Dharti Ki Kahani in Hindi Poems by Madhavi Marathe books and stories PDF | धरती की कहानी

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धरती की कहानी

 

प्रकृति ने हमे हरे-भरे जंगल, नदियाँ-समुद्र ओैर नीला आकाश, बर्फिली चोटियों का वरदान दिया है। उस वरदान का आदर-सम्मान करना यह मनुष्य की जिम्मेवारी है। अगर आज हम इसे संजोए रखेंगे, तो भविष्य में धरती अपने पुर्ण सुंदरता से खिलते हुए प्रकृतिक आनंद का आशिर्वाद प्रदान करेगी।

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पेडों की छाया, पत्तों का लहराना

गिली मिट्टी से सुगंध आना

छोटी धारा की कलकल, हवाँ का लहराना

निसर्ग है जीवन का एक सुंदरसा सपना।

आकाश में रंगों की बरसात

वृक्षों पर चिडियों का गान

यह सब तो था अपने पास

तो क्युँ लगता है अनजान।

पर अब तो सब दूर सा लगता है

एक कहानी सा महसुस होता है

जिंदगी देती है दस्तक बारबार

हम बनाए आशिया फिर एक बार।

फुलों से भी हँसी खिलखिलाती

पतझड में सुनाई देती थी कविताएँ

पर पेडों का कटना देखकर

निसर्ग भी आसूओं की माला रोए।।

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पेडों का कटना, प्रदूषण ओैर अहंकार

साँस रोक रहा है अपने धरती का

फिर से उसे जीवित करना है तो

जतन करना है पर्यावरण का।

एक पैर उठाना है, एक वृक्ष लगाकर

पानी का एक बूंद सोने जैसा,

सँभालना है उन बुंदों को, वृक्षों को

बनाना है नया आशियाना पहले जैसा।।

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भुखे पेट सपना देखनेवाले,

उनके घर ना दिया-बाती

पाठशाला से दूर है लेकिन

फिर भी चेहरे पर हँसी खिलखीला जाती।

सच जो बोले उनको फाँसी

झुठे के पीछे भीड,

धर्म-जात की दिवारे

मानवता को कालिमा पोंछ जाती।।

कोई बेघर का घर रस्तोंपर

कोई महलों में अकेला रोए,

गुमनाम जिंदगी जीनेवालों के

दिल में न कही आशा की बाती।।

मन में जगाना हो अंगार

केवल पोस्ट, शेअर से काम न बनेगा,

खुद के लिए ओैर दुसरों के लिए

एक दिन तो उठ खडा होना होगा।।

माँगने से अच्छा किसी को देना बेहतर

दुःख से आँसु क्युँ नम है,

समाज मतलब सिर्फ मैं नही

अपनेपन का अहसास क्या कम है?

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पतझड की आवाज कितनी

सुक्ष्मताभरी होती है,

गिरने की गती देखकर

सुकूनसा महसुस होता है।

हवाँ पतझड के समय

क्या महसुस करती होगी?

किसी से बिछडने का गम?

या मुक्तता का आनंद?

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चिडियों के घोंसले क्युँ खाली पडे है?

आकाश में एक सन्नाटा भरा है

हवाँओं में एक सुनापन सा

बिखरा पडा है।

कतरा कतरा बुँदों में

क्युँ कालापन सा छा गया है?

आकाश का नीलापन क्युँ

दूर से देखता खडा है?

शायद नाराज है वह

अपना प्रतिबिंब ना देख पाने से

प्राकृतिक लहरों में

अपना वजुद ना ढुँढ पाने से

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कतरा कतरा बुँदों

से बहता पानी,

जीवन की गती बताता है

अगर बुँदे ही रुक गई

तो कैसे जीवन सिकुडता है।

झरनों से गिरता पानी

जिंदगी की कसोटीयों से

चल पडना सिखाता है

वही बन जाती है नदियाँ,

कलकल जीवन बहता है

सागर सिखाए विशालता

कही से भी आ जाओ

मुझ में है खूब अपनापन

सब मुझ में समा जाओ

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क्या करे धरती बेचारी

दूर से सब निहार रही है

बहारों से खिला आशियाना

अब यादों के पन्नों में ढुँढ रही है।

कभी थी हरियाली चारों ओर

अब वहाँ रेगीस्तान खडा है

पंछियों की चहचहाहट

ना जाने कहा गूम हो गई है।

बहती हवाँ का खोकलापन

न जाने किस सहारे की तलाश में है?

पेड-पत्तों से लिपटकर

की हुई प्यार कि बातों को

शायद वह याद कर रही है

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मिट्टी तलाश रही है जीवन

अपने गर्भ से अंकुर पनपने के लिए

बाँझपन का बोझ अब ना

वह सह पा रही है।

पँछियों ने भी बंद कर दिया है चहकना

कभी खूब वो गीत गाया करते थे

महसुस हो रहा हो जैसे

अब कही पृथ्वी की साँस ना रुक गई हो।

पवन के लहराने की आशा में

नैन बिछाए बैठी है।

अचानक कही दूरपर एक

बादल दिखायी दिया है

मिट्टी लहराती गई खुशी से

मौसम बदलता गया है

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हरे-भरे खिले खेत

प्यारे से गीत सुनाए

नीले अंबर की छाया उपर

अपना नीलापन बरसाए

नदियों में प्रतिबिंबित हुआ सब

लहराता एक चित्र बना

उडा आसमान में बगुला

चित्र को जीवित कर गया

उस चित्र ने क्या पकडी थी खुशबू?

उस खुशहाल मौसम की

नही, वह तो था एक प्रतिबिंब

रचना इस सृष्टी की

खुशबू अगर महसुस करनी है तो

प्रतिबिंब से बाहर आना होगा

असली जीवन के क्षणों को

साक्षीभाव से देखना होगा

तब हर पल में ले सकोगे

जीवन से महेकता आनंद

खेतों की सौंधी खुशबू ओैर

नीले अंबर का विशालपन

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फुलों में कितने अनगिनत

रंग दिखाई देते है

कहाँ से आते है वह

सौंधी खुशबू भी साथ लाते है।

क्या कहे मिट्टी के निर्माण को

कैसे उसे पता है?

कौनसे फुलों में वही रंग

ओैर फलों में क्या मिलाना है।

आते है मिट्टी से मनुष्य भी

सब निसर्ग का निर्माण

कैसी है अपनी यह धरा

हर कोई पाए उसी में निर्वाण।

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बिजली की तान

कभी तुम्हारे कानों में पडी है?

उसके शोर का संगीत

तुमने कभी सुना है?

बिजली की चमकती रेखा

तुम्हारी दृष्टी कभी चकाचौंध कर गई है?

सुन्न पडी आँखों में

अधुरापन दिखायी दिया है?

कहाँ से आती है

कहाँ तक जाती है

उसकी ध्वनी की रेखा

नाद कंपनों में खो जाती है

ले आती है वर्षा अविरत

काले घने बादलों से

कभी जुड जाती है आकाश से लेकर

पेड पौधे धरती तक

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हरे-भरे वादियों में

हर पल नवीन प्रीत है

सुनहरे सुरज की किरणों से

दुनिया नित्य नूतन है।

फुलों में रंग बसे है

हर डाली लहराती हुई

आसमान में बादलों की

नक्काशी बिखराती हुई।

झरने बहते कलकल

मधुरस से भरपूर

कमल खिले किनारों में

उनपर भवरों की गुनगून।

इस पृथ्वी की उपहारता को

अनमोल समझना है

उसको जतन करते हुए

खयाल रखना है।

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बारिश की छमछम पानी में

कितनी नाद मधुरता होती है

उसकी लयकारी में

हवाँ भी तेज हो जाती है।

दोनों का हो जाए संगम

वर्षा लहराती रहती है

पवन के साथ बहते हुए

मन के द्वार खोल देती है।

हरियाली मुस्कान लुटाए

नदी नृत्य करे किनारे

बुंदों की सरगम बजे

छुँ ले हवाँओं के ठँडे फवाँरे।

बहते पानी के साथ में बहते

मिट्टी कही जम जाए

कही कोई सुंदरसा पँछी

नहाकर चला जाए।

थम जाती है वर्षा तब

सृष्टी लेती है नित्य नूतन रुप

हवाँ भी झुमकर रुक जाती है अब

उन पलों को याद करे खूब।

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बरफों की परतों पर से

एक खामोशी सुनाई देती है

चुपचाप बैठे आसमाँ को भी

महसुस कराती रहती है।

क्या दर्द है उस खामोशी में?

या उदासिन भावनाएँ

वहाँ तो अनमिट शांती है

ना कोई मन की लहर ना लहराए।

पेड सन्नाटों में लिपटे खडे है

पत्तों की सिलसिलाहट ना जाने कहाँ गुम हुई?

झील की सतहों पर रुकी चाँदनी

नीले आसमान में खो गई

न कही पँछी की चहचहाहट

न फुलों की रंगीनता

चारों तरफ फैली हुई है

एक अबुज सी मन मुग्धता।

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हिमकणों की शुभ्रता

जब गिरे आसमान से

सृष्टी में अद्भुतता छा जाती है

शब्दहीन लयकारी से।

लहराती हवाँ भी मौन हो जाती है

शाख शाख भी रहे स्तब्ध से

कही जमी हुई बर्फ ना पिघल जाए

मौन मुनी का अचल ध्यान

कही भंग ना हो जाए

उपर नीला आकाश चमके

नीचे धरा शुभ्रसी

बर्फिली चोटियों पर

हिमबुंद गिरे हलकीसी

कही एक बूंद से भी भंग ना हो जाए

सृष्टी नाद अनंतता की

थम गया है यहाँ अब जीवन

जैसे कालचक्र रुका है

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जब कभी तुम आते हो तो

ऐसा लगता है जैसे

जाडों में धुप का निकलना,

ओैर जब तुम जाने की

बात करते हो तो

लगता है जैसे बर्फ का थम जाना।

तुम्हारी बाते लगती है

जैसे झरनों के फवाँरे

रुकी हुई बातों में कही रह ना जाए दरारे

तुम्हारा अल्हडपन जैसे

डाली से फुलों का गिरना

खफा हो जाती हो तो लगता है फुलों का मुरझाना

बादलों की नाव पर

हमेशा सवाँर तुम रहती हो

इंद्रधनु की ओर से न जाने कैसे निकलती हो

जिसे दिख जाती हो तुम

रंगीन वह हो जाता है

तुम्हारे सारे रंगों में वह अपने आप को खो देता है

तुम्हारा आना एक सपना है

ओैर जाना एक हकिकत

सपना ओैर हकिकत के अंतराल में ही तुम्हारे साथ जीना है

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रुके हुए जीवन से दूर

हर कोई जाना चाहता है

उसमें ना होती है हलचल

बस थमा हुआ आशियाना है

ना खुषियों के पल

ना उलझनों के झमेले

बस बिखरी हुई वहाँपर

खामोशी की लहरे

सन्नाटों से भरी दिवारे

वहाँपर शब्दों को ढूँढती है

अचेतन मन की बोझता का

भार न सह सकती है

बाहर रुकी हुई हवाँ

खिडकियों से झाँकती है

अंदर तो आना चाहती है मगर जिंदगी से दूर भागती है

अब वह जीवन भी उब चुका है

चाहे कोई आनंद ले आए

पर सोचने से समझ चुका कि

यह तो अंदरुनी आत्मा है

बाहर से ना कोई आनंद लाता है

ना कोई दुःख की लकीरे

अपना जीवन तो अपना है

खुद ही उसे सवाँरे

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सफेद चादर ओढे धरती

मानो स्वर्ग उतर आया हो

हर डाली पर मोती जैसे

सपनों का संसार छाया हो।

सन्नाटा भी बोल रहा है

ठँडी साँसे झूल रही है

रंग सभी घुलकर खो जाए

बस धवलता ही खिल रही है।

हर कदम पर रेशमी एहसास

हर आहट पर मधुरीम संगीत

बर्फ न सिर्फ ठंडक देती

मन को भी देती है मीत।

हर कदम पर नया अहसास

हर आहट में संगीत है

ढूँढ रही है दुनिया उसको

मौनी की यही जिंदगी है।

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शुभ्र धवल चद्दर ओढे धरती

मानो एक वलय सा घुम रहा हो

बरफ से सजी हर डाली पर जैसे

सफेदी का झाग बिखरा हो

सन्नाटों से भरी वलयता में

कही ठँडी साँसे ना खो जाए

रंगीन हँसीन सपनों की

बस यादें ना रह जाए

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क्षणभंगुर इस दुनिया में

तितलियाँ कैसे मुक्त दिखती है

इस डाल से उस डाल पर

आनंद से विहरती है

लगता है ऐसे मानो

कह रही हो संसार को

हर क्षण में सौन्दर्य बसा है

सिर्फ जानो अपने अंतरंग को

बता रही है सबको वह

उसकी उडान है एक साधना

अल्प जीवन में भी है अनंतता

रंगों की फुलवारी ही उसके लिए प्रार्थना

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आकाश की निलयता में

चहचहाते पँछी

अपने गुँजारव में खो जाते है

पंखों की उडान से ही

प्रार्थना का स्वरूप दिखाते है

घोसलों से उडान लेकर

न जाने वह कहाँ तक जाएँगे

आसमान का कोना ढुँढकर

शायद वापिस आ जाएँगे

किसी पँछी ने देखा होगा

इंद्रधनुष्य का किनारा

किसी पँछी को मिला होगा

काले बादल से फँवारा

कोई तडपा होगा कडी धुप में

ढुँढे नजर छाँव का सहारा

कोई बैठे हरी डाली पर

लेकर जीवनसाथी प्यारा

हर एक की किस्मत अलग है

पर जो जी लेगा उसी पलों को

तो जान सकेगा दुनिया कितनी हसीन है

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हरी-भरी वादियों में लहराए पंछियों की तान

सुनहरी सुरज किरणों से खिल उठे सारा आसमान

नदियों की बहती धारा, कलकल का गीत सुनाए

शीतल पवन के स्पर्श से, काया पुलकित हो जाए

पर्बत खडे अटल प्रहरी बन, नभ को दे सहारा

फुलों की खुशबू में जीवन महेके सारा

निसर्ग है ईश्वर का अनुपम उपहार अनमोल

हमे संभालना है कुदरत को, बिना कोई मोल

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