ज़िंदगी में कभी-कभी ऐसी घटनाएँ घट जाती हैं जो हमारी अक़्ल और समझ से बाहर होती हैं। आप मानें या न मानें, लेकिन उन बातों को नकारा नहीं जा सकता। वे अपने आप को सच साबित कर ही देती हैं। उनमें इतनी ताक़त होती है।
कहते हैं कि इस दुनिया के अलावा भी एक और दुनिया होती है, लेकिन हम उसे देख नहीं सकते। अगर आपके साथ कुछ अजीब घटनाएँ होने लगें, तो समझ लीजिए कि दूसरी दुनिया के लोग आपके आसपास हैं। और जो कुछ भी होता है, उसके पीछे कोई न कोई कारण ज़रूर होता है।
कुछ ऐसा ही अंजलि की ज़िंदगी में हुआ। अचानक उसकी ज़िंदगी में उथल-पुथल शुरू हो गई। उसे बिल्कुल अंदाज़ा नहीं था कि आगे क्या होने वाला है।
अंजलि एक छोटे से शहर से थी और मुंबई की एक IT कंपनी में नौकरी करती थी। कंपनी की तरफ़ से उसे एक फ्लैट मिला हुआ था, जहाँ वह अकेली रहती थी। उसे इस नौकरी में आए अभी सिर्फ़ एक महीना ही हुआ था। ऑफिस में अभी उसकी किसी से इतनी दोस्ती नहीं हुई थी कि वह किसी को अपने साथ फ्लैट में रख सके।
अंजलि की ज़िंदगी बहुत सादी थी। छोटे शहर से होने की वजह से उसके बहुत बड़े सपने भी नहीं थे। उसके परिवार में उसकी माँ थीं, जो अक्सर बीमार रहती थीं, और एक छोटी बहन थी जो पढ़ाई कर रही थी। पूरे परिवार की ज़िम्मेदारी अंजलि पर थी और वह उन्हें पूरी ईमानदारी से निभा रही थी।
चार साल पहले उसके पिता एक हादसे में गुजर गए थे। तभी से पूरे परिवार की ज़िम्मेदारी अंजलि के कंधों पर आ गई थी। इसलिए जब उसे नौकरी मिली और पोस्टिंग मुंबई में हुई, तो उसने कुछ और सोचे बिना अकेले ही अपने छोटे शहर से मुंबई आने का फैसला कर लिया।
अंजलि फ्लैट में अकेली रहती थी। उसकी दिनचर्या बहुत साधारण थी — सुबह ऑफिस जाना और शाम को समय पर घर लौट आना। अगर थोड़ा समय बचता तो वह संगीत सुन लेती, कभी कोई फिल्म देख लेती, या मन हुआ तो अकेले ही थोड़ी शॉपिंग करने निकल जाती।
लेकिन कुछ दिनों से उसके साथ कुछ बहुत अजीब हो रहा था। उसे महसूस होने लगा था कि कुछ भी सामान्य नहीं है। वह बहुत डर गई थी, क्योंकि जो कुछ हो रहा था वह बहुत डरावना था, लेकिन वह समझ नहीं पा रही थी कि आखिर क्या है।
ऑफिस में कोई इतना क़रीबी नहीं था कि वह अपनी निजी परेशानी किसी से साझा कर सके। और घर पर माँ और बहन को यह सब बताकर वह उन्हें परेशान भी नहीं करना चाहती थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे।
जब भी वह ऑफिस से फ्लैट लौटती, उसे लगता कि वह अकेली नहीं है। कोई न कोई हर समय उसके आसपास मौजूद है। उसे एक अजीब सा डर घेर लेता था। जब वह सोने के लिए बिस्तर पर जाती, तो लगता कि कोई पहले से ही वहाँ मौजूद है। किचन में पानी पीने जाती, तो लगता कि कोई उसका पीछा कर रहा है, जैसे किसी की आँखें हर पल उस पर टिकी हों।
वह न ठीक से सो पा रही थी और न ही ढंग से खाना खा पा रही थी। एक दिन तो हद हो गई, जब उसने अपने कानों में बिल्कुल साफ़ आवाज़ सुनी —
“अंजलि… हेल्प…”
कोई उसे पुकार रहा था।
इसके बाद अंजलि ने ऑफिस में ज़्यादा समय बिताना शुरू कर दिया। उसे घर जाने से डर लगने लगा। ऑफिस की छुट्टी साढ़े पाँच बजे होती थी, लेकिन वह दो घंटे और रुकने लगी। मगर कोई कितनी देर ऑफिस में रुक सकता था, आखिर घर तो जाना ही था। और वह एक लड़की थी, इसलिए रात में घर पर रहना ही ज़्यादा सुरक्षित था।
हर रोज़ घर जाते समय वह यही सोचकर डरती रहती थी कि आज न जाने क्या देखने को मिलेगा।
उस दिन भी वह बहुत डरी हुई थी। शाम सात बजे जैसे ही वह अपने फ्लैट पहुँची, उसने ताला खोला और दरवाज़ा खुला ही छोड़ दिया, लेकिन उसके पैर अंदर जाने को तैयार नहीं थे। वह कुछ देर बाहर ही खड़ी रही, फिर डरते-डरते फ्लैट के अंदर कदम रखा।
अंदर आते ही उसने पूरे फ्लैट की सारी लाइटें जला दीं। घबराई हुई अंजलि ने डरी हुई नज़रों से पूरे घर को देखा। कहीं कुछ है तो नहीं। सब तरफ़ देखने के बाद जब उसे कुछ महसूस नहीं हुआ, तो उसे थोड़ी राहत मिली।
उसने स्कूटी की चाबी टेबल पर रखी और नहाने के लिए वॉशरूम चली गई। नहाकर वह थोड़ी ताज़ा हुई। फिर उसने अपने लिए एक कप कॉफी बनाई और बेडरूम की ओर बढ़ी।
जैसे ही उसने बेडरूम में कदम रखा, उसके हाथ से कॉफी का मग छूट गया और उसके मुँह से ज़ोर की चीख निकल गई।
ड्रेसिंग टेबल के शीशे पर लाल रंग से लिखा था —
“अंजलि, मैं तुम्हें छोड़कर कहीं नहीं जाऊँगी। मैं यहीं हूँ, तुम्हारे साथ।”
जो थोड़ी देर पहले उसे सुकून मिला था, वह अचानक फिर से डर बनकर उसकी रग-रग में दौड़ गया। वह बाहर की ओर भागी, लेकिन फ्लैट का दरवाज़ा ज़ोर की आवाज़ के साथ बंद हो गया।
“कौन हो तुम? मुझसे क्या चाहती हो? मुझे क्यों परेशान कर रही हो? मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है?”
अंजलि डर के मारे चीखने लगी।
डर से बेबस होकर वह वहीं बैठ गई, घुटनों में सिर छिपाकर काँपने लगी। उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे।
तभी उसके सामने एक साया-सा दिखाई दिया। लाल आँखें थीं, लेकिन कोई चेहरा नहीं था। हल्का-सा धुआँ कमरे में फैलने लगा और फिर वह साया अंजलि के सामने आ गया।
एक आवाज़ आई —
“सुनो अंजलि, मैं तुम्हें कोई नुकसान नहीं पहुँचाऊँगी। मेरी बात सुनो।”
लेकिन अंजलि और ज़ोर से बोली —
“मुझे छोड़ दो। तुम कौन हो? मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है? प्लीज़ यहाँ से चली जाओ।”
इतना कहते ही कमरे में तेज़ हवा चलने लगी और उसके कानों में एक खतरनाक आवाज़ गूँजी —
“मैंने कहा है कि मैं तुम्हें नुकसान नहीं पहुँचाने आई हूँ। लेकिन अगर मुझे यहाँ से जाने को कहा, तो मैं तुम्हें और तुम्हारे पूरे परिवार को मार डालूँगी।”
अंजलि डर के मारे चिल्ला उठी —
“नहीं, प्लीज़ मेरी फैमिली को कुछ मत करना। बताओ तुम्हें क्या चाहिए। मैं सब करूँगी।”
ठंडी आवाज़ आई —
“मैं कुछ नहीं करूँगी, लेकिन तुम्हें मेरा काम पूरा करना होगा। अगर तुमने चालाकी की या बीच में भागने की कोशिश की, तो मैं तुम्हें और तुम्हारे पूरे परिवार को मार डालूँगी।”
उसकी आँखों में और ज़्यादा खून भरा हुआ दिख रहा था। धुएँ के बीच से चमकती लाल आँखें और गुस्से भरी आवाज़ अंजलि के कानों में गूँज रही थी।
फिर आवाज़ बोली —
“लेकिन अगर तुमने मेरी बात मान ली, तो मैं तुम्हें छोड़ दूँगी और तुम्हारी मदद भी करूँगी।”
डर और मजबूरी में अंजलि बोली —
“ठीक है… मैं समझ गई। जो तुम कहोगी, मैं करूँगी। बताओ मुझे क्या करना है।”
आवाज़ अचानक नरम हो गई —
“मेरा नाम सिया है। मेरा घर दिल्ली में था। तीन साल पहले मेरी मौत हो गई। आज तक कोई मुझे महसूस नहीं कर पाया, न मेरी आवाज़ सुन पाया। तुम पहली लड़की हो जो मुझे महसूस कर सकी। इसलिए मैं तुमसे मदद माँगने आई हूँ।”
इतना कहते ही सिया की आवाज़ सिसकियों में बदल गई। कमरे में उसके दर्द भरे रोने की आवाज़ गूँजने लगी। वह बहुत अशांत और अधूरी आत्मा थी।
अब अंजलि में थोड़ी हिम्मत आ चुकी थी। उसने अपने आँसू पोंछे और सिया की बात ध्यान से सुनने लगी। उसे यह जानकर हिम्मत मिली कि सिया उसे नुकसान नहीं पहुँचाएगी।
अंजलि के दिल में सिया के लिए सहानुभूति जाग गई। वह सोचने लगी कि आखिर ऐसा क्या हुआ था कि मरने के बाद भी उसकी आत्मा को शांति नहीं मिली।
अंजलि ने प्यार से कहा —
“सिया, प्लीज़ शांत हो जाओ। मैं हर तरह से तुम्हारे साथ हूँ। जो मुझसे हो पाएगा, मैं ज़रूर करूँगी। बस तुम शांत हो जाओ और मुझे सब बताओ।”
कुछ देर बाद सिया सच में शांत हो गई। शायद तीन साल से वह बहुत दर्द और घुटन झेल रही थी।
फिर सिया ने अपनी कहानी सुनानी शुरू की…
न जाने 3 साल से कितनी तकलीफ़ लिए वो इस धरती पर मरने के बाद भी घुटन का शिकार थी।
अंजलि, मैं भी तुम्हारी तरह ही एक अच्छी फैमिली से बिलॉन्ग करती हूँ। मेरे पापा-मम्मी दिल्ली में रहते हैं। मेरे पापा एक बड़े बिज़नेस मैन हैं और मेरी माँ एक फैशन डिज़ाइनर हैं। और एक छोटी बहन है मेरी। सब लोग मुझे बहुत प्यार करते थे और मैं भी सबको बेहद प्यार करती थी। अपने पापा को, मम्मी को और मेरी बहन रिया… वो तो मेरी जान है।
लेकिन… एक गलती कर बैठी मैं…
सिया की आवाज़ में अभी भी नमी सी घुली थी।
अंजलि पूरा ध्यान लगाकर उसे सुन रही थी।
मैंने प्यार करने की गलती कर ली थी… अंजलि…
इतना बोलकर सिया की आवाज़ बंद हो गई।
फिर क्या हुआ सिया? प्यार करना तो कोई गुनाह या जुर्म नहीं है। क्या हुआ फिर, बताओ प्लीज़ मुझे।
सिया ने आगे बोलना शुरू किया।
दिल्ली के एक कॉलेज से ग्रेजुएशन करने के बाद मैंने पार्ट-टाइम एक कॉल सेंटर में जॉब शुरू कर दी थी, जो मेरे पापा को बिल्कुल पसंद नहीं थी क्योंकि कॉल सेंटर में नाइट शिफ्ट भी करनी पड़ती है। फिर भी मैंने पापा को मना लिया और जॉब जॉइन कर ली। वहीं मेरी मुलाक़ात अमित से हुई थी।
अमित एक बहुत अच्छा और सुलझा हुआ लड़का था। वो हमेशा मेरी मदद करने के लिए तैयार रहता था। जब भी मेरी नाइट शिफ्ट होती, अमित मुझे खुद घर तक ड्रॉप करता था। वो हमेशा मेरी वजह से अपनी शिफ्ट से भी ज़्यादा मेहनत करता था।
कब अमित और मेरी दोस्ती इतनी गहरी हुई और प्यार में बदल गई, मुझे खुद नहीं पता चला। जब-जब मैं अमित के साथ होती थी, मुझे बहुत अच्छा लगता था। और वो भी हर तरह से, हर वक्त मेरे लिए तैयार रहता था।
हम दोनों ने शादी का फ़ैसला कर लिया था और मैं बहुत जल्दी मम्मी-पापा से उसे मिलवाने वाली थी।
पर शायद नसीब को ये मंज़ूर नहीं था।
मैंने सोचा कुछ और था, पर जो मेरे साथ हुआ वो बिल्कुल ही अलग था।
कॉल सेंटर में कुछ लोग ऐसे भी थे जो अमित से और मुझसे जलते थे। हमारी दोस्ती को बुरी नज़र से देखते थे और हमेशा मौक़े की तलाश में रहते थे। कभी बात-बे-बात वो लोग अमित से झगड़ पड़ते और उसे चोट पहुँचाने की कोशिश करते। पर अमित बहुत सुलझा हुआ लड़का था, वो हमेशा चीज़ों को इग्नोर कर दिया करता था।
लेकिन एक दिन हद हो गई।
जब नाइट शिफ्ट पूरी करके हम दोनों घर के लिए निकले, तो ऐसे ही कुछ लोगों ने हमें घेर लिया।
“ओह्हो… नाइट शिफ्ट तो हमारी भी हो गई है, चलो आज हम ड्रॉप कर देते हैं।”
वो बदतमीज़ी से एक-दूसरे को आँख मारते, गंदे इशारे करते हँसने लगे।
“सही कह रहा है यार, काम तो मेरे पास भी कुछ नहीं है, पिक-एंड-ड्रॉप सर्विस तो मैं भी दे सकता हूँ।”
विक्की, रोनी, राहुल… ये तीनों हमेशा ऐसे ही परेशान करते थे।
अमित ने उन्हें इग्नोर करके बाइक निकालने की कोशिश की, पर वो तीनों फिर से सामने आ गए। तो अमित से बर्दाश्त नहीं हुआ।
“देखो, तुम लोग हमें परेशान मत करो। हम तुम्हें कभी कुछ नहीं कहते। अपने काम से मतलब रखो, समझे? रास्ता छोड़ो हमारा।”
अमित ने थोड़े सख़्त लहजे में कहा।
“हाँ हाँ बेटा… ले जा, और हो सके तो इसकी चूड़ियाँ और दुपट्टा भी पहन ले। तेरे में तो अब वो मर्दों वाली बात रही नहीं। कर क्या लेगा वैसे भी तू।”
वो उसे उकसाते हुए हँस रहे थे।
अमित को गुस्सा आ गया। उसने बाइक साइड में लगाई और वो उनके सामने जाकर खड़ा हो गया।
“क्या है रोनी, क्यों परेशान कर रहा है? क्या प्रॉब्लम है? क्या है तुम लोगों की?”
अमित ने उसे हाथ से थोड़ा पीछे की तरफ़ धक्का दिया, तो वो तीनों भड़क ही पड़े। और तेज़ धार हथियार, जो वो पहले से लाए थे, हाथों में निकाल लिए।
वो चारों गुत्थम-गुत्था हो गए।
ये सब देखकर मैं बहुत डर गई थी। मैंने बहुत कोशिश की उन्हें रोकने की, पर वो नहीं रुके। तब मैंने पुलिस को फ़ोन कर दिया।
थोड़ी ही देर में पुलिस पहुँच गई और हम सब लोग पुलिस स्टेशन में थे। मेरी फैमिली को भी बुला लिया गया।
पापा को जब ये सब पता चला, वो बहुत नाराज़ हुए। उनकी एक रेप्युटेशन थी, समाज में एक मक़ाम था, उसी की वजह से वो बहुत गुस्से में थे।
पुलिस स्टेशन में तो उन्होंने मुझसे कुछ नहीं कहा, पर घर आकर उन्होंने मुझसे बहुत सख़्ती से कहा —
“सिया, मुझे तुमसे ये सब उम्मीद नहीं थी। अगर तुम इस तरह की हरकत करोगी, तो तुम्हारी छोटी बहन ये सब देखकर क्या सीखेगी? उसे कैसे संभालूँगा मैं?”
पापा की बातें सुनकर मेरा सिर शर्म से झुक गया।
मम्मी हमेशा की तरह चुप थीं। वो पापा के सामने नहीं बोलती थीं।
“बस बहुत हुआ। आज से बंद करो ये जॉब-वॉब। अनु… बस जल्दी कोई अच्छा लड़का देखकर इसकी शादी की तैयारी करो। और 2-3 महीने में ही ये सब हो जाना चाहिए। और आज के बाद ये अमित से मिलेगी नहीं। ये तुम्हारी ज़िम्मेदारी है। आज के बाद अगर तुम दोनों से मुझे कोई भी शिकायत मिली, तो मैं तुम दोनों से कभी बात नहीं करूँगा। और ये मेरा फ़ाइनल डिसीजन है, इसमें कोई बदलाव की गुंजाइश नहीं है।”
पापा अपना फ़ैसला सुना कर कमरे से बाहर चले गए और मैं वहीं खड़ी रह गई।
“मम्मी, अमित बहुत अच्छा लड़का है। आप पापा को समझाइए, मेरे साथ ऐसा मत करें।”
“सिया, तुम्हारे पापा बहुत गुस्से में हैं। तुम समझो। मैं इस वक्त उनसे कोई बात नहीं कर सकती। गलती भी तुम्हारी है। तुम्हारे पापा को कितनी शर्मिंदगी हुई है। एक छोटे से पुलिस स्टेशन में तुम्हारी वजह से उन्हें जाना पड़ा। उनकी एक इज़्ज़त है, एक स्टेटस है इस शहर में। और तुम चाहती हो मैं उल्टा तुम्हारे पापा को समझाऊँ? बस, वो जो कह गए हैं वही ठीक है।”
मम्मी ये बोलते हुए अपने कमरे की तरफ़ चली गईं।
और मैं… मैं दो दिन तक अपने कमरे में ही बंद रही। ना मैंने खाना खाया, ना मैं ठीक से सो पा रही थी।
अमित से उसके बाद मेरी एक ही बार बात हुई। उसकी हालत बहुत खराब थी। रोमी और उसके दोस्तों ने उसे बहुत मारा था। उसके सिर में भी चोट आई थी। लेकिन मम्मी-पापा की वजह से मैं उससे मिलने भी नहीं जा सकी।
इतना बोलकर सिया चुप हो गई।
अंजलि जैसे उसकी कहानी में डूब ही गई थी।
“फिर क्या हुआ सिया?”
अंजलि ने सिया को चुप देखकर कहा।
फिर जैसे पापा ने कहा था, तीन महीने के अंदर पापा ने मेरी शादी उनके एक दोस्त के बेटे से तय कर दी। और उन्होंने मुझसे एक बार पलटकर पूछा भी नहीं था कि मैं किस तकलीफ़ से गुजर रही हूँ। मम्मी ने भी मुझसे नहीं पूछा।
पर मुझे अपनी गलती का एहसास था। काश मैं पहले ही अमित को मम्मी-पापा से मिलवा देती, तो शायद ये सब न होता। जिस सिचुएशन में पापा अमित से मिले थे, ऐसे में तो कोई भी पेरेंट वही फ़ैसला करता जो उन्होंने किया था।
मैं चाहकर भी उसका फ़ेवर नहीं कर पाई। और पापा ने अमित को वॉर्निंग दी थी कि वो दुबारा मुझसे मिलने की कोशिश न करे।
मेरे पापा शहर के बड़े लोगों में गिने जाते थे और अमित एक ग़रीब घर से था। बेचारा क्या करता। उसने कभी मुझसे दोबारा कॉन्टैक्ट नहीं किया। उसकी कोई गलती नहीं थी इस सब में।
और बस फिर… वो दिन भी आ गया, जिस दिन का सबको इंतज़ार था।
सब बहुत खुश थे — पापा, मम्मी, रिया।
अगर कोई खुश नहीं था, तो बस मैं।
अगर किसी में ज़िंदगी नहीं थी, तो वो मैं थी। मेरे दिल में कोई फीलिंग नहीं थी, कोई एहसास ज़िंदा नहीं था मुझमें। बल्कि एक तड़प ने उसकी जगह ले ली थी। एक तकलीफ़ बस गई थी मुझमें।
फिर मैंने खुद को ही समझा लिया। मुझे पता था कुछ बदलने वाला नहीं है। अगर मेरे नसीब में ये लिखा है, तो यही ठीक है।
मैंने हालात के सामने सर झुका दिया था — अपनी मम्मी-पापा की इज़्ज़त की ख़ातिर।
लेकिन मेरी शादी से एक दिन पहले, जब मेरे हाथों में मेहंदी लगाई जाने वाली थी, सब मेहमान आ चुके थे। घर में सब तरफ़ खुशी का माहौल था।
तभी उस रात अमित का मैसेज आया मेरे सेल पर —
“सिया, मैं एक लास्ट बार तुमसे मिलना चाहता हूँ। प्लीज़, इतना तो कर सकती हो न मेरे लिए? उसके बाद कभी नहीं कहूँगा और दूर चला जाऊँगा तुम्हारी ज़िंदगी से।”
मैं उसका मैसेज पढ़कर बहुत रोई।
“मम्मी, एक लास्ट टाइम मैं अमित से मिलना चाहती हूँ। वो एक बार मुझसे मिलना चाहता है। देखिए, जिस तरह आपने और पापा ने चाहा, सब कुछ वैसे ही हो रहा है। मैंने आपके फ़ैसले को मान लिया है। आप मेरी एक बात मान लीजिए। मैं जैसे जाऊँगी, वैसे ही वापस आ जाऊँगी। बस थोड़ी देर की बात है।”
“सिया, तुम पागल हो गई हो? कल बारात आने वाली है और तुम आज उससे मिलने जाने की बात कर रही हो? तुम अपने पापा को जानती हो। अगर उन्हें ज़रा भी भनक लगी, तो मार डालेंगे उसे भी और तुम्हें भी। पागल मत बनो। सारा घर मेहमानों से भरा पड़ा है। क्यों तमाशा बनाने पर तुली हो?”
मम्मी ने कहा।
तो सिया जैसे रो पड़ी।
“मम्मी प्लीज़… मैंने हर बात मानी है आपकी। एक बात तो आप मेरी मान लें। मैं जिस तरह जाऊँगी, उसी तरह वापस आऊँगी। मेरा भरोसा कीजिए। अपनी बेटी की एक आख़िरी बात मान लीजिए। मैं आपकी इज़्ज़त पर आँच नहीं आने दूँगी। आपका सर नहीं झुकने दूँगी। यकीन करें मेरा।
अमित को तीन महीने से देखा तक नहीं मैंने। उसको बहुत चोट आई थी। वो कैसा है, ये तक नहीं पता मुझे। मम्मी, आपका बहुत एहसान होगा मुझ पर।”
सिया की आँखों में आँसू देखकर उसकी मम्मी का दिल पिघल गया। माँ थीं आख़िर, और एक औरत भी थीं। बेटी की तकलीफ़ समझ गईं।
“ठीक है सिया। मैं तुम्हें आधे घंटे का टाइम देती हूँ। किस तरह जाना है और वापस कैसे आना है, वो तुम जानो। पर ठीक आधे घंटे बाद तुम मुझे घर पर वापस चाहिए हो। कल तुम्हारी बारात आने वाली है। बहुत नाज़ुक टाइम है। मैं बहुत भरोसा करके तुम्हें भेज रही हूँ। मेरे भरोसे को मत तोड़ना। मेरी और अपनी छोटी बहन की इज़्ज़त भी तुम अपने साथ लेकर जाओगी। ये याद रखना।”
मम्मी ने मुझे इजाज़त दे दी थी।
और मैं खुशी के साथ अमित से मिलने के लिए जाने की तैयारी करने लगी। मैंने एक सादा-सा कॉटन का सूट पहना और अपने आप को एक बड़े से दुपट्टे में छुपा लिया, ताकि मुझे घर से जाते हुए कोई पहचान न ले।
और मैं अमित से मिलने के लिए घर से निकल आई।
इतना बोलकर सिया की आवाज़ खामोश हो गई।
अंजलि ने सर उठाया, तो एक खामोशी का एहसास हुआ। उसने चारों तरफ़ देखा, तो उसे सिया की मौजूदगी कहीं नज़र नहीं आई।
फिर अंजलि ने घड़ी की तरफ़ देखा — सुबह के 5 बज चुके थे।
अंजलि को एहसास ही नहीं हुआ कि सिया की बातें सुनते-सुनते इतना वक़्त गुजर गया।
वो बिस्तर पर आराम करने के इरादे से सोने के लिए लेट गई। सुबह होने में अभी कुछ वक़्त था। और थके होने के कारण, जागने के कारण, अंजलि जल्दी ही गहरी नींद में पहुँच गई।