Oath of ashes: the reborn demon - 1 in Hindi Fiction Stories by Arianshika books and stories PDF | राख की शपथ: पुनर्जन्मी राक्षसी - पाठ 1

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राख की शपथ: पुनर्जन्मी राक्षसी - पाठ 1

तमोराज, वह रा-राजपुत्री, फिर से भाग गई थी।

तमोराज्या के राजा कालनार्थ के विशाल कक्ष में एक धीमी आवाज़ गूंजी। पहले से ही भारी हवा अब और भी अंधेरी हो गई, जब वह परदों के पीछे से बाहर आया — परदे जो कुछ ही मिनटों में उसकी चारों ओर फैलती हुई दैवी अंधकारमय आभा से जलने वाले थे।

“और शतागिनी(राक्षस सैनिक) क्या कर रहे थे?” उसकी लाल रक्त जैसी आँखें सेना प्रमुख पर जा टिकीं — वही दानव योद्धा जिसे उसकी कैद की ज़िम्मेदारी सौंपी गई थी।

वह पत्थर की श्रापित बेड़ियों में बंधी थी,
पर तूफ़ान को पत्थर बाँध नहीं सकता।

सेना प्रमुख, जो स्वयं महान दानवों में से एक था, झुक गया। माथे पर पसीने की बूंदें, गले की नस धड़कती हुई — मानो अंधकार का रक्त भीतर खौल रहा हो।

“वे थे... पर उसने उन्हें बेहोश कर दिया,” वह फुसफुसाया।

अगले क्षण केवल राजा की धीमी साँस सुनाई दी।
“दूर हो जाओ,” कालनार्थ ने कहा।

सेना प्रमुख हवा में उछलता हुआ बाहर जा गिरा — जिंदा था। उसके चेहरे पर राहत फैल गई। अगर ऐसा चलता रहा तो मौत पास थी लेकिन आज नही।

कालनार्थ ने महल की खुली खिड़की की ओर रुख किया। सामने तमोराज्या की अद्भुत सुंदरता फैली थी — बादलों के बीच उड़ते ड्रैगन, और दानव लोग अपने जीवन में मग्न, जैसे यह उनका स्वाभाविक संसार हो। आखिर यह साम्राज्य तो उसी राख पर खड़ा था जहाँ एक महान युद्ध में सब कुछ जलकर मिट गया था।

“अब कहाँ गई तुम…” वरेशानी तमोराज ने बुदबुदाया। उसके जबड़े की नस तन गई। वह जानता था — वह क्या कर सकती है।
वह दानवों में एक ‘बालिका’ थी, पर आयु हज़ारों वर्षों की। और उसकी बुद्धि इतनी तीक्ष्ण थी कि देवताओं को भी हरा दे।

आख़िर अग्नेय (अग्नि के ड्रैगन देवता) और क्षमाय (हिम के ड्रैगन देवता) को नियंत्रित करना बच्चों का खेल नहीं था। स्वयं कालनार्थ कई बार असफल हुआ था, और उन्होंने उन्हें एक सप्ताह में वश में कर लिया — जैसे कोई सामान्य खिलौना हो।

उधर, एक युवती — सफेद रेशमी साड़ी में लिपटी — नगर के बाज़ार में चल रही थी। उसकी चाल में ऐसी ठहराव थी कि हर पायल की झंकार मानो स्वर्ग को उसकी मौजूदगी का आभास करा रही हो।

तेज़ नज़रें, लंबी चोटी, और काली आँखें — इंसानों जैसी, पर अगर वह सावधान न रहे, तो लाल आग बन जातीं।
वह यहाँ सैकड़ों बार आ चुकी थी, फिर भी कोई उसे याद नहीं करता था — क्योंकि किसी ने उसे कभी सच में देखा ही नहीं।

हर बार नया चेहरा, नई पहचान…पर वही पुरानी, गहरी दानवी आभा।
वरेशानी — या कहो, वाहिनी — कभी किसी को जानने की परवाह नहीं करती थी। क्यों करती? वे सभी तो दानवय समय अनुसर कुछ ही सांसों में मरने वाले थे।

उसे मनुष्यों की छोटी-छोटी चीज़ें पसंद थीं — मसाले, गहने, कपड़े, औषधियाँ… यहाँ तक कि उनके घर और उनकी सोच भी।
हर बार एक नया खेल, एक नया शिकार।
पर आज कुछ अलग था।
आज वह किसी को मारने आई थी — किसी ऐसे को, जो मरने के योग्य था।

उसके भारी कदम गलियों में गूंजे। उसकी ठंडी नज़र किसी को भी रोकने की चुनौती दे रही थी।
घी और फूलों की मिली-जुली खुशबू हवा में तैर रही थी — और उसके भीतर कोई पुरानी याद जल उठी। उसका मकसद, 
क्यों वह अब भी जीवित है। बदला लेने के लिए। उन सब से जिन्होंने कभी उसके प्रेम को मिटाया था।
और आज… उनमें से एक की बारी थी।

वाहिनी मंदिर के दरवाज़े तक पहुँची ही थी कि एक कोमल पर चुभती आवाज़ सुनाई दी —
“म्याऊँ…”
काली बिल्ली शून्य से प्रकट हुई।
उसका फर उतना ही काला था जितनी मृत्यु, और उसकी आँखें — मानो तारों को ईर्ष्या करा दें।

वाहिनी के होंठों पर हल्की मुस्कान आई।
“मेरी याद आ रही थी किया?” उसने धीमे से पूछा।
काल — वही दिव्य प्राणी — उसके पैरों से रगड़ खाते हुए लाड़ दिखाने लगा।
“तो अब क्यों आए हो? मुझे खेलते देखने… या खुद खेलने?”
वह फुसफुसाई, और बिल्ली को अपनी बाहों में उठा लिया।
फिर मंदिर के भीतर कदम रखा।

उसी मंदिर के किसी और हिस्से में एक युवक घुटनों के बल झुका था।
उसका सिर झुका, नंगा और कठोर शरीर जल से भीगा था।
उच्च पुरोहित उस पर जल चढ़ाते हुए मंत्रोच्चार कर रहे थे।

“भगवान दया करें और इस संसार को राक्षसों से मुक्त करें, जैसे तुमने पहले किया,” पुरोहित ने कहा।

“तुम हमारे कवच हो, राजकुमार।”
दूसरे पुरोहित ने उसके कंधों पर गीला रेशमी वस्त्र रखा।
युवक — रिवान देव्रथ आर्यवंश — सीधा खड़ा हो गया।

उसके भीतर वही अडिग व्रत गूंज रहा था —
“मैं अपना कर्तव्य पूरा करूँगा और प्रभु की सेवा करूँगा।”

उसका स्वर गूंजा — भारी, गहरा और दृढ़।
भूरी आँखें, आधे बंधे बालों में पवित्र सूत्र, और हाथ में वही धातु का बाजूबंद —
जिसे किसी खास ने कभी उसके लिए बनाया था।

समवृत्त की युवतियाँ उसके दर्शन को तरसती थीं — भले ही वह शत्रुओं के रक्त से लथपथ क्यों न हो।
उसका एक ही उद्देश्य था — इस संसार से हर दानव का नाश। यह व्रत उसके जन्म से पहले ही लिखा जा चुका था।

वह अभी-अभी युद्ध से लौटा था — संसार की एक और दानवी साँस को चुप कराकर।

“मुझे कितना समय यहाँ रहना होगा?”
उसने पुरोहित से पूछा।
“कोई है जिसे मुझे देखना है।”
उसके स्वर में दृढ़ता थी, पर भीतर एक बेचैन चाह — किसी ऐसे के लिए जिसे वह अपने प्राणों से भी अधिक चाहता था।

तभी — मंदिर की हवा कांप उठी। एक अंधेरी, पशु जैसी गर्जना गूंजी। लोगों की जीभ पर राख का स्वाद भर गया। और अगला क्षण— एक विशाल काला तेंदुआ प्रकट हुआ। मौन, घातक, देवताओं जितना भव्य।
रिवान नहीं डरा। उसने बहुत से राक्षस मारे थे — भय उसके भीतर मर चुका था। “पीछे हटो।” उसका हाथ तलवार पर गया।
“शान्थ काल ।” एक स्त्री स्वर ने आदेश दिया — कोमल, पर काटदार।

तेंदुआ — काल — ज़मीन पर बैठ गया, उसकी आँखें चमकती हुईं, जैसे किसी दैवी चेतावनी की तरह।

“तुम कौन हो?” रिवान ने तलवार तानते हुए पूछा।
वाहिनी मुस्कुराई —
“ओह, समवृत्त का महान राजकुमार मुझे नहीं पहचानता?” उसका स्वर व्यंग्य से भरा था। वह काल के पास खड़ी थी — उसकी उपस्थिति सुंदरता से अधिक खतरनाक।
“वह राक्षसी राजकुमारी है… और वह तेंदुआ उसका दैवी साथी,”
एक युवा विद्वान ने फुसफुसाया।

रिवान ने तलवार तैयार रखी, पर वह स्थिर खड़ी रही — अब तक निश्चल, पर हवा में भय का सन्नाटा था।
“यहाँ क्यों आई हो?” पुरोहित ने दबी नफ़रत से पूछा।
वाहिनी की मुस्कान और चौड़ी हो गई।
“एक छोटा-सा कर्ज़ वसूलने,” उसने कहा, और आगे बढ़ी।

“हम राक्षसों से कोई कर्ज़ नहीं लेते,” रिवान की आवाज़ ठंडी थी।
“यहाँ से चली जाओ, नहीं तो तुम्हें मैं मार दूँगा।”

काल दहाड़ता हुआ उस पर झपटा।
रिवान ने तलवार घुमाई — पर अगले पल वह खुद दीवार से जा टकराया। वह नहीं, वाहिनी हिली थी।

उसकी तलवार हवा में थी — बेकार। काल आधे झटके में हवा में रुका।
रिवान की आँखें फैलीं — उसने ऐसा वेग, ऐसा नियंत्रण कभी नहीं देखा था।
फिर उसने उसकी आँखें देखीं — लाल, जलती हुई, रक्त जैसी।
“भगवान तुम्हें दंड देंगे!” पुरोहित चिल्लाया और मंत्र पढ़ने लगा।

वाहिनी पलक झपकते ही उसके सामने थी।
उसका हाथ पुरोहित के गले पर कस गया।
पुरोहित की साँसें टूटने लगीं।

“राजसी शिष्टाचार कहाँ गए तुम्हारे?”
उसका स्वर बर्फीला था।
“क्या यही व्यवहार होता है किसी राजकुमारी से?
“काल… समाप्त कर दो इसको ” उसने आदेश दिया।
कुछ ही क्षणों में फर्श लाल हो उठा —गाढ़े रक्त की परत से। रिवान स्तब्ध था।
वाहिनी की आँखें केवल एक पर टिकी थीं — वही पुरोहित, जिसने कभी कालेनी के आंतरिक ऊर्जा की ताक़ात को देवताओं को बताया था।वह झुकी, फुसफुसाई 
“मैं तुम्हारा नमोनिशन मिता दून्गी…” हवा काँप उठी।तभी —
दो बाँहें उसके चारों ओर लिपटीं,और वाहिनी अचानक — गायब।
सन्नाटा।  “क्या हुआ अभी?” रिवान की आवाज़ गूंजी, कक्ष में मौजूद सभी लोग एक-दूसरे को देख रहे थे — डरे, हतप्रभ, और अनजान।



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