The Author Renu Chaurasiya Follow Current Read अंश, कार्तिक, आर्यन - 4 By Renu Chaurasiya Hindi Love Stories Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books मजनू की मोहब्बत पार्ट-2 मजनू की मोहब्बत पार्ट -2अगली ही शाम फिर वही टपरी, वही गिलास,... पहली सफलता अथर्व गाँव के बीच खडा था. सबकी नजरें उसी पर थीं, जैसे वह कोई... Silent Hearts - 16 साइलेंट हार्ट्स (조용한 마음 – Joyonghan Maeum)लेखक: InkImag... पिंजरे में बंद पक्षी मैं इस कहानी “पिंजरे में बंद पंछी” को विस्तार दूँगा ताकि यह... अंश, कार्तिक, आर्यन - 4 • उस रात यूनिवर्सिटी के कैंपस माहौल एक दम शांत था।चारों तरफ... Categories Short Stories Spiritual Stories Fiction Stories Motivational Stories Classic Stories Children Stories Comedy stories Magazine Poems Travel stories Women Focused Drama Love Stories Detective stories Moral Stories Adventure Stories Human Science Philosophy Health Biography Cooking Recipe Letter Horror Stories Film Reviews Mythological Stories Book Reviews Thriller Science-Fiction Business Sports Animals Astrology Science Anything Crime Stories Novel by Renu Chaurasiya in Hindi Crime Stories Total Episodes : 4 Share अंश, कार्तिक, आर्यन - 4 96 276 • उस रात यूनिवर्सिटी के कैंपस माहौल एक दम शांत था।चारों तरफ हल्की-हल्की हवा बह रही थी, लेकिन आर्यन का दिल अजीब तरह से बेचैन था।वो अपने कमरे में लेटा हुआ था, पर नींद उसकी आँखों से कोसों दूर थी।उसके दिमाग में बार-बार वही पल घूम रहा था —जब उसने पहली बार कार्तिक से हाथ मिलाया था।वो झटका…वो अजीब-सी बिजली…जैसे किसी अनजानी ताक़त ने उसकी रगों को छुआ हो।आर्यन उठकर शीशे के सामने खड़ा हो गया।अपने हाथ को घूरने लगा —“ये क्या था?सिर्फ़ इत्तेफ़ाक़… या कुछ और?”उसके दोस्त कमरे में घुसे, हँसते हुए बोले,“भाई, उस नए लड़के में कुछ तो बात है। लड़कियाँ तो पहले दिन से उसके पीछे हैं।”आर्यन ने बिना हँसे जवाब दिया,“हाँ… कुछ तो है। लेकिन वो आम लड़का नहीं है।उसकी आँखों में… कुछ छुपा हुआ है।”उसके दोस्त हँसकर टाल गए,“तुझे तो हमेशा शक रहता है।”कुछ भी हो एक दिन बना तो उसे भी हमारा गुलाम ही है।पर आर्यन का शक हँसी में उड़ने वाला नहीं था।वो अपने कमरे की खिड़की से बाहर झाँकने लगा, जहाँ कार्तिक दूर से किसी किताब में डूबा बैठा था।उसका दिल बुदबुदाया—“तुम कौन हो, कार्तिक?और क्यों लगता है कि तुम सीधे मेरी ज़िंदगी के सबसे गहरे हिस्सों तक पहुँचने वाले हो?”अगली सुबह यूनिवर्सिटी का माहौल रोज़ जैसा था,पर आर्यन का ध्यान कहीं और ही था।क्लास में प्रोफेसर लेक्चर दे रहे थे,लेकिन उसकी आँखें बार-बार कार्तिक की तरफ उठ रही थीं।कार्तिक एकदम शांत बैठा था,जैसे उसके आस-पास की दुनिया का कोई असर ही न हो।उसकी नीली आँखें किताब पर गड़ी थीं,पर आर्यन को लग रहा था मानो वो सबको देख रहा हो… ।लेक्चर खत्म होते ही आर्यन ने अपने सबसे भरोसेमंद दोस्त राहुल को बुलाया।“मुझे इस नए लड़के के बारे में सब कुछ जानना है।नाम, परिवार, पिछला रिकॉर्ड, कहाँ से आया है… सब।”राहुल चौंक गया,“भाई, इतनी जल्दी क्या है ।अभी तो आया है कुछ दिन जीने देते है ।तू इस बार कुछ जादा जल्दी में नहीं लग रहा ।मन लड़का सुंदर है ।हमने जितने भी सीकर किए है ,उन सबसे सुंदर है।पर तू इतनी जल्दी उसके पीछे जाएगा तो लोगों को शक हो सकता है।मुझे तो वो तो बस खूबसूरत और पढ़ाकू-सा लड़का है।”आर्यन की आँखें सिकुड़ गईं।“नहीं… ये लड़का इतना आसान नहीं है। कुछ तो छुपा सा है।उसकी मुस्कान, उसकी आँखें… वो सब नकली लगते हैं।उसने मुझे पहली बार मिलते ही ऐसा महसूस कराया,जैसे वो मुझे पहले से जानता हो।मुझे सच जानना है।”राहुल ने सिर हिलाया और अगले ही दिन कुछ कागज़ लेकर लौटा।शाम को सभी लोग अपने खुफिया अड्डे पर मिले ....जहां राहुल ने सारे कागज़ मेज पर रख दिए।देखो....“ नाम कार्तिक रॉय है।बचपन से विदेश में रहा है, पढ़ाई वहीं की है।मगर… अजीब बात ये है कि उसकी फाइल्स में कई जगह ब्लैंक्स हैं।जैसे किसी ने जानबूझकर उसकी पहचान छिपाई हो।”पिता — राजीव रॉय पेशा: अंतरराष्ट्रीय सिविल/स्ट्रक्चरल इंजीनियर / प्रोजेक्ट कंसल्टेंट। इंटरनेशनल प्रोजेक्ट मैनेज करते थे । काम के सिलसिले में अक्सर विदेश यात्राएँ; करते थे । पहली विदेश यात्रा पर अपनी पत्नी से मिले थे ।जो एक शिक्षिका थी।परिवार की आर्थिक-स्थिति बेहतर थी।माँ — मीसा रॉय पेशा:शिक्षिका वो एक ऑस्ट्रेलियाई नागरिक थी।जब बे पहली बार मिले तभी उनको प्यार हो गया।और उन्होंने शादी कर ली शादी के कुछ टाइम बाद इंडिया आ गए। लेकिन जब कार्तिक छोटा था तब से उन्होंने यूरोप में रहना चुना। 2 साल पहले एक हादसे के चलते दोनों दंपती की मौत हो गई। जबसे कार्तिक अकेला है।स्कूलिंग: लंदन के एक अंतरराष्ट्रीय स्कूल में पूरी की।उच्च शिक्षा:BA honrs लंदन कॉलेज से की Behavioral Science / Psychology of Crime / Forensic Psychologyरचनात्मक पक्ष, कैमरा और framing का हुनर।माता ,पिता की मौत के बाद ,पढ़ाई अधूरी छूट गईअब दो साल बाद फिर से पढ़ाई शुरू की है।फ्रीलांस अनुभव: यूरोप में photography assignments, art exhibitions, और कुछ corporate art-consultancy projects — जिससे उसे दुनिया का exposure और नेटवर्क मिला।कौशल: कई भाषाएँ (अंग्रेज़ी फ़्लुएंट, थोड़ी डच/अरबी बोल और समझ सकता है।दोस्त: Milan — यह व्यक्ति कार्तिक का पुराना दोस्त है।या कभी-कभार मदद करने वाला contact है।आर्यन ने खिड़की से बाहर देखा,जहाँ कार्तिक बगीचे में बैठा अपनी डायरी में कुछ लिख रहा था।आर्यन के दिल में पहली बार जिज्ञासा और खींचाव साथ-साथ उमड़े।“सुंदर चेहरा है… पर उस चेहरे के पीछे क्या है?कितना दर्द छुपा है। पहली बार किसी के लिए उसके दिल में इतनी हलचल हुई”अगले दिनलाइब्रेरी की धीमी रोशनी और बाहर हल्की बारिश। आर्यन अपनी नोटबुक में ज़रा सा लिखने की कोशिश कर रहा था, पर पेन कांप रहा था। उसकी नजर बार-बार उस खिड़की के पास झुके हुए चेहरे पर आकर अटक जाती — जहाँ कार्तिक कल रात खड़ा था ।रह रह कर बार बार उसके दिमाग में ख्याल आता दो साल से अकेला है।बिना माता पिता के ।।उसने अपना फोन निकाला — कार्तिक का नाम वहाँ देखा : तभी उसने कार्तिक की देखा बगीचे के पास। उसने बिना सोचे, बिना बताए, चलने का मन बनाया। दरवाज़े तक आते-आते वह सोच रहा था — उस नीली आँखों की गहराई, जो उसे खींच रही थी।रात में पढ़ते हुए भी आर्यन की आँखें बार-बार अपना ध्यान छीन लेतीं। क्लास में जब प्रोफ़ेसर बोल रहा था, तो उसके कान उसी एक आवाज़ की तलाश में थे — कार्तिक की धीमी हँसी, कोई हल्का-सा शब्द। वह खुद से पूछता — “क्यों मैं उसे भूल नहीं पा रहा?” और हर सवाल के साथ अजनबी सी गर्मी उसके सीने में फैलती।और जब कार्तिक किसी और से थोड़ी देर बात कर गया, तो आर्यन के चेहरे पर छोटी-छोटी जलन की लकीरें उभर आती। उसने खुद को रोककर कहा — “ये ठीक नहीं है…” पर उसके दिल की धड़कन ने कुछ और कहा — पीछा करो। पता लगाओ।आर्यन अब जाग चुका था — न सिर्फ़ जिज्ञासा से, बल्कि उस खिंचाव से जो हरदम उसे कार्तिक की ओर खींचता जा रहा था।कैंटीन का शोरगुल अपने चरम पर था। आर्यन दोस्तों के साथ बैठा हँस रहा था। तभी दरवाज़ा खुला और कार्तिक अंदर आया।न तो जल्दी, न देरी — बस ठीक उस वक्त जब सबकी निगाहें घूमकर उसकी ओर चली गईं।आर्यन की भी।वो सीधा अन्दर गया न , मुस्कुराया, न और न किसी से बात की बिना कुछ कहे अपनी कॉफी लेकर चला गया।बस इतना ही… पर आर्यन का ध्यान बाकी दिन उसी पल पर अटका रहा।लाइब्रेरी की मेज़ पर आर्यन को एक पन्ना मिला — किसी की लिखावट में कुछ अजीब से नोट्स।कुछ तो लिखा था पर किसी ओर भाषा में।उस पर हल्की-सी ocean-blue ink की खुशबू थी।आर्यन ने पन्ना पलटा और देखा… पीछे कार्तिक का नाम लिखा था।“ये पन्ना यहाँ क्यों छोड़ा उसने?”आर्यन का दिमाग अब उस छोटे से संकेत पर उलझ गया।क्लास से बाहर निकलते वक्त कार्तिक की किताबें हाथ से गिर पड़ीं।आर्यन झट से झुका और उन्हें उठा लिया।कार्तिक हल्की शर्मीली हँसी के साथ बोला,“Thanks… कभी-कभी मैं बहुत careless हो जाता हूँ।”उसकी आवाज़ में अजीब-सी नर्मी थी।आर्यन चुप रहा, पर अंदर कहीं हलचल हुई — क्या ये सच में इतना मासूम है?कैंपस के गार्डन में कार्तिक किसी लड़की के साथ बैठा हँस रहा था।उसकी हँसी तेज़ और खुली हुई थी।दूर से आर्यन देख रहा था — उसके भीतर अनजानी चुभन हुई।“क्यों मुझे फर्क पड़ रहा है?वो किसी से भी बात करे, मुझे क्यों जलन हो रही है?”क्लासरूम में अचानक बत्ती चली गई।थोड़ी देर अंधेरा रहा।जब रोशनी लौटी, आर्यन ने देखा — कार्तिक की आँखें सीधा उसकी आँखों में टिकी थीं।न मुस्कान, न शब्द… बस एक लंबा, गहरा नज़र मिलाना।आर्यन ने पलकें झपकाईं, पर उस नज़र का असर उसके दिल की धड़कन रोक गया।दोस्तों के बीच गपशप चल रही थी।किसी ने कार्तिक से पूछा,“तुम्हारा hometown कौन-सा है?”कार्तिक ने मुस्कुराकर जवाब दिया,“एक ऐसी जगह… जहाँ अब कभी लौटकर नहीं जाना चाहता।”सब हँसकर टाल गए,पर आर्यन का मन वहीं अटक गया।“ये किस तरह का जवाब था?जब सब चले गए तब आर्यन पूछा । कार्तिक तुम हमारी बातों का जवाब क्यों नहीं देते। वो मुस्कुराया और चला गया।आर्यन वहीं खड़ा रह गया — क्या सच में मैं अब हर वक्त बस इसी के बारे में सोच रहा हूँ?“आज उसने क्यों नहीं बात की , उस मुस्कान के साथ क्या?” — वो जानबूझकर उसकी हर हरकत पर नज़र रखने लगा है।क्लास में — कार्तिक कौन-सी सीट पर बैठता है, किस रंग की पेन यूज़ करता है, किस नोटबुक में लिखता है… सब आर्यन की आँखें चुपके से देखती रहतीं।लाइब्रेरी में — जब कार्तिक कोई किताब उठाता, आर्यन खुद को रोक नहीं पाता। वो जानना चाहता था कि आख़िर वो कौन-सी किताब है? किस तरह की बातें पढ़ता है?कैंटीन में — कार्तिक कॉफी में कितनी चीनी डालता है, किस corner में बैठता है, किससे बात करता है, किसे नज़रअंदाज़ करता है… आर्यन सब नोटिस करता।और जब कार्तिक हँसता… तो आर्यन का दिल जैसे अजीब तरह से हल्का और बेचैन दोनों हो जाता।वो सोचता — उसकी हँसी इतनी अलग क्यों लगती है?धीरे-धीरे आर्यन को महसूस हुआ —"मैं इसे समझना चाहता हूँ। इसकी हर बात, हर रहस्य मेरे लिए एक पहेली है… जिसे हल किए बिना चैन नहीं मिलेगा।"आर्यन की आँखें चाहे किताब पर हों, लेकिन उसका मन हर वक्त कार्तिक पर अटका रहता।जब कार्तिक क्लास में अपनी उँगलियों से पेन घुमाता,तो आर्यन को लगता — ये छोटी-सी हरकत भी इतनी खूबसूरत कैसे हो सकती है?जब कार्तिक चुपचाप खिड़की से बाहर देखता,तो आर्यन बेचैन हो उठता — आख़िर वो किस बारे में सोच रहा है? कहीं… क्या मेरे बारे में?और जब कार्तिक किसी और से मुस्कुराकर बातें करता,तो आर्यन के भीतर एक अजीब-सी बेचैनी उठती।वो खुद को समझाता — नहीं, मुझे इससे फर्क क्यों पड़ेगा? मैं क्यों इस पर ध्यान दे रहा हूँ?पर सच ये था कि फर्क पड़ रहा था।अब तो हाल ये था कि —कार्तिक के कदमों की आहट आर्यन को भीड़ में भी पहचान में में अजीब-सी कसक उठी।“क्यों मुझे फर्क पड़ रहा है?… वो किसी से भी हँसे, मुझे जलन क्यों हो रही है?”आर्यन ने नज़रें फेर लीं, पर मन उसी दृश्य पर अटक गया।जबसे आर्यन की नज़र पहली बार कार्तिक पर पड़ी थी,कुछ उसके भीतर बदल गया था।वो एहसास इतना नया और अजीब था कि शब्दों में बयां करना मुश्किल था।आर्यन चाहता तो था कि अपने मन को समझा ले,कह दे — “ये सब बेमानी है…”पर दिल मानने को तैयार ही नहीं था।कभी वो कार्तिक को भूलने की कोशिश करता,किताबों में डूब जाता,दोस्तों के शोर में हँसने की कोशिश करता…पर तभी जैसे किसी अदृश्य धागे से खींचा चला जाता,कार्तिक फिर से सामने आ खड़ा होता।कभी कैंपस के गलियारे में,कभी लाइब्रेरी की खिड़की के पास,कभी बस उसकी परछाईं दीवार पर…आर्यन को लगता,मानो कार्तिक को उसकी हर धड़कन,हर ख्याल,हर बेचैनी की खबर हो।“ये कैसे हो रहा है?क्यों ये लड़का मुझे हर जगह दिखाई देता है?क्या सच में ये मुझे देख रहा है… ये मेरे साथ क्या हो रहा है।”आर्यन बार-बार खुद से सवाल करता —“ये लड़का आखिर है कौन?क्यों हर बार मेरी राह में टपक पड़ता है?क्या ये सब यूँ ही संयोग है, या इसके पीछे कोई वजह छुपी है?”वो नोटिस करने लगा कि कार्तिक की मौजूदगी हमेशा ठीक उसी वक्त होती है,जब वो उसे सोच रहा होता है।कभी खिड़की से बाहर देखे तो वही नज़र आता,कभी गलियारे में मुड़े तो वही सामने खड़ा होता।“नहीं… ये सब इतना आसान नहीं हो सकता,”आर्यन बुदबुदाया।शायद ये जानबूझकर कर रहा है।जैसे इसे पहले से पता हो कि मैं कहाँ रहूँगा।अब उसके दिल में हलचल सिर्फ़ खिंचाव की नहीं थी,बल्कि शक की भी थी।उसने सोचना शुरू किया —“ये कार्तिक मुझमें इतनी दिलचस्पी क्यों ले रहा है?क्या ये मेरे पीछे पड़ा है,या मैं ही इसके खेल में फँस रहा हूँ?आर्यन का दिल उसे खींचता,पर उसका दिमाग चेतावनी देता —“सावधान रहो, ये लड़का उतना सीधा नहीं जितना दिखता है।”आर्यन अपने दोस्तों के साथ यूनिवर्सिटी कैंटीन के एक कोने में बैठा था।टेबल पर कॉफ़ी के कप आधे भरे पड़े थे, कुछ सिगरेटें राखदानी में बुझी जा रही थीं।उसके दाएँ बैठा विशाल बोला—“यार, आर्यन… कब तक इन पुराने चेहरों से खेलेंगे? हर बार वही डराना, वही रौब दिखाना। मज़ा ही खत्म हो गया है।बाएँ ओर से रघु हँसा, उसकी आँखों में वही शिकारी चमक थी।“सही कह रहा है ये… चलो कोई नया शिकार ढूँढते हैं। सुना है नया लड़का बड़ा टशन में घूमता है… उसका नाम क्या था?”टेबल पर एकदम सन्नाटा छा गया। सबकी निगाहें धीरे-धीरे आर्यन की ओर मुड़ गईं।आख़िरकार, रोहन ने लगभग फुसफुसाते हुए कहा—“कार्तिक… जबसे उसे देखा है, न जाने क्यों दिल करता है उसी से खेलें। उसका चाल-ढाल, वो ठंडी निगाहें… जैसे हमें चुनौती दे रही हों।”आर्यन का चेहरा बदल गया। पहले तो उसने हल्की-सी मुस्कान दी, फिर आँखों में गहरी चमक आ गई।वो धीरे से आगे झुककर बोला—“कार्तिक…”नाम उसके होंठों पर जैसे ज़हर बनकर घुला।ठीक है… अगर तुम सबको नया शिकार चाहिए… तो क्यों न उसी से खेला जाए। देखते हैं… वो कितना परफ़ेक्ट है। असली दुनिया का खेल झेल भी पाता है या नहीं।”टेबल पर बैठे बाकी सब हँसी दबा न सके।वातावरण में अब सिर्फ़ एक ही नाम गूँज रहा था—“कार्तिक…”क्या ये लोग कार्तिक का भी अंश जैसा हल करेंगे मिलते है अगले अध्याय पर तब तक के लिए नमस्कार 🙏 ‹ Previous Chapterअंश, कार्तिक, आर्यन - 3 Download Our App