Ek Ladka Ek Ladki in Hindi Film Reviews by Sanjay Sheth books and stories PDF | एक लड़का एक लड़की

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एक लड़का एक लड़की

एक लड़का एक लड़की फिल्म की समीक्षा


सन 1992 में प्रदर्शित हुई फिल्म एक लड़का एक लड़की अपने समय की उन सादगी भरी रोमानी कहानियों में गिनी जाती है, जिन्हें देखने के बाद दर्शक हल्का-फुल्का लेकिन भावनात्मक अनुभव लेकर बाहर आते थे। इस फिल्म का निर्देशन विजय सदाना ने किया था। इसमें सलमान ख़ान ने राजा की भूमिका निभाई और नीलम ने रेनू का किरदार जीवंत किया। अनुपम खेर, असरानी और टिकू तलसानिया ने सहायक भूमिकाएँ निभाकर कहानी को रोचक मोड़ दिए।


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कहानी का सार

फिल्म की शुरुआत होती है रेनू से, जो अमेरिका में पली-बढ़ी आधुनिक विचारों वाली युवती है। उसके पिता की अचानक मृत्यु हो जाती है और वह भारत लौटकर संपत्ति का हिसाब-किताब देखने आती है। उसके चाचा भागवती प्रसाद (अनुपम खेर) उसके संरक्षक हैं और सारी जायदाद उन्हीं की देखरेख में है।

रेनू जब खाता-बही देखती है, तो पाती है कि पन्द्रह लाख रुपये ग़ायब हैं। वह चाचा से सवाल करती है, लेकिन वे गोलमोल जवाब देकर बातें टालने लगते हैं। भीतर ही भीतर उन्हें डर है कि कहीं उनकी चालाकी उजागर न हो जाए। अपनी चोरी छुपाने के लिए वे रेनू को एक षड्यंत्र के तहत स्पीडबोट की सवारी पर भेजते हैं। दुर्भाग्यवश दुर्घटना घटती है और रेनू अपनी स्मृति खो बैठती है।

इसी मोड़ पर कहानी में प्रवेश करता है राजा (सलमान ख़ान)। राजा साधारण युवक है, जो अपने तीन भतीजों की देखभाल में लगा हुआ है। माता-पिता के चले जाने के बाद ये बच्चे उसी पर निर्भर हैं। राजा संघर्षशील है, लेकिन दिल का बेहद साफ़। जब वह घायल और स्मृतिहीन रेनू को पाता है, तो उसे अपने घर ले आता है। बच्चों की परवरिश और घर की ज़िम्मेदारी पहले ही भारी है, फिर भी वह रेनू की देखभाल करता है।

रेनू को जब होश आता है, तो राजा उसे बताता है कि वह उसकी पत्नी है और ये बच्चे उनके हैं। मासूम और निश्छल रेनू उसकी बात मान लेती है। इस तरह वह उस घर का हिस्सा बन जाती है और बच्चों के साथ सहज हो जाती है।

धीरे-धीरे रेनू को सादा जीवन अच्छा लगने लगता है। बच्चों की मासूमियत, राजा की मेहनत और उस परिवार की आत्मीयता उसके हृदय को छू लेती है। इसी बीच कहानी में हल्के-फुल्के हास्य दृश्य भी आते हैं, जो असरानी और अन्य कलाकारों के कारण जीवंत हो उठते हैं।

कुछ समय बाद रेनू की स्मृति लौट आती है। उसे याद आता है कि वह कोई और है, उसकी दुनिया और परिवार अलग है। लेकिन साथ ही वह यह भी समझती है कि उसके अपने चाचा ने उसके साथ विश्वासघात किया था। अंत में राजा के साहस और रेनू की दृढ़ता से चाचा का छल सामने आता है और सच्चाई की जीत होती है। फिल्म का समापन राजा और रेनू के मिलन के साथ होता है।


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अभिनय

सलमान ख़ान ने इस फिल्म में एक साधारण युवक का किरदार निभाया है। यह उनके करियर की शुरुआती फिल्मों में से है, जहाँ उनका चेहरा मासूमियत और जोश से भरा दिखाई देता है। राजा का संघर्ष, उसकी ज़िम्मेदारी और उसके मन का संकोच सलमान ने सहजता से उभारा है।

नीलम का अभिनय फिल्म की जान है। उन्होंने रेनू के रूप में भोली, संवेदनशील और दृढ़ लड़की को बड़ी सहजता से चित्रित किया। स्मृति-भ्रंश के बाद उनका मासूम रूप और फिर स्मृति लौटने पर उनके चेहरे पर आए भाव—दोनों ही दर्शकों को भावुक कर जाते हैं।

अनुपम खेर का काम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। उन्होंने चालाक और लालची चाचा को इतनी सहजता से निभाया है कि दर्शक उनके किरदार से नफरत करने लगते हैं। असरानी और अन्य सहकलाकारों ने हल्की-फुल्की हास्य की फुहारें देकर फिल्म को हल्का बनाया।


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संगीत और गीत

फिल्म का संगीत आनंद-मिलिंद की जोड़ी ने तैयार किया था और गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी थे। संगीत ही इस फिल्म की सबसे बड़ी शक्ति है।

विशेष रूप से “छोटी-सी दुनिया मोहब्बत की” गीत फिल्म की आत्मा है। उदित नारायण और साधना सरगम की आवाज़ में यह गीत प्रेम और सादगी का प्रतीक है। इसके बोल बताते हैं कि जीवन की असली खुशी महलों और दौलत में नहीं, बल्कि उस छोटी-सी दुनिया में है जहाँ प्यार और विश्वास है। इस गीत का फिल्मांकन भी बेहद कोमल है—हरे-भरे बाग, बच्चों की खिलखिलाहट और राजा-रेनू की मधुर नज़रें।

इसके अलावा “कितना प्यार तुम्हें करते हैं” और “फूल ये नहीं अरमान” जैसे गीत भी श्रोताओं को लंबे समय तक याद रह जाते हैं। ९० के दशक के शुरुआती दौर का यह संगीत आज भी सुनने में ताजगी भर देता है।


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फिल्म की अच्छाइयाँ

कहानी में सादगी है और पारिवारिक मूल्यों पर ज़ोर दिया गया है।

सलमान और नीलम की जोड़ी भोली और विश्वसनीय लगती है।

गीत-संगीत विशेष रूप से दिल को छू लेने वाला है।

अनुपम खेर का नकारात्मक किरदार कहानी को गहराई देता है।



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कमज़ोरियाँ

स्मृति-भ्रंश वाला प्रसंग कुछ बनावटी और पुराने ढंग का लगता है।

कुछ दृश्यों में कहानी की गति धीमी पड़ जाती है।

चरित्रों की मनोवैज्ञानिक गहराई को और विस्तार दिया जा सकता था।



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निष्कर्ष

एक लड़का एक लड़की उस दौर की सरल और भावुक फिल्मों में से है, जिसे देखते समय दर्शक को भारी-भरकम नाटकीयता नहीं, बल्कि सच्चे रिश्तों और प्रेम की मधुरता का अनुभव होता है। यह फिल्म दिखाती है कि जीवन की सबसे बड़ी पूँजी रिश्ते, भरोसा और प्रेम हैं।

यदि आप ९० के दशक की उन फिल्मों को पसंद करते हैं जिनमें गीत आत्मा का काम करते हैं, तो यह फिल्म आपके लिए अवश्य देखने योग्य है। खासकर “छोटी-सी दुनिया मोहब्बत की” गीत इस फिल्म को सदाबहार बना देता है।