Chandani - 2 in Hindi Adventure Stories by Raj Phulware books and stories PDF | चंदनी - भाग 2

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चंदनी - भाग 2


चंदनी भाग 2 

लेखक राज फुलवरे

चंदनवन के ऊपर उस दिन अजीब-सी बेचैनी थी।
हवा भारी थी, पत्तियाँ धीमे-धीमे काँप रहीं थीं, जैसे किसी बड़ी घटना से पहले प्रकृति स्वयं चेतावनी दे रही हो।
चंदनी उस सूखे नीले पड़े चंदन के पेड़ को छूकर आज भी दुखी थी।
पेड़ की मृत्यु ने उसे तोड़ दिया था—लेकिन आज वह पेड़ ही नहीं, शंपक भी उसके सामने खड़ा था।

शंपक ने गंभीर आवाज़ में कहा—

“चंदनी… तुमसे एक बात छुपी हुई है। अब मैं और छुपा नहीं सकता।”

चंदनी ने सिर झुकाए हुए कहा—

“जो भी कहना है, सच में कहना। अब मुझमें और झूठ सुनने की ताकत नहीं है।”

शंपक ने गहरी साँस ली।
उसकी आँखें पीली चमकने लगीं।

“मुझे इस चंदनवन में एक कारण से भेजा गया था।”

चंदनी ने धीरे से पूछा—

“कौन-सा कारण?”

शंपक ने दर्द भरी आवाज में कहा—

“बिल्डरों का एक बड़ा गिरोह… उन्होंने एक तांत्रिक को हायर किया।”

चंदनी ने तुर्श स्वर में पूछा—

“तांत्रिक? किसलिए?”

“तुम्हें हटाने के लिए। तुम्हें खत्म करने के लिए।"

चंदनी की सांस रुक गई।

“क्या? मुझे खत्म? क्यों?”

“क्योंकि यह चंदनवन उनके लालच के रास्ते में दीवार बन रहा था। यहाँ जमीन करोड़ों में बिक सकती थी। और तुम… रक्षिणी, जो किसी को एक पत्ता भी टूटने नहीं देतीं।”

चंदनी की आँखों में क्रोध की लपटें जलने लगीं।

“तो उन्होंने तुम्हें भेजा था? मुझे मारने?”

शंपक घुटनों पर बैठ गया।

“हाँ… लेकिन मेरे पास कोई विकल्प नहीं था। वह तांत्रिक कई सालों से मुझे बंद करके रखता था। मुझे आज़ादी का लालच देकर उसने कहा—
‘चंदनी को हटाओ… चंदनवन खाली करो… और तुम मुक्त हो जाओगे।’
मैं मजबूर था चंदनी… मेरी कोई मर्ज़ी नहीं थी।”

आँसू चंदनी की आँखों से गिर पड़े।

लेकिन शंपक ने आगे कहा—

“पर जैसे ही मैंने तुम्हें देखा… तुम्हारा स्वभाव, तुम्हारी दया, तुम्हारा पेड़ों से प्रेम…
सबने मुझे बदल दिया।
मैंने खुद से वादा किया—
मैं तुम्हें कभी चोट नहीं पहुँचाऊँगा।
किसी भी कीमत पर नहीं।”

चंदनी ने गहरी, दुखी सांस ली।

“इतना बड़ा छल… और तुमने मुझे बताया क्यों नहीं?”

“क्योंकि मैं डरता था… कि तुम्हारे लिए यह धोखा होगा।
तुम मुझसे नफरत करोगी।
और मैं… मैं तुम्हें खोना नहीं चाहता था।”

चंदनी ने काँपते हुए कहा—

“लेकिन इस पेड़ की मौत… यह सब इसी धोखे का नतीजा है।”

शंपक ने ज़मीन पर हाथ रखकर कहा—

“अगर मेरी वजह से कोई पेड़ मर गया,
तो अब मेरी वजह से कोई गिरेगा नहीं।
शपथ लेता हूँ।”

लंबी चुप्पी रही।
चंदनी ने आखिर पूछा—

“अब आगे क्या?”

शंपक ने गंभीरता से कहा—

“अब आगे… तुम्हारी सुनूंगा।
तुम जो कहो… मैं वही करूँगा।”


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योजना — पापियों को जंगल में बुलाना

चंदनी लंबे समय तक चुप रही।
फिर धीरे से बोली—

“बलिदान देना मुझे पसंद नहीं।
पर यह लोग केवल लालची नहीं… पापी हैं।
धरती को खा रहे हैं।
जंगलों को नष्ट कर रहे हैं।
हवा को, पानी को… सब को जहर कर रहे हैं।”

उसकी आवाज़ कठोर थी।

“इस बार मैं दया नहीं करूँगी।
क्योंकि उनकी दया दुनिया पर भारी पड़ेगी।”

शंपक ने कहा—

“तो आदेश दो, चंदनी।”

चंदनी गुफा के बाहर खड़ी हुई और बोली—

“तुम बहाने से उन बिल्डरों और तांत्रिक को यहाँ बुलाओ।
उन्हें बताओ—
‘काम हो गया है’।
वे लालच में यहाँ आएँगे।
और मैं उन्हें उसी जमीन में मिलाकर खत्म कर दूंगी…
जिस जमीन को वह बेचकर शहर बनाना चाहते हैं।”

शंपक ने हाँ में सिर हिलाया।

“मैं करूँगा।”

चंदनी ने चेतावनी दी—

“लेकिन याद रखना… तांत्रिक बहुत चालाक है।
वह तुम्हारी आत्मा को फिर से पकड़ सकता है।”

शंपक ने दर्द भरी मुस्कान दी।

“अब मेरा शरीर तुम्हारा है… मेरी आत्मा भी।
वह चाहे जितना तंत्र मारे…
मेरी निष्ठा नहीं बदल सकती।”


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तांत्रिक और बिल्डरों को जाल में फंसाना

अगले ही दिन शंपक शहर पहुँचा।
एक गुप्त अड्डे में चार बिल्डर और वह काला–कपड़ा पहने तांत्रिक बैठे थे।

तांत्रिक ने आँखें खोलकर पूछा—

“शेषनाग… तू आ गया?”

शंपक ने एक अभिनेता की तरह मुस्कुराकर कहा—

“हाँ… काम हो गया।
चंदनी खत्म।”

बिल्डरों के चेहरे लालच से चमक उठे।

“क्या सच में?”

“हाँ। चंदनवन अब खाली है।
आओ… तुम लोग खुद देख लो।”

बिल्डरों ने तुरंत कहा—

“चलो! एक-एक पेड़ लाखों का है! आज ही काम शुरू कर देंगे!”

तांत्रिक ने शंकालु आवाज़ में पूछा—

“और रक्षिणी का शरीर?”

शंपक ने झूठ बोला—

“पेड़ों के भीतर समा गया।”

तांत्रिक हँस पड़ा—

“बहुत खूब मेरे नाग… मैं तुझे मुक्त करता हूँ।
अब तू आज़ाद है।”

शंपक ने मन ही मन सोचा—

“असली आज़ादी तो चंदनी के पास है…
जिसके लिए मैं मर भी सकता हूँ।”


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क्लाइमेक्स — चंदनवन का युद्ध

जैसे ही बिल्डर और तांत्रिक चंदनवन में दाखिल हुए,
पेड़ों ने अचानक तेज हवा में हिलना शुरू किया।

चंदनी गुफा से बाहर आई।
उसके शरीर से सुनहरी आभा निकल रही थी।
आसमान बादलों से भर गया।

बिल्डरों ने डरकर कहा—

“ये… ये वही रक्षिणी है! तूने कहा था ये मर गई!”

शंपक ने कहा—

“मर नहीं सकती…
क्योंकि वह जंगल की सांस है।”

तांत्रिक चीखा—

“धोखा! शेषनाग ने धोखा दिया!”

चंदनी ने हाथ उठाकर कहा—

“अब बहुत हो चुका।
तुम लोगों ने धरती को नष्ट करने की कसम ली है।
अब धरती तुम्हें नष्ट करेगी।”

बिल्डरों ने भागने की कोशिश की।

पर पेड़ों की जड़ें ज़मीन से बाहर निकलकर उनके पैरों को पकड़ने लगीं।

एक बिल्डर चिल्लाया—

“छोड़ो! मुझे छोड़ो! हम नहीं मरना चाहते!”

चंदनी ने कठोर स्वर में कहा—

“जब तुमने पेड़ों को मारा,
तब क्या तुमने पूछा था कि वो मरना चाहते हैं?”

जड़ें उन्हें जमीन में खींचने लगीं।

तांत्रिक ने मंत्र फेंका, लेकिन शंपक ने अपना विशाल नाग–रूप धारण कर लिया।
नीली चमक वाला उसका शरीर देखते ही देखते विशालकाय नाग में बदल गया।

तांत्रिक ने कहा—

“नाग! तू फिर मेरे खिलाफ?”

शंपक फुफकारा—

“मैं पहले किसी का दास था…
अब केवल चंदनी का रक्षक हूँ।”

दोनों के बीच शक्तियों का भयानक संघर्ष हुआ।

दूसरी ओर, चंदनी ने पूरे चंदनवन को जीवित कर दिया।
पेड़, जड़ें, पत्तियाँ—सब जैसे जीवित योद्धा बन गए।

एक-एक कर बिल्डर मिट्टी में समा गए।

तांत्रिक ने आखिरी कोशिश में मंत्र फेंका,
पर चंदनी ने कहा—

“इस जंगल में किसी की काली विद्या नहीं चल सकती।”

उसने हाथ फैलाया—
और तांत्रिक का पूरा शरीर धूल में बदल गया।

जंगल शांत हो गया।


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चंदनी और शंपक — जंगल की रानी और नागराज

शंपक वापस मानव रूप में आया।
उसके शरीर पर घाव थे।
चंदनी दौड़कर उसके पास आई।

“तुम ठीक हो?”

शंपक मुस्कुराया—

“अगर तुम पास हो… तो हमेशा ठीक हूँ।”

चंदनी ने उसका हाथ पकड़ लिया।

“तुमने आज मेरी दुनिया बचाई है।”

शंपक धीरे से बोला—

“नहीं… मैंने अपने प्यार को बचाया है।”

चंदनी ने उसका माथा छुआ।
उसकी शक्ति से शंपक का पूरा शरीर ठीक हो गया।

फिर चंदनी ने कहा—

“आज से तुम भी इस चंदनवन के रक्षक हो।
मेरे साथ… मेरे बराबर।”

शंपक ने भावुक होकर कहा—

“तुम्हारे साथ रहना ही मेरी मुक्ति है।”

उस दिन से—

चंदनी और शंपक दोनों
इस चंदनवन के
रानी और नागराज बन गए।

वे पेड़ों की रक्षा करते हैं,
जंगल की खुशबू बढ़ाते हैं,
और पापियों को सबक सिखाते हैं।

चंदनवन अब पहले से भी ज्यादा सुंदर था।
क्योंकि अब उसे दो रक्षक मिले थे—
एक सुगंध की देवी,
और एक शेषनाग का राजा।