हँस के गले मिलते हैं
सभी गिले शिकवे भूलाकर हँस के गले मिलते हैं l
समंदर किनारे हाथों में हाथ डालकर फिरते हैं ll
प्यार में बुने हुए रिश्तों में फ़िर मिठास आने से l
दिल के गुलशन में खुशीयों के गुल खिलते हैं ll
बेरहम ज़माने ने बहुत सारी चोट दे रखी है तो l
मोहब्बत की रिश्वत देके चाक जिगर सिलते हैं ll
वो बे-वफ़ा ही था बे-वफ़ा होने से पहेले ही से l
बे-वफ़ा से फ़िर जुदा होने के डर से हिलते हैं ll
आठ दस घटों की मुलाकात से जी नहीं भरता हैं l
अब ये हाल है की हर लम्हें का हिसाब गिनते हैं ll
१-११-२०२५
सूरज
सूरज की पहली किरनों में नहा कर देखो l
तन से रात का अँधियारा हटा कर देखो ll
जिंदगी है तो नोक झोंक चलती रहती है तो l
रोज ही मन को प्रफुल्लित बना कर देखो ll
ग़म की काली चादर हटाकर उजियारे की l
हसी से दर-ओ-दिवार को सजा कर देखो ll
आज खुद और ख़ुदा की रजामंदी के लिए l
होठों पर सच्ची मुस्कान लगा कर देखो ll
किसी एक को भी ऊपर उठाने के वास्ते l
खुले दिल से प्यारा हाथ बढ़ा कर देखो ll
२-११-२०२५
चाहत की ख़ुशबु
चाहत की ख़ुशबु फिझाओ को महकाती रहेगी l
दिलबर की जुदाई में दिल को बहलाती रहेगी ll
सोये हुए ज़ज्बातों को मीठी हवा देकर वो l
खामोशी से तमन्नाओं को बहकाती रहेगी ll
मधुर सुहाने मौसम में देर रात तक की हुई l
मुलाकात के लम्हों को वो छलकाती रहेगी ll
बयारों में प्यार भरे गाने बहाकर फिर से l
नीद में ख्वाबों में आकर तरसाती रहेगी ll
हर ग़ज़ल में शामिल है काफिये की तरह l
बिन बुलाई यादें जहन को तड़पाती रहेगी ll
२-११-२०२५
होठों की शहनाई
होठों की शहनाई दिल से निकलने वाले मीठे
सुरों से बजती हैं l
प्यार में भरपूर मोहब्बत से छलकने वाले मीठे
सुरों से बजती हैं ll
दीपावली में तयखाने की सफाई में मिली हुई
सालों से कैद वो l
पुरानी तस्वीरों को देखकर बहकने वाले मीठे
सुरों से बजती हैं ll
एक अर्सा के बाद ज़हन में रेज़ा रेज़ा पुकार
उठ रही है और l
प्यारे दिल की चिड़ियां के चहकने वाले मीठे
सुरों से बजती हैं ll
ख्वाबों में ही जिससे अक्सर मुलाकातें होती
रहती है उसी l
साजन की लम्बी जुदाई में तड़पने वाले मीठे
सुरों से बजती हैं ll
जिस ने अफसाना बना रखा पवित्र सच्चे
प्यार को उसी से l
जल्द ही मुलाकात को तड़पने वाले मीठे
सुरों से बजती हैं ll
४-११-२०२५
एक ही नज़र में
खालिक की एक ही नज़र में ज़मी से आसमाँ पर बिठा दिया l
बेज़ार और निरस जिन्दगी को चाँद सितारों से सजा दिया ll
आवारा बना फिरता था शहर की छोटी बड़ी गली गली में l
सीधा सादे इंसान से सब के दिलों का राजा ही बना दिया ll
बड़े सुने सुने जा रहे थे जिन्दगी के सुबह शाम दोनों ही l
जीवन में छाये अंधेरे को मिटाने को चिरागों को जगा दिया ll
राह लम्बी रास्ते उबड़ खाबड़ हमसफ़र के बिना आज l
जीने का सही तरीका बताकर ढ़ंग से जीना सिखा दिया ll
बड़ी ही फुर्सत में लिखा है भाग्य का लेखा जोखा और l
किस्मत से ही ख़ुद से राब्ता करा कर ख़ुदा से मिला दिया ll
५-११-२०२५
सुबह की चाँदनी
अरुणोदय से सुबह की चाँदनी खिली खिली लगती हैं l
कुहासा की वज़ह से हर जगह भीगी भीगी लगती हैं ll
रात के अँधियारे को भेद कर उजालों ने क़दम रखा l
शीतल ठंड से धरती की चादर भीनी भीनी लगती हैं ll
रोज ढलती रात और दिन की शुरुआत के बीच में l
रोशनी की लालिमा को पीकर पीली पीली लगती हैं ll
ख्वाबों को मुकम्मल करने के लिए आगे बढ़ो कि l
सूर्य की तेज़ किरणों से भोर नीली नीली लगती हैं ll
पैमाने छलक जाते है जब सूरज दस्तक देता है तब l
प्रकृति ने साज शृंगार किया तो गिली गिली लगती हैं ll
६-११-२०२५
रात के हमसफ़र
ख्वाबों में रात के हमसफ़र ने सोने नहीं दिया l
रंगी नजारों ने चैन और सुकून को लूट लिया ll
पूनम की रात में चाँद सितारों की साक्षी में l
कुछ घंटे ही सही पूरी जिन्दगी को ही जिया ll
महफिल सजी हुई थी हुस्न और इश्क़ की ओ l
नशीली मस्त निगाहों से छलकता जाम पिया ll
आज दिल के गुलशन को बाग बाग करके l
खुशीयों से दामन भरके मुँह को भी सिया ll
हमसफ़र, हमराज़, हमनवाज, हमराही तो l
सखी से पल भर भी जुदा होने से बिया ll
७-११-२०२५
जुल्फ़ें है या बादल
जुल्फ़ें है या बादल गालों पर बिखर आए l
बहके न इसलिए महफिल से निकल आए ll
आज रूकते तो बहुत कुछ लुटा देना पड़ता l
मौक़े का फायदा उठाके जल्द सिमट आए ll
नशीले महकते गुलशन में परियों के मैले में l
जवानी देख जान ओ जिगर निखर आए ll
निगाहों का इशारा पढ़ कर खामोशी से l
इल्तजा मान कर रास्ता ही बदल आए ll
हुस्न वालों की अदाओं पर फ़िदा होके l
भोली सुरतिया को देखकर पिघल आए ll
८-११-२०२५
मिलन
जमीन औ आसमान कभी भी मिलते ही नहीं l
बिना माली के गुलशन में गुल खिलते ही नहीं ll
बड़े व्यस्त हो गये हैं इश्क़ वाले देखो कि l
आजकाल वो ख्वाबों में भी दिखते ही नहीं ll
इतने सीधे सादे ओ नादां है भोले सनम कि l
सही तरीके से जूठ बोलना सिखते ही नहीं ll
९-११-२०२५
आलू चाट
आलू चाट ने दिवाना बनाया हैं l
प्लेट खूबसूरती से सजाया हैं ll
इमली और मिर्ची मिलकर ही l
रसिका को स्वाद लगाया हैं ll
जायके का लुफ्त रूठे हुए l
हुस्न को खिलाके मनाया हैं ll
बारिस या फ़िर सर्दी की शाम l
सुगंधी ने भूख को जगाया हैं ll
चटपटी चटनी के साथ में चने l
खास मसालों ने रंग जमाया हैं ll
१०-११-२०२५
बादलों के पार
ख़ालिक ने बादलों के पार से संदेशा भेजा हैं l
एक बार फिर से नादां दिल के साथ खेला हैं ll
संदेश में खूबसूरत मिलन का आशीष भेजा है l
साथ में प्यारा सा हसीन नदीम भी भेजा हैं ll
सालों से लगातार देखे हुए सपने पूरे हुए l
सब कुछ किस्मत का ही लेखा जोखा हैं ll
नीले अम्बर में श्वेत बड़े गुब्बारे से देखो l
दुनिया तो आते जाते लोगों का मेला हैं ll
क़ायनात की प्यास बुझाने बारिस भेजा l
बादलों के पार से आती कृपा को वेला हैं ll
११-१०-२०२५
क़दमों के निशाँ
दर्द के क़दमों के निशाँ को छुपाना आ गया l
हसके ग़म को छुपा के मुस्कराना आ गया ll
रिश्तों के बाजार के कच्चे खेलाड़ी निकले तो l
अपने बलबूते पे खुशियां कमाना आ गया ll
बड़े शहर में तरह तरह के लोग बस्ते हो वहां l
छोटा सा सही आशियाना बनाना आ गया ll
आज पहले आप पहले आप की खिंचतान में l
जो भी मिला उसे जीगर से लगाना आ गया ll
अपने तो सभी है पर अपना कोई भी नहीं कि l
यार खुद से खुद का बोझ उठाना आ गया ll
१२-११-२०२५
शूल या फूल
शूल या फूल जो भी मिले सर आँखों पर l
बाग में गुल जो भी खिले सर आँखों पर ll
वक़्त जैसा जवाब कोई नहीं दे सकता है तो l
प्यार में गर धूल भी मिले सर आँखों पर ll
दुनिया में आना जाता तो लगा रहता है यहां l
मिलने बिछड़ने के सिलसिले सर आँखों पर ll
प्यार किया है निभाएंगे आखरी साँस तक l
जो भी बात करेंगे कबूले सर आँखों पर ll
आज सब कुछ जायज है मुस्कराते हुए कि l
खूबसूरत हसीं शिकवे गिले सर आँखों पर ll
१३-११-२०२५
शून्य से प्रश्न
शून्य से प्रश्न किया तेरी औक़ात क्या है बता दे जरा l
उसने कह दिया एक बार मुझे हटा के देख ले जरा ll
शून्य के बिना कोई हस्ती नहीं एक दो तीन चार की l
बढ़ती जाएगीं कीमत जितने लगाता जा अंक पे जरा ll
शून्य ही शुरुआत सबका है ओ शून्य अनंत अपार l
शून्य के बिना अधूरा रहता है पूछो अंक से जरा ll
शून्य में सब कुछ है समाया हुआ है सदियों से l
उस से ही अंक का विस्तार होता कर ले जरा ll
शून्य जिसके भी साथ बैठ गया समझो मूल्य बढ़ा l
उसे मालूम है उसकी कीमत मुझे भी खबर हे जरा ll
१४-११-२०२५
मैं और प्रकृति
मैं और प्रकृति एक ही सोच में डूबे हुए हैं l
धरती का कोना भी जीने जैसा छोड़े हुए हैं?
जिसे भी देखो सुबह शाम भाग ही रहा l
क़ायनात में क्या किसके सपने पूरे हुए हैं?
ज़मी को पूरी तरह से इमारतों ने घेरा कि l
दूर दूर तक लोगों की बस्ती ने घेरे हुए हैं ll
धन की लालच में पेड़,पौधे, वन काट कर l
प्रकृति संग इंसा ने अजीबो खेल खेले हैं ll
प्रकृति का दंश भुगतना होगा जिस ने भी l
अपने मतलब के लिए ही पापड बेले हैं ll
१५-११-२०२५