Madarse ka Pyaar in Hindi Love Stories by Paagla books and stories PDF | मदरसे का प्यार

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मदरसे का प्यार

पुराने शहर की तंग गलियों के बीच खड़ा Madarsa Noor-ul-Islam,
जहां किताबों की खुशबू और सुबह की अज़ान एक साथ गूंजती है।
यहीं से शुरू हुई Tousif और Saniya की कहानी —
एक मासूम मुलाक़ात, चुपके-चुपके बढ़ती बातें,
और वो छोटे-छोटे पल जो हमेशा के लिए दिल में बस जाते हैं।

लेकिन हर मोहब्बत का अंजाम शादी नहीं होता…
कभी-कभी ये धोखे, फरेब और टूटे वादों में बदल जाती है।
Tousif का इश्क़, उसकी जद्दोजहद, और उसका इंतज़ार —
ये कहानी आपको उस मोड़ पर ले जाएगी,
जहां मोहब्बत याद बनकर रह जाती है,
और इंसान सिर्फ एक सवाल के साथ जीता है —
"क्यों?”


अध्याय 

1. पहली नज़र

2. पहली बात

3. नज़दीकियाँ

4. वो लम्हा

5. माफ़ी और वापसी

6. सच का सामना

7. ख़ाली यादें


Chapter 1 – पहली नज़र


सर्दियों की सुबह थी।
Madarsa Noor-ul-Islam का आंगन हल्की धुंध में लिपटा हुआ, जैसे आसमान ने अपने सीने पर सफ़ेद चादर ओढ़ ली हो।
पुरानी लकड़ी की खिड़कियों से छनकर आती सुनहरी धूप, फर्श पर बिखरे मोतियों जैसी लग रही थी।
हल्की ठंडक, ठंडी हवा की धीमी सरसराहट, और दूर से आती अज़ान की मद्धम आवाज़… सब कुछ एक अलग ही सुकून दे रहा था।

Tousif गेट के पास लकड़ी की बेंच पर बैठा था।
सामने खुली किताब, लेकिन आँखें सिर्फ़ लफ़्ज़ों को देख रही थीं, दिमाग़ कहीं और भटक रहा था।

तभी —
"चर्र… चर्र…"
गेट की पुरानी किवाड़ों ने अपनी नींद तोड़ी।

Tousif ने बेख़याली में नज़र उठाई… और जैसे वक़्त थम गया।

दरवाज़े से एक लड़की दाखिल हुई।
उसने हल्का आसमानी रंग का दुपट्टा ओढ़ रखा था, जिसके किनारे हवा से खेल रहे थे।
सफ़ेद सलवार-कमीज़ में उसकी सादगी ऐसी थी, जैसे चाँदनी किसी साफ़ पानी में उतर आई हो।
और उसकी आँखें… गहरी, शांत, जैसे किसी पुराने कुएँ में रात का चाँद उतर कर बैठ गया हो।

Tousif के दिल ने एक अजीब सी दस्तक दी।
धड़कन तेज़ हुई, साँस रुक-सी गई।
वो पलकें झपकाना भी भूल गया।

लड़की ने चारों तरफ़ नज़र दौड़ाई, जैसे कोई नई जगह को पहली बार महसूस कर रहा हो।
फिर वो आहिस्ता-आहिस्ता कदम बढ़ाने लगी।
किताबें पकड़ने का उसका तरीका, चलने की लय, दुपट्टे का हवा में हल्का सा लहराना…
सब कुछ मानो स्लो मोशन में हो रहा था।

(Tousif मन में)
"ये… कौन है? कभी तो नहीं देखा।"

लड़की मदरसे के अंदर गुम हो गई,
लेकिन Tousif अब भी उसी बेंच पर जमे हुए था, जैसे उसकी आँखें अभी भी उस दरवाज़े पर अटकी हों।

तभी कंधे पर किसी का हाथ पड़ा।
उसका दोस्त Faizan मुस्कुराते हुए बोला —
Faizan: "क्या देख रहा है भाई? इस तरह देखोगे तो नमाज़ क़ुबूल नहीं होगी।"
Tousif (हड़बड़ाकर): "अरे… कुछ नहीं, बस… ऐसे ही।"

Faizan हँसकर आगे बढ़ गया, लेकिन Tousif वहीं बैठा था।
उसके दिल में कुछ तो बदल चुका था।
एक अजनबी चेहरा, लेकिन अजीब सा अपनापन।
एक अनजाना एहसास, जो शायद पहली बार उसके दिल के दरवाज़े पर दस्तक दे रहा था।

बाकी दिन की क्लास में Tousif के लिए आयतें सिर्फ़ लफ़्ज़ रह गईं।
हर पन्ने के पीछे, हर लफ़्ज़ के पीछे… वही चेहरा उभर आता —
Saniya।



Chapter 2 – पहली बात


भाग 1 — पहली मुलाकात की ठंडी सुबह

अगली सुबह Tousif ने ठान लिया था —
"आज मैं सबसे पहले पहुँचूंगा।"
रात भर उसका मन अजीब-सी बेचैनी में रहा, जैसे किसी अनदेखी ख्वाहिश ने उसकी नींद को चुरा लिया हो।

सुबह की ठंडी हवा उसके चेहरे को छूकर गुजर रही थी,
गली के दोनों तरफ जमी ओस, और कहीं-कहीं से आती ताज़ा रोटियों की खुशबू...
लेकिन उसके कदम तेज़ हो गए थे —
मानो दिल ने रास्ते से कहा हो, "चल, जल्दी, आज कोई इंतज़ार कर रहा है।"

मदरसे का गेट बंद था।
उसने लकड़ी की पुरानी चाबी निकाली, ताले में डाली और एक हल्की-सी "क्लिक" के साथ गेट खुल गया।

उसी पल…
पीछे से एक हल्की सी चूड़ियों की खनक उसके कानों में पड़ी।
वो आवाज़… किसी शेर के मिसरे की तरह थी, जो दिल पर ठहर जाती है।

उसने मुड़कर देखा —
वो वही थी… Saniya।

आधी सर्दी में उसके गाल हल्के गुलाबी,
लंबी पलकों के नीचे झुकी आंखें,
और होंठों पर एक शालीन, नर्मी से भरी मुस्कान।

Saniya: "अस्सलामुअलैकुम।"
Tousif (थोड़ा झेंपते हुए): "वअलैकुम अस्सलाम… आप… नई आई हैं?"

Saniya ने सिर हिलाया, फिर पानी का खाली जग उसकी तरफ बढ़ाया।
Saniya: "ज़रा पानी भर देंगे?"
Tousif: "हाँ… हाँ, क्यों नहीं।"

वो पानी लेने चला गया,
लेकिन पूरे रास्ते उसका दिल बस यही पूछ रहा था —
"इतनी आसानी से वो मुझसे बात कर रही है… क्यों?"

जब उसने पानी का गिलास Saniya की ओर बढ़ाया,
उनकी उंगलियां हल्के से छू गईं…
एक झुरझुरी, जैसे ठंडी हवा दिल के सबसे गहरे कोने को छू गई हो।

Tousif: "वैसे… मेरा नाम Tousif है।"
Saniya (नज़रें झुकाकर): "Saniya।"

उसके लबों से निकला अपना नाम सुनकर Tousif को लगा —
जैसे किसी अधूरे शेर का दूसरा मिसरा मिल गया हो।


---

भाग 2 — खामोशियां जो बोलती हैं

उस दिन के बाद एक नया सिलसिला शुरू हो गया।
अब Tousif रोज़ आधा घंटा पहले आ जाता।
गेट खोलते ही उसे पता होता —
थोड़ी देर में चूड़ियों की वही हल्की खनक सुनाई देगी।

Saniya भी अब समय से पहले आने लगी थी।
कभी वो दरवाज़े के पास खड़ी होती,
कभी पुराने नीम के पेड़ के नीचे खामोशी से आसमान देख रही होती।

पहले-पहल उनकी बातें छोटी होतीं —
"आज ठंड ज़्यादा है।"
"हाँ, और धूप भी देर से निकलेगी।"

फिर धीरे-धीरे…
वो बातें लंबी हो गईं —
कभी किताबों के बारे में,
कभी मौसम के बारे में,
कभी मदरसे के पुराने किस्सों के बारे में।

और कई बार…
बस खामोशी में एक-दूसरे को देखना ही काफी होता।

Tousif को हैरानी होती —
"मैं उसे इतना कम जानता हूँ, फिर भी… क्यों लगता है जैसे बरसों से जानता हूँ?"

Saniya की आंखों में एक अजीब-सी गहराई थी,
जैसे वो बहुत कुछ कहती हों,
पर शब्दों में कभी नहीं।

एक दिन जब Tousif ने उसकी किताब में से गिरा एक कागज़ उठाया,
उस पर बस दो लाइनें लिखी थीं —

"कुछ लोग मिलते हैं तो लगता है,
हमने उन्हें हमेशा से जाना है…"

उस कागज़ को पढ़कर Tousif का दिल और भी धड़कने लगा।
शायद… ये सिर्फ़ मुलाकातें नहीं थीं,
ये एक कहानी की शुरुआत थी —
जो अभी लिखी जानी बाकी थी।



Chapter 3 – नज़दीकियाँ


Part 1: चाय की खुशबू और नए एहसास

दिन अब अलग तरीके से बीतने लगे थे।
सुबह जैसे ही मदरसे का गेट खुलता, Tousif सबसे पहले सामने देखता — क्या Saniya आ रही है?
और जब वो सफ़ेद दुपट्टे में हल्की मुस्कान लिए अंदर कदम रखती, तो जैसे पूरा आँगन रोशनी से भर जाता।

Saniya के आते ही, चाय की तरह गरम-गरम बातें शुरू हो जातीं —
कभी पढ़ाई के नोट्स, कभी मोहल्ले के किस्से,
तो कभी बस बेवजह की हँसी।

एक दिन क्लास खत्म होने के बाद Saniya ने अचानक कहा —
Saniya (शरारती अंदाज़ में): "पढ़ाई तो रोज़ होती है… आज थोड़ा बाहर चलते हैं?"
Tousif (थोड़ा चौंकते हुए): "बाहर? कहां?"
Saniya (आँखों में चमक के साथ): "Pizza Heart… सुना है वहां का चीज़ बर्स्ट अच्छा होता है।"

Tousif ने पहले हल्का-सा सोचा, फिर धीमे से मुस्कुराया और हामी भर दी।
दोनों पैदल निकल पड़े।
रास्ते में Saniya कभी अपने दुपट्टे को हवा में उड़ाती,
तो कभी चलते-चलते अचानक Tousif की तरफ देखकर बिना वजह मुस्कुरा देती।

Pizza आने पर Saniya ने सबसे पहले फोन उठाया —
Saniya: "ये तो Snapchat पर डाले बिना मज़ा नहीं आएगा… वैसे, तुम्हारा आईडी है?"
Tousif: "है… लेकिन मैं ज्यादा यूज़ नहीं करता।"
Saniya (हँसते हुए): "आज से करोगे… पक्का!"

और उसी पल, उनके फोन में एक नया रिश्ता जुड़ गया — Snapchat फ्रेंडशिप का।


---

Part 2: रात की खामोशियों में बातें

उस दिन के बाद, एक नया सिलसिला शुरू हो गया —
दिन में मदरसे की बातें,
शाम को चाय पर हँसी-मज़ाक,
और रात को देर तक Snapchat चैट और वीडियो कॉल।

एक रात…
Saniya (मैसेज में): "तुम सो गए?"
Tousif: "नहीं… बस लेटा हूँ।"
Saniya: "मुझे नींद नहीं आ रही… बातें करेंगे?"
Tousif: "सुबह उठना है, फिर भी… तुम्हारे लिए जाग सकता हूँ।"

फोन के दूसरी तरफ हल्की सी हँसी गूँजी,
फिर शुरू हुई बेवजह की लंबी बातें —
कभी बचपन की शरारतें, कभी अपने-अपने डर,
कभी सपनों के शहर, तो कभी बस खामोशी…
जहां दोनों एक-दूसरे की सांसों की आवाज़ तक सुन सकते थे।

रातें खिंचती चली जातीं,
और सुबह की नींद टूटी आँखों के बावजूद,
Tousif को इन देर रात की बातों में एक अलग ही सुकून मिलता था।

छह महीने ऐसे ही बीत गए।
अब Tousif को समझ आ चुका था —
Saniya उसकी ज़िंदगी का वो हिस्सा बन चुकी है,
जिसके बिना उसका दिन अधूरा है…
और शायद उसकी रात भी।

Chapter 4 – वो लम्हा


जनवरी की ठंडी दोपहर थी।
Madarsa Noor-ul-Islam का आंगन आज कुछ ज़्यादा ही ख़ामोश लग रहा था।
क्लास खत्म होने के बाद बाकी सभी लड़के अपने-अपने घर लौट चुके थे।
सिर्फ दो लोग वहीं रुके थे — Tousif और Saniya।

Saniya लकड़ी की पुरानी बेंच पर बैठी थी।
उसके खुले बाल ठंडी हवा में हल्के-हल्के उड़ रहे थे,
जैसे कोई मासूम परछाई हवा में खेल रही हो।
उसने Tousif की तरफ देखा और हल्की सी मुस्कान दी।

Saniya: "आज बहुत चुप हो… क्या हुआ?"
Tousif: "कुछ नहीं… बस थोड़ी थकान है।"

Saniya ने धीरे-धीरे अपनी किताब बंद की और उसे बगल में रख दिया।
वो चुपचाप Tousif के और करीब आ गई।
उसकी आंखों में एक अजीब-सी चमक थी —
जैसे दिल में कुछ दबा हुआ राज़ अब बाहर आना चाहता हो।

Saniya (धीरे से): "Tousif…"
Tousif: "हम्म?"
Saniya (रुकते-रुकते): "मुझे तुमसे कुछ कहना है…"

Tousif चौंककर उसकी तरफ देखने लगा।
हवा में हल्की ठंडक थी लेकिन उसके माथे पर पसीना झलकने लगा।
कुछ सेकंड की खामोशी के बाद Saniya के होंठ हिले।

Saniya: "I… love you."

ये तीन शब्द सुनते ही जैसे समय थम गया।
Tousif के कानों में उसका दिल जोर-जोर से धड़कने लगा।
वो कुछ कह पाता, उससे पहले ही Saniya ने आगे बढ़कर
धीरे से अपना हाथ उसकी जांघ पर रख दिया।

उस पल Tousif का चेहरा लाल पड़ गया।
उसकी सांसें तेज़ हो गईं और उसने झटके से एक कदम पीछे लिया।

Tousif (कांपती आवाज़ में): "Saniya… तुम ये क्या कर रही हो?"
Saniya (हल्की मुस्कान के साथ): "बस… मैंने सोचा, अब तुम्हें बता ही दूं।
इतने दिनों से जो दिल में था, वो छुपाना मुश्किल हो गया था।"

Tousif उसकी आंखों में देखने लगा।
लेकिन उसे आज पहली बार महसूस हुआ —
ये वही मासूम Saniya नहीं थी, जिसे वो अब तक जानता था।
उसके दिल में उलझन और डर दोनों एक साथ उठने लगे।

उस दिन के बाद, कई दिनों तक Tousif ने उससे कोई बात नहीं की।
हर रात उसके मन में सवालों का तूफान उठता —
"क्या मैंने गलत समझा? या सच में Saniya बदल गई है?"

वो लम्हा अब उसके दिल में एक बोझ की तरह बस गया था।

Chapter 5 – Maafi aur Wapsi (Part 1 – Maafi)

कई दिन बीत चुके थे…
ना Tousif ने Saniya से बात की, ना Saniya ने उसकी तरफ देखा।
मदरसे का वही आंगन, वही बेंच, वही गेट — लेकिन अब उनमें वो गर्माहट नहीं बची थी।
जैसे हवा में भी एक खामोशी तैर रही हो।

Tousif के लिए ये दिन आसान नहीं थे।
वो हर सुबह गेट खोलता जरूर था, लेकिन अब उसके चेहरे पर मुस्कान की जगह थकान और उदासी लिखी रहती।
दिल बार-बार सोचता —
"क्या मैं ज्यादा सोच रहा हूँ? या Saniya वाकई बदल गई है?"

एक शाम, जब आसमान ढल रहा था और कमरे में हल्का अंधेरा फैल गया था, Tousif अकेला बैठा किताब पढ़ रहा था।
अचानक उसका फोन टिमटिमाया।
स्क्रीन पर एक छोटा-सा मैसेज चमक रहा था —

“I’m sorry, Tousif.”

उसकी उंगलियां कीबोर्ड तक गईं, लेकिन शब्द गले में फँस गए।
बहुत देर तक वो स्क्रीन को देखता रहा।
दिल कह रहा था — "गुस्सा मत कर, जवाब दे दे…"
लेकिन दिमाग फुसफुसा रहा था — "इतना आसान भी मत बना।"

आख़िरकार उसने हिम्मत जुटाई और सिर्फ दो शब्द लिखे —

“It’s okay.”

फोन बंद करके वो तकिए पर लेट गया, लेकिन नींद उससे कोसों दूर थी।
उस रात उसके सपनों में भी Saniya का चेहरा बार-बार उभरता रहा।


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Chapter 5 – माफ़ी और वापसी

 (Part 2 – Wapsi)

अगले दिन मदरसे में Saniya आई।
उसकी आँखों में झिझक थी, चेहरे पर पछतावा।
वो धीरे-धीरे क्लास की तरफ चली, और पहली बार दोनों की आँखें मिलीं।
उस नज़र में बहुत कुछ छुपा था —
“मुझे माफ़ कर दो… फिर से पहले जैसे हो जाओ।”

लेकिन बातों की जगह बस हल्की-सी मुस्कान का आदान-प्रदान हुआ।
बातें फिर शुरू तो हुईं, लेकिन उनमें अब वो गहराई नहीं रही।
वो लंबी हँसी, वो मासूम नोक-झोंक, वो देर रात की कहानियाँ — सब कहीं खो गए थे।

धीरे-धीरे Tousif ने नोटिस किया —
Saniya के मैसेज अब कम होने लगे।
जहाँ पहले रात-रात भर बातें होती थीं, अब बस एक “Hello” लिखकर चैट खत्म हो जाती।
कभी-कभी तो वो उसका मैसेज seen कर देती, और रिप्लाई घंटों बाद आता।

ये बदलाव Tousif के दिल पर बोझ बनकर बैठ गया।
उसका मन खाली-खाली लगने लगा।
वो पढ़ाई में ध्यान नहीं दे पाता, खाने में भी स्वाद नहीं आता।
धीरे-धीरे उसकी तबियत बिगड़ने लगी —
सिर दर्द, बुखार, कमजोरी…
इतना कि उसने मदरसे जाना ही छोड़ दिया।

दिन गुज़रते गए।
चार महीने तक उसने Saniya को देखा तक नहीं।
लेकिन उसके दिल के किसी कोने में उम्मीद अब भी ज़िंदा थी —

"शायद वो अब भी मेरा इंतज़ार कर रही हो… शायद एक दिन फिर से सब पहले जैसा हो जाए।”



Chapter 6 – सच का सामना


Part A – तलाश और टूटना

चार महीने बीत चुके थे…
सर्दियां अब खत्म हो चुकी थीं। बसंती हवा मदरसे के आंगन में पेड़ों की पत्तियों को हिलाती, जैसे फुसफुसाकर कह रही हो — "ज़िंदगी फिर से चल पड़ी है।"

लेकिन Tousif के लिए ये चार महीने किसी सदी से कम नहीं थे।
हर सुबह उसकी आंखें उम्मीद के साथ खुलतीं — "शायद आज वो मिल जाए।"
मगर शाम ढलते-ढलते वही खालीपन, वही सन्नाटा उसकी आत्मा को खा जाता।

आख़िरकार एक दिन उसने हिम्मत जुटाई और मदरसे लौटा।
दिल धड़क रहा था कि शायद Saniya वहां उसका इंतज़ार कर रही होगी।
लेकिन हकीकत ने उसका स्वागत ठंडी चुप्पी से किया।

उसने हिचकिचाते हुए पूछा —
"भाई… Saniya कहां है?"
किसी ने अनजाने लहज़े में कहा —
"वो अब कहीं और शिफ्ट हो गई है।"

ये सुनते ही उसका दिल जैसे धड़कना भूल गया।
उसके कानों में बस वही शब्द गूंजते रहे — "कहीं और शिफ्ट हो गई है…"

उस दिन से Tousif ने हर जगह तलाश शुरू की।
वो मोहल्लों की गलियों में भटका, पुरानी लाइब्रेरी में गया, यहां तक कि वही पुराने रास्ते भी नापा जहाँ वो दोनों साथ चले थे।
लेकिन Saniya का कहीं नामोनिशान नहीं था।

हर रात बिस्तर पर लेटकर वो सोचता —
"क्या वो सच में चली गई है? या मुझे छोड़ना चाहती थी?"
उसके दिल में दर्द और सवालों का समंदर उमड़ने लगा।


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Part B – सच का सामना

फिर एक दिन किस्मत ने अचानक दरवाज़ा खोला।
Tousif अपने दोस्तों के साथ Café Aroma में बैठा था।
हंसी–मज़ाक के बीच अचानक उसकी नज़र खिड़की के पास बैठी एक लड़की पर पड़ी।

वो Saniya थी।
उसी तरह बाल खुले, वही मासूम चेहरा…
लेकिन उसकी आंखों में अब कोई और कहानी लिखी थी।

Tousif का दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा।
वो खुद को रोक न पाया और सीधा उसके पास पहुंच गया।

"तुम मेरे मैसेज का जवाब क्यों नहीं देती?" — उसकी आवाज़ कांप रही थी।

लेकिन Saniya ने न उसकी तरफ देखा, न कोई जवाब दिया।
वो बस नीचे झुककर अपने हाथों को घूरती रही।

ये चुप्पी, ये अनकहे अल्फ़ाज़…
Tousif को और भी बेचैन कर गए।
उसने इधर-उधर देखा और तभी उसकी नज़र पड़ी —
पास वाली टेबल पर Sohail बैठा था।

Sohail, उसका पुराना दोस्त…
जिसे वो भाई कहता था।

जैसे ही Tousif उसकी तरफ बढ़ा, Sohail जल्दी से उठकर बाहर निकल गया।
Tousif का दिल डूब गया।
क्या ये वही सच है जिससे मैं भाग रहा हूँ?

उस रात उसने अपने सबसे करीब दोस्त Faizan से कहा 
"उस पर नज़र रखो… मुझे जानना है क्या चल रहा है।"

दो दिन बाद फोन की घंटी बजी।
Faizan की आवाज़ भारी थी, जैसे किसी बोझ तले दब गई हो।
"Tousif… वो Sohail के साथ रिलेशन में है।"

ये सुनते ही Tousif की सांस रुक-सी गई।
उसके कानों में अजीब सीटी बजने लगी, आंखों के सामने अंधेरा छा गया।
वो लड़खड़ाया… और सड़क किनारे गिरकर बेहोश हो गया।


Chapter 7 – ख़ाली यादें


जब Tousif सड़क किनारे बेहोश पड़ा था,
Faizan उसे उठाकर अपने घर ले गया।
उसने बड़ी मुश्किल से Tousif को होश में लाया,
और फिर उसका फोन हाथ में लिया।
वो जानता था — ये फोन ही उसकी सबसे बड़ी कमजोरी है।
इसलिए उसने Saniya के सारे मैसेज,
उसकी तस्वीरें, और नंबर तक मिटा दिए।

Faizan ने सोचा —
"अगर यादें मिट जाएँगी तो दर्द भी कम होगा।"
लेकिन शायद वो नहीं जानता था कि
किसी की मुस्कान, उसकी आवाज़, उसकी मौजूदगी
फोन की गैलरी में नहीं रहती…
वो दिल की गहराइयों में बस जाती है।

दिन बीतते गए,
पर Tousif का हर लम्हा उस एक नाम से जुड़ा रहा।
कक्षा की खाली बेंचें,
मदरसे का गेट,
लाइब्रेरी की किताबें…
सब उसे Saniya की याद दिलाते।
वो किसी से बात करता,
तो बीच-बीच में उसका नाम जुबान पर आ ही जाता।
रातें और भी कठिन हो गईं —
जहां कभी घंटों चैट होती थी,
अब वहाँ सिर्फ खामोशी थी।

फिर आया Valentine’s Day।
उस दिन Tousif ने खुद से कहा —
"आज आखिरी बार कोशिश करूँगा…
शायद खुदा मेरा दिल सुन ले।"

वो लाल गुलाबों का बुके,
और अपनी बचत से खरीदी एक डार्क चॉकलेट लेकर
Bloom Café पहुंचा।
दिल तेज़ी से धड़क रहा था।
उसके मन में उम्मीद थी —
"शायद आज सब कुछ पहले जैसा हो जाए।"

लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंज़ूर था।
जैसे ही उसने खिड़की से अंदर झांका,
वो वहीं ठिठक गया।
सामने की टेबल पर Saniya बैठी थी —
हाथ में कॉफी का कप, और चेहरे पर वही चमकती मुस्कान।
लेकिन उस मुस्कान के सामने अब कोई और था… Sohail।

कुछ पल तक Tousif सांस लेना ही भूल गया।
उसके पाँव भारी हो गए।
वो वहीं खड़ा रहा,
मानो ज़मीन ने जकड़ लिया हो।
उसने देखा —
वो मुस्कान, जो कभी उसकी थी,
अब Sohail की थी।

आँखों में नमी भर आई।
उसने कांपते हाथों से बुके और चॉकलेट कूड़ेदान में फेंक दिए,
और चुपचाप वहाँ से निकल गया।
ना कोई सवाल किया,
ना कोई जवाब माँगा।
बस इतना समझ गया कि
कुछ रिश्ते कितनी ही कोशिशों के बाद भी
कभी वापस नहीं आते।

उस दिन के बाद Tousif ने Saniya से कभी बात नहीं की।
वो मोहब्बत,
जो कभी उसकी सुबहों का उजाला थी,
अब उसकी रातों की तन्हाई बन चुकी थी।

आज भी जब वो मदरसे के पास से गुजरता है,
उसकी नज़र अनजाने में गेट पर टिक जाती है।
दिल कहता है —
"शायद कभी वो लौट आए…"
पर दिमाग जानता है —
कुछ लोग सिर्फ यादों में लौटते हैं,
ज़िंदगी में नहीं।

Tagline:

"कुछ मोहब्बतें ख़त्म नहीं होतीं… बस लोग छोड़ जाते हैं।"