(मेरे पिता के जमाने की यादें)
एपिसोड 1 : "शुरुआत एक सीधे इंसान से"
गांव की कच्ची गलियों में आज भी बुज़ुर्ग जब बैठते हैं तो कहानियों की झोली खुल जाती है।
मेरे पिताजी अकसर सुनाया करते थे —
“बेटा, इंसान को पहचानना आसान नहीं। जो चेहरे से सीधा-सादा लगे, वही कभी वक्त और हालात से इतना बदल जाता है कि पूरा गांव उसका नाम सुनकर कांप उठे।”
यही कहानी है रमेश सुरेश की।
रमेश हमारे गांव का ही था। एकदम सीधा, मेहनती और गांव की चौपाल में हमेशा हंसी-मज़ाक करता हुआ। उसकी आँखों में सपने थे – छोटा सा खेत, कुछ मवेशी और अपने परिवार को सुख से पालने की इच्छा।
गांव के बड़े-बुजुर्ग कहते हैं –
“रमेश जैसा लड़का तो भगवान हर घर में दे।”
पर किसे पता था कि यही लड़का एक दिन “रमेश डाकू” कहलाएगा।
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गांव की यादें
मेरी मां बताती हैं कि जब वे ब्याह कर आई थीं, तब तक रमेश का नाम पूरे इलाके में गूंजने लगा था। लोग डरते भी थे, और अफसोस भी करते थे –
“अरे, इतना सीधा लड़का, आखिर कैसे डाकू बन गया?”
पिताजी कहते थे –
“बेटा, हालात इंसान को तोड़ देते हैं। जब इंसाफ नहीं मिलता, जब मेहनत की रोटी छिन जाती है, तब आदमी का सीलापन भी जहर बन जाता है।”
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बदलता चेहरा
रमेश का असली बदलाव तब शुरू हुआ, जब जमींदारों और दबंगों ने उसका हक़ छीन लिया।
खेती की ज़मीन पर झूठा दावा, पंचायत में अन्याय और पुलिस का रिश्वतखोरी का खेल –
सीधा-सादा रमेश धीरे-धीरे चुप रहने वाला नहीं रहा।
उसकी आँखों की मासूमियत गुस्से में बदल गई।
और देखते ही देखते, सीधा रमेश – डाकू रमेश बन गया।
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यह तो बस शुरुआत है।
मेरे पिताजी कहते थे –
“रमेश डाकू के किस्से अगर सुनो, तो डर भी लगता है और दुख भी।”
एपिसोड 1 : “इल्ज़ाम”
गांव की मिट्टी में पली हर कहानी का एक अपना रंग होता है।
मेरे पिता कहा करते थे —
“इंसान कभी बिना वजह बुरा नहीं बनता, हालात उसे मजबूर कर देते हैं।”
यह कहानी है सुरेश की।
गांव का सीधा-सादा लड़का, मेहनती और पढ़ा-लिखा।
गांव के बच्चों को वह ट्यूशन पढ़ाता था।
छोटे बच्चे, दो-चार किशोर और उनमें कुछ लड़कियां भी आती थीं पढ़ने।
सुरेश के बारे में गांव के लोग कहते थे —
“इतना शरीफ लड़का है, जैसे भगवान ने धरती पर भेजा हो।”
लेकिन किसे पता था कि एक दिन यही नाम खून और दहशत से जुड़ जाएगा।
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मासूमियत पर इल्ज़ाम
गांव में एक दिन हलचल मच गई।
एक 16-18 साल की लड़की, जो सुरेश के पास पढ़ने आती थी, अपने किसी प्रेमी के साथ भाग गई।
लड़की के परिवार वाले बेकाबू थे।
उन्होंने किसी की बात न सुनी और सीधा इल्ज़ाम ठोक दिया —
“हमारी बेटी को सुरेश ने ही भगा दिया है… सुरेश ने छिपा रखा है।”
गांव की चौपाल गूंज उठी।
“इतना शरीफ दिखने वाला लड़का, अंदर से गंदा निकला।”
लोगों की उंगलियां, जुबानें और गालियां सब सुरेश की तरफ उठीं।
सुरेश हाथ जोड़ता रहा,
“मैंने कुछ नहीं किया… मैं कसूरवार नहीं हूं… मैं पढ़ाता हूं, मैं किसी को भगाऊंगा क्यों?”
लेकिन कौन सुनता?
गांव में इल्ज़ाम ही सबसे बड़ा सच होता है।
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👉 अगले एपिसोड में – मैं बताऊंगी कैसे रमेश ने अपना पहला कदम डाकुओं की टोली में रखा, और क्यों पूरे गांव में उसकी दहशत फैल गई।