बहुत समय पहले एक राजा हुआ करते थे।
राजा अत्यंत धर्मपरायण और न्यायप्रिय थे।
उनके राज्य में प्रजा सुखी और समृद्ध थी।
राजा अपनी प्रजा को अपनी संतान की तरह स्नेह करते थे।
उनके न्याय और धार्मिक स्वभाव की दूर-दूर तक प्रशंसा होती थी, और लोग उन्हें सच्चे रक्षक व मार्गदर्शक मानते थे।"
"राजा की दो पत्नियाँ थीं,
और दोनों ही अत्यंत गुणी व सुन्दर थीं।""राजा सदा दान–धर्म में लगे रहते थे।
वे भूखों को भोजन कराते, निर्धनों को धन और वस्त्र देते, और अनाथों को सहारा बनते।
उनकी उदारता की छवि इतनी विशाल थी कि लोग उन्हें दानी और धर्मात्मा राजा कहकर पुकारते थे।
लेकिन कहते हैं, जहाँ भलाई होती है, वहाँ ईर्ष्या भी जन्म लेती है।
कुछ स्वार्थी और कपटी लोग, जिन्हें राजा की लोकप्रियता और पुण्यकर्म चुभते थे, मन ही मन उनसे घृणा करने लगे।
वे राजा की छवि को धूमिल करने के अवसर ढूँढते रहते थे।"
लेकिन उन दुष्ट लोगों को कभी अवसर नहीं मिला, जब तक कि राजा वृद्ध और अशक्त नहीं हो गए।"
यद्यपि राजा के पास सब कुछ था—
दौलत, शोहरत, विशाल राज्य और धर्म का गौरव—
फिर भी उनके हृदय में एक गहरा दुःख छिपा हुआ था,
जो उन्हें भीतर से खाए जा रहा था।
" राजा अब वृद्ध हो रहे थे।
उनका शरीर पहले जैसा सबल नहीं रहा था, परंतु वे अब भी धर्म और न्याय के मार्ग पर डटे हुए थे।
उनके पास दौलत थी,
शोहरत थी,
विशाल साम्राज्य और प्रजा का अथाह स्नेह भी था,
फिर भी उनके मन का एक कोना हमेशा खाली रहता था।
कारण यह था कि वृद्धावस्था तक पहुँचने के बाद भी उनके घर संतान का जन्म नहीं हुआ था।
महल सोने–चाँदी से भरा पड़ा था, परंतु शिशु की किलकारियाँ वहाँ कभी नहीं गूँजीं।
यही बात राजा के हृदय को कचोटती रहती थी।
रात के सन्नाटे में, जब पूरा राजमहल निद्रा में डूबा रहता,
राजा अपने कक्ष में अकेले बैठकर ईश्वर से यही प्रार्थना करते कि उन्हें एक संतान का सुख मिल जाए।
वे जानते थे कि संतान ही वंश की ज्योति होती है,
जिसके बिना राजसिंहासन अधूरा माना जाता है।
यही अधूरापन उनके जीवन की सबसे बड़ी पीड़ा बन चुका था।"
राजा यह अच्छी तरह जानते थे कि यदि उनकी मृत्यु के बाद कोई योग्य राजकुमार नहीं होगा ,
तो उनके राज्य की तक़दीर कैसे बदल सकती है।
कई ऐसे लोग, जो आज भले ही छिपे हुए हों और चुपचाप अपने स्वार्थ पालते हों,
सत्ता के कमजोर पड़ने पर प्रजा के ही ऊपर ज़िंदा-बाज़ार लगाकर उसे बर्बाद कर देंगे।
इसलिए राजा के मन में संतान न होने का दुःख केवल व्यक्तिगत पीड़ा नहीं था—
वह एक गहरी चिंता थी जो उनके राज्य और प्रजा की रक्षा से जुड़ी हुई थी।
उन्होंने देखा था कि वंशहीनता से सिर्फ़ राजसिंहासन ही नहीं डगमगा सकता,
बल्कि न्याय और शांति की नींव भी हिल सकती है;
और यही भय उन्हें रातों को चैन से सोने नहीं देता था।
इसीलिए वे संतान पाने के लिए हर उपाय पर विचार करते,
प्रिय पत्नी-परिवार से सलाह लेते और देवताओं से प्रार्थना में लगे रहते—
कहीं उनका राज्य, जिसे उन्होंने सत्य और धर्म से सँवारा था,
कही चोरों के हाथ न पहुँच जाए।"
"राजा की दो पत्नियाँ थीं, जो न केवल अत्यंत सुन्दर थीं बल्कि गहन रूप से धार्मिक भी थीं।
वे अपने पति की चिंता को भली-भाँति समझती थीं,
परंतु उनके बस में कुछ भी नहीं था।
दिन-प्रतिदिन वे अपने वृद्ध पति का बढ़ता हुआ दुःख देखतीं और स्वयं भीतर ही भीतर व्याकुल हो उठतीं।
उन्हें यह पीड़ा असहनीय लगती थी कि धर्मनिष्ठ और न्यायप्रिय राजा,
जिसने अपना सम्पूर्ण जीवन प्रजा की सेवा और भलाई में अर्पित कर दिया, स्वयं संतान-सुख से वंचित रह गया।
दोनों रानियाँ हर दिन भगवान के सम्मुख हाथ जोड़कर प्रार्थना करतीं—
'हे प्रभु! हमारे स्वामी के हृदय की यह सबसे बड़ी इच्छा पूरी कर दीजिए।
उन्हें संतान का सुख दीजिए, ताकि उनका वंश आगे बढ़े और उनका जीवन पूर्ण हो सके।'"
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“वरदान” — एक पौराणिक कथा
यह कहानी कोई साधारण रचना नहीं है।
यह वही अमूल्य कथा है जो मेरी माँ मुझे सुनाया करती थीं,
और जिन्हें वे स्वयं अपने पिता (मेरे नाना जी) से सुना करती थीं।
इसीलिए यह कथा मेरे लिए केवल एक कहानी नहीं,
बल्कि मेरी मां की यादें है।
आज मैं इसे आप सबके सामने रख रही हूँ,
ताकि वह परंपरा, वह भाव और वह आशीर्वाद आने वाली पीढ़ियों तक पहुँच सके।
बचपन में मेरे गांव में
न बिजली थी,
न टीवी, न फोन।
हमारी दुनिया सच्चे रिश्तों और कहानियों से ही रोशन होती थी।
रोज़ रात सात बजे पूरा परिवार घर के बाहर बड़े पेड़ के नीचे इकट्ठा होता।
आसमान में तारे टिमटिमाते, ठंडी हवा बहती,
और हम सब खुले आकाश के नीचे साथ मिलकर सोते थे।
हर रात कोई न कोई बुज़ुर्ग हमें नई-नई कहानियाँ और गीत सुनाते।
कभी वीरों की गाथा,
कभी देवताओं का चमत्कार,
तो कभी साधारण मनुष्यों के संघर्ष और त्याग की कथाएँ।
उन पलों ने हमारे बचपन को ऐसा रंग दिया जिसे हम कभी नहीं भूल सकते।
आज मैं वही कहानियाँ आप सबके साथ बाँटना चाहती हूँ—
क्योंकि यह केवल किस्से नहीं,
बल्कि हमारे परिवार की धरोहर और हमारी मिट्टी की आवाज़ हैं।”
,🙏🙏🙏🙏🙏🙏धन्यवाद 🙏 🙏 🙏 🙏 🙏