें माफ कर दे—
उसके पापा ने भी हाथ जोड़कर कहा। वे एक पल में ही बरसों के बीमार और बूढ़े नज़र आने लगे थे। यह उन पर बहुत बड़ी आपदा थी। दुनिया के साथ मिलकर उन्होंने भी तो अपनी बेटी पर ज़ुल्म ही किया था।
सिया, प्लीज़ हमारे सामने आओ।
सिया देखो, पापा तुमसे बात कर रहे हैं। सामने आ जाओ। देखो, वे तुमसे नफ़रत नहीं करते, बहुत प्यार करते हैं।
अंजली ने कहा।
और फिर जैसे एक चमत्कार हुआ। एक साया सा जगमगाया और फिर एक शक्ल के साथ अपने असली रूप में सिया सबके सामने थी। अंजली ने देखा, वह कितनी खूबसूरत थी। उसकी आँखें झील जैसी थीं और सफ़ेद रंगत, जैसे दूध में नहाई हो। लेकिन उसका नसीब बहुत बदसूरत था, उसकी तक़दीर बहुत काली थी।
काफी देर तक उसके मम्मी-पापा उससे अपनी ग़लतफ़हमी की माफी माँगते रहे। अंजली उसे देखकर जैसे खो सी गई थी। फिर थोड़ी देर बाद वह सुंदर मूरत एक दर्द भरी मुस्कुराहट बिखेरती हुई धीरे-धीरे गायब हो गई।
बहुत दर्द भरा माहौल था।
आंटी, अंकल, आप पूरे रीति-रिवाज़ से अमित और सिया का अंतिम संस्कार कर दीजिएगा, ताकि उन दोनों की आत्मा को शांति मिल सके।
तुम ठीक कह रही हो बेटा। अब हमारा जो फ़र्ज़ है, हमें वह करना है। हम तुम्हारे शुक्रगुज़ार हैं।
वह रात अंजली ने सिया की फैमिली के साथ ही उसके घर में गुज़ारी। और अगले दिन वह अपने घर जाने के लिए निकल पड़ी। सिया की फैमिली ने उसे इजाज़त दी और साथ ही वादा भी लिया कि हर महीने वह उनसे मिलने आती रहेगी, ताकि उन्हें फिर से सिया की कमी महसूस न हो।
अंजली के होंठों पर एक मुस्कान थी, जो दर्द और सुकून दोनों एक साथ लिए थी। दर्द सिया से बिछड़ने का था और सुकून उसे इस संसार से मुक्ति मिल जाने का था।