आरव कपूर—एक ऐसा नाम जो बिज़नेस की दुनिया में किसी ब्रांड से कम नहीं था।
सिर्फ़ 28 साल की उम्र में उसकी कंपनी “K-Tech Innovations” ने वो मुक़ाम हासिल किया था जहाँ पहुँचने में लोगों की ज़िंदगी बीत जाती है।
हर कोई उसे चाहने वाला था — नाम, पैसा, शोहरत… और लड़कियाँ, जो बस एक मुस्कान के इंतज़ार में उसके ऑफिस के बाहर तक मंडराती थीं।
लेकिन आरव के चेहरे पर हमेशा वही ठंडा सुकून रहता — कोई एहसास नहीं, कोई लगाव नहीं।वो मानता था कि प्यार टाइम वेस्ट है,कि ज़िंदगी एक गेम है — जहाँ हारने की इजाज़त किसी को नहीं।
पर वो नहीं जानता था, कि ज़िंदगी अक्सर उसी वक्त पलट जाती है,जब दिल ये सोचता है कि अब कुछ नहीं बदलेगा।---उस दिन ऑफिस में नए इंटरव्यू चल रहे थे।
आरव की नज़र फाइलों पर थी, लेकिन तभी एक हल्की आवाज़ ने उसे रोका —“Good morning, sir.”वो नज़र उठाता है… और बस कुछ सेकंड के लिए रुक जाता है।
सामने खड़ी थी रूही शर्मा —सादा सलवार-सूट, बालों की कुछ लटें हवा में बिखरी हुईं,और आँखों में वो मासूमियत जो किसी दर्पण से भी ज़्यादा साफ़ लग रही थी।
वो बाकी लड़कियों की तरह तैयार नहीं थी, न बनावटी आत्मविश्वास से भरी —पर उसमें कुछ था, कुछ ऐसा जो शब्दों से बाहर था।“आपकी क्वालिफिकेशन?” आरव ने औपचारिकता से पूछा।
“MBA in HR, सर,” उसने धीरे से कहा।आवाज़ में कंपन था, पर सच्चाई भी।और आरव को पहली बार लगा — किसी की सादगी भी दिल पर असर छोड़ सकती है।
---कुछ दिनों बाद रूही ऑफिस का हिस्सा बन गई।वो हमेशा चुपचाप रहती, काम में डूबी हुई,सबको मदद करती, किसी से उलझती नहीं।
जहाँ बाकी लोग आरव से डरते थे,वहीं वो उसके सामने न झिझकती थी, न चापलूसी करती थी।आरव नोटिस करता —जब बाकी लोग उसे इंप्रेस करने में लगे रहते,वो बस अपना काम करती रहती।
कभी लंच टाइम में कैंटीन के कोने में बैठकर चाय पीती,कभी बारिश में खिड़की से बाहर देखती,जैसे ज़िंदगी की सबसे छोटी चीज़ों में सुकून ढूँढ लेती हो।
और शायद पहली बार,आरव को भी किसी को देखने में सुकून मिला।---एक दिन बारिश बहुत तेज़ थी।ऑफिस से सब निकल चुके थे।
रूही छतरी लाना भूल गई थी और बाहर खड़ी थी, पानी रुकने का इंतज़ार करती हुई।आरव ने कार का शीशा नीचे किया,“Drop दूँ?” उसने सहजता से पूछा।रूही हिचकी, फिर मुस्कुरा दी,“नहीं सर, मैं manage कर लूँगी।
”“रूही,” आरव ने पहली बार उसका नाम लिया —धीरे, लेकिन जैसे कोई धुन सुनाई दे।“कभी-कभी… ज़िद नहीं,
किसी का साथ भी जरूरी होता है।”वो मुस्कुराई और कार में बैठ गई।रास्ता भले छोटा था, पर उन कुछ मिनटों में जो खामोशी थी,वो हर शब्द से ज़्यादा गहरी थी।
बारिश की बूंदें शीशे पर गिरती रहीं,और दोनों के बीच की दूरी धीरे-धीरे मिटती गई।---दिन बीतते गए।आरव को अब ऑफिस आने में मज़ा आने लगा था।
रूही की हँसी, उसका शांत स्वभाव — सब उसके रुटीन का हिस्सा बन गया।वो खुद भी नहीं जान पाया कि सुकून कब उसकी चाहत बन गया।एक शाम रूही ने resignation दिया।
“क्यों?” आरव ने पूछा, जैसे किसी ने उसके दिल पर चोट कर दी हो।“सर… मेरे लिए ये जगह बहुत बड़ी है। मैं यहाँ fit नहीं होती।”आरव ने गहरी साँस ली।
“रूही, किसी जगह का बड़ा या छोटा होना मायने नहीं रखता…कभी-कभी एक इंसान ही उस जगह की सबसे खूबसूरत वजह बन जाता है।
”रूही ने कुछ नहीं कहा, बस उसकी आँखों में देखा —वो नज़र… जैसे सब कुछ कह गई हो।
---कुछ हफ़्तों बाद कंपनी की एक इवेंट पार्टी थी।बारिश फिर हो रही थी, और आरव की नज़र फिर उसी लड़की को ढूँढ रही थीजिसने उसकी ज़िंदगी की खामोशियाँ भर दी थीं।
वो आई — नीले रंग की ड्रेस में,बाल हल्के खुले, चेहरे पर वही सादगी, पर इस बार कुछ और था…एक अलग चमक।आरव बस उसे देखता रहा।इस बार उसने खुद आगे बढ़कर कहा,
“रूही… तुम चली जाओगी तो ये जगह फिर वैसी नहीं रहेगी।”रूही हल्के से मुस्कुराई —“सर, मैं कोई खास नहीं…”आरव ने बीच में ही कहा,“गलत हो तुम।
तुम वही हो जिसने मुझे सिखाया कि ज़िंदगी का गेम जीतने से ज़्यादा…किसी को महसूस करना ज़रूरी है।”रूही की आँखों में आँसू आ गए,और आरव ने पहली बार अपने दिल की बात कह दी
—“Stay. सिर्फ़ इस कंपनी में नहीं… मेरी ज़िंदगी में भी।
”बारिश फिर तेज़ हुई, और दोनों बाहर चले गए।सड़क पर स्ट्रीट लाइट्स चमक रही थीं, हवा में भीगते हुए वो पल किसी फिल्म जैसा लग रहा था।आरव ने उसका हाथ थामा —“शायद पहली बार… मैं हारना चाहता हूँ, तुम्हारे सामने।
”रूही ने मुस्कुराकर कहा,“तो ये हार… तुम्हारी सबसे खूबसूरत जीत होगी।
”बारिश में वो दोनों हँस पड़े,और उस पल में कुछ भी अधूरा नहीं था।---
कभी-कभी सादगी वो कर जाती है,जो हज़ार ख़ूबसूरती नहीं कर पाती…रूही ने आरव को नहीं बदला — बस उसे उसके दिल से मिलवा दिया।और शायद,यही प्यार की असली जीत थी। ❤️