मेनका भाग 4
लेखक: राज फुलवरे
अध्याय सात — मेनका की अंतिम चाल और यशवंत का सामना
रामगढ में अब माहौल बदल चुका था.
गाँववालों के मन में अब मेनका के प्रति डर और सतर्कता दोनों थी.
यशवंत और सागर ने उसका पहला जाल पूरी तरह बेनकाब कर दिया था.
लेकिन मेनका, जो अपनी चालाकी और साहस के लिए जानी जाती थी,
अब अपनी अंतिम चाल खेलने की योजना बना रही थी.
मेनका की रणनीति
मेनका ने गाँव के बाहर एक सुनसान हवेली में योजना बनाई.
वह सोच रही थी —
>“ अगर मैं यशवंत और सागर को अकेले में फँसा दूँ,
तो मैं फिर से सब कुछ अपने हाथ में ले सकती हूँ।
उसने अपने पुराने साथी बलवंतराय को भी फोन किया.
>“ अब हमें सब कुछ संभालना होगा.
यशवंत और सागर को चकमा देने के लिए हर रास्ता खोलना होगा।
बलवंतराय ने कहा —
>“ ठीक है, पर याद रहे, यह अंतिम मौका है.
गाँव के लोग अब हमें नजर रख रहे हैं।
मेनका ने मुस्कुराया और अपनी योजना को अंतिम रूप दिया.
यशवंत और सागर की तैयारी
यशवंत ने सागर से कहा —
>“ मेनका अब अपनी आखिरी चाल चलने वाली है.
हमें पूरी तरह तैयार रहना होगा. कोई भी गलती गाँव के लिए महंगी साबित हो सकती है।
सागर ने नए कैमरा और रिकॉर्डिंग सिस्टम की व्यवस्था की.
>“ इस बार, हम उसे किसी भी तरह फँसाएँगे.
चाहे वह कितना भी चालाक क्यों न हो।
अंतिम भेंट
मेनका ने तय किया कि वह यशवंत को अकेले में फँसाने के लिए बुलाएगी.
वह कहती है —
>“ यशवंत, मुझे लगता है कि हमें एक अंतिम सौदा करना चाहिए.
सब कुछ साफ और शांतिपूर्ण ढंग से निपटाना होगा।
यशवंत ने आँखें तीखी कर बोला —
>“ मेनका, अब तुम्हारी कोई चाल काम नहीं करेगी.
गाँव और बलवंतराय अब तुम्हारे झूठ को बर्दाश्त नहीं करेंगे।
लेकिन मेनका मुस्कुराई और धीरे से बोली —
>“ देखो, मैं एक आखिरी कोशिश कर रही हूँ.
शायद तुम मुझे रोक न पाओ।
यशवंत का चालाकी
यशवंत ने सागर से संकेत किया और दोनों ने छुपकर मेनका की हर बात रिकॉर्ड करना शुरू किया.
सागर ने कहा —
>“ हर शब्द और हर चाल अब हमारे पास है.
यह रिकॉर्डिंग उसे जेल तक पहुँचा सकती है।
मेनका अब समझ गई कि यशवंत ने उसकी हर चाल पढ ली थी.
वह धीरे- धीरे हताश हुई, पर अब भी हार मानने को तैयार नहीं थी.
मेनका का खुलासा
मेनका ने अब पूरी सच्चाई बताई.
>“ मैं सिर्फ पैसे और संपत्ति के लिए नहीं आई थी.
बलवंतराय और गाँववालों ने मुझे इस खेल में शामिल किया था.
अगर मैं फँस गई, तो मेरी साजिश और चालाकी सबके सामने आ जाएगी।
यशवंत ने गंभीर स्वर में कहा —
>“ मेनका, अब कोई और बहाना काम नहीं आएगा.
हम सबूत के साथ तैयार हैं.
अब तुम्हें अपने अपराधों का सामना करना होगा।
मेनका की हार और मुक्ति का अवसर
मेनका ने देखा कि अब उसके पास कोई रास्ता नहीं है.
सागर ने रिकॉर्डिंग बलवंतराय और गाँववालों को भेज दी.
बलवंतराय ने कहा —
>“ मेनका, अब तुम्हारा खेल खत्म.
यदि तुमने गाँववालों को नुकसान पहुँचाया, तो इसका परिणाम भुगतना पडेगा।
मेनका ने आखिरकार स्वीकार किया कि उसका जाल टूट गया है.
>“ ठीक है, मैं हार मानती हूँ.
लेकिन मुझे एक मौका दो, मैं अब कभी धोखा नहीं दूँगी।
यशवंत ने मुस्कुराया —
>“ हाँ, यही सही निर्णय है.
अब गाँव सुरक्षित है, और तुम भी एक नई शुरुआत कर सकती हो।
अध्याय का समापन
रामगढ में शांति बहाल हो गई.
मेनका ने अपनी चालाकी और साहस के बावजूद हार मान ली.
यशवंत और सागर की सूझबूझ ने गाँववालों को सुरक्षित रखा.
गाँववालों ने यशवंत और सागर की बहादुरी की सराहना की.
मेनका को अब अपनी गलती का एहसास हो गया और उसने नया जीवन शुरू करने का फैसला किया.
>“ सच्चाई और साहस हमेशा चालाकी और छल से जीतते हैं।
अध्याय आठ — मेनका की नई शुरुआत और गाँव में बदलाव
रामगढ में अब माहौल पूरी तरह बदल चुका था.
मेनका की चालाकी और साहस ने गाँववालों को डराया था,
लेकिन उसकी हार ने सबको सिखा दिया कि बदलाव संभव है.
मेनका का निर्णय
मेनका ने ठान लिया कि अब वह कभी धोखा और चोरी नहीं करेगी.
वह सोच रही थी —
>“ अब मेरा जीवन सिर्फ सही रास्ते पर होना चाहिए.
मैं अपनी पुरानी गलती को सुधारूँगी और गाँववालों की मदद करूँगी।
उसने यशवंत और सागर से कहा —
>“ मैं जानती हूँ कि मैंने बहुत गलतियाँ की हैं.
अब मैं अपनी पूरी जिंदगी ईमानदारी और मेहनत से बिताना चाहती हूँ.
मुझे विश्वास दिलाओ कि मुझे गाँव में सम्मान मिलेगा।
यशवंत ने मुस्कुराते हुए कहा —
>“ मेनका, अगर तुम सच में बदलना चाहती हो, तो हम तुम्हारी मदद करेंगे.
लेकिन इसे साबित करने के लिए तुम्हें समय लगेगा।
सागर ने जोडा —
>“ हाँ, और हम भी देखेंगे कि तुम अपने शब्दों के अनुसार काम कर रही हो।
गाँव में नई भूमिका
मेनका ने गाँव में एक छोटी दुकान खोली.
वह यहाँ न केवल सामान बेचती, बल्कि गाँववालों की छोटी- छोटी समस्याओं में मदद भी करती.
गाँववालों ने शुरुआत में शक किया,
लेकिन धीरे- धीरे उनके अनुभव बदलने लगे.
एक दिन गाँव की बाईकली बाई (बुजुर्ग महिला) ने कहा —
>“ मेनका, तुम्हारी मदद से अब हमारा काम आसान हो गया.
तुम सच में बदल गई हो।
मेनका ने झुककर कहा —
>“ मैं जानती हूँ कि मैंने पहले गलत किया.
अब मैं सिर्फ सही काम करना चाहती हूँ।
पुराने दोस्त और नए संबंध
मेनका अब यशवंत और सागर के साथ और करीब आ गई.
वे तीनों मिलकर गाँव की भलाई के लिए काम करने लगे.
यशवंत ने कहा —
>“ देखो मेनका, अगर तुम सही राह पर रहोगी,
तो तुम्हारा नाम भी गाँव में इज्जत से लिया जाएगा।
सागर ने जोडा —
>“ और अब हम तुम्हारी मदद करेंगे ताकि तुम्हें कोई धोखा न दे सके.
तुम्हारी नई जिंदगी सुरक्षित रहे।
मेनका ने मुस्कुराते हुए कहा —
>“ हाँ, अब मैं सिर्फ अपने नाम के लिए नहीं,
बल्कि गाँव और लोगों के लिए जीना चाहती हूँ।
गाँव में बदलाव
मेनका की नई शुरुआत से गाँव में बदलाव आने लगे.
गाँववालों ने देखा कि कोई भी समस्या अब अकेली नहीं है.
महिलाएँ और बच्चे अब उसकी मदद लेने लगे.
यशवंत और सागर भी गाँव की सुरक्षा और व्यवस्था में मदद करने लगे.
गाँववालों ने महसूस किया —
>“ सच्चाई और ईमानदारी से ही लोग विश्वास और प्यार जीतते हैं.
चालाकी और धोखे से नहीं।
अध्याय का समापन
मेनका अब सिर्फ एक बदनाम चालाक महिला नहीं रही.
वह गाँव की एक उपयोगी और ईमानदार नागरिक बन गई थी.
यशवंत और सागर ने उसे मार्गदर्शन दिया,
और गाँववालों ने धीरे- धीरे उसे अपनाया.
>“ गलतियों से सीखना और उन्हें सुधारना ही असली बहादुरी है।
रामगढ में अब शांति और विश्वास का माहौल था.
मेनका की नई शुरुआत ने गाँव के लोगों को भी यह सिखाया कि हर किसी को बदलने का अवसर मिल सकता है.