उस मौलवी को दफनाने के बाद एक शख्स उसकी तलाश में गाँव कि तरफ आया, और जब उसने गाँव के लोगों को उसका बड़ा भाई कहते हुए मुखातिब किया तो वे लोग उसे सरपंच के पास ले गए। जब सरपंच ने सारी आपबीती बताई तो वह फूट-फूट कर रोने लगा और कहने लगा—
"मेरा भाई ऐसा कैसे कर सकता है? नहीं, वह ये सब नहीं कर सकता.. उसे मैं जानता हूँ, वह ऐसा कुछ भी नहीं कर सकता.. अम्मी-अब्बू के इंतेकाल के बाद मैंने उसकी परवरिश कि है। जरूर आप को कुछ ग़लत फहमी हुई है"
वह ये सब अभी कह ही रहे थे के तभी कोई पीछे जवाब देते हुए कहता है—
"ये सच है, और ग़लत फहमी की कोई गुंजाइश नहीं.."
तभी सरपंच ने उस शख्स से मुखातिब होते हुए कहा—
"ये वही आमिल हैं जिन्होंने इस हकीकत से पर्दा हटाया है, अगर ये न होते तो अब तक बहुत से लोगों को आपका भाई नुकसान पहुँचा चुका होता.."
"आमिल साहब ने उस शख्स से नरम लहजे में जवाब देते हुए कहा—
"मैं माज़रत चाहूँगा लेकिन आपका भाई एक ग़ैर अमल कर रहा था जिसमें वह नाकामयाब रहा जिसकी वजह से उसने अपनी जान गवां दी, आपके भाई ने चार मासूम बच्चियों की जान ले ली इस ग़ैर अमल की वजह से.. आप बुरा न माने तो मैं आपसे आपके भाई "जलील" के बारे में कुछ सवाल पूछना चाहता हूँ। क्या आप हमे उसके बारे में कुछ ऐसी मालूमात दे सकते हैं? जो आपको उसमें बहुत ही अलग लगा हो.."
"उस शख्स ने बहुत ही मायूसी से कहा—
"हाँ एक चीज थी उसमें, उसे इल्म हासिल करने का बहुत शोक था। बहुत कम बोलता था लेकिन मुझे अंदाजा नहीं था के वह अपने दीन से बगावत करके शैतान की पैरवी करेगा.."
"शैतान इंसान का खुला दुश्मन है और वह हमेशा उन ही लोगों पर हावी होता है जो अपने इल्म कि हिफाजत नहीं करते.."
"आप से दरखास्त करता हूँ आप मुझे उसके कब्र पर ले चलें.."
सरपंच ने एक शख्स से मुखातिब होते हुए कहा—
"इन्हे कब्रिस्तान में ले जाएँ और कब्र दिखा दें.."
फिर वह शख्स अपने भाई कि कब्र कि ज़ियारत के लिए चला गया। आमिल साहब ने सरपंच से मुखातिब होते हुए कहा—
"जी अब मुझे इजाज़त दें रवानगी का कुछ रुके हुए कामों को अंजाम देना है।"
"जी बिल्कुल"
"मैंने सब ग़ैर अमल कि चीजें अपने साथ रख ली हैं और मदरसे को भी शैतान के वसवसे से पाक कर दिया है, आप उस मदरसे में फिर से बच्चों कि तालीम शुरू करवा सकते हैं।"
"जी शुक्रिया आपने हमपे बहुत बड़ा एहसान किया है।"
"एहसान तो उस खुदा का है जिसने मुझे इस काबिल बनाया, अब मैं इजाज़त चाहूँगा।"
"अल्लाह हाफ़िज़"
और इतना कहते हुए आमिल साहब वहाँ से अपने गाँव खिरमा की ओर रवाना हो गए। दूसरी ओर उस मौलवी का भाई कब्रिस्तान में पहुंचते ही कब्र पर मिट्टी डाल ही रहा था के तभी उसे कब्र के अंदर से एक आवाज़ आने लगी—
"भाईजान.. मैं जिंदा हूँ, भाईजान.. मैं जिंदा हूँ, भाईजान.. मैं जिंदा हूँ"
ये आवाज़ें मुसलसल आ रही थी, इसको सुनते ही उस शख्स के ऊपर एक खौफ़ तारी हो गया। और वह वहीं बेहोश हो गया।"
जब बाहर खड़े शख्स ने उसे वहाँ बेहोश होते हुए देखा तो भागकर उसकी तरफ गया और वह उसे लेकर कब्रिस्तान से बाहर आ गया और उसे एक जगह पर लेटाकर चेहरे पर पानी छिड़कने लगा कुछ ही देर हुए थे के तभी वह होश में आ गया।
"आप बेहोश हो गए थे। मैं आपको कब्रिस्तान से बाहर लेकर आया हूँ। हमें जल्द से जल्द यहाँ से जाना होगा।"
और इतनी बात होते ही वे लोग वहाँ से चले गए..
उधर आमिल साहब अपने ऑफिस में तन्हा उन टोटकों कि जांच कर रहे थे उनमें उन्हे एक फारसी में लिखी हुई किताब मिली, जिसमें शैतान की एक खौफ़नाक तस्वीर बनी हुई थी और उसके अमल के मुताल्लिक पोशीदा बातें लिखी हुई थी। उन्होंने जब उस किताब का जाएजा लिया तो उनपर एक खौफ तारी हो गया उन्होंने आज तक ऐसी शैतानी किताब नहीं देखी थी जिसमें काले अमल के तरीके फ़ारसी भाषा में लिखे हुए थे। जैसे ही वो पन्ने पलटते गए उनपर एक रौब तारी हो गया।
अचानक उन्हें लगा की कोई उनके कानों में कुछ फुसफुसा रहा है वह जैसे ही पलटे तो उन्हें इर्द–गिर्द कोई भी नज़र नहीं आया। फिर उन्होंने उस किताब को एक महफूज़ जगह में रख दिया।
अभी कुछ ही लम्हे गुजरे थे के तभी वही नकाबपोश औरत उनके सामने आकर खड़ी हुई, जैसे ही उनकी नज़र उस नकाबपोश औरत पर पड़ी वो हक्का–बक्का रह गए। अब उन्हें ये एहसास हो गया था कि ये वही शैतान है जिसे उन्होंने मदरसे में उस मौलवी के मौत के बाद देखा था।
आमिल साहब ने तुरंत ही अरबी आयात दोहराने शुरू कर दिए लेकिन वह नकाबपोश औरत अपनी ख़ामोशी और ठहरी हुई वजूद से एक ऐसा खौफ तारी कर रही थी मानो जैसे उन आयात से उसे कुछ फ़र्क नहीं पड़ रहा हो। क्योंकि आमिल साहब जो भी पढ़ रहे थे वह उनके ज़बान से बार अक्स निकल रहे थे।
अचानक आमिल की सांसे कम होने लगी और वह इधर–उधर सांस लेने के लिए गिरने–पड़ने लगे अब उनकी आंखों के सामने एक ही हकीक़त थी मौत, वह अपनी धुंधली नज़र से बस उसी शैतान को देख रहे थे। और कुछ ही लम्हों के बाद उन्होंने दम तोड़ दिया।
तक़रीबन दो घंटे बीतने के बाद उनके खादिम ने उन्हें आवाज़ लगाते हुए दरवाज़ा खोलने को कहा तो अंदर से कोई भी जवाब नहीं मिला फिर उसने दूसरे खादिमों को इतलह की वे लोग फ़ौरन वहाँ आ पहुंचें और काफ़ी देर तक आवाज़ देने के बाद जब उन्हें कोई जवाब नहीं मिला तो उन्होंने उस दरवाज़े को तोड़ने का फैसला किया, जैसे ही उन्होंने उस दरवाज़े को खोला वहाँ पर पड़ी आमिल की लाश को देखकर सब लोग चीखों–पुकार करने लगे।
तभी एक–एक करके मदरसे के सब लोग वहाँ इकट्ठा हो गए, आमिल साहब कि मौत का मंज़र देख सब लोगों के अंदर एक खौफ तारी हो गया। वे इस मंजर को अपनी आंखों से देख तो रहे थे लेकिन यक़ीन करना उनके लिए बहुत ही मुश्किल था। सब कुछ इतना अचानक हुआ जिसे कोई भी समझ नहीं पा रहा था। मानो जैसे ये कोई इत्तेफाक हो..
जब ये खबर राफिया के घर वालों तक पहुँची तो उनपे खौफ के बादल मंडराने लगे और फिर उन्होंने फैसला किया की राफिया को उसकी नानी के यहाँ भेज दिया जाए, और वह अपनी मुकम्मल तालीमात वहीं हासिल करें, आख़िर आमिल की मौत के बाद राफिया की ज़िंदगी में क्या आगे होने वाला था? जानने के लिए सुनिए सिहर का एक अगला एपिसोड!