Mask pahne log ? in Hindi Motivational Stories by Arkan books and stories PDF | मास्क पहने लोग?

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मास्क पहने लोग?

Mask Pehne Log



(एक दर्द, एक सच, एक दुनिया)


कभी-कभी सोचता हूँ, क्या इस दुनिया में कोई चेहरा ऐसा भी बचा है जो असली हो?

हर तरफ बस मुस्कुराहटें हैं, जो आँखों तक नहीं पहुँचतीं।

हर हँसी के पीछे कोई डर, कोई झूठ, कोई दिखावा छिपा होता है।

कभी कोई “कैसे हो?” पूछता है, तो लगता है — ये सवाल नहीं, बस औपचारिकता है।

क्योंकि जवाब किसी को सुनना ही नहीं होता।


यह दुनिया एक स्टेज बन गई है, और हम सब एक्टर्स हैं।

हर कोई अपनी भूमिका निभा रहा है — कोई “दोस्त” बनकर, कोई “अपना” बनकर,

पर सबके पीछे एक मास्क है — जो असली चेहरे को ढक देता है।

किसी को मतलब नहीं तुम्हारे जख्मों से,

बस यह देखना जरूरी है कि तुम मुस्कुरा रहे हो या नहीं।


लोग अब इंसान नहीं रहे —

मतलब उनके लिए नया धर्म है,

और फायदा नई इंसानियत।

कभी जो रिश्ते दिल से बनते थे, अब ज़रूरत से बनते हैं।

जो साथ चलते हैं, वो मंज़िल तक नहीं जाते,

बस तब तक रहते हैं, जब तक उनका काम चल रहा होता है।


कभी किसी ने मुझसे कहा था —

“दुनिया बहुत खूबसूरत है।”

हाँ, है भी।

बस शर्त ये है कि तुम आँखें बंद रखो,

क्योंकि खुली आँखों से देखने पर सब नकली लगने लगता है।


लोग अब “मास्क” नहीं पहनते चेहरे पर —

वो पहनते हैं रवैयों में।

कोई झूठी मुस्कान का मास्क,

कोई फेक प्यार का,

कोई हमदर्दी का।

हर किसी का चेहरा किसी ना किसी दर्द की कहानी छुपा देता है,

और हम सब उस कहानी को पढ़े बिना आगे बढ़ जाते हैं।


रिश्ते अब सोने जैसे दिखते हैं,

पर हाथ में आते ही जंग लग जाती है।

कोई किसी की परवाह नहीं करता,

बस परवाह का “ड्रामा” खूब चलता है।

लोग दूसरों को नहीं, खुद को भी धोखा दे रहे हैं।


इस “Mask Pehne Log” की दुनिया में,

सब कुछ बिकाऊ है —

भावनाएँ, भरोसा, और यहाँ तक कि इंसानियत भी।

कभी-कभी सोचता हूँ, अगर कोई सच बोल दे —

तो उसे झूठा कहकर अकेला छोड़ दिया जाता है।

क्योंकि इस दुनिया को सच नहीं चाहिए,

उसे तो बस आरामदायक झूठ चाहिए।


हर दिन हम थोड़ा-थोड़ा अपने असली रूप से दूर जा रहे हैं।

अब कोई सच्चा होना नहीं चाहता,

क्योंकि सच्चे को सबसे ज़्यादा दर्द मिलता है।

लोग अब “अच्छे” नहीं बनना चाहते,

बस “सही दिखना” चाहते हैं।


इस नकली दुनिया में एक असली दिल रखना

सबसे बड़ी हिम्मत है।

जो दिल से जीता है, वो टूटता ज़रूर है,

मगर उसकी टूटन में भी सच्चाई होती है।

क्योंकि जो दिल झूठ से बना है, वो कभी नहीं टूटता —

वो बस बदल जाता है।


कभी सोचा है, अगर एक दिन ये सारे मास्क उतर जाएँ —

तो शायद कोई चेहरा पहचान में न आए।

शायद वो दोस्त दुश्मन लगे,

वो अपना अजनबी बन जाए,

और वो जो कभी “हमदर्द” था,

वो सबसे बड़ा दर्द बन जाए।


पर फिर भी, इस झूठी दुनिया में सच्चाई की तलाश छोड़नी नहीं चाहिए।

क्योंकि अब भी कुछ लोग हैं —

जो मास्क के पीछे नहीं, दिल से

मुस्कुराते हैं।

वो कम हैं, मगर वही इस दुनिया को थोड़ा बेहतर बनाते हैं।

कभी बाज़ार में देखा है?

हर चीज़ पर एक दाम लिखा होता है —

कितनी कीमत, कितना फायदा।

अब वही हाल रिश्तों का भी हो गया है।

बस फर्क इतना है कि यहाँ दाम दिखाई नहीं देते,

महसूस होते हैं।


कभी किसी ने बिना वजह हाल पूछा?

कभी किसी ने बिना स्वार्थ “कैसे हो?” कहा?

नहीं ना...

क्योंकि यहाँ हर पूछताछ किसी मकसद से होती है।

यहाँ “खैरियत” का मतलब है —

“मेरा काम तो याद है ना?”


पहले रिश्ते दिलों से बनते थे,

अब सहूलियतों से बनते हैं।

कभी साथ रहने की कसमें ली जाती थीं,

अब कहा जाता है — “जब तक ज़रूरत है।”

कभी दोस्ती में भरोसा होता था,

अब बस इस्तेमाल।


ये दुनिया अब एक रिश्तों की मंडी है —

जहाँ प्यार भी बिकता है,

पर सच्चाई की दुकान खाली पड़ी है।

लोग साथ चलते हैं, पर मंज़िलें अलग होती हैं।

हर मुस्कान में एक झूठ है,

हर “मैं हमेशा साथ हूँ” में एक छल।


कभी किसी से दिल लगाना

ऐसा लगता है जैसे काँच पर चलना —

हर कदम पर डर कि अगला दर्द कहाँ से आएगा।

कभी जो “अपना” लगता है,

वही सबसे गहरा घाव देता है।

और हैरानी की बात ये है कि,

वो फिर भी “अच्छा इंसान” कहलाता है।


यहाँ रिश्ते अब सौदे बन गए हैं।

किसी को वक्त चाहिए, किसी को फायदा।

किसी को साथ चाहिए, पर ज़िम्मेदारी नहीं।

कभी-कभी लगता है,

अगर इस दुनिया में दिल बेचने की दुकान खुल जाए,

तो भीड़ सबसे ज़्यादा वहीं होगी।


हम सब इस मंडी के ग्राहक हैं —

कभी ख़रीददार, कभी सामान।

कभी किसी की ज़रूरत, कभी किसी का इस्तेमाल।

और इस खेल में सबसे बड़ा हारने वाला वो है

जो दिल से निभाता है।


अब “वक़्त” रिश्तों से बड़ा हो गया है।

लोग कहते हैं — “समय नहीं मिला।”

पर झूठ ये है कि मन नहीं था।

अगर कोई सच्चा होता,

तो वक़्त खुद रुक जाता।


दर्द तो तब होता है जब

जिसे तुम सब कुछ मानते हो,

वो तुम्हें विकल्प मानता है।

जब तुम्हारा होना किसी के लिए

बस एक आदत बन जाए,

ज़रूरत नहीं।


कभी-कभी लगता है, इस मंडी में

सब कुछ बिक चुका है —

बस एक चीज़ अब भी अनमोल है —

सच्चा दिल।

मगर अफसोस,

लोग अब उसे खरीदना नहीं चाहते।


और जो सच्चे हैं,

वो भी अब छिपना सीख गए हैं।

क्योंकि इस दुनिया में सच्चे रहना

कमज़ोरी कहलाता है।

यहाँ नकली होना ट्रेंड है,

और सच्चा होना गुनाह।


पर फिर भी, कहीं ना कहीं,

कोई न कोई अब भी सच्चा होगा —

किसी को याद करते हुए, किसी के लिए दुआ करते हुए,

बिना किसी स्वार्थ के।

शायद वही कुछ चेहरे अब भी

इस मंडी की रोशनी में इंसानियत की लौ जलाए रखते हैं l

कभी गौर किया है —

सबके चेहरे पर मुस्कान है,

पर आँखों में सुकून नहीं।

हर कोई हँस रहा है,

पर भीतर कोई बात चुभ रही है।

यह वही दुनिया है,

जहाँ “ठीक हूँ” कहना एक आदत बन चुकी है,

और “टूट गया हूँ” बोलना कमज़ोरी।


हर इंसान अपने भीतर एक चुप चीख़ छुपाए चलता है।

किसी को बताने की कोशिश करे भी तो,

सामने वाला सुनता नहीं — बस जवाब दे देता है:

“हिम्मत रखो, सब ठीक हो जाएगा।”

पर कोई नहीं पूछता कि कब ठीक होगा,

या क्या सच में ठीक होना ज़रूरी भी है?


कभी-कभी सोचता हूँ,

हम सब खामोश चेहरों का कारवाँ हैं।

जो मुस्कान ओढ़े चलते हैं,

ताकि दुनिया हमें “कमज़ोर” न कहे।

हर दिन, हर रात,

एक नया मास्क, एक नई झूठी हँसी,

और उसी के साथ एक और सच्चाई दफ़्न।


लोग कहते हैं —

“दुनिया बदल गई है।”

नहीं… दुनिया नहीं बदली,

बस चेहरों के पीछे का सच बदल गया है।

अब कोई दर्द बाँटने नहीं आता,

बस जिज्ञासा में पूछता है — “क्या हुआ?”

फिर आगे बढ़ जाता है, जैसे कुछ सुना ही नहीं।


कभी किसी पार्क में, किसी भीड़ में,

किसी कैफ़े के कोने में देखना —

तुम्हें कई “मुस्कुराते लोग” दिखेंगे।

पर अगर तुम उनकी आँखों में देखो,

तो लगेगा जैसे हर कोई किसी अधूरेपन से लड़ रहा है।

कोई खोया हुआ है, कोई थका हुआ,

कोई बस दिखा रहा है कि वो ठीक है।


यह दुनिया अब भावनाओं से नहीं चलती,

यह चलती है “इमेज” से।

यहाँ इंसानियत से ज़्यादा अहम है “प्रभाव।”

यहाँ सच्चाई से ज़्यादा ज़रूरी है “दिखावा।”

और इसी दिखावे ने असली दिलों को खामोश कर दिया है।


हर कोई चाहता है कि कोई उसे समझे,

पर कोई सुनने को तैयार नहीं।

हम सब बस बोलते हैं —

क्योंकि सुनने के लिए किसी के पास वक़्त नहीं बचा।

इसलिए अब लोग बोलना छोड़कर

अंदर ही अंदर सड़ने लगे हैं।


शायद यही है असली दर्द —

जब तुम भीड़ में हो, फिर भी अकेले।

जब सब तुम्हें जानते हैं,

फिर भी कोई तुम्हें समझता नहीं।

जब सब तुम्हारे साथ हैं,

पर कोई तुम्हारे अंदर नहीं झाँकता।


कभी-कभी लगता है,

अगर किसी दिन ये सारे “Mask Pehne Log”

अपने चेहरे से नकाब हटा दें,

तो शायद यह दुनिया बहुत ख़ूबसूरत भी लग सकती है —

क्योंकि झूठ की परत हटे तो सच भी सुन्दर होता है।

पर अफ़सोस,

अब किसी के पास हिम्मत नहीं बची कि वो असली चेहरा दिखा सके।


और शायद यही सच्चाई है —

कि अब सच्चे लोग लुप्तप्राय प्रजाति बन चुके हैं।

जिन्हें दर्द होता है, वो हँसते हैं;

जो टूटते हैं, वो चुप रहते हैं;

जो सबसे सच्चे हैं,

वो सबसे अकेले हैं।


इसलिए, अगर कभी तुम्हें कोई ऐसा चेहरा मिले

जो बिना वजह मुस्कुरा रहा हो —

तो बस उसके पास बैठ जाना।

शायद वो कुछ नहीं कहेगा,

पर तुम्हारा होना ही उसके लिए बहुत होगा।


क्योंकि इस मतलबी, मुखौटों वाली दुनिया में

अब भी कुछ लोग ऐसे हैं

जो अंदर से टूटे

हैं, पर दिल से सच्चे।


और शायद वही —

इस झूठी भीड़ में इंसानियत की आख़िरी पहचान हैं।

अगर तुमने यह किताब पूरी पढ़ ली है,

तो शायद तुमने भी कभी किसी चेहरे के पीछे छिपा दर्द देखा होगा।

शायद तुम भी कभी किसी “मतलबी दुनिया” में सच्चे रहे होगे।

और अगर हाँ —

तो ये किताब तुम्हारी ही कहानी थी, बस शब्द मेरे थे।


दुनिया हमेशा वैसी नहीं होती जैसी दिखती है।

लोग हँसते हैं, मगर टूटे होते हैं।

कोई साथ चलता है, मगर दिल कहीं और होता है।

और फिर भी —

इस झूठी भीड़ में सच्चे रहना,

सबसे बड़ी बहादुरी है।


अगर इस किताब की कोई पंक्ति

तुम्हारे दिल को छू गई हो,

तो उसे संभाल कर रखना —

क्योंकि शायद वही तुम्हें याद दिलाएगी

कि सच्चे लोग अब भी हैं,

बस चुप हैं, क्योंकि दुनिया बहुत शोर करती है।


शायद तुम भी उन लोगों में से एक हो,

जो भीड़ में खोए हुए हैं,

मगर अब भी उम्मीद रखते हैं कि कोई उन्हें “वो” कहेगा —

“तुम झूठे नहीं लगते।”


कभी मत बदलना।

इस दुनिया को मतलबी बनने दो,

पर तुम सच्चे बने रहो —

क्योंकि यही तुम्हें बाकियों से खास बनाता है।


और अगर किसी दिन तुम्हें लगे कि

अब हिम्मत नहीं बची,

तो यह किताब फिर से पढ़ना —

शायद इसमें छिपा कोई शब्द

तुम्हें फिर से ज़िंदा कर दे।



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🕊️ “Mask Pehne Log”

उन लोगों के नाम, जो सच्चे हैं —

इस झूठी दुनिया के बावजूद।