Anokhi Kahania in Hindi Fiction Stories by Mayank Bhatnagar books and stories PDF | उजाले की राह

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उजाले की राह

उत्तराखंड के छोटे से शहर कोटद्वार में अमन का बचपन एक साधारण लेकिन स्नेहभरे माहौल में बीता। उसके माता-पिता मेहनती और ईमानदार लोग थे, जो सीमित साधनों के बावजूद अपने बेटे के सपनों को बड़ा देखना चाहते थे। अमन की दुनिया छोटी थी, लेकिन सुरक्षित थी—जब तक एक दुर्घटना ने सब कुछ छीन नहीं लिया।

 बहुत कम उम्र में अमन ने अपने माता-पिता को खो दिया। उस दिन के बाद उसका बचपन अचानक खत्म हो गया। कुछ समय तक वह रिश्तेदारों के साथ रहा, लेकिन धीरे-धीरे उसे एहसास होने लगा कि वह सबके लिए एक ज़िम्मेदारी बन गया है। अंततः उसे एक अनाथालय भेज दिया गया। वहाँ भोजन और छत तो थी, लेकिन अपनापन नहीं।

 अनाथालय में अमन अक्सर चुप रहता। वह पुराने खिलौनों, घड़ियों और टूटे पंखों को खोलकर देखता रहता, मानो चीज़ों को समझकर अपने भीतर के सवालों के जवाब ढूँढ रहा हो। वहीं काम करने वाले एक बुज़ुर्ग शिक्षक ने उसकी यह आदत देखी। उन्होंने अमन को पढ़ाई के लिए प्रेरित किया और विज्ञान की पुरानी किताबें दीं। वे अक्सर कहते,

“अगर हालात साथ न दें, तो ज्ञान को अपना सहारा बना लेना।”

 अमन ने पढ़ाई को ही अपना रास्ता बना लिया। उसकी मेहनत रंग लाई और उसे एक प्रतिष्ठित बोर्डिंग स्कूल में छात्रवृत्ति मिल गई। कोटद्वार से बाहर जाना उसके लिए नया अनुभव था। बड़े स्कूल की इमारतें और सजी-धजी कक्षाएँ देखकर वह डर भी गया और उत्साहित भी हुआ।

 लेकिन यह दुनिया आसान नहीं थी। वहाँ के ज़्यादातर बच्चे अमीर परिवारों से थे। अमन के साधारण कपड़े, पुराना बैग और कम बोलने का स्वभाव उन्हें अजीब लगता था। कुछ बच्चे उसका मज़ाक उड़ाते, तो कुछ उसे “अनाथ” कहकर चिढ़ाते। हॉस्टल की कई रातें उसने अपमान और अकेलेपन के साथ बिताईं।

 पैसों की कमी हर रोज़ महसूस होती थी। नई किताबें खरीदना मुश्किल था, स्कूल ट्रिप में जाना सपना लगता था और छोटी-छोटी ज़रूरतों के लिए भी उसे कई बार सोचना पड़ता था। जब बाकी बच्चे छुट्टियों में घर जाते, अमन लाइब्रेरी में बैठकर पढ़ता। कई बार उसने भूखे पेट पढ़ाई की, लेकिन कभी शिकायत नहीं की।

 धीरे-धीरे उसकी मेहनत दिखाई देने लगी। विज्ञान प्रयोगशाला उसकी सबसे पसंदीदा जगह बन गई। प्रयोगों में उसकी समझ गहरी थी। वही बच्चे, जो पहले उसे नज़रअंदाज़ करते थे, अब उससे सवाल पूछने लगे। शिक्षकों ने भी उसकी प्रतिभा को पहचाना।

 आगे चलकर अमन ने राज्य और राष्ट्रीय स्तर की परीक्षाएँ पास कीं। उच्च शिक्षा के लिए उसे और भी छात्रवृत्तियाँ मिलीं। संघर्षों से निकला वह लड़का एक दिन प्रसिद्ध वैज्ञानिक बन गया। उसकी खोजों को देश-विदेश में सराहा गया।

 लेकिन सफलता ने उसे घमंडी नहीं बनाया। वह अपने अतीत को कभी नहीं भूला—अनाथालय, ताने, भूख और अकेलापन। उसने तय किया कि वह अपनी सफलता को सिर्फ अपने लिए नहीं रखेगा।

 अमन ने “उजाला विद्यालय” नाम से एक स्कूल खोला, खास तौर पर अनाथ और जरूरतमंद बच्चों के लिए। यह सिर्फ पढ़ाई का स्थान नहीं था, बल्कि सम्मान, आत्मविश्वास और सपनों की जगह थी। वहाँ कोई बच्चा अपनी गरीबी या हालात की वजह से खुद को छोटा नहीं समझता था।

 उद्घाटन के दिन अमन ने कहा,

“मैंने बहुत कुछ खोया है, लेकिन अगर मेरे अनुभव किसी बच्चे का भविष्य संवार सकते हैं, तो वही मेरी सबसे बड़ी उपलब्धि होगी।”

 उस दिन कई बच्चों की आँखों में उम्मीद की वही चमक थी—जो कभी एक छोटे से शहर, कोटद्वार के एक अनाथ बच्चे की आँखों में थी।