Nishant Blogger - 2 in Hindi Horror Stories by Raj Phulware books and stories PDF | निशांत ब्लॉगर - भाग 2

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निशांत ब्लॉगर - भाग 2

निशांत ब्लॉगर भाग 2


दोनिशांत ने कैमरा ऑन किया और धीरे से कहने लगा—निशांत (कैमरे से):हेलो दोस्तों, मैं निशांत. आज मैं एक ऐसे बंगले में हूँ जिसका नाम है ‘राजविलास’। लोग कहते हैं यहाँ अजीब बातें होती हैं, पर हम सच्चाई दिखाएंगे।वह कैमरे को थोडा नीचे रख कर मोबाइल स्क्रीन Check करने लगा. तभी कैमरे की छोटी सी स्क्रीन पर, उसी कुर्सी पर एक आदमी बैठा हुआ दिखा — बिल्कुल उसी की तरह जो अभी तक उसे उस जगह पर मिल चुका था. निशांत पीछे मुडा — कुर्सी खाली थी. उसने फिर से मोबाइल के जूम के बटन दबाए — स्क्रीन पर वही इंसान स्पष्ट था. निशांत ने हल्की आवाज में कहा—निशांत (फुसफुसाकर):ये कैसे. कैमरे में तो किसी और का चेहरा दिख रहा है.वह कैमरे को पकडे रहा और आवाज रिकॉर्ड कर रहा था. वह हिलते हुए कैमरे के पास गया और सीधे बोल पडा—निशांत (धैर्य न रखते हुए):कौन हो आप? बताओ कौन हो तुम? यहाँ किसने बैठाया है आपको?स्क्रीन पर बैठे हुए आदमी की आँखें निशांत की तरफ टिकीं और उसने धीरे से जवाब दिया—रविराज (कुर्सी से):निशांत. मैं रविराज हूँ।निशांत के होंठों पर सवाल चढ आया—निशांत:रविराज? Kiss रविराज? यह पृथ्वीराज नहीं है क्या? आपने—”रविराज:मैं वही रविराज हूँ, जिसका नाम तुमने अभी सुना है. मैं पृथ्वीराज का छोटा भाई था।निशांत ने कदम पीछे खींचते हुए कहा—निशांत:छोटा भाई? पर. आपने खुद कहा था कि यहाँ कोई और नहीं रहता. और पृथ्वीराज ने तो कहा था कि उसका कोई भाई नहीं है. यह सब कैसे—?रविराज (धीरे, ठंडी सी आवाज में):उसने झूठ बोला. बडे- से बडे झूठ बोल दिए. दौलत ने उसे अँधा कर दिया।निशांत ने कैमरा और मोबाइल कैमरा दोनों सम्भाले हुए थे. उसने थोडा लुक- अप किया— कुर्सी पर कोई नहीं था पर स्क्रीन पर साया स्पष्ट. उसने ठान लिया कि सच्चाई तक पहुँचना है.निशांत:अगर आप सच कह रहे हैं, तो बताइए—आप यहाँ क्यों हैं? और आप मुझसे क्या चाहते हैं?रविराज:मैं यहाँ इसलिए हूँ क्योंकि मेरी आत्मा को सुकून नहीं मिला. मुझे न्याय चाहिए. पृथ्वीराज ने मुझे मारा—दौलत के लिए. उसने मेरा गला घोंटकर मुझे यहीं, इसी जमीन में दबा दिया. उसने मेरा नाम मिटाने की कोशिश की. पर मैं यहाँ हूँ. मैं चाहता हूँ कि कोई मेरी सच्चाई सामने लाए।निशांत ने गहरी साँस ली. उसने कैमरा बंद नहीं किया. वह समझ गया कि यह कुछ हल्का नहीं है.निशांत (धीरे):क्या. क्या तुमने कोई सबूत बताया है? कुछ जो पुलिस देख सके?रविराज:छुरा. वह छुरा जिससे उसने मुझे मारा—वो स्टोर Room में छुपा हुआ है. उसे निकालो. पुलिस को दिखाओ. उसको सजा दो।निशांत के हाथ काँप रहे थे पर उसने अपने डर को आवाज नहीं दी. उसने आवाज दबा कर कहा—निशांत:ठीक है. मैं देखूंगा. पर तुम—अगर तुम सच कह रहे हो तो तुम पुलिस में क्या करोगे? यहाँ से कैसे दिखोगे?रविराज:मैं दिखूंगा जहाँ सच्चाई दिखाई देगी. जब छुरा मिलेगा और मैं साबित हो जाऊँगा तो मैं शांत हो जाऊँगा।निशांत का दिमाग तेजी से काम करने लगा. उसने कदम बढाकर बंगले के अंदर चलने की तैयारी की. तभी ऊपर से किसी ने आवाज दी—पृथ्वीराज (ऊपर से):निशांत! क्या कर रहे हो? वहाँ कैमरा मत घुमाओ बहुत दूर तक।निशांत ऊपर की ओर देखा. पृथ्वीराज हॉल की तरफ खडे हुए थे. निशांत नीचे झुककर बोल उठा—निशांत (ठंडे स्वर में):सर, मैं सिर्फ स्टोर Room देखना चाहता हूँ. कुछ ऐसा लगा है—जिसके बारे में मैं आपको बताना चाहता हूँ।पृथ्वीराज (नीचे आते हुए):स्टोर Room में पुरानी चीजें हैं. बक्से, कुर्सियाँ, पुराने पंखे—कोई खास बात नहीं. तुम्हें कुछ नहीं मिलेगा।निशांत:सर, मैं एक ब्लॉगर हूँ. जब मैंने यहाँ पहली बार आकर बात की थी तो आपने कहा था कि इस बंगले की हर बात बतानी है. मैं वही कर रहा हूँ—सच्चाई बताना. कृपया मुझे स्टोर Room खोलने दीजिए।पृथ्वीराज (एक झेंप भरी हँसी के साथ):ठीक है—खोल लो. पर ध्यान रखना कि तुम फोटो- वीडियो में हर चीज सही ढंग से बताओगे, मेरे बंगले की इमेज खराब नहीं करनी है।निशांत ने सिर हिलाया और नीचे उतर गया. वह दरवाजा खोल कर गया और हाथ लगा कर एक बडा बक्सा उठा लिया. बक्से का ढक्कन खोलते ही उसे कुछ चमकता दिखा—उसने झट से हाथ डाला और निकाला—वहाँ खून- सी धब्बों से सना एक पुराना छुरा था. निशांत के दिल ने जोर से धडकते हुए कहा—निशांत (धीरे से, अपने आप से):ये वही है. यह वही छुरा है.उसने छुरा हाथ में लेते ही ऊपर से पृथ्वीराज की तेज आवाज आई—पृथ्वीराज (गुस्से में):तुमने क्या निकाला? यह क्या कर रहे हो? वह मेरा निजी माल है! वह पुरानी चीजें मेरे निजी डिस्पोजल की चीजें हैं!निशांत ने अपना कैमरा ऑन रखते हुए तुरन्त मोबाइल से पुलिस को Call किया.निशांत:हैलो, मैं निशांत बोल रहा हूँ. राजविलास बंगले में मुझे एक संदिग्ध हथियार मिला है—कृपया तुरंत टीम भेजिए।फोन पर कुछ शांत आवाज आई—इंस्पेक्टर शर्मा:इंस्पेक्टर शर्मा (फोन में):कहाँ? बंगला किसकी मिल्कियत है? क्या आप बोल रहे हैं कि वहां कोई गुमशुदा या हत्या का मामला पहले से है?निशांत:हाँ, मुझे लग रहा है कि ये छुरा किसी आपराधिक एक्ट से जुडा हुआ है. कृपया भेज दीजिए टीम।कुछ ही देर में पुलिस की गाडियाँ बंगले पर आ पहुंचीं. इंस्पेक्टर पहुँचे, सीन की जांच शुरू हुई, और टीम ने स्टोर Room की छानबीन की. डिटेक्टरों ने छुरा लिया और लैब के लिए सीलबंद कर दिया. बाद में खुदाई कराई गई—और ठीक उसी जगह से, जहाँ रविराज ने कहा था—कंकाल निकला. कंकाल के पास वही पुराना लॉकेट मिला जिसके अंदर एक दीवारिया तस्वीर और कुछ पेपर थे. डिटेक्टर ने तुरंत डीएनए टेस्ट और पहचान के लिए अगले कदम उठाये.जब पहचान पक्की हुई तो सबको सन्नाटा छा गया—कंकाल वही था जिसका नाम लोग रविराज बताते रहे थे.इंस्पेक्टर शर्मा ने ठोस स्वर में घोषणा की—इंस्पेक्टर शर्मा:हमने कंकाल से मिली चीजों के डीएनए और अन्य साक्ष्य की जाँच करवा ली है. फिलहाल जो आशंका है वह यही है कि कोई साजिश हुई है. हमें कुछ गम्भीर पूछताछ करनी होगी।पृथ्वीराज की शक्ल पर बदलती भावनाएँ साफ दिखी—वह पहले शांत था, फिर असमंजस और बाद में डर. पुलिस ने उसे हिरासत में लिया. कोर्ट केस शुरू हुआ. मीडिया हर रोज इस केस पर खबरें चला रहा था.निशांत के लिए यह सब असंभव सा लग रहा था—वह जिसने केवल सच्चाई दिखाने की सोची थी, अब उसकी वजह से एक हत्या का खुलासा हो गया और एक क्रूर अपराधी को गिरफ्तार कराया गया.पुलिस ने जब सारे सबूत पेश किये—छुरा, डीएनए रिपोर्ट, कंकाल की पहचान—तो कोर्ट ने कह दिया कि मामला बहुत स्पष्ट है. सजा की सुनवाई के दौरान पृथ्वीराज बार- बार अपने बयान बदलता रहा. आखिरकार अदालत ने उन सब तथ्यों को देखते हुए गुरुतर निर्णय सुनाया.निशांत को मीडिया में खूब जगह मिली. लोग उसके काम की तारीफ कर रहे थे. कई चैनल और अखबार इंटरव्यू लेने आ रहे थे.टीवी रिपोर्टर (इंटरव्यू में):निशांत जी, आप इस सच्चाई को सामने लाकर क्या महसूस कर रहे हैं?निशांत (थोडा संजीदगी से):मैं खुश हूँ कि सच सामने आया, पर मैं खुश नहीं हूँ कि किसी की जान ली गई. मैं केवल यही चाहूँगा कि इंसाफ हो और लोगों को सही जानकारी मिले।समाचारों में चलने के बाद सरकार की तरफ से निशांत को सम्मानित किया गया और एक धनराशि भी दी गयी—क्योंकि उसके साहस ने एक पुराना केस सुलझाया था.समय गुजरा. कुछ साल बाद निशांत की जिन्दगी बदली—उसने शादी की, दो बच्चे हुए. उसका चैनल और भी बडा हुआ, और वह कई डॉक्यूमेंट्री बना चुका था. पर वह रातें, जिनमें उसने उस दिन कैमरा घुमाया था और स्क्रीन पर रविराज को देखा था, उसे कभी नहीं भूलतीं.एक बार उसने अपने परिवार को सारी बात बताई—वो Kiss तरह कैमरा स्क्रीन पर साया दिखा और कैसे रविराज ने उससे सच्चाई उजागर करने को कहा—सबने ध्यान से सुना.माँ:बेटा, तूने अच्छा किया. पर अब ये सब भूल कर अपनी नई जिन्दगी पर ध्यान दे।पिता:हमें तुम पर गर्व है. सच्चाई की राह आसान नहीं होती. पर हमने तुम्हें वही सिखाया था—हिम्मत रखो।रिया (हँसते हुए):भाई, अब हॉरर के पंडित बन गए हो. पर बचपन की तरह अब डरावनी जगहों पर मत जाना।निशांत ने हँसते हुए कहा—निशांत:मैं अब जोखिम लेने से नहीं डरता, पर अब पहले से ज्यादा समझदारी से काम करता हूँ।पिछले सालों में मीडिया, पुरस्कार और धन—सब मिला. सरकार ने एक बार एक सार्वजनिक सम्मान समारोह में उसे बुलाया और पुरस्कृत किया. काफी लोगों ने उसे ऑनलाइन श्रेय दिया और कुछ ने आलोचना भी की—कई लोगों ने कहा कि उसने सनसनी फैलायी; कुछ ने कहा कि उसने बहादुरी की. निशांत इन सब से प्रभावित नहीं हुआ—उसका मकसद हमेशा वही था: सच्चाई दिखाना.एक रात, जब सब सो चुके थे, निशांत अकेले अपने स्टूडियो में बैठा था. उसने कैमरा ऑन किया और रिकॉर्ड किया—अपने पुराने अनुभव के बारे में. कैमरे की रिकॉर्डिंग में अचानक एक पदार्थिक हलचल नहीं हुई पर निशांत के चेहरे पर एक हल्की मुस्कान थी.निशांत (कैमरे से):कुछ बातें जो मेरी जिन्दगी ने सिखायीं—हिम्मत, सच्चाई और जिम्मेदारी. मैं केवल इतना कहूँगा कि अगर कोई सच्चाई आपको दिखे, तो उसके लिए खडे हो जाइए।वह कैमरा बंद करके खिडकी की ओर देखा—और याद आया वही दिन जब उसने उस कुर्सी पर बैठे साए को पहली बार देखा था. उसने अपने मन में कुछ कहा—निशांत (धीरे, खुद से):धन्यवाद रविराज भाई, अब तुम शान्त हो।पर आखिर में वह भी मानता था कि कहीं न कहीं, स्क्रीन पर कभी- कभी एक हल्का- सा साया अभी भी देखता है—ना ही वह डरता था, ना ही उसे कोई नसीहत मिली—बस एक एहसास रहता है कि हर सच्चाई का हीरो वही नहीं होता जो उसका श्रेय ले, बल्कि वही होता है जो दायित्व निभाता है.और इस तरह निशांत के जीवन में एक बडी घटना का अंत हुआ—पर उसके मन में यह अफसाना अब एक कहानी बनकर रह गया—और दुनिया के लिए वह कहानी एक चेतावनी भी बन गयी कि कुछ सच हमेशा बाहर आ ही जाते हैं, भले ही कितने भी पर्दे क्यों न हों.