पर्यटन: एक खुली पाठशाला
मनुष्य का स्वभाव जिज्ञासु प्रवृत्ति का रहा है। आदिकाल से ही मनुष्य पर्यटन करता रहा है। इस पर्यटन के पीछे भी जिज्ञासु प्रवृति ही है। किसी चीज का वास्तविक ज्ञान प्राप्त करने के लिए उसको प्रत्यक्ष देखना आवश्यक है। घर बैठे बैठे हम काल्पनिक ज्ञान ही प्राप्त कर सकते है लेकिन यथार्थ स्वरूप का ज्ञान तो प्रत्यक्ष देखने से ही प्राप्त होता है। अतः भौगोलिक, ऐतिहासिक, पुरातात्विक, राजनैतिक, आर्थिक एवं सामाजिक ज्ञान की वृद्धि के लिए पर्यटन अवश्य करना चाहिए। जो व्यक्ति जितना अधिक पर्यटन करता है उसका ज्ञान एवं अनुभव उतना ही अधिक यर्थाथ होता है। घूमने फिरने से स्थान, लोगों के रहन सहन, बोल चाल, परंपराओं आदि का ज्ञान होता है।
जब खोज का युग आया तो पुर्तगाल और चीन जैसे देशों के यात्रियों ने आर्थिक कारणों, धार्मिक कारणों एवं दूसरी संस्कृतियों को जानने और समझने की जिज्ञासा के साथ अनेक अज्ञात स्थानों की खोज करने की शुरुआत की। इस समय परिवहन का साधन केवल समुद्री मार्ग एवं पैदल यात्रा थे। यहीं से पर्यटन को एक अलग रूप एवं महत्त्व मिलना प्रारम्भ हुआ। भूगोल ने पर्यटन को विकास का रास्ता दिखाया और इसी रास्ते पर चलकर पर्यटन ने भूगोल के लिए आवश्यक तथ्य एकत्रित किए। आमेरिगो वेस्पूची, फ़र्दिनान्द मैगलन, क्रिस्टोफ़र कोलम्बस, वास्को दा गामा और फ्रांसिस ड्रेक जैसे हिम्मती यात्रियों ने भूगोल का आधार लेकर समुद्री रास्तों से अनजान स्थानों की खोज प्रारम्भ की और यही से भूगोल ने पर्यटन को एक प्राथमिक रूप प्रदान किया। अनेक संस्कृतियों, धर्मों और मान्यताओं का विकास पर्यटन के द्वारा ही संभव हुआ। विश्व के विकास और निर्माण में पर्यटन का अत्यधिक महत्त्व है।
आज पर्यटन के पीछे भी मनुष्य की उसी पुरानी घुमक्कड़ प्रवृत्ति का प्रभाव है। आदिम घुमक्कड़ और आज के पर्यटक में इतना अंतर अवश्य है कि आज पर्यटन उतना कष्ट साध्य नहीं है, जितनी प्राचीन काल की घुमक्कड़ी थी। ज्ञान-विज्ञान के आविष्कारों, अन्वेषणों की जादुई शक्ति के प्रभाव से सुलभ साधनों के कारण पर्यटन अत्यंत सुलभ बन गया है। आज पर्यटन एक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय उद्योग के रूप में विकसित हो चुका है। इस उद्योग के प्रसार के लिए देश-विदेश में पर्यटन मंत्रालय बनाए गए हैं। विश्वभर में पर्यटकों की सुविधा के लिए बड़े-बड़े पर्यटन स्थल विकसित किए जा रहे हैं। पर्यटन को प्रोत्साहित करने के लिए कई प्रकार के आयोजन भी किए जाते हैं जैसे- विदेशों में किसी देश के स्थान विशेष की कलाएँ, कलात्मक दृश्य, सांस्कतिक संस्थाओं की प्रदर्शनियाँ आदि। आनंद की प्राप्ति, जिज्ञासा की शांति, बढ़ती आय इनके अतिरिक्त पर्यटन के और भी कई प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष लाभ हैं। पर्यटन के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीयता की समझ जन्म लेती है, विकसित होती है। प्रेम और मानवीय भाईचारा बढ़ता है। सभ्यता-संस्कृतियों का परिचय मिलता है। पर्यटन से व्यक्ति अपने खोल से बाहर निकलना सीखता है। पर्यटन उस एकरसता से उत्पन्न ऊब का भी प्रतिकार करता है जो एक ही स्थान पर एक जैसे ही वातावरण में लगातार रहने से उत्पन्न हो जाती है।
प्राचीन काल में जब मनुष्य इधर-उधर जाने की सोचता था, तव मार्ग की कठिनाइयां उसके सामने आ खड़ी होती थीं। उपयुक्त सवारी का अभाव, रास्ते में लुटेरों का भय, बरसात में नदी-नाले चढ़ जाने का डर, जंगली रास्तो में हिंसक जन्तुओं का खतरा, समय का अधिक लगना कुछ ऐसी बाधाएँ थीं जिनके कारण इच्छा होने पर भी अधिकांश व्यक्ति भ्रमण नहीं कर पाते थे। वर्तमान युग में ऐसे अनेक आविष्कार हो चुके हैं जिनके कारण ये बाधाएँ दूर हो गयी है तथा अनेक नयी सुविधाएँ प्राप्त हो गयी हैं। मोटर, रेल और वायुयान के द्वारा अब हम बहुत थोड़े समय में इच्छित स्थान पर पहुँच सकते हैं। वातानुकूलित सुविधा का प्रबन्ध हो जाने से सर्दी-गर्मी की बाधाएँ भी दूर हो गयी हैं। अब कम समय में अधिक यात्राएँ की जा सकती हैं। इन सब सुविधाओं के हो जाने के कारण ही वर्तमान युग में लोग अधिक यात्राएँ करने लगे हैं। घूमना-फिरना मनुष्य का स्वभाव है, घुमक्कड़ होना कई दृष्टियों से उपयोगी है। इसके बिना क्रियात्मक ज्ञान नहीं होता। पर्यटन के बिना मनुष्य उंदासीन, सुस्त, निष्क्रिय, अनुभव-शून्य और कूप-मण्डूक बन जाता है। यही कारण है किं आधुनिक समय में ज्ञानवृद्धि और साथ में मनोरंजन के लिए पर्यटन को आवश्यक समझा जाने लगा है।
पर्यटन का सबसे बडा योगदान यह है कि यह विभिन्न संस्कृतियों, परंपराआंे और जीवन शैलियों को एक दूसरे के करीब लाता है। जब कोई पर्यटक भारत के रंग बिरंगे मेलों, ऐतिहासिक स्मारकों या प्राकृतिक स्थलों की यात्रा करता है तो वह केवल दृश्यों का आनंद ही नही लेता बल्कि स्थानीय संस्कृति, भोजन और कला को भी समझता है। यह सांस्कृतिक आदान प्रदान वैश्विक एकता और सहिष्णुता को बढावा देता है। भारत में ताजमहल, राजस्थान के किले और वाराणसी के घाट जैसे स्थल न केवल पर्यटकों को आकर्षित करते है बल्कि देश की समृद्ध विरासत को वैश्विक मंच पर प्रदर्शित करते है।
शैक्षणिक महत्व:- अब विद्यार्थी मंडल भ्रमण के लिए देशं-विदेश में जाने लगे है जिससे उन्हें विभिन्न स्थानों एवं जातियों के रहन-सहन, आचार-विचार और रीति-रिवाजों को प्रत्यक्ष देखकर समझने का अवसर मिलता है। वे भिन्न-भिन्न स्थानों की अच्छी बातें हृदयंगम करते हैं । विदेशी विद्यालयों के भ्रमण से वे उन देशों की शिक्षा पद्धति से परिचित हो, जाते हैं। उन देशों की शिक्षा पद्धति को जानकर वे यहाँ की शिक्षा पद्धति में सुधार के सूझाव दे सकते हैं। उन्हें अनेक ऐतिहासिक तथा भौगोलिक महत्त्व, के स्थानों को देखने का अवसर मिलता है। इससे वे इतिहास, भूगोल तथा वहाँ की शासन व्यवस्था का ज्ञान प्राप्त करते हैं।
व्यापारिक महत्त्व:- व्यापारिक दृष्टि से भी भ्रमण करना बहुत लाभदायक है। इससे व्यापारियों को यह पता लग सकता है कि हमारा कौन-सा माल कहाँ खप सकता है? हम किस माल को कहाँ से खरीदकर कितना लाभ उठा सकते हैं? विभिन्न स्थानों की औद्योगिक स्थिति का भी भ्रमण से पता लगाया जा सकता है।
वैज्ञानिक महत्व:- पर्यटन करने से हम जान सकते है कि विश्व में कृषि तथा उद्योग-धन्धों के विकास में जो नये-नये प्रयोग हो रहे हैं, वे हमारे देश के लिए कहाँ तक उपयोगी हो सकते हैं। प्रगतिशील राष्ट्रों में भ्रमण करने से विज्ञान के नये-नये प्रयोगों की जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
पर्यटन के अन्य लाभ:- स्वास्थ्य की दृष्टि से पर्वतीय स्थानों तथा अनुकूल जलवायु वाले स्थानों की यात्रा करना लाभदायक है। विचित्र वस्तुओं को देखने से मनोरंजन भी होता है। पारस्परिक प्रेम, मित्रता तथा सहानुभूति का वातावरण भी तैयार होता है। एक-दूसरे के विचारों से परिचित हो जाने से संघर्ष की सम्भावना कम हो जाती है।
आर्थिक दृष्टिकोण से पर्यटन एक महत्वपूर्ण रोजगार सृजनकर्ता है। यह न केवल बडे होटल और ट्रेवल एजेंसियों को लाभ पहुँचाता है बल्कि स्थानीय कारागरों, गाइडों, रेस्तरां मालिको और परिवहन सेवाओं को भी आर्थिक अवसर प्रदान करता है। ग्रामीण और कम विकसित क्षेत्रों में पर्यटन ने स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाया है। हालांकि पर्यटन का बदलता स्वरूप कई चुनौतियों को भी सामने लाया है। अत्याधिक पर्यटन ने कई लोकप्रिय स्थलों जैसे शिमला, गोवा और केदारनाथ पर पर्यावरणीय और सांस्कृतिक दबाव बढाया है। अनियंत्रित पर्यटक गतिविधियों के कारण कचरे का ढेर, जल प्रदूषण और प्राकृतिक संसाधनों का अत्याधिक देाहन आम समस्याएँ बन गई हैं। इसके अलावा कुछ क्षेत्रों में पर्यटकों की भीड ने स्थानीय समुदायों के जीवन को बाधित किया है और उनकी गोपनीयता पर असर डाला है। सांस्कृतिक संवेदनशीलता की कमी जैसे पवित्र स्थलों पर अनुचित व्यवहार या परंपराओं का अनादर भी एक गंभीर मुद्दा है। सोशल मीडिया पर योग्य स्थानों की खोज ने कई नाजुक पारिस्थितिक तंत्रों पर दबाव बढाया है। पर्यटकों की भीड ऐसी जगहों पर पहुंच रही है जो पर्यावरणीय रूप से संवेदनशील है जिससे जैव विविधता को खतरा हो रहा है।
पर्यटन एक ऐसी शक्ति है जो सांस्कृतिक आदान प्रदान, आर्थिक विकास और वैश्विक एकता को बढावा दे सकती है लेकिन इसके लिए हमें जिम्मेदार और संवेदनशील दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है। भारत जैसे देश, जहां सांस्कृतिक और प्राकृतिक धरोहर की कोई कमी नही है के लिए पर्यटन न केवल आर्थिक अवसर है बल्कि अपनी विरासत को संरक्षित करने और दुनिया को अपनी विविधता दिखाने का माध्यम भी है। यदि हम इसे सही दिशा में ले जाएं तो पर्यटन न केवल हमारी अर्थव्यवस्था को समृद्ध करेगा बल्कि हमारी सांस्कृतिक और प्राकृतिक धरोहर को भी अगली पीढियों के लिए सुरक्षित रखेगा।