midnight mirror in Hindi Horror Stories by jeetendra books and stories PDF | आधी रात का आईना

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आधी रात का आईना


रोहन को पुरानी चीज़ों का बहुत शौक था। एक दिन, कबाड़ की दुकान पर उसे एक बड़ा, पुराना शीशा मिला। शीशे का फ्रेम काला पड़ चुका था, और उसमें अजीब सी, गहरी चमक थी। दुकानदार ने कहा, "बाबूजी, ये आईना अपशकुनी है, कोई नहीं लेता। इसे मत लो।" लेकिन रोहन नहीं माना। उसने सोचा कि इसे साफ करके हॉल में लगाएगा।
वह शीशा घर ले आया और उसे अपने बेडरूम में रख दिया। रात हो गई, रोहन थक चुका था और जल्दी सो गया।
भाग 1: आईने की दस्तक
आधी रात को, रोहन की आँख खुली। कमरे में घोर अँधेरा था, लेकिन शीशे से एक हल्की, फीकी रोशनी आ रही थी। रोहन को लगा कि उसने कोई आवाज़ सुनी है, जैसे कोई लकड़ी पर धीरे से दस्तक दे रहा हो। 'ठक... ठक... ठक...'
वह उठकर बैठ गया। आवाज़ शीशे की तरफ से आ रही थी। उसने सोचा शायद हवा से कुछ टकरा रहा होगा। वह वापस लेटने वाला था कि आवाज़ फिर आई। इस बार थोड़ी तेज और पास।
रोहन ने हिम्मत करके टॉर्च ऑन की और शीशे की तरफ देखा। उसे शीशे में अपना प्रतिबिंब (reflection) दिखाई दिया, लेकिन कुछ अजीब था। उसका प्रतिबिंब मुस्कुरा रहा था, जबकि रोहन का चेहरा डर से सफेद पड़ चुका था। और, उसके प्रतिबिंब की आँखों में एक भयानक लाल चमक थी।
रोहन ने डरकर अपनी आँखें झपकाईं। जब उसने दोबारा देखा, तो प्रतिबिंब अब मुस्कुरा नहीं रहा था, लेकिन उसकी आँखें अब भी लाल थीं, और उसके होंठ धीरे-धीरे हिल रहे थे, जैसे वह कुछ कहने की कोशिश कर रहा हो।
भाग 2: आवाज़ और हाथ
रोहन का दिल जोर से धड़क रहा था। उसने सोचा कि यह सिर्फ नींद का भ्रम है। उसने जल्दी से टॉर्च ऑफ की और चादर ओढ़कर आँखें बंद कर लीं।
तभी, उसे एक फुसफुसाहट सुनाई दी। आवाज़ बहुत पुरानी और सूखी थी, जैसे किसी कब्र से आ रही हो।
> "बाहर... आओ... रोहन..."
रोहन ने डर के मारे चादर कसकर पकड़ ली। आवाज़ अब साफ थी, और उसके नाम के साथ थी।
> "तुम्हारी... दुनिया... कितनी... फीकी... है... मेरी... दुनिया... में... रोशनी... है..."
रोहन को महसूस हुआ कि उसके पैर के पास चादर का किनारा धीरे से खींच रहा है। उसने तुरंत अपने पैर अंदर खींचे और चादर को दबा लिया। उसे अपने कान के पास ठंडी, सड़ी हुई साँस महसूस हुई।
वह चिल्लाने ही वाला था कि तभी, चादर के नीचे से, उसने एक काला, लंबा, पतली उँगलियों वाला हाथ देखा जो ज़मीन पर रेंग रहा था। वह हाथ धीरे-धीरे ऊपर उठा और शीशे की तरफ इशारा किया।
उसने डर के मारे चिल्लाते हुए टॉर्च ऑन कर दी। जैसे ही टॉर्च की रोशनी शीशे पर पड़ी, शीशे की लाल चमक बुझ गई। काला हाथ गायब हो गया, और कमरे में भयानक सन्नाटा छा गया।
रोहन हाँफते हुए उठा और बिना कुछ सोचे, शीशे को उठाया और घर के सबसे पिछले हिस्से में फेंक आया। सुबह होते ही उसने उस आईने को हमेशा के लिए गायब कर दिया।
मगर आज भी, जब रोहन रात में कोई दरवाज़ा या खिड़की बंद करता है, तो उसे कभी-कभी आईने की तरह, लकड़ी पर धीरे से दस्तक देने की आवाज़ सुनाई देती है। 'ठक... ठक... ठक...' और वह जानता है कि आईना चला गया है, पर उसकी नज़र अब भी उस पर है।
यह कहानी कैसी लगी? क्या आप कोई और तरह की हॉरर कहानी सुनना चाहेंगे, जैसे भूतिया हवेली या जंगल का रहस्य?
⚡भाग 3: पिछवाड़े का अँधेरा⚡
रोहन ने सुबह होते ही उस शीशे को ठोस ईंटों और सीमेंट से बनी एक पुरानी, टूटी हुई कोठरी (shed) में बंद कर दिया और उसका दरवाज़ा बाहर से जंग लगी जंजीरों से कसकर बाँध दिया। वह जानता था कि उसे उस आईने को नष्ट कर देना चाहिए था, लेकिन जैसे ही वह उसे तोड़ने जाता, उसके मन में एक अजीब सी हिचकिचाहट आ जाती।
अगली रात, रोहन को नींद नहीं आई। वह बरामदे में बैठा था और उसकी नज़र बार-बार पिछवाड़े की उस कोठरी की तरफ जा रही थी। चाँद की रोशनी कोठरी की टूटी खिड़की से अंदर जा रही थी।
अचानक, उसे कोठरी के अंदर से काँच के रगड़ने की एक धीमी, कर्कश आवाज़ सुनाई दी। जैसे कोई नाखून से शीशे को खरोंच रहा हो। 'श्रीईईईक... श्रीईईईक...'
रोहन कोठरी की तरफ भागा, उसका दिल धक-धक कर रहा था। दरवाज़े पर लगी जंग लगी ज़ंजीरें अपनी जगह पर थीं, पर उस आवाज़ ने उसके रोंगटे खड़े कर दिए। तभी, उसने खिड़की के पास हलचल देखी। खिड़की के धूल भरे काँच पर, रोहन ने देखा कि कोई अस्पष्ट, धुंधली आकृति है। वह आकृति शीशे के अंदर नहीं, बल्कि शीशे के सामने खड़ी थी, और वह बाहर निकलने के लिए काँच को कुरेद रही थी!
रोहन को लगा जैसे उसके सिर पर किसी ने ठंडा पानी डाल दिया हो। वह समझ गया कि वह चीज़ केवल आईने के प्रतिबिंब में नहीं है, बल्कि आईने के साथ इस दुनिया में आ गई है।
🩸भाग 4: दरवाज़े पर दरार🩸
रोहन तेज़ी से पीछे हटा और घर के अंदर भागकर दरवाज़ा बंद कर लिया। उसने खिड़कियाँ बंद कीं और सारे पर्दे खींच दिए। वह डर के मारे रसोई में रखी सबसे बड़ी छुरी लेकर सोफे पर बैठ गया।
रात के तीन बज रहे थे, और हर तरफ भयानक सन्नाटा था। रोहन की नज़र दरवाज़े पर टिकी थी।
तभी, दरवाज़े पर ज़ोरदार दस्तक हुई।
> "धम्म! धम्म! धम्म!"
इस बार आवाज़ पुरानी या सूखी नहीं थी, यह सख्त, भारी और क्रूर थी, जैसे कोई भारी पत्थर दरवाज़े से टकरा रहा हो।
रोहन पसीने से भीग गया। उसने काँपते हाथों से छुरी कसकर पकड़ ली।
दस्तकें रुक गईं। रोहन ने राहत की साँस ली।
लेकिन तभी, दरवाज़े के लकड़ी के निचले हिस्से से, एक धीमी चरमराहट की आवाज़ आई। रोहन ने देखा कि दरवाज़े की लकड़ी में एक पतली, लंबी दरार पड़ गई है, और उस दरार से गहरी, सड़ी हुई मिट्टी की महक आ रही है।
और फिर, उस दरार के बीच से, एक लाल चमकती आँख उसे घूर रही थी।
आवाज़ फुसफुसाई: "तुम... मुझे... रोक... नहीं... पाओगे... यह... दुनिया... मेरी... है..."
रोहन को पता चल गया कि अगर वह सुबह होने तक जीवित रहना चाहता है, तो उसे उस शीशे को पूरी तरह से नष्ट करना होगा, इससे पहले कि वह शैतानी आईना अपनी पूरी शक्ति से इस दुनिया में अपना रास्ता बना ले।
🔥भाग 5: विनाश की योजना🔥
रोहन जानता था कि अब समय खत्म हो रहा है। दरवाज़े पर पड़ी दरार से लाल आँख उसे लगातार घूर रही थी। वह आँख हिल नहीं रही थी, जैसे वह धीरज से रोहन के अगले कदम का इंतज़ार कर रही हो।
रोहन ने डर को काबू किया और जल्दी से सोचने लगा। उस चीज़ ने लकड़ी के दरवाज़े में सेंध लगा दी थी—वह आईने से जुड़ी हुई थी, इसलिए शायद यह काँच या शीशे से नहीं, बल्कि मिट्टी और लकड़ी जैसी चीज़ों से बनी थी। इसे नष्ट करने का एक ही तरीका था: आग।
उसने जल्दी से गैस स्टोव से मिट्टी का तेल (केरोसिन) लिया, एक पुरानी टॉर्च उठाई और रसोई की छुरी कसकर पकड़ ली। उसने धीरे से पीछे वाले दरवाज़े की तरफ देखा।
दरवाज़े के पास से अब दो लाल आँखें चमक रही थीं।
> "तुम्हारी... कोशिश... बेकार... है... रोहन..."
रोहन ने जवाब नहीं दिया। वह सीधे पिछवाड़े की कोठरी की तरफ भागा।
🔨भाग 6: शीशे का टूटना (The Shatter)🔨
कोठरी का दरवाज़ा जंग लगी ज़ंजीरों से बंधा था। रोहन ने अपनी पूरी ताकत लगाकर रसोई की छुरी को ज़ंजीरों के बीच फँसाया और उन्हें खींचने लगा। उसके हाथ छिल गए, लेकिन ज़ंजीरें टूटने का नाम नहीं ले रही थीं।
तभी, उसने सुना कि कोठरी के अंदर से भयंकर चीख आई।
> "छोड़... मुझे... मत... छूना..."
चीख सुनकर रोहन को लगा कि वह सही कर रहा है। उसने ज़ोर से ज़ंजीरों पर वार किया। "कटाक!" - एक ज़ंजीर टूट गई।
जैसे ही ज़ंजीर टूटी, कोठरी के अंदर से एक तेज़, ठंडी हवा बाहर निकली। दरवाज़ा चरमराया। रोहन ने तुरंत मिट्टी का तेल उस कोठरी के दरवाज़े और खिड़की पर उँडेल दिया।
उसने आखिरी बार पीछे मुड़कर अपने घर की तरफ देखा। उसे लगा जैसे घर की खिड़कियों से भी अब लाल, हल्की सी चमक दिखाई दे रही है। वह चीज़ अब उसके घर को भी अपनी गिरफ्त में ले रही थी।
रोहन ने बिना देर किए, माचिस की तीली जलाई और दरवाज़े पर फेंक दी।
🕯️भाग 7: राख और छायाएँ🕯️
आग तेज़ी से भड़क उठी।
जैसे ही लपटें कोठरी तक पहुँचीं, रोहन कोठरी के टूटे दरवाज़े से अंदर की ओर झाँका। जलती हुई लकड़ी और धुएँ के बीच, उसने देखा कि काला, पुराना शीशा जलती हुई लकड़ियों के बीच रखा है, और शीशे के अंदर कोई काली आकृति हाथ-पाँव मार रही है, जैसे वह जल रही हो।
अचानक, एक तेज़ गड़गड़ाहट हुई। शीशा चटक गया।
रोहन ने आँखें बंद कर लीं, लेकिन शीशा टूटने की आवाज़ उसके कानों में कई गुना ज़्यादा गूँजी। जब उसने आँखें खोलीं, तो कोठरी पूरी तरह से आग की लपटों में घिरी थी।
रोहन तब तक वहीं खड़ा रहा, जब तक कि आग पूरी तरह शांत नहीं हो गई और कोठरी की दीवारें राख में नहीं बदल गईं।
अगली सुबह, वहाँ सिर्फ जली हुई लकड़ी, राख और पिघले हुए काँच के टुकड़े थे। वह आईना नष्ट हो गया था।
रोहन ने राहत की साँस ली, लेकिन वह जानता था कि उसने उस चीज़ को मारा नहीं, बस उसे वापस धकेल दिया है।
आज भी, रोहन रात में सोते समय, सबसे पहले यह देखता है कि उसके कमरे में कोई शीशा या आईना तो नहीं रखा है। क्योंकि उसे डर है कि एक दिन, जब वह आईने में खुद को देख रहा होगा, तो उसका प्रतिबिंब फिर से लाल आँखों से मुस्कुराएगा, और फुसफुसाएगा:
> "क्या तुम्हें लगा... कि तुम... मुझे... नष्ट... कर सकते... हो? मैं... अब... हर... काँच... में... हूँ..."