samaj se jude haiku avadhesh kumar chansoliya ke in Hindi Book Reviews by ramgopal bhavuk books and stories PDF | समाज से जुड़े हाइकु अवधेश कुमार चंसौलिया के

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समाज से जुड़े हाइकु अवधेश कुमार चंसौलिया के

 समाज से जुड़े हाइकु अवधेश कुमार चंसौलिया के

प्रो. डॉ0 अवधेश कुमार चंसौलिया जी का  "हाइकु दर्पण "  मेरे सामने है। वे पाठकों से अपनी बात में कहते हैं’।आधुनिक युग में जब से आदमी मशीनयुग से जुड़ गया तब से उसके पास समय की कमी महसूस होने लगी तो पाठकों ने उपन्यास, कहानी, आत्मकथा एवं लम्बी कविताओं को पढ़ना बंद कर दिया। जापान जैसे देश में जहाँ आदमी दिन रात काम करता है उसके पास इतना समय नहीं है कि वह लम्बी कविताओं को पढ़ सके या सुन सके। इसलिये वहाँ कविता का अति सूक्ष्म स्वरूप हाइकु का जन्म हुआ। यह स्थूल के प्रति सूक्ष्म का विद्रोह था।

               रचनाकार ने निश्चय ही इस जानकारी के लिये विदेशी साहित्य का गहन अध्ययन किया है। तभी वह यह बात पूरे प्रमाण के साथ कह पाये हैं।

               हाइकु  सत्रह वर्ण का छन्द होता है। पहली पक्ति में पाँच दूसरी पंक्ति में सात और अंतिम पक्ति में पाँच वर्ण होते हैं। जापानी भाषा में छंद की इस बनावट का हिन्दी साहित्य में प्रयोगकर रचनाकार ने, हिन्दी के विस्तार में अपना सहयेग दिया है। इसके लिये वे बधाई के पात्र हैं।

               इसमें भी कवि परम्पराओं को नहीं तोड़ पाया है। इनने भी सरस्वती वंन्दना और श्री गणेश वंन्दना से रचनाओं की शुरूआत की है। इस कृति में दो सौ  अट्ठावन  हाइकु अपना अपना अस्तित्व लेकर पाठकों से कुछ कहने के लिये आतुर बैठे हैं। कोई पाठक आये और उनकी बात धीरज से सुनें। 

इसका पहला छन्द-

 वे ऐसे मिले,

बनाते रहे रात,

हवाई किले।1।

ऐसे ही आपके अधिकांश छंद मानवीय मनोवृत्ति पर आधरित हैं।

मन का धन,

कर लो तुम प्यारे

जाओगे मारे।

 इसी तरह और देखें

रंग  बिरंगी,

चकाचौंध में  हम

सब बौराए।

 आपने इनमें माँ की ममता के लिए भी कुछ छंद अर्पित किये हैं-

ममता मय,

 अपना है आँगन

 जब तक माँ।

इस छन्द ने तो मुझे अपनी माँ की बहत याद दिला दी।

जब तक माँ

तब तक घर है,

फिर बेघर ।

सुबह का सन्देश देखें-

भोर ने कहा,

नींद से उठो जागो,

कर्म करो।

सामाजिक सरोकार की दृष्टि से यह छन्द देखें-

चढ़ती धूप,

और जवान बेटी,

दोनों चुभतीं ।

एक दूसरा छन्द भी इसी तारतम्य में देखें-

नरी की देह,

 दुःख ही दुःख ढोती,

 जीवनभर।

ऐसे ही एक और देखें-

बजा कंगना,

प्रिय आये अँगना,

 आया सपना।

 इस कृति में तीखे अनेक  छन्द पाठक को झकझोर देने में सफल हैं। आपके सभी छन्द मानव के विभिन्न सरोकारों से जुड़े हुए हैं।

   ठंडा मौसम,

तन में सिहरन,

याद पिया की।

 इस छंद को मुहावरे के साथ देखें-

पराया देश,

 थूक का भी डर,

कम रहिये।

 एक दूसरे मुहरावरे  में ‘कौओं की काँव’ का सफल प्रयोग हुआ  देखें-

शीतल छाँव,

 गाँव के हर ठाँव,

 कौओं की काँव।

एक और प्रयोग भी दृष्टव्य है -

छाँव पिया की,

स्वर्ग से बढ़कर,

 लगे सभी को।

आपने इन रचनाओं को मुहावरों का प्रयोग कर और ससक्त बना डाला है।

आपने अपनी बात में स्वीकार किया है कि हाइकु लिखना बहुत दुष्कर कार्य है। आप कहते हैं कि इसके लिखने में बहुत श्रम,धैर्य, बुद्वि, अनुभव और संक्षिप्तता के कौशल की आवश्यकता होती है। मेरी दृष्टि में निश्चय ही छंद विधा में लिखना मुझे तो बहुत ही दुष्कर कार्य लगता है। आप इस कार्य के माध्यम से छंद विधा की ओर  अग्रसर हो रहे हैं। इस हेतु भी बधाई स्वीकार करें।

     आपके हाइकु के सभी छंद भाषा के स्तर पर बहुत ही सटीक अर्थ देने वाले लगे। इसके लिये बधाई स्वीकार करें।

कृति का नाम- हाइकु दर्पण

रचनाकार-प्रो. डॉ. अवधेश कुमार चंसौलिया

प्रकाशक - सद्भावना पब्लिकेशन, अंबाह, मुरैना म प्र

प्रकाशन वर्ष- 2025

मूल्य-300 रु. मात्र

समीक्षक- रामगोपाल भावुक कथाकार, डबरा  म प्र - मो0-8770554097, 9425 715707