Human rights awareness in Hindi Anything by Rajesh Maheshwari books and stories PDF | मानवाधिकार जागरूकता

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मानवाधिकार जागरूकता

मानवाधिकार जागरूकता
प्रत्येक व्यक्ति को मानव की भाँति जीवन जीने, अपने व्यक्तित्व का विकास करने तथा अपनी सामाजिक, सांस्कृतिक, शैक्षिक व आर्थिक आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए कुछ नैसर्गिक अधिकारों का होना आवश्यक होता है, जिसको मानव अधिकार कहते हैं। ये अधिकार सभी मनुष्यों को जाति प्रजाति, वर्ग व धर्म के आधार पर भेदभाव किये बिना समान रूप से मिलना चाहिए। नागरिकों को इन अधिकारों से वंचित करना मानवाधिकारों का उल्लघंन कहा जाता है। मानव अधिकारों के संरक्षण हेतु संयुक्त राष्ट्र संघ ने मानवाधिकारों का सार्वभौमिक घोषणा पत्र जारी किया है। इस चार्टर के अनुबंधों को सभी सदस्य देशों को मानना जरूरी होता है। इसके साथ ही कई राष्ट्रों ने अपने नागरिकों के मानवाधिकारों की रक्षा के लिए अनेक विधिक प्रावधान लागू किया है तथा आयोगों व संस्थाओं की स्थापना की है। मानव अधिकारों से संबन्धित इन कानूनी उपबंधों, प्रावधानों, आयोगों व संस्थाओं का ज्ञान तथा इन अधिकारों के हनन के प्रति अपना प्रतिरोध मानवाधिकार जागरूकता कहलाता है।
मनुष्य प्रारम्भ से ही विवेकशील प्राणी रहा है। उसने बुद्धि के प्रयोग द्वारा इस जगत के अन्य प्राणियों पर अपना आधिपत्य स्थापित किया हैं। प्रकारांतर में उसने अपने से भिन्न मानव समुदायों, वर्गों व प्रजातियों पर भी आधिपत्य स्थापित कर, उनकों अपने मानव अधिकारों से वंचित कर अपने निहित स्वार्थों की पूर्ति करता रहा है। मानव अधिकार किसी भी मनुष्य के वह अधिकार होते हैं जिसके बिना वह एक मानव की भाँति जीवन व्यतीत नहीं कर सकता है। प्रत्येक राष्ट्र व समाज में अनेक प्रकार के वर्ग, प्रजाति, धार्मिक व सामाजिक समूह होते हैं। मनुष्य में नस्ल जाति, वर्ग, लिंग आदि के आधर पर भेदभाव करना, असमानता का व्यवहार करना या उनके विकास के अवसरों को कुंद करना मानव अधिकारों के वंचन की परिस्थिति उत्पन्न करते हैं। इन मानवाधिकारों की रक्षा व संरक्षण के लिए कई अंतरराष्ट्रीय संथाओं द्वारा अनेक प्रकार के प्रावधान किए गए हैं। हमारे देश के संविधान ने भी छः प्रकार के मूल अधिकार अपने नागरिकों को प्रदान किये है। इन अधिकारों के संरक्षक के रूप में उच्च तथा उच्चतम न्यायालय विद्यमान है। मानव अधिकारों की स्थिति में सुधार लाने, उनके अपवंचन को रोकने तथा मानवाधिकार जागरूकता के प्रसार हेतु सन 1993 में भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की स्थापना की गयी। मानव अधिकारों का ज्ञान व जागरूकता को बढ़ाने में शिक्षा की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
विश्व के सम्पूर्ण प्राणी जीव में केवल मनुष्य ही एक मात्र ऐसा विशिष्ट जीव है जिसने विविध प्रकार के विकास व प्रगति की दिशा में अभूतपूर्व उन्नति की है। मनुष्य के इस अभूतपूर्व विकास प्रक्रिया को वर्तमान रूप प्रदान करने में शिक्षा का सर्वाधिक योगदान है। मानव शिशु को एक सामाजिक प्राणी बनाने मंे शिक्षा की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। व्यक्तित्व के विकास में शिक्षा का महत्वपूर्ण योगदान होता है। शिक्षा के माध्यम से ही व्यक्ति अपनी अपरिपक्वता को परिपक्वता में रूपान्तरित करता है। शिक्षा की प्रक्रिया के द्वारा ही व्यक्ति का शारीरिक, बौद्धिक, सामाजिक, संवेगात्मक एवं सर्वांगीण विकास होता है। चूँकि मनुष्य को जन्म से ही कुछ अधिकार प्राप्त होते हैं, अतः शिक्षा इन मानवाधिकारों के प्रति मनुष्य को सजग व सतर्क बनाती है। मानव अधिकार किसी देश या राज्य की आन्तरिक या घरेलू अधिकारिता के अन्तर्गत नहीं अपितु विश्व मानवता के पक्ष में उसके संरक्षण एवं संवर्द्धन पर बल देते हैं। मानवाधिकार की उन्नति के मार्ग में रूकावट का एक महत्वपूर्ण कारण यह भी है कि अधिकांश लोग अपने मानवाधिकारों से अंजान हैं। अतः यह अज्ञानता उन्हें उनके अधिकारों से वंचित करती है। व्यापक अर्थों में शिक्षा किसी समाज में सदैव चलने वाली वह प्रक्रिया है, जिसके द्वारा मनुष्य की जन्मजात शक्तियों का विकास होता है एवं उसके ज्ञान व कौशल में वृद्धि एवं व्यवहार में परिवर्तन किया जा सकता है। अतः जीवन को सुचारू रूप से गतिमान रखने के लिए अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता बहुत ही आवश्यक है। यदि हम अपने मानव अधिकारों के प्रति जागरूक नहीं रहेंगे तो शिक्षित होने का कोई अर्थ नहीं ।
विश्व के विकसित एवं सभ्य राष्ट्रों की आधारशिला मानव अधिकार है। इन अधिकारों व अभाव में मानव अपना स्वतंत्र चिन्तन नहीं कर सकता और बिना स्वतंत्र चिन्तन के मानव कल्याणकारी योजनाएँ नहीं बना सकता। विश्व के प्रत्येक मानव की यह प्रबल आकांक्षा होती है कि उसको मानवाधिकार प्राप्त हो। इस हेतु जनजागृति फैलाने के लिए प्रतिवर्ष 10 दिसम्बर को अन्तर्राष्ट्रीय मानव अधिकार दिवस के रूप में विश्व भर में मनाया जाता है। मानव अधिकार शब्द से ही सुस्पष्टता है कि मानव होने के कारण प्राप्त अधिकार जो किसी भी व्यक्ति के जीवन जीने, सर्वांगीण व अन्तर्निहित उन्नति के लिए आवश्यक है। दूसरे शब्दों में -सम्मानपूर्वक जीवन जीने के अधिकार, मानव के लिए वे स्वीकृत सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक व पर्यावरणीय हालात, जो मनुष्य के विकास के लिए आवश्यक है। इन अधिकारों को प्राप्त एवं उपयोग करने हेतु विशेष योग्यता, विशेषता या परिस्थितियों की आश्यकता नहीं होती है। मानव में अन्तर्निहित क्षमताओं-योग्यताओं को विकसित करने योग्य परिस्थितियों की उपलब्धि ही मानव अधिकार है।
प्राचीन काल में कई निरंकुश राजतंत्र थे जो निरीह जनता का उत्पीड़न कर अपनी शक्ति का प्रदर्शन करते थें। कमजोर, क्षीण, शंातिप्रिय और चुपचाप रहने वाले लोगों ने मृत्यु, अभाव, यातना व बर्बरता तथा बर्बादी के रूप में अपने अधिकारों को इन निरंकुश राजतंत्रों द्वारा कुचलते देखा और खून का घूँट पीकर रह गए लेकिन ऐसा कब तक चलता? आखिरकार विद्रोह होने लगे। निरंकुश राजतंत्रों की गद्दी खिसकने लगी उनके दंभ चूर होने लगे तो मजबूरी में उन्हें लोगों को कुछ अधिकार देने पड़ें। ऐसे अधिकारों के प्रारम्भिक साक्ष्य 1215 ई0 में महत्वपूर्ण दस्तावेज, ‘‘मैग्नाकार्टा’’ अधिकार पत्र था जिसमें सर्वप्रथम मानवाधिकारों से सम्बन्धित उपबन्ध किये गये थे। यह मैग्नाकार्टा चार्टर विश्व इतिहास में मानवाधिकार के सम्बन्ध में प्रथम चार्टर कहा जा सकता है। इसी क्रम में 1689 ई0 में इंग्लैण्ड में ‘‘बिल ऑफ राइट्स’’ के जरिए भी कानून की दृष्टि में समानता निर्वाचन का अधिकार, प्रजातांत्रिक मूल्यों की घोषणा की गई तथा इंग्लैण्ड में ही ‘‘बन्दी प्रत्यक्षीकरण अधिनियम - 1679’’ में भी मानव को न्याय प्रदान करने के लिए निर्मित किया गया।
टामस पैनी सर्वप्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने समाज में व्याप्त बैचेनी व अराजकता के कारणों का विश्लेषण कर अपनी ‘‘मानव अधिकार’’ नामक पुस्तक लिखी। उपरोक्त दार्शनिकों द्वारा फैलायी गयी जागरूकता का ही परिणाम था सन् 1776 का उत्तरी अमेरिका का स्वतन्त्रता संग्राम तथा फ्रांसीसी क्रांति (1789-1793)। इसकें बाद 1917 ई0 की रूसी क्रान्ति जिसमें ‘‘मार्क्स’’ के विचारों ने जनता को जागरूक किया था। ये सभी क्रान्तियाँ जनसाधारण के मानवीय अधिकारों के उल्लंघन का ही परिणाम थी जिसके उपरांत मानव के अधिकारों की रक्षा के लिए अनेक प्रावधान किये गये। सर्वप्रथम प्रथम अमेरिकन राष्ट्रपति रूजवेल्ट ने 16 जनवरी 1941 में मानवाधिकार शब्द का प्रयोग किया जिसमें उन्होंने 4 मूलभूत स्वतंत्रताओं पर आधारित विश्व घोषण की थी- वाक स्वतंत्रता, धर्म स्वतंत्रता, भय स्वतंत्रता गरीबी से मुक्ति। मानवाधिकारों के हनन की इन सभी घटनाओं ने ही ‘‘संयुक्त राष्ट्र संघ’’ की स्थापना के विचारों को जन्म दिया। और इसी संयुक्त राष्ट्र संघ नेतृत्व में 25 अप्रैल जिसमें मानवाधिकारों को मान्यता प्रदान करते हुए अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर एक मानवाधिकार बिल तैयार किया गया तथा सभी आजाद देशों ने इसे अपना समर्थन प्रदान किया।
1946 ई0 में अन्तर्राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की स्थापना की गई। तथा 10 दिसम्बर 1948 ई0 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में विचार विमर्श कर ‘अन्तर्राष्ट्रीय मानवाधिकार बिल’ को स्वीकृति प्रदान की गयी तथा संयुक्त राष्ट्र ने प्रस्ताव संख्या 270 (3) निर्गत करते हुए मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा की जिसमें मानवाधिकारों को 30 अनुच्छेदों में बांटकर वर्णित किया गया है। 10 दिसम्बर 1948 की सार्वभौमिक घोषणा के कारण ही प्रतिवर्ष 10 दिसम्बर को ‘विश्व मानवाधिकार दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। वर्तमान में 53 देश संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग के सदस्य हैं। भारत ने भी संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार चार्टर पर 10 अप्रैल 1979 को हस्ताक्षर करके मानवाधिकारों को स्वीकृति प्रदान की। तथा 1993 में मानवाधिकार अधिनियम को पारित करते हुए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का गठन किया जिसने देश के मानवाधिकारों के संरक्षण के लिए व्यापक प्रयास किये हैं तथा मानवाधिकारों के हनन को रोकने के लिए कड़े कदम उठाए हैं। संयुक्त राष्ट्र द्वारा 10 दिसम्बर 1948 को की गयी सार्वभौमिक घोषणा को आजादी, न्याय, शांति तथा लोक तांत्रिक अधिकार व समानता की आधार शिला माना गया है।
मानवाधिकार सभी व्यक्तियों के लिए होते है चाहे उनका मूल वंश, धर्म, लिंग तथा राष्ट्रीयता कुछ भी हो। ये अधिकार सभी व्यक्तियों के लिए आवश्यक है क्योंकि ये उनकी गरिमा तथा स्वतं़त्रता के अनुरूप है तथा शारीरिक, नैतिक, सामाजिक और भौतिक कल्याण के लिए सहायक होते है तथा भौतिक व नैतिक विकास के लिए उपर्युक्त स्थिति प्रदान करते हैं। इन अधिकारों के बिना सामान्यतः कोई भी व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का पूर्ण विकास नही कर सकता। मानव जाति के लिए मानव अधिकार का अत्यंत महत्व होने के कारण मानव अधिकार को कभी-कभी मूल अधिकार भी कहा जाता है। मानव अधिकार को समाज में व्यक्तियों के व्यक्तित्व के चहुमूखी विकास के लिए आवश्यक होने के कारण निश्चित रूप से संरक्षित किया जाना चाहिए और सभी व्यक्तियों को उपलब्ध कराया जाना चाहिए।