Amrit Kanya's new love story in Hindi Love Stories by madhvi books and stories PDF | अमृत कन्या प्यार की नयी कहानी

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अमृत कन्या प्यार की नयी कहानी

स्वर्ण लोक.
जैसा की नाम में हीं स्वर्ण है पर स्वर्ण नहीं सुनहरी आभा है यहां. जहाँ सब तरफ खुशियों का सराबोर है. सात्विक ऊर्जा पुरे स्वर्ण लोक को शोभाएमान बनाती है. रिषि मुनि इसी सात्विक ऊर्जा के कारण यहां पर अपनी तपस्या करते थे. लेकिन अब यहां सब वीरान हो गया. खुशियों ने जैसे यहां से मुँह मोड लिया रिषियों ने अपनी तपो भूमि छोड दी. अमृत कन्या के स्वर्ण लोक निष्कान के बाद यहां की ऊर्जा खत्म हो गई.
मैं तुम्हे स्वर्ण लोक से निष्कासित करती हूँ.
एक काली परछाई दूर खडी स्वर्ण लोक में हो रही उथल पुथल को देखकर हॅसते हुए कहती है. जैसा मैंने चाहा था वैसा हीं हुआ. अब अमृत कन्या मेरी ें मुट्ठी में होंगी. बहुत जल्द पूरी दुनिया में मेरा साम्राज्य होगा. वो परछाई हॅसते हुए वहाँ से चली गई.
बीस साल बाद.
सुतल लोक.
राजा सुकेतु का महल.
सब तरफ भगदड मची हुई थी दास दासी आपस में कहते हुए भाग रहे थे. जल्दी ढूंढो राजकुमारी को नहीं तो महाराज सब को दण्डित करेंगे. पूरा े राजमहल राजकुमारी नैत्रिका को ढूंढेंने में लगा हुआ था तो वही राजकुमारी नैत्रिका बिना किसी को कुछ बताये सबसे छुपते हुए स्वेत झरने के पास पहुँचती है.
स्वेत झरने को देखकर उसके चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान आ गई झरने को देखते हुए राजकुमारी नैत्रिका खुद से कहती है. आखरी कार हम आपके पास पहुंच हीं गए. पता नहीं पिताजी हमें यहां क्यू नहीं आने देते. चारो तरफ देखते हुए कहती है. ये दृश्य कितना मनोहारी है. जैसे कोई सम्बन्ध है हमारा यहां से. नैत्रिका धीरे धीरे अपने लेंहगे को संभालते हुए स्वेत झरने की तरफ बढने लगी.
धीमी धीमी बहती हवा उसके चेहरे को छू रही थी जिससे उसकी े अलकावाली उसके सुन्दर चेहरे को औऱ भी आकर्षित बना रही थी. जैसे हीं उसने झरने की तरफ अपना पहला कदम रखा तभी कोई उसके हाथ को पकड कर अपनी तरफ खींचता है. अचनाक हुई हरकत से नैत्रिका घबरा गई लेकिन जैसे हीं उसने सामने देखा एक गहरी सांस भरते हुए बोली. दाई माँ आप.
दाई माँ गुस्से में उसे देखते हुई कहती है. आपको यहां नहीं आना चाहिए था, महाराज ने आपको यहां आने से मना किया है, फिर आप यहां क्यू आती है.
नैत्रिका मासूमियत भरे अंदाज में कहती है. दाई माँ हम स्वयं नही समझ पाते हम यहाँ क्यूँ आकर्षित होते है. दाई माँ नैत्रिका को देखकर बडबडाती है. ये अपने मूल से कैसे जुड सकती है. नहीं ऐसा नहीं होने दूंगी में.
दाई माँ को बडबडाते हुए देख नैत्रिका पुछती है. दाई माँ. कहाँ खो गई. बस आज पिताजी से कुछ मत कहना. आगे से हम कभी नहीं आएंगी. दाई माँ हामी भरकर उसे वापस महल ले आयी.
राजकुमारी को देख उसकी मुख्य सेविका बेला उसके पास पहुंचकर पुछती है. आप कहाँ थी राजकुमारी. आप जानती है महाराज कितना क्रोधित हो जाते है. नैत्रिका उसकी चिंता समझते हुए कहती है. हम तुमसे क्षमा चाहती है. राजकुमारी नैत्रिका अपने कमरे में चली जाती है.
दाई माँ दोनों को वही छोडकर सीधा रंग महल जाकर रानिनिवास पहुँचती है जहाँ रानी कृतिका अपने भाई कृतसेन के साथ चौपड खेल रही थी, दाई माँ को देखकर मुस्कुराते हुए उन्हें अंदर बुलाती है.
भीतर आइये पदमा जी.
पदमा चिंता भरी आवाज में कहती है. रानी ये क्रीडा का समय नहीं है. चिंता का समय है. पदमा की चिंता भरी आवाज को सुनकर रानी उससे कारण पुछती है. आप इतना परेशान क्यू लग रही है. ऐसा क्या विषय है जो आपको चिंता में डाल रहा है.
पदमा गंभीर आवाज में कहती है. रानी राजकुमारी नैत्रिका को आप खोना नहीं चाहती तो उनपर दृष्टि रखिये. आज वो स्वेत झरने में स्नान करने वाली थी. रानी चौकते हुए कहती. ये क्या कह रही है आप.
पदमा बात को दोहराते हुए कहती है. सत्य. आप भूल चुकी है क्या दस वर्ष पूर्व हुई आकासवाणी को. रानी याद करते हुई कहती है. हां हमें स्मरण है. अगर तुम अपनी पुत्री को खोना नहीं चाहती तो उसे स्वेत झरने से दूर रखना. पदमा जी नैत्रा कब गई वहाँ. पदमा कुछ देर पहले हुई सारी बात बता देती है. रानी गुस्से में उठकर नैत्रिका के पास जाने लगती है लेकिन कृतसेन उसे रोकते हुई कहता है. रूक जाओ बहना. नैत्रा पर क्रोधित मत हो, बस आप उनका विवाह करा दो, ताकि वो भी एक गृहस्थ जीवन में व्यस्त हो जाये फिर उन्हें औऱ कुछ सोचने का समय हीं नहीं मिलेगा.
रानी गंभीर स्वर में कहती है. पर नैत्रा अभी बहुत छोटी है. पदमा उनकी बातों को बीचमे रोकते हुई कहती है. राजकुमार जी का निर्णय उचित है. रानी कृतिका मुस्कुराते हुए कहती है. हम महाराज से इस विषय पर चर्चा करेंगे. पदमा मुस्कुराते हुई वहाँ से चली गई.
वही दूसरी तरफ.
स्वर्ण लोक.
रानी मन्दाकिनी अपने सिंघासन पर बैठी किसी गहरी सोच में खोई हुई थी. उन्हें गहन चिंतन में देख उनकी मुख्य सलाहकार सरिंगी पुछती है. रानी जी. आज आप Kiss चिंतन में खोई हुई है. क्या मैं आपकी चिंता का कोई समाधान ढूंढ सकती हूँ.
रानी मन्दाकिनी दुखी आवाज में कहती है. नहीं सरिंगी. सरिंगी जोर देते हुई कहती है. फिर भी एक बार अपनी समस्या तो बताइए रानी जी. रानी मन्दाकिनी झिल्लाते हुई कहती है. क्या तुम राजकुमार बल्लभकुमार को ठीक कर सकती हो, क्या तुम उन्हें शिला से मुक्त कर सकती हो. महाराज कुम्भन ने जो दंड मुझे दिया है वो मैं आज तक भुगत रही हूँ.
सरिंगी उदासी भरी आवाज में कहती है. मुझे पता है रानी जी राजकुमार सिर्फ अमृत कन्या के स्पर्श से हीं स्वस्थ होंगे, किन्तु वो तो बीस वर्ष पूर्व हीं यहां से चली गई.
रानी मन्दाकिनी दुखी शब्दो में कहती है. हमें ज्ञात है. बस युवराज युवान अमृत कन्या को वापस स्वर्ण लोक ले आये.
सरिंगी अपनी चिंता जाहिर करती है. रानी जी बीस वर्ष हो चुके है अभी तक किसीकी कोई सुचना नहीं मिली है. रानी मन्दाकिनी सरिंगी को डाँटेगे हुई कहती है. आगे कुछ अशुभ मत कहना अन्यथा. सरिंगी डरते हुई कहती है. क्षमा करे रानी जी भूल वश कह दिया, दोबारा ऐसी गलती नही होगी.
तभी एक दासी भागते हुई रानी मन्दाकिनी के पास पहुंचकर डरते हुई कहती है. रानी जी एक अशुभ समाचार है.
To be continued.