Ansh kartik Aryan - 6 in Hindi Crime Stories by Renu Chaurasiya books and stories PDF | अंश, कार्तिक, आर्यन - 6

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अंश, कार्तिक, आर्यन - 6

वो जब तक बाहर बैठा आसमान को निहारता रहा ।

आसमान के चमकते ये सितारों में ,वह एक चेहरा खोजता रहा 

मानो वो चेहरा उसे जीने का मकसद दे रहा हो ।

तभी डॉक्टर विजय बाहर आए और कार्तिक के पास जाकर।

उसका कांधा थपथपाया"

बच्चे उसे होश आ गया है ,अब वो खतरे से बाहर है।

कुछ देर ........ ख़ामोशी छाई रही दोनों में से कोई नहीं बोला


तभी खामोशी को तोड़ते हुए डॉक्टर बोले...

कार्तिक अब तुम्हे लोट जाना चाहिए।

उन दरिंदो के जागने से पहले 

कैम्पस लौट जाओ।

कार्तिक उसे कुछ पल के लिए देखता है

मानो उससे कुछ कहना चाहता हो 

पर उसे शब्द ही नहीं मिल रहे थे ।

उसके मन की बात समझते हुए , डॉ विजय बोले

चिंता मत करो में सब संभाल लूंगा 

उसने कार्तिक के कन्धे पर थाप थापाया  जाओ।

मेरे बच्चे लाडो और जीतो _


वह लौट रहा था।

आर्यन के पास —

उस दरिंदे के पास,

जिसे अब वो अपना “सबसे बड़ा अभिनय” दिखाने वाला है।

---------+++++----------

 सुबह की धूप फीकी थी।

कैंपस की सड़कों पर ठंडी हवा में पुराने पत्तों की सरसराहट गूंज रही थी।

आर्यन अपने दोस्तों के साथ था,

हमेशा की तरह आत्मविश्वास से भरा, मुस्कुराता, सब पर हुकूमत करता हुआ।

और तभी, कार्तिक आया —

वही चेहरा, वही शांत आँखें, पर अब उन आँखों के भीतर एक रहस्य छिपा था,

एक खेल जिसकी गहराई किसी ने नहीं जानी थी।

जैसे ही आर्यन ने उसे देखा, उसकी मुस्कान और गहरी हो गई।

“तो लौट ही आए…”वह बोला, आवाज़ में नशा और ठंडी तृप्ति दोनों थीं।

“कल की रात के बाद, मुझे लगा था तुम डर जाओगे, कार्तिक।

पर तुम तो और करीब आ गए।

”कार्तिक ने हल्की मुस्कान दी —

वो मुस्कान जो झूठ के सबसे सुंदर रूप में खिली थी।

“शायद डरना ही अब मेरी किस्मत  है,”

उसने कहा, आवाज़ धीमी थी पर हर शब्द ठोस।

आर्यन ने उसकी आँखों में देखा —

उसमें कोई डर नहीं था,

बल्कि एक अजीब सी कोमलता थी जो आर्यन को अस्थिर करने लगी।

---आर्यन ने इशारे से बाकी दोस्तों को जाने का संकेत दिया।

वे सब हँसते हुए निकल गए, हवा में सिगरेट का धुआँ रह गया।

अब सिर्फ़ आर्यन और कार्तिक थे।

उनके बीच कुछ फीट की दूरी थी, पर वो दूरी अब आर्यन के मन में घुलने लगी थी।

“तुम बहुत अजीब हो, कार्तिक,”आर्यन ने कहा,

उसके चेहरे पर शिकार जैसी जिज्ञासा थी।

“लोग मुझसे दूर भागते हैं, और तुम…”वह थोड़ा झुक गया, उसके करीब आया,“तुम तो खुद आ जाते हो।

”कार्तिक ने उसकी ओर देखा —वो न तो पीछे हटा, न आगे बढ़ा, बस बोला:“

शायद मैं उन चीज़ों से नहीं भागता जिनसे बाकी लोग डरते हैं।

”आर्यन उसकी आँखों में कुछ पढ़ने की कोशिश करने लगा।

पर वो क्या पढ़ता — वहाँ कोई भावना नहीं थी,

सिर्फ़ एक गहरा सन्नाटा था, जो किसी पुरानी याद का दर्पण था।--

-दोनों कुछ देर चुप रहे।

फिर आर्यन ने धीरे से कहा —“कल रात जो हुआ…”उसकी आवाज़ रुक गई।

वो समझ नहीं पा रहा था कि उस पल में क्या था — डर, उत्सुकता, या कोई अनजाना आकर्षण।

“तुमने कर दिखाया।

बाकी सब तो बस दिखावा करते हैं,पर तुमने मुझे यकीन दिला दिया कि तुम बाकी लोगों जैसे नहीं हो।

”कार्तिक ने उस पल अपने दिल की धड़कन महसूस की

—वो इतनी तेज़ थी कि उसे लगा आर्यन सुन लेगा।

पर उसने अपने होंठों पर एक स्थिर मुस्कान रखी और बोला:

“मुझे किसी की तरह बनना कभी पसंद नहीं था।

”आर्यन ने मुस्कुराकर उसका कंधा छुआ —

वो छुअन धीमी थी, पर कार्तिक के शरीर से एक झटका गुज़रा।


 आवाज़ जैसे उसके कानों में गूंज उठी

—"अगर उसने मुझे छुआ…"वो ठिठक गया, पर अपनी निगाह नहीं झुकाई।

उसने वही किया जो उसे करना था —आर्यन की आँखों में देख कर बस इतना कहा:“

शायद अब हम एक-दूसरे को सही से जान सकते हैं।”-

--आर्यन के चेहरे पर एक विजयी चमक आ गई —वो नहीं जानता था कि जिसke 

“करीब आने” को वो अपनी जीत मान रहा है,वही उसकी बर्बादी की पहली सीढ़ी है।

उसने हँसते हुए कहा,“

तो फिर आज रात डिनर साथ में — सिर्फ़ हम दो।

”कार्तिक ने सिर हिलाया, और धीरे से मुस्कुराया।

अंदर से वह चुपचाप सोच रहा था —"हाँ आर्यन, आज से मैं तुम्हारे हर पल,

हर राज़, हर कमजोरी को पढ़ना शुरू करूँगा।

तुम समझोगे कि मैं तुम्हारा शिकार हूं

…पर दरअसल, तुम्हारा विनाश मैं खुद बन चुका हूँ।"

---उस रात, जब वो दोनों साथ चल पड़े —

दूर आसमान में वही चाँद था,जो कभी अंश की आँखों में चमकता था।

अब वही चाँद कार्तिक की आँखों में बुझ चुका था —

और उस राख में सिर्फ़ एक वादा जल रहा था:

“मैं तुम्हें खत्म नहीं करूँगा, आर्यन…मैं तुम्हें तुम्हारे अपने झूठ में डुबो दूँगा।

”रेस्तरां के बाहर की सड़क पर रात हल्की सी नीली थी।

लाइटों की कतारें, हवा में तैरती सुगंध, और दूर किसी पुराने गाने की धीमी धुन —

सब कुछ इतना सामान्य था कि कोई नहीं कह सकता थाकि इस रात के अंदर दो चेहरों

में एक साज़िश पल रही है।

आर्यन अपनी कार से उतरा।

वो हमेशा की तरह आत्मविश्वास से भरा था —काला शर्ट,

हल्की मुस्कान और आँखों में वो चमक जो लोगों को डराती भी थी और खींचती भी।

कुछ कदम दूर, कार्तिक खड़ा था —सफेद शर्ट में, बाल हल्के बिखरे हुए,आँखों में वही शांत झील-सी गहराई, जिसमें आर्यन पहली बार डूबा था।

आर्यन की मुस्कान और फैल गई।“

तुम वाकई आए,” उसने कहा,“मैंने सोचा था तुम आख़िरी वक़्त पर पीछे हट जाओगे।

”कार्तिक ने हल्की हँसी दी —“जो लोग पीछे हटते हैं, वो वक़्त से हारते हैं, आर्यन।

और मैं कभी हारता नहीं।

”आर्यन ने उसे गौर से देखा —“तुम हमेशा ऐसे क्यों बोलते हो,

जैसे तुम्हारे अंदर दो लोग रहते हों?

”कार्तिक ने एक पल को उसकी तरफ देखा,

फिर मुस्कुरा कर बोला,“शायद इसलिए… क्योंकि एक मुझे निभाना होता है,

और दूसरा मुझे छिपाना पड़ता है।

”आर्यन की साँस एक पल को थम गई।

उसे पहली बार ऐसा लगा कि कार्तिक में कुछ है —जो बाकी सब से अलग है,

रहस्यमय है, और उसे अपनी ओर खींचता जा रहा है।

---अंदर, रेस्तरां की रोशनी सुनहरी थी।

लाइटें मंद थीं, और बैकग्राउंड में धीमी धुन बज रही थी।

वेटर ने उन्हें कोने की एक टेबल पर बैठाया —जहाँ बाहर से आती हल्की रोशनी दोनों के चेहरों को आधा दिखा रही थी।

कार्तिक ने टेबल पर रखे पानी के गिलास को छुआ,और एक पल के लिए खामोश रहा।

उसके दिमाग़ में चल रहा था —“यह वही वक़्त है, जब मैं उसके सबसे पास रहूँगा…पर सबसे दूर भी।”

आर्यन ने उसका ध्यान खींचा,“तुम बहुत चुप हो। डर लग रहा है या मैं तुम्हें बोर कर रहा हूँ?”

कार्तिक ने मुस्कुराकर कहा,“डर तो कभी लगा ही नहीं, आर्यन।

पर तुम्हें समझना थोड़ा मुश्किल ज़रूर है।

”आर्यन हल्का सा झुका,“तो फिर समझ लो मुझे।

आज मैं सिर्फ़ तुम्हारे लिए यहाँ हूँ।”

उसके शब्दों में नशा था।पर कार्तिक ने अपनी ठंडी नीली आँखों से सीधा उसकी ओर देखा —

वो न मुस्कुराया, न झपका, बस बोला —

“फिर सुनो… कभी-कभी लोग जितने पास आते हैं, उतना ही खो जाते हैं।

”आर्यन के होंठों की मुस्कान हल्की पड़ गई।

वो नहीं जानता था कि जिस लहजे में उसे चाहत लग रही है,वो दरअसल किसी की ठंडी बदले की आग थी।

--डिनर आगे बढ़ा।

दोनों बातों में घुलते गए —पर कार्तिक के हर शब्द के साथ, आर्यन थोड़ा और बंधता गया।

वो उसे देखता, सुनता, हँसता —और हर बार कार्तिक की खामोशी उसे और गहराई में खींच लेती।

कार्तिक ने बीच में कहा,“तुम बहुत कुछ छिपाते हो, आर्यन।

पर मुझे लगता है, मैं तुम्हारा सच समझ सकता हूँ।

”आर्यन झुक गया, उसकी आवाज़ धीमी थी उसके होठ  कार्तिकके कान को छू रहे थे—“तो बताओ, मेरा सच क्या है?

”कार्तिक ने मुस्कुराते हुए कहा,“तुम वो आदमी हो, जो दुनिया से लड़ता है,क्योंकि खुद से लड़ने की हिम्मत नहीं रखता।

”आर्यन ठहाका लगाने वाला था,पर वो बोल नहीं पाया।उसके होंठ खुले ही रह गए —वो पहली बार किसी ने उसे यूँ देखा था।-

--डिनर के बाद जब वो दोनों बाहर निकले,रात और गहरी हो चुकी थी।

कार्तिक ने चलते हुए कहा,“आज अच्छा लगा, आर्यन।

”आर्यन ने मुस्कुराकर जवाब दिया,“हाँ, मुझे भी।

”कुछ पल खामोशी रही —फिर आर्यन ने अचानक कहा,“कार्तिक… तुम मुझे अच्छे लगने लगे हो।

”कार्तिक ने धीमे से उसकी ओर देखा।

उसके चेहरे पर वही मुस्कान थी —मासूम, पर भीतर हजार तूफ़ान लिए हुए।

“मुझे पता है…” उसने कहा,और चल पड़ा —धीरे-धीरे, पीछे बिना मुड़े।

आर्यन वहीं खड़ा रह गया,आँखों में उलझन, दिल में हलचल —और कार्तिक की ओर देखते हुए उसने सोचा,“शायद… इस बार मैं सच में फँस रहा हूँ।

उससे जल्दी से कदम बढ़ाया इससे पहले कार्तिकनिकल पता ।

आर्यन ने उसका हाथ पकड़ लिया रुको ,

कार्तिक ने पीछे मूड कर देखा ।

इससे पहले वो कुछ समझ पता आर्यन ने उसे अपने पास खींच लिया।

और उसे अपने सीने से लगा लिया।

आर्यन ने  कार्तिक के चेहरे को अपने बड़े हाथों में लिया , और फिर उसे चूमा ।

कार्तिक एक पल के लिए ठिठक गया ।

उसे समझ नहीं आया कि क्या हुआ l

उसे एक पल के लिए लगा जैसे उसके शरीर पर हजारों सुइयां चुभाई जारही हो।

उसका दिल दर्द से तड़प ने लगा ।

उसे पता था ऐसा होगा और वो इसके लिए तैयार था।

पर जब ये हुआ तो वो टूट गया।

एक पल के लिए उसे उसे कमाने को मारने ने का मन किया ।

पर उसने खुदको संभाला।

अपने दिल को समझाया कि ये तो बस शुरुआत है।

अंगे बहुत लड़ाई लड़नी है।

उसके दिल में तो तूफान उठ रहा था पर उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान दिखाई दी


”---उस रात कार्तिक अपने कमरे में अकेला बैठा था।

टेबल पर उसकी रिकॉर्डर पड़ी थी —उसने बटन दबाया, और वही बातें दोहराईं जो उसने कही थीं।

हर मुस्कान, हर लहजे, हर ठहराव — सब सबूत था।

उसने धीरे से फुसफुसाया —“अब शुरू हुआ है तुम्हारा पतन, आर्यन।

तुम सोचते हो तुम मुझे पा रहे हो,पर मैं तुम्हारे हर क़दम को लिख रहा हूँ।

”उसकी आँखें उठीं —और खिड़की से बाहर वही चाँद दिखा,जो अब ठंडी राख की तरह चमक रहा था।

अगली सुबह कैंपस में एक हल्की सर्दी सी थी।

हवा में पतझड़ की सूनी गंध थी और सूरज की किरणें धीरे-धीरे पेड़ों के पत्तों पर खिल रही थीं।

कार्तिक, जो हमेशा थोड़े बंद-से रहता था, आज कोई अलग तरह का हाव-भाव लिए हुए निकला —

जैसे कोई इंसान जिसने अलग से किसी की छाँव माँग ली हो।

उसने कपड़ों के कॉलर को थोड़ा ऊपर किया और सामने से आते हुए आर्यन की तरफ़ देखा।

आर्यन ने जैसे ही उसे देखा, उसकी आँखों में एक तरह की जीत की चमक आई

— पर यह जीत अभी पूरी नहीं थी।

कार्तिक ने कदम धीमे किए और उसके पास जाकर बिना किसी शैतानी मुस्कान के, बड़ी सरलता से कहा:

“कल की रात… तुमने जो किया, उसके बाद मैं थोड़ा डरा हुआ था।

तुम्हारे साथ रहकर अच्छा लगा।

क्या तुम मेरे साथ आज लाइब्रेरी चलोगे?

कहीं मुझको कुछ help चाहिए थी—नोट्स वगैरह।”

आर्यन की भौंहें उठीं — यह तो वही वक़्त था जब उसने चाहा था कि कार्तिक पूरी तरह उसके पास आकर टिक जाए।

उसने हल्की हँसी में कहा,

“क्या?

तुम मुझसे मदद माँग रहे हो?

वाह — तुम सच में बदल गए हो।

” और फिर मुस्कुराकर बोला, “ठीक है, चलो साथ चलते हैं।

”लाइब्रेरी तक के रास्ते में कार्तिक छोटी-छोटी बातें करता रहा — जैसे उसने कोई नया किताब पढ़ी हो, या उसे अपनी नींद उड़ी हुई लगी हो।

कभी-कभी वह अचानक रुक कर आर्यन की तरफ़ देखता — उसकी आँखों में एक तरह की आशा रहती कि आर्यन उसे रोक दे, उसे अकेला नहीं छोड़े।

आर्यन यह देखकर भीतर से थोड़ा नरम हुआ — उसे अच्छा लगा कि कोई उसे ज़रूरत मान रहा है।

लाइब्रेरी में कार्तिक ने किताबें निकालते-निकालते जानबूझकर कहा—“मेरे पास पैसे नहीं हैं इन photocopies के लिए, तुम करवा दोगे ना?

”आर्यन ने मुस्कुरा कर अपनी वॉलेट दिया और कहा— “ले करवा देता हूँ।

”कार्तिक ने धन्यवाद कहा — पर उसकी शुक्रगुज़ारी में जो झुकाव था, वह जानबूझकर गहराई से किया गया था:

आँखे थोड़ी नम, आवाज़ धीमी, और हाथों में नाज़ुक सी दीनता।

दिन भर ऐसे छोटे-छोटे कृत्य हुए — कार्तिक ने दिखाया कि वह खाना बनवाना भूल गया, तो आर्यन ने कहा कि चलो बाहर चलते हैं;

कार्तिक ने कहा कि वह अकेले रात में बाहर नहीं जाता, तो आर्यन ने अपने साथ वापस भेज दिया।

हर बार कार्तिक ने कुछ ऐसा किया जो आर्यन को ये लगे कि वह उसकी सुरक्षा, उसकी उपस्थिती और उसकी सलाह पर निर्भर है।

रात को जब वे दोनों साथ में पार्क के बेंच पर बैठे, तब कार्तिक अचानक बोला—

“मुझे अभी भी रात में नींद नहीं आती;

मैं अक्सर सोचता रहता हूँ।

तुम कभी मेरे साथ रात को चलोगे?

बस… ताकि मैं डर से न घबराऊँ?

”आर्यन ने उसकी तरफ़ देखा — वह महसूस कर रहा था कि कार्तिक की आँखों में सच्ची गरिमा है, पर साथ ही एक कोमलता भी।

वह धीरे से बोला—“ठीक है, मैं साथ चलता हूँ।

”उस रात कार्तिक ने जानबूझकर कुछ ऐसे संकेत दिए जिनसे आर्यन का घमंड और बढ़े:

उसने सार्वजनिक तौर पर आर्यन की तारीफ़ की — एक मीटिंग में कहा, “आर्यन मेरे लिए हमेशा खड़ा रहता है, वह वाकई दयालु है।

”उसने अपनी पुरानी परेशानियों की कहानी बातों में डाली — पर आधी-आधी छोड़ दी, जैसे कुछ बातें छुपा कर रखनी हों।

उसने दिखाया कि बिना आर्यन के वह कुछ भी कर नहीं सकता

— छोटे-छोटे निर्णयों में आर्यन से पूछना, जैसे “मैं आज कौन सा कोर्स लूँ?”

या “क्या मैं उस इवेंट में जाऊँ?

”हर बार जब आर्यन ने उसे रोका  — एक शब्द में सहारा दिया या अपने दोस्तों के सामने उसकी तारीफ़ की

— कार्तिक ने बहुत मासूम सा धन्यवाद दिया,

और उसके चेहरे पर उस तरह का भरोसा दिखाया जैसे कोई अपनी माँ की गोद में आकर सो गया हो।

इस -निर्भरता ने आर्यन को भीतर से पिघला दिया।

उसे लगा कि उसने एक नाजुक चीज़ को अपने पास बाँध लिया है

— और वही नाजुकता उसकी जीत की निशानी बन गई।

उसने अपने दोस्तों के सामने कहा— “देखो, मैंने उसे बदल दिया।

अब वो मेरा है।”

दोस्तों ने तालियाँ बजाईं— पर कार्तिक के भीतर यह सारा प्रदर्शन योजनाबद्ध और ठंडा रहा।

रात के अंत में कार्तिक अकेले अपने कमरे में आया।

उसने दरवाज़ा बंद किया, और दीवार से टिका कर खड़ा हो गया।

बहार की हल्की रोशनी झरोखे से आकर उसकी परछाईं दीवार पर बना रही ।

उसने धीरे से कहा — (अपने मोबाइल में रिकॉर्ड करते हुए)“आज उसने सोचा मैं उससे निर्भर हो गया।

मैंने उसके हाथों में अपनी कमजोरियाँ रख दीं — पर ये सब दिखावा है।

मैं उसे और पास लाऊँगा; वह मेरा इंतजार कर रहा है, पर उसकी दुनिया अभी ढहनी बाकी है।

”वह मुस्कुरा कर रिकॉर्डर बंद कर देता है — उस मुस्कान के पीछे अब दर्द नहीं, पक्का इरादा था।

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तहख़ाने की दबी-सी रोशनी फर्श पर पड़ी रही थी —

जगह की हर दीवार पर सालों की गंध जमी थी।

हवा में नम पसीने और धूल की बौछारें तैर रही थीं;

हल्की-सी खट्टी बदबू हर साँस के साथ अंदर जाती।

कोने-कोने से आती सूनी आवाज़ें इस स्थान को और भी खाली और डरावना बना रही थीं।

एक शख्स जमीन पर पड़ा था —   चेहरा आंसुओ से धँसा,

आँखों में पीली सी थकान।

उसकी साँसें अनियमित थीं, होंठ फटे हुए;

शरीर पर चोट के निशान अधरों पर दिखाई नहीं दे रहे थे,

पर थकान और डर का हर निशान खोलकर बोल रहा था।

वह उठने की कोशिश करता, पर उसके हाथ में जंजीर उसे बार-बार नीचे धकेल देता।

दरवाज़ा खुला और कुछ चरणों की तेज-धीमी आवाज़ सुनाई दी।

कमरे में कुछ लोग दाखिल हुए — उनके कदमों में उसी ताज़ा निश्चय की ठठरी हुई कठोरता थी।

सबसे आगे खड़ा था — वही जो हमेशा समूह का नेतृत्व करता था:

चेहरे पर आत्म-तुष्टि की एक अजीब-सी सूखी मुस्कान।

उसके साथ रघु, अमन और कुछ और सहयोगी थे —

सभी के चेहरे पर मिश्रित रूप में घमंड, जरा-सा झिझक, और एक तरह की थकावट थी।

नेता ने धीमे से कहा, “बेशक — यही वह है जिसने हमें चुनौती दी थी।”

उसकी आवाज़ में कोई दया नहीं थी, पर गर्व की एक तरह की अस्थायी गर्मी थी।

बाकी लोग इधर-उधर हँसे, कुछ ने औपचारिक तानों के साथ कहा — जैसे वे किसी नाटक का मंच सजाते हों।

शख्स जो अब तक केवल नजरें खोले पड़ा रहा था,

जब उन चेहरों को देखा तो उसकी आँखों में भय की एक नई तीव्रता उड़ आई।

उसने गर्दन घुमा कर नाम के लिए आवाज़ लगाई,

पर शब्द उसके गले से नहीं निकले — शायद इसलिए कि नाम बोलने का साहस आज उसके पास नहीं था।

रघु ने कदम आगे बढ़ाकर कहा, “हमने सोचा था कि हमें उसे सीधा सबक सिखाना चाहिए

— बस इतना कि वह जान ले कि किन हदों को पार नहीं किया जाता।”

 ” उसकी आवाज़ में गौरव की झलक थी, पर वह गौरव किसी रात का कड़वा स्वाद छोड़ने वाला था।

  खामोशी शीघ्र ही फिर लौट आई; पर अब वह खामोशी किसी राहत की नहीं थी, बल्कि एक तरह की घुटन बनकर रह गई।

उस शख्स ने धीरे-धीरे अपने आप को ऊपर उठाने की कोशिश की — उसका चेहरा मिट्टी से सना हुआ था,

आँखों में सूखी-सी परछाईं थी।

उसने अपने दाएँ हाथ से जमीन को छुआ, अपने घुटनों की ओर कराह कर दिया

— भीतर  कई निगाह उसे देख रही थी, पर वहां मौजूद कोई दोस्त नहीं था।

कमरे में अब बस धूल, दर्द और पीछे की दरारों का सन्नाटा बचा हुआ था।

नेता ने इशारा किया उसके साथी ने  पीड़ित को उठाया और किसी और कमरे की ओर ले गए

— वहाँ पर रोशनी चमक रही थी, और हवा में वही गंध थी ,

जो डर की शुरुआत बताती थी।

वह लड़का अब पूरी तरह से निचली स्थिति में था

— हर कदम पर उसकी सांसें अनियमित थीं, आँखों में बेबसी की चमक।

वे लोग उसे कमरे के बीच में पड़े बड़े से बेड पर डाल कर ।

चारों तरफ  खड़े हो गए — उनके चेहरे पर जो छलक रहा था, वह घमंड, उकसाहट और भय पैदा करने की तीव्र इच्छा थी।

आर्यन ने धीरे-धीरे आगे बढ़ कर कहा — आवाज़ में एक तरह की ठंडी थी:“

तुम्हें हमने अलग रखा ताकि तुम समझ सको कि हमारा  क्या इरादा  है।

 आज आखरी बार है जब हम तुम्हारे साथ खेलेंगे।

अब हम तुम्हारी जरूरत नहीं है ।

अब हम तुम्हे हमेशा के लिए आजाद कर देगे।

ये सुन बाकी लोग हँसे, किसी ने बीच में ऊँची आवाज़  तुम पता है अब हमें एक नया सीकर मिला है।

सब फिर से हसने लगे— सबका मक़सद एक ही था: पीड़ित की इज़्ज़त और आत्मविश्वास तोड़ देना, उसे और भी छोटा कर देना।

उनमें से किसी ने सामने रखी कुर्सी पर ज़ोर से पटका, और बोला —

“हमने  “तुम्हारी जगह अब खाली कर दी गई है,

हम अपना नया शिकार तुम दिखाने आए है —

पर इससे पहले हमें तुम चाहिए।

इसका मतलब स्पष्ट था: वे उसके शरीर से अपनी भूख बुझाने वाले थे

जब तक नया लक्ष्य उनकी पकड़ में नहीं आता।

पर हर तरह की बर्बरता के बीच भी एक छोटी-सी चीख़़ उठती

 उनकी  हरकतें घंटों तक  रहीं —और उसके साथ बारी बारी से दुष्कर्म किया

, पीड़ित के भीतर गहरी चोट और दर्द गहराई से बना हुआ था।

जब उनका मन भर गया ,_ और तब आर्यन ने उसे एक फ़ोटो दिखाया।

देखो इसे अब ये है हमारा नया शिकार

वे बाहर निकले तो एक-दूसरे को हँसते हुए पीठ थपथपा कर चले गए।

—  कमरे में गहन सन्नाटा छा गया।

पीड़ित अकेला पड़ा रहा — शरीर थका हुआ, मन तोड़ा हुआ और आत्मा में एक खरोंच।

उसने धीरे-धीरे उठने की कोशिश की;

पर अब उसके पास केवल यह था कि वह अपने भीतर के टुकड़ों को जोड़े और सोचें कि आगे क्या होगा।

यह वह पल था जब उसकी नजर उस तस्वीर पर पड़ी।

  उसकी धुंधली आंखों से देखा।

उसके दिल में एक जुड़ाव लगा ।”

उसने तस्वीर को अपने हाथों में उठाया और उसे ध्यान से देखा।

यह झलक जैसे कोई आशा लायी

उसकी सांसे रुक गई ।

दिल बेहतशा धड़कने लगा ।

तुम मेरे लिए आए  मेरी जान मुझे हमेशा से पता था 

तुम आओगे इन लोगों को इसने किए की सजा देने ।

अब में चेन से मर सकता हूं।

मेरी जान